विचारणीय प्रश्न … An unverified WhatsApp forward in public interest .
यदि बच्चों की शादी 20 वर्ष की उम्र में हो तो एक शताब्दी में 5 पीढ़ी होंगी।
हां , अगर बच्चों की शादी 25 वर्ष की उम्र में तो एक शताब्दी में 4 पीढ़ी रहेंगी।
और जब बच्चों की शादी 33 वर्ष की उम्र में हो, तो एक शताब्दी में 3 पीढ़ी ही रह जाएंगी।
इस साधारण सी गणना से पता चलता है, कि हिन्दू जनसंख्या वृद्धि दर कहां जा रही है? विचारणीय तथ्य।
क्या हमारा समाज अगली सदी तक रहेगा ही नहीं?
क्या हिन्दू समाज के आत्ममंथन का समय अभी नहीं आया है ❓
आज चारों ओर एक अजीब-सा अंधकार फैल गया है।
गाँव सूने, मोहल्ले खाली, और घरों में चुप्पी है।
बेटियाँ 30–35 की उम्र तक कुंवारी।
बेटे 35 पार कर चुके, पर विवाह नहीं।
शादी होती है तो बहुत देर से…
बच्चे होते हैं तो एक ही…
और फिर तलाक़… टूटे हुए परिवार…
माता-पिता अकेले…
और पूरी पीढ़ी खोखली।
क्या हम इसे शिक्षित समाज कहें या जाए या आत्मघाती समाज।
जनसंख्या घटने की अवांछित चुपचाप चलती साजिश ।
मान लीजिए 100 लोग हैं , मतलब 50 जोड़े।
अगर हर जोड़ा केवल एक संतान पैदा करता है….
तो अगली पीढ़ी में बस 45-46 बचते हैं।
फिर वही क्रम चला, तो तीसरी पीढ़ी में समाज लगभग शून्य।
यह कोई डराने की बात नहीं है , यह साधारण सा गणित है, और यह हो चुका है!
गाँव उजड़ चुके हैं,
शहरों में ऊँची इमारतें हैं, पर उनमें संयुक्त परिवार नहीं बचे।
क्यों नई बहुएँ सिर्फ एक बच्चा चाहती हैं?
ताकि जीवन का आनंद ले सकें।
ताकि करियर न रुके।
ताकि शरीर पर असर न पड़े।
ताकि समाज में मॉडर्न कहलाएँ।
बड़े से कुछ प्रश्न….
क्या यही धर्म है❓
क्या यही हमारी संस्कृति है❓
क्या यही हमारे पूर्वजों की परंपरा थी❓
सच्चाई यह है…
अब संतान प्रेम का परिणाम नहीं,
बल्कि सोशल प्रूफ बन चुकी है।
देखो, हमारे भी एक बच्चा है…
यह सोच न केवल धर्महीन है, बल्कि भविष्यविहीन भी।
सबसे बड़ा दोष — लड़की के पिता का!
वही पिता, जिसने 22-25 की उम्र में विवाह कर परिवार बसाया,
आज अपनी बेटी को 30 तक कुंवारी राजकुमारी बनाए रखता है।
कभी करियर के नाम पर, कभी अच्छा लड़का नहीं मिला कहकर,
तो कभी दहेज और प्रतिष्ठा के भय से।
नतीजा — बेटी अवसाद में, IVF में, या तलाक़ में जा रही है।
और समाज … धीरे-धीरे समाप्त हो रहा है।
भयावह तस्वीर…
विवाह की औसत आयु: लड़का – 32 वर्ष, लड़की – 29 वर्ष
औसतन संतान: 1 या 0.5 प्रति दंपत्ति
हर 4 में 1 दंपत्ति… निःसंतान या चिकित्सीय समस्या..
डिवोर्स रेट…. सबसे तेज़ वृद्धि दर हिन्दू समाज में।
हज़ारों युवक-युवतियाँ विवाह योग्य होते हुए भी कुंवारे हैं..
समाज के प्रबुद्धजन क्या कर रहे हैं?
क्यों मौन धारण कर रखा है।
विवाह, परिवार और संतान — सबको त्याज्य विषय मान लिया गया है।
पर यह धर्म नहीं, पलायन है।
विवाह कोई सांसारिक बंधन नहीं — यह धर्म का स्तंभ है,
यह वंश और संस्कार की निरंतरता का माध्यम है।
यह आत्मस्वीकृति का समय है।
बेटी को राजकुमारी बनाकर विवेक से दूर किया।
बेटे को जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया।
स्वार्थ बस विवाह को टालते रहे, और जब किया तो बहुत देर से।
एक ही संतान .. और फिर वही बिखराव, वही अकेलापन।
अब क्या करना होगा?
22 वर्ष के बाद पुत्र, और 20 वर्ष के बाद पुत्री के विवाह को प्राथमिकता देनी होगी।
एक नहीं, कम से कम तीन संतानें … समाज की आवश्यकता।
समाज के अध्यक्ष, संत, विद्वान इन विषयों पर खुलकर बोलें।
लड़की के पिता…. बेटी की उम्र, भावनाएँ और भविष्य समझें।
अपेक्षाएँ घटाइए, समझ बढ़ाइए… बेटी का जीवन बचाइए।
अब नहीं चेते तो …
ना युवक रहेंगे, ना युवतियाँ…
ना संतानें होंगी, ना संस्कार….
ना समाज रहेगा, ना मंदिर….
और तब इतिहास में लिखा जाएगा …
हिन्दू समाज…. जिसने खुद को चुपचाप मिटा दिया।
बिचार करो, मंथन करो।

