बजट व् आयकर : क्या सरकार वेतन भोगी वर्ग से वैमनस्य छोड़ कर न्याय करेगी
Rajiv Upadhyay
आज २०१९ में वेतन भोगी वर्ग आय कर में ठगा सा महसूस कर रहा है . पिछले वर्ष के अखबारी आंकड़ों के अनुसार वेतन भोगी वर्ग औसतन ७५००० रूपये प्रतिवर्ष आय कर देता है जबकि व्यापारी व् वकील डॉक्टर चार्टर्ड अकाउंटेंट का सेल्फ एम्प्लोयेड वर्ग औसतन मात्र २५००० रूपये टैक्स देता है .यह सब जानते हैं की हाल ही मैं एक कचौरी वाले की आय पाँच लाख रूपये निकली थी . सरकार के लाख प्रयासों के बावजूद नए आय कर देने वालों मैं इतनी वृद्धि नहीं हुई जितने अपेक्षित थी . अधिकाँश नए कर दाता जीरो टैक्स रिटर्न भर रहे हैं . बड़े से बड़ा सरकारी अफसर भी अब दिल्ली में घर नहीं खरीद सकता और दिल्ली से चालीस किलोमीटर दूर गुड गाँव या ग्रेएर नोइडा मैं बसता है . दुःख यह है कि २०१४ में बदलाव की हवा सबसे पहले शिक्षित वेतन भोगी मध्यम वर्ग ने ही शुरू की थी . इसी वर्ग को कमरतोड़ मंहगाई की सबसे ज्यादा मार पडी थी . उसको ही नयी सरकार से न्याय की सर्वाधिक आशा थी . अरुण जेटली ने अपने पहले बजट मैं आय कर दाताओं को आश्वस्त किया था की जब पैसा आयेगा तो वह कर भार कम करेंगे . परन्तु पाँच वर्षों में पैसा तो बहुत आया परन्तु सरकार गरीबो के अलावा व्य्पारियों को तो संरक्षण देती रही परन्तु वेतन भोगी वर्ग से पता नहीं क्यों सदा उदासीन रही . आय कर टैक्स दर में कटौती का वादा जेटली जी एक दम भूल गए . पहले जो टैक्स स्लैब को बढाने की उम्मीद थी वह धुल ल धूसरित हो गई . जबकि तत्कालीन वित्त मंत्रि चिदंबरम के १९९७-९८ ड्रीम बजट से यह लगभग बीस वर्षों से स्थिर हैं . सातवें वेतन कमीशन ने सबसे कम वेतन वृद्धि की . मंहगाई पर आधारित जो वेतन वृद्धि होती है उसपर बीस या तीस प्रतिशत टैक्स लग जाता है . नए सर्विस या जीएसटी जैसे टैक्स तो सब पर बराबर लगते हैं . बाकि सारे टैक्स तो उपभोक्ताओं पर सामान रूप से बढ़ा दिए गए .इसलिए बिजली से पिक्चर तक हर चीज़ पर जो नया टैक्स लगा है वह तो सब देते हैं . परन्तु सिर्फ वेतन भोगी वर्ग पर दोहरी मार पड़ती है . अगर सरकार दुकानदारों के हितों की रक्षा मैं वालमार्ट य अमेज़न को सीमित कर सकती है तो केवल वेतन भोगी वर्ग के हितों की रक्षा करने में क्यों उदासीनता दिखाती है .यदि वालमार्ट या अमेज़न उपभोक्ताओं को सस्ता माल दिला दें तो सरकार के टैक्स मैं तो वृद्धि ही होगी क्योंकि यह कंपनियां टैक्स चोरी नहीं कर सकतीं .सरकार सिर्फ छोटे व्यापारियों के हितों को बचा रही है अध्यापकों , वैज्ञानिकों ,सैनिकों , नर्सों य डाकियों के हितों को नहीं .
यदि भारत की अर्थ व्यवस्था बीस सालों से सात प्रतिशत की दर से से बढ़ रही है तो कौन सा वर्ग इस से समृद्ध हुआ , वह वर्ग अधिक टैक्स क्यों नहीं दे रहा ? सरकार का आयकर बजट इस भ्रम में में बनाया जाता है की वेतन भोगी वर्ग समृद्ध है जबकि सच यह है कि आज व्यापारी या वकील या डॉक्टर कहीं ज्यादा कमाते हैं . जब सरकार द्वारा नियुक्त केलकर समिति ने आय कर कम करने की वकालत की थी तो एक बार लगा था की शायद सरकार कुछ करेगी . परन्तु सरकार ने एक नयी समिति बना कर इस को फिर टाल दिया .वेतन भोगी वर्ग फिर ठगा गया .बढ़ती हुई स्कूलों की फीस ,कोचिंग की फीस , प्राइवेट अस्पतालों की फीस सब बेतहाशा बढ़ रहीं हैं .बढई , नाइ , बाई , रिक्शे वाले सब हर दुसरे साल कीमतों में पच्चीस फीसद बढ़ोतरी कर लेते हैं . यह शहरी वर्ग अब पहले जैसा गरीब नहीं है . गावों में भी गरीबी घटी है कच्चे घर कम हुए हैं जो बहुत स्वागत योग्य है . सिर्फ किसान व् कृषि की हालत हरित क्रांति के बाद लम्बे समय तक उत्पादकता में वृद्धि न होने के कारण खराब है .परन्तु उसके लिए सिंचाई व् उत्पाद्क्ता में वृद्धि आवश्यक है . यदि कृषि क्षेत्र को अन्तराष्ट्रीय व्यापार के लिए खोल दिया तो इनकी हालत बहुत खराब हो जायेगी क्योंकि भारत की कृषि उत्पादकता बहुत कम है .
प्रश्न है की देश की प्रगति में वेतन भोगी वर्ग का बहुत महत्व है . यही वर्ग देश की प्रगति व् उत्पदाक्ता बढाने की विधियां बनाता य बताता है .यही वर्ग हमारी शिक्षा व् रक्षा प्रणाली की रीढ़ है और नए रक्षा के उपकरण . सटेलाईट , मशीनें बनाता है .आज सत्ता पर व्यापारियों के कब्ज़े से इस वर्ग को बहुत उपेक्षित होना पड़ रहा है . सत्ता के लिए वोट बैंकों पर आधारित सरकारों की सिद्धांतों व् इस वर्ग की इतनी लम्बी उपेक्षा राष्ट्र को अंततः बहुत को मंहगी पड़ेगी .
इसलिए यह वर्ग नहीं वित्त मंत्रि से आशा करता है कि पिछली सरकार की उदासीनता को समाप्त कर इस वर्ग के महत्व को समझ कर केलकर समिति की सुझाई दस लाख तक दस प्रतिशत , बीस लाख तक बीस प्रतिशत व् उसके ऊपर तीस प्रतिशत की केलकर समिति की सुझाई टैक्स दरों को लागू करेगी .
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