हिन्दू धर्म , धार्मिकता ,धर्मान्धता व् धार्मिक उन्माद : भारत को अन्तर समझना अब आवश्यक है — राजीव उपाध्याय
आज जब हम स्वतंत्रता के मात्र सत्तर वर्षों में विश्व की सातवीं सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति बन चुके हैं और चाँद व् मंगल गृह पर अपने यान भेज रहे हें फिर भी हर भारतीय के दिल में एक कसक बाक़ी है जो उसे बार बार कचोटती है .भारत के हिन्दुओं को अपनी लम्बी गुलामी पर क्षोभ है . उन्हें उनके मंदिरों व् ज्ञान केन्द्रों के ध्वस्त किये जाने का क्रोध है . उन्हें सदियों तक हिन्दुओं पर किये गए अत्याचारों पर क्षोभ है . अनेकों युद्धों मैं बहादुरी से लड़ने के बाद भी हूणों से लेकर १९६२ के चीन से पराजय तक का इतिहास हमें कचोटता है . ऐसे में स्वतंत्रता के बाद भी हिन्दुओं से किया गया ‘ Reverse Discrimination ‘ , जिसकी पराकाष्ठा पूर्व प्रधान मंत्रि मनमोहन सिंह का वह बयान था कि भारत की सम्पदा अल्पसंख्यकों का पहला अधिकार है उन्हें और क्रोधित करता है . शंकराचार्य की गिरफ्तारी से लेकर हिंदी फिल्मों से भजन व् शास्त्रीय संगीत के गायब होने तक उन्हें स्वतंत्र भारत में भी उनको हिन्दुओं के दमन होने पर बहुत क्रोध आता है . इसी श्रंखला में पाकिस्तान के मुंबई से लेकर उरी तक के हमलों पर हमारा उचित उत्तर न दे पाना असहनीय लगता है .बांग्लादेश से करोड़ों रेफुगियों के बाद फिर से रोहिंग्या विस्थापितों को बर्मा से सुदूर जम्मू मैं ले जा के बसाना एक अंतर्राष्ट्रीय षड्यंत्र है जिसको न रोक पाना समझदार लोगों को बहुत खलता है . फिर मुंबई से उरी तक पाकिस्तान जब चाहे चपत मार जाता है और हम कुछ नहीं कर पाते, इससे बहुत क्रोध होता है .
और सबसे अधिक दुःख स्वतंत्र भारत में कश्मीर से लाखों पंडितों का निष्कासन का है जिसका अभी तक कोई समाधान नहीं हुआ है .
इसी दबे और इकठ्ठे हुए क्रोध व् व्यथा का परिणाम अब कभी कभी सड़कों पर दीखने लगा है जो शायद एक प्राकृतिक प्रतिक्रिया होते हुए भी अवांछनीय है .
परन्तु हम रामायण की पूजा करने वाले व् ‘ आरती श्री रामायण जी की ‘ गाने वाले , तुलसी दास जी की रामायण की शिक्षा ‘ धीरज धर्म मित्र अरु नारी , आपत काल परखिये चारी ‘को हम भूल जाते हैं .हमारे जीवन के मूल्यों व् संस्कारों की परीक्षा तो विपत्तिकाल में ही होती है . हमारे आदर्श ही हमें सदियों तक गुलामी मैं भी हिन्दू बनाए रखे थे जब की ईरान व् पाकिस्तान से बोस्निया तक इस्लाम एक मात्र धर्म बन गया था . हमारे इतिहास के घावों का मरहम क्षमा है बदला नहीं . हमारी लम्बी गुलामी से जनित गरीबी व् दुःख का इलाज़ जर्मनी ,चीन व् जापान की तरह एक विकसित देश बन विश्व शक्ति बनने में है . जिस प्रकार धीरू भाई अम्बानी अपने अदन के दिनों से या मोदी जी अपने चाय बेचने के दिनों को याद कर क्षुब्ध नहीं होते बल्कि उनकी यादों को एक सतत उन्नति की ताकत बना लेते हैं ठीक उसी तरह हमें अपने गुलामी या अत्याचारों को अपनी ताकत बनाना है जिससे हम शीघ्र अति शीघ्र जर्मनी, चीन या जापान सरीखे देश बन सकें और हमारे देशवासी अपनी गरीबी से मुक्ति पा कर गर्व से अपना सिर उठा कर विश्व मैं न केवल जी सकें बल्कि अन्याय से पीड़ित उन लोगों की सहायता कर सकें जिन मैं स्वयं की रक्षा करने का समर्थ नहीं है . विश्व की राजनीती में आदर्शों का बहुत ह्रास हुआ है व् सब देश स्वार्थ की राजनीती करने लगे हैं . इसमें गरीब व् पिछड़े हुए देशों की कोई फरयाद नहीं सुनता . समृद्ध व् सशक्त भारत को फिर इस धारा को आदर्शवादिता की और मोड़ना होगा .
अति भौतिकवाद से त्रस्त विश्व मैं धर्म का पुनर्भव हो रहा है .धर्म को कभी अफीम मानने वाले रूस व् चीन जैसे देश भी इससे अछूते नहीं हें. परन्तु नवोदित अंतर्राष्ट्रीय धार्मिकता मैं भी आदर्श कम व् इस्लामिक आतंकवाद व् मुसलामानों की बढ़ती हुयी जन्संख्या की प्रतिक्रया ज्यादा है . चाहे अमरीका में राष्ट्रपति ट्रम्प के असहिष्णु बोल हों या न्यूजीलैंड मैं मस्जिद पर फायरिंग हो , धर्म अब एक प्रतिक्रियावादी शक्तियों के हाथों मैं चला गया है . यह आज भी सबसे अधिक तो इस्लामिक देशों मैं ही है जहां घर मैं रामयाण पढने पर भी पाबंदी है . इसकी प्रतिक्रया मैं हर देश मैं ट्रम्प पैदा हो रहे हैं . परन्तु उपनिवेशवादी चिंतन अभी भी विश्व मैं छाया हुआ है . सोवियत रूस के समाप्ति से सबसे बड़ा नुक्सान पूर्व उपनिवेश रहे गरीब देशों को हुआ है . लिबिया , इराक व् सिरिया को किस दोष की सज़ा मिल रही है . इसलिए पश्चिमी देशों मैं भी धर्म की परिभाषा बहुत असंतुलित हो गयी है .
हमारे शास्त्रों में धर्म को जीवन मैं सदा मार्ग दर्शक मना गया है .धार्मिकता एक सदा धर्म की राह पर चलने की मानसिकता है जो किसी व्यक्ति या समूह को परिभाषित करती है . धर्मान्धता धार्मिकता से अलग होती है .जहां धर्म व्यक्ति व् समाज के बृहत् कल्याण के लिए बनाये सिद्धांतों का संकलन है वहाँ धर्मान्धता एक असहिष्णु सोच है जो धर्म शास्त्रों के किसी खंड को बिना परखे पालन में होती है .इसमें चाहे पोप के
बाइबिल के लिखे सिद्धांतों पर कोपरनिकस को ज़िंदा जला देना हो या जिहाद के नाम पर किये गए अत्याचार हों . इन्हीं मैं सती प्रथा उन्मूलन का विरोध या औरतों को शिक्षा से वंचित रखना भी शामिल है . धार्मिक उन्माद एक वह अवस्था है जो मनुष्य को धर्मान्धता मैं विवेकहीन बना कर घोर अनैतिक कार्य करवाती है . जिहादी सोच या यहूदियों का जर्मनी में दमन इसके उदाहरण हैं .
हिन्दू समाज सदा से सहिष्णु समाज रहा है . इसमें व्यक्ति को अपना भला बुरा सोचने की आजादी है . इसमें विधर्मियों से द्वेष नहीं है . इसलिए आज जब हिन्दू स्वतंत्र हुआ है तो उसे अपनी स्वतंत्रता का उपयोग अपनी श्रेष्ठता को अपनी उपलब्धियों से सींचने का प्रयास काना चाहिए . अपने गुलामी से पूर्व के गौरव मयी इतिहास को अपनी सामाजिक , वैज्ञानिक , आर्थिक उपलब्धियों से पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है . आज निस्संदेह हम अपने जीवन में किसी का हस्तक्षेप या अन्याय नहीं चाहेंगे परन्तु अपनी सहिष्णुता की परम्परा को शर्मसार नहीं करना चाहिए . धर्मान्धता कभी हमारा परिचय नहीं थी न ही आज उसे हमारा परिचय बनने दिया जा सकता है .
आज के शिक्षित वर्ग को जनता में धर्म की सच्ची परिभाषा व् आदर्शों को फैलाने का सतत प्रयास करना चाहिए . हमें एक और धर्मांध जिहादी पाकिस्तान नहीं बनना है . नीचे उद्धृत मेल को पढें . हम में से कौन इससे शर्मसार नहीं है . यह हमारे आदर्शों का भारत नहीं है न ही भारत को ऐसा बनने दिया जा सकता है. हमें हिन्दू धर्म चाहिए धर्मान्धता नहीं न ही उसके ठेकेदारों की अराजकता .
The teenager riding down National Highway 31 was already living a nightmare. Two years earlier she had been raped, she claimed, by a group of men starting with Kuldeep Singh Sengar, a powerful politician in her home district of Unnao, in Uttar Pradesh, India’s most populous state. Her family tried to file a complaint with the local police, who brushed them off. Then they began receiving death threats. In 2018 her father was allegedly beaten senseless in broad daylight by Mr Sengar’s brother and a bunch of goons—and then jailed on unrelated charges. His daughter despaired of finding justice in Unnao and left for the state capital of Lucknow, where she stood before the residence of the chief minister, Yogi Adityanath, a Hindu cleric, and doused herself in kerosene, but was overpowered before she could light it. The next day her father died in police custody.
The victim continued to seek justice, to no avail. A witness to her father’s death died in jail. Her uncle was sentenced to ten years in prison on a 20-year-old charge. Mr Sengar and his allies in the Bharatiya Janata Party (bjp), including Mr Adityanath and the mp from Unnao, celebrated a resounding victory at the polls in May. The victim wrote a letter to the chief justice of the Supreme Court asking for help.
At 1.30pm on July 28th, the same young woman, now 19 years old, was seated in a compact car with her two aunts, on their way to visit the jailed uncle. They were supposedly under police protection, although the assigned officers did not escort them on the journey. A lorry travelling in the opposite direction swerved into their lane. Its licence plate was blacked out and it did not slow down. The impact flattened the front of their car and killed both the aunts. A month later, the rape victim remains in intensive care, unable to speak. If she does not recover, it is likely that her rape will go unpunished, since no witness’s testimony may stand as evidence until it can be subjected to cross-examination.
It is a dangerous business being the witness to any serious crime in India, especially when the accused are powerful. Intimidated witnesses often recant their initial testimony and refuse to co-operate with the prosecution. As cases drag on, it becomes harder for victims and their families to bear the pressure. Catastrophic miscarriages of justice are not unusual. In 2013 riots in Muzaffarnagar, also in western Uttar Pradesh, killed at least 65 people, most of them Muslims. All 53 of the men accused in 40 related homicide cases were acquitted. All the witnesses changed their minds, including five who had previously reported seeing their own relatives murdered. A murder case that involved the man currently responsible for India’s internal security, Amit Shah, ended with no convictions after 92 witnesses recanted.
Lorries with blacked-out number plates have become especially dangerous in recent years. Prashant Pandey, an expert witness in corruption cases against the previous state government of Madhya Pradesh, narrowly survived a collision that tipped over his family car. Early this year the family of Sanjiv Bhatt, a decorated civil-service officer who had made an enemy of many senior bjp members, was rammed by another heavy, blank-plated vehicle.
Conviction rates tell the tale. Whereas in most rich countries 80% or more of those charged with crimes are found guilty, in India the rate is between 40% and 50%—and for cases involving politicians just 6%. In December the Supreme Court was moved by the plight of witnesses for the prosecution of a cult leader accused of rape and murder, who were dropping like flies. It found “the conditions of witnesses in the Indian legal system can be termed ‘pathetic’.” As a stopgap, the court ordered that a witness-protection scheme devised by the home ministry be put into effect in all India’s states within a year.
Shiv Singh, a lawyer in Delhi, says the main principle of the scheme, that “protection measures shall be proportionate to the threat” against the witness, is correct. But few states will meet the deadline. Moreover, money for witness-protection can be sent to a place like Unnao, but the chances that local officials will put together a watertight system are very small indeed. Another advocate practising in Delhi, Abhinav Sekhri, recommends normalising an existing procedure whereby magistrates sometimes record witnesses’ initial statements, although this would not necessarily stop them from abjuring these accounts later on. In small towns, time is not on the side of justice.
Public outrage also helps. The details of the Unnao case grew so grotesque and the uproar in the media so loud that this month the bjp at last distanced itself from Mr Sengar, saying that he had been expelled from the party. He has been charged not only with rape, but also with orchestrating the arrest of the victim’s father. He and his brother have been charged with the murder of the victim’s father, too. The greater the public indignation and scrutiny, the unlikelier it is that all the witnesses to these alleged crimes will suddenly change their tune or fall under a bus.
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