वित्त मंत्रि व् अर्थ व्यवस्था : रोग समझ आ गया पर लंबा इलाज़ अभी बाक़ी है : Miles to Go Before I sleep

वित्त मंत्रि व् अर्थ व्यवस्था : रोग समझ आ गया पर  लंबा इलाज़ अभी  बाक़ी है : Miles to Go Before I sleep

राजीव उपाध्याय rp_RKU-263x300.jpg

 

यदि  शेयर बाज़ार का उछाल  व् उद्योगपतियों को रुख देखें तो ऐसा लगेगा की जैसे वित्त मंत्रि ने एक झटके में अर्थव्यवस्था को ठीक कर दिया है . परन्तु अभी सिर्फ रोग समझ आया है और दर्द कम हुआ है इलाज़ बहुत लंबा है और अभी  बाक़ी है . वैसे तो १.४५ लाख करोड़ के टैक्स  घाटे में मैं यह सौदा बहुत महँगा लगता है . पर ऐसा है नहीं . विदेशी पूंजी निवेशकों ने पिछले वर्ष ८७००० हज़ार करोड़ रूपये भारतीय बाज़ार से निकाल लिए थे . अब  वह सब वापिस आ जायेंगे . इसी तरह अगर अगले बजट मैं इनकम टैक्स स्लैब कम कर दिया और कैपिटल गेन टैक्स को इंडेक्सिंग का फायदा दे दिया तो शेयर मार्किट मैं इतनी बिकवाली होगी की सरकार को पूरा पैसा वापिस मिल जाएगा .अभी तो वित्त मंत्रि की घोषणाओं से  हमने उद्योगों के घटते लाभ को बचा कर टैक्स की कमी  से पूरा कर दिया है . इसलिए अगले वर्ष हर कंपनी की बैलेंस शीट  मैं लाभ कम नहीं होगा और अनेकों सफल कंपनियों का फायदा बहुत बढ़ जाएगा . साधारण भाषा मैं यूँ कहें की चाहे मारुती की गाड़ियां कम बिकें उसे फायदा तब भी उतना ही होगा . जिन उद्योगों ने बैंक से कर्जा लिया है वह मंदी  की अर्थव्यवस्था मैं भी अपनी क़र्ज़ की किश्त अदा कर सकेंगे . इसलिए पूरे उद्योग जगत मैं खुशी की लहर है . परन्तु पूरे देश की अर्थ व्यवस्था तो बहुत बड़ी होती है . अभी कृषि का अवरुद्ध विकास , नए उद्योगों की कमी , गायब हुई नौकरियां ,सूने बाज़ार  ,  नए घरों की घटती मांग सभी समस्याएं तो ज्यों की त्यों खडी हैं . परन्तु कम से कम सरकार को समझ आ गया की औद्योगिक गाय को  चार बार दुहने से दूध नहीं बढ़ता बल्कि सेवा व् अच्छे चारे से ही गाय ज्यादा दूध देती है . आशा है की आगे से सरकार भारतीय उद्योगों रूपी गाय को को चारा देती रहेगी .

परन्तु  नयी वित्त मंत्रि  ने बड़े फैसले लेनी की क़ाबलियत तो दिखा दी है परन्तु अभी  बहुत कठिन है डगर पनघट की .

देश की आर्थिक विकास के अवरुद्ध होने की असली समस्या तो बहुत बड़ी है . सरकार उससे लड़ने का साहस नहीं जुटा पा रही . परन्तु उसने पहले पाँच वर्ष तो झूठे आंकड़ों के विकास को बखानने मैं व्यर्थ कर दिए . सच यह है की मनमोहन वाजपेयी युग के मुकाबले वास्तविक आर्थिक विकास दर बहुत कम है .इसका मुख्य कारण उद्योगों में निवेश मैं कमी है . नए उद्योग नहीं  खुल रहे और जिसने भी बड़ा निवेश किया वह क़र्ज़ तले  तब गया है . टाटा , अम्बानी जैसे बड़े व् प्रतिष्ठित घराने भी बुरी हालत मैं हैं . बिजली के उत्पादन मैं बढ़ोतरी बहुत कम हो गयी है . लोहे सीमेंट की मांग नहीं बढ़ रही है . सिर्फ सरकार अकेले सड़कें , बंदरगाह व् सस्ते घर बनवा कर अर्थव्यवस्था को पूरी तरह डूबने से बचाए हुए है . यदि सरकार झूठे आंकड़ों को बखानना बंद कर देश को सच्चाई बताये तब ही तो ठीक फैसले  ले पायेगी . क़र्ज़ मैं डूबे हुए उद्योगों को सहायता देनी होगी . यदि हम एयर इंडिया ,जेट व् किंगफ़िशर या बड़े उद्योगों को इत्यादि को एक बार बचा लेते हैं तो भी बुरा नहीं होगा . राष्ट्रपति ओबामा ने भी जीएम , फोर्ड , बैंकों व् इन्सुरांस कंपनियों को बचा लिया था . अब वह ठीक हो गयीं हैं .भारत मैं हमने बुरा वातावरण कर दिया है जिसमें सब उद्योगपतियों को चोर मन लिया गया है .

इतनी जल्दी कृषि का विकास दर बढ़ाना संभव नहीं है .सिंचाई पर खर्च बहुत होता है परन्तु नए डैम व् नहर बनते रहने चाहिए . राजस्थान मैं इंदिरा नहर व् गुजरात मैं नर्मदा डैम  से विकास दीख रहा है . पर अब कम पानी वाली सिंचाई व्यवस्था को विकसित करने की आवश्यकता है . जीएम बीज को भी कपास जैसी सीमित फसलों के लिए अनुमति देनी होगी . गांवों  में मछली , दूध , अंडे इत्यादि के उत्पादन को और प्रोत्साहन देना होगा संभवतः अमूल जैसी अन्य संस्थाएं खोलना लाभप्रद होगा . सब्जी व् फलों के लिए नए कोल्ड स्टोर व् रेफ्रिजरेतेड स्टोर खोले जा सकते हैं . जहाँ व्यक्तिगत टैक्स स्लैब कम करें वहीँ गावों की आय तो फसलों के दाम पाँच प्रतिशत  बढ़ा कर ही बढाई जा सकती है . इससे गाँव की खरीदने की क्षमता कुछ बढ़ेगी .छोटे उद्योगों के लिए चीन से अनावश्यक सस्ते आयात बंद करना चाहिए . मोबाइल की तरह टीवी भी भारत मैं बनने  चाहिए .दीवाली के  सस्ते चीनी लक्ष्मी गणेश, दीये , तोरण  व् पटाखे रोके जा सकते हैं चाहे हमें मंहगे पटाखे ही जलाना पड़ें .ऐसे बहुत से अनावश्यक वस्तुओं के आयात बंद करना चाहिए .देहरादून के बल्ब व् फिरोजाबाद का कांच के सामान के उद्योग तो चीनी सस्ते झूमरों से बंद हो गए हैं .

बीजेपी में डॉ सुब्रमण्यम स्वामी के सुझाव व् समझ बहुत उपयोगी हैं और उनकी टक्कर का कोई अर्थ शास्त्री नहीं है . उनका फोर्मुले में एक तरफ नए छोटे उद्योगों को मात्र नौ प्रतिशत पर ब्याज देना है और  बैंकों की फिक्स्ड डिपाजिट की दर बढ़ा कर बचत बढ़ाना है . इससे करोड़ों रिटायर्ड लोगों की आय नहीं घटेगी और बड़ी बचत से दाम भी कम बढ़ेंगे . इससे भी आगे बढ़ कर सरकार रिटायरमेंट की आयु दो साल बढ़ा कर पेंशन के खर्च कम कर सकती है . मेरे विचार मैं रिटायरमेंट  के आधे धन को पीपीएफ मैं पाँच साल के लिए डिपाजिट करने की अनुमति देने  से भी सरकार को मंहगाई रोकने में लाभ होगा .

निर्यात की समस्या सिर्फ रूपये डॉलर के रेट से ठीक नहीं हो सकती .

भारतीय कपड़ा उद्योग को बांग्लादेश से अधिक कोम्पेटीतिव  बनाना होगा . उसकी हालत पतली है . हीरे की जेवेलरी मैं भी भारत पिछड़ रहा है .सॉफ्टवेर में भी आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस के पूरे बाजार को भारत मैं लाना है . मेडिकल टूरिज्म को बहुत बढ़ाना है .इनके लिए सरकार को मिलजुल कर बहुत प्रयास करने होंगे .

अर्थ व्यवस्था की सबसे ज्यादा बर्बादी तो काले धन , सीबीआई , ई डी , सीवीसी , व् टैक्स वालों ने की है .सरकारी बाबु तो अब पेंशन बचाने की मुहीम मैं जुटे हुए हैं . उनका डर अब यह सदा डांटने वाली सरकार कम नहीं कर सकती . सीबीआई व् सीवीसी इत्यादि की पाँच वर्षों की अपार कृपा से इस सरकार मैं अब कोई मनमोहन नहीं पैदा होगा . जो बाबु पंसारी की दूकान चलाने लायक क़ाबलियत नहीं रखते वह सरकारी  कुर्सी से उद्योग पतियों को भाषण देते हैं . भला हुआ की चंद्रयान फेल  होने पर इसरो प्रमुख जेल नहीं भेजे गए और उनकी पेंशन नहीं कटी ! बड़े बाबुओं के बस मैं होता तो यह भी कर देते .इसी तरह जितना इमानदारी दिखाने का जुर्माना देश ने नोट्बंदी का दे दिया है वह अगले दस वर्षों के लिए काफी है . अब इस छद्म इमानदारी के विनाशकारी भूत को पुनः बोतल मैं बंद करना अति आवश्यक है . इस देश को अपने उद्योग पतियों पर भरोसा करना पडेगा और जापान की तरह उद्योगों के साथ चलना होगा  .

वित्त मंत्रि ने जो साहस दिखाया है वह प्रशंसनीय है पर उसे पूरी अर्थ व्यवस्था को ठीक करने तक बनाए रखने की आवश्यकता है .इसके लिए प्रधान मंत्री को देश के चिंतन को उनके छोटे छोटे प्रोजेक्ट्स ,काले धन व् भ्रष्टाचार से हटा कर पुनः बड़े  विकास की तरफ ले जाना है . यह कार्य राजनितिक रूप से खतरनाक है पर वित्त मंत्रि अभी नयी हैं और इसे कर सकती हैं .

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