राफेल शस्त्र पूजा : लिब्रंडूओं को मिर्ची लगी तो मैं क्या करूँ ?
इतिहास मैं हम अनेकों बार पढ़ कर और पढ़ा कर थक चुके हैं की सोमनाथ पर आक्रमण के समय पचास हज़ार लोग प्रांगण मैं इक्कट्ठे थे और दैविक चमत्कार का प्रतीक्षा कर रहे थे . कोई चमत्कार नहीं हुआ और सब के सब मौत के घाट उतार दिए गए ! तुलसी दास जी ने तो राम चरित मानस मैं लक्ष्मण का समुद्र पूजन के समय का यह सम्वाद् भी अमर कर दिया , ‘ नाथ दैव का कवन भरोसा ‘ . ऐसे में राफेल जैसे वैज्ञानिक व् तकनीकी श्रेष्टतः वाले लड़ाकू हवाई जहाज की नीबुओं से रक्षा कैसे हो सकती है ? क्या इस परम वैज्ञानिक युग मैं भारत के रक्षा मंत्रि की जहाज की रक्षा की याचना के लिए यह पूजा उचित है ?
यदि यह प्रश्न यदि देश के प्रबुद्ध वैज्ञानिकों ने किया होता तो शायद सोमनाथ की घटना भी मन में कोंधती और शायद कुछ लोग यह कहते की विदेशी तकनीकी अस्त्रों की चीन के जे -२० हवाई जहाज जैसी नक़ल करना, पूजा करने से अधिक अच्छा है . देश मैं वैचारिक स्वत्न्र्ता है और हर विचारधारा के सह अस्तित्व का स्थान है . परन्तु प्रश्न तो वह लोग कर रहे हैं जिन्होंने पुराने त्रि भाषी फ़ॉर्मूले में संस्कृत की जगह जर्मन भाषा पढ़ाना शुरू कर दिया था और शंकराचार्य को दीवाली के दिन गिरफ्तार करवाया था .
तो इन से कोई पूछे की क्या क्रिकेट में जीत पर शम्पैन की बोतल खोलना उचित था ? पर क्या इन लिब्रान्दुओं मैं से कोई बोला ? चित्र मैं भारतीय टीम का व्यव्हार साफ़ दीख रहा है .यही हाल बहु प्रचलित केक काटने के औचित्य का है .
चलिए राफेल शस्त्र पूजा की विदेशी शस्त्र पूजा से ही तुलना करते हैं . संलग्न चित्र मैं विदेशों मैं नये जहाज़ों की पूजा को देखें .लगभग भारतीय पूजा समान ही है . तो यह अवार्ड वापिसी वाले कहाँ थे . अच्छा इनको भी छोड़ें आधुनिक युग प्रगति के पर्याय अमरीकी नासा मैं अन्तरिक्ष मिशन से पहले संलग्न फिल्म में इसाई पादरी को पूजा करते देखें . अन्तरिक्ष यात्रियों में भारतीय मूल की सुनीता विलियम भी हैं . इन सबसे दुखद कहानी उन छद्म धर्मनिरपेक्ष वादियों की हैं जिन के अनुसार यदि पूजा हो तो भारत की सब धर्म विधाओं से हो ! वह भूल जाते हैं की इसी फ्रांस ने २०१५ में ईरान के राष्ट्रपति के सम्मान में आयोजित भोज रद्द कर दिया था क्योंकि ईरान के राष्ट्रपति रोहानी ने शराब परोसे जाने वाले भोज मैं आने से मना कर दिया और फ्रांस ने अपनी परम्पराओं को दुहाई दे कर बिना शराब के भोज देने से मना कर दिया . हिन्दू बाहुल्य भारत मैं सब धर्मों का आदर अवश्य है पर हम किसी अन्य के लिए अपनी हिन्दू रीति रिवाज़ व् परम्परा नहीं छोड़ेंगे .सत्तर वर्षों में हम सब हिन्दू से धर्म निरपेक्ष बन गए ?
परन्तु अंध विश्वास व् पूजा में क्या अंतर है ? कब पूजा अवैज्ञानिक हो कर अंध विश्वास बन जाती है ? कब पूजा पर आश्रय व्यक्ति के साहस का का क्षय करता है ? तुलसीदास जी ने लक्ष्मण के संवाद में इसी का विस्तार किया ही
कह लंकेस सुनहु रघुनायक। कोटि सिंधु सोषक तव सायक॥ जद्यपि तदपि नीति असि गाई। बिनय करिअ सागर सन जाई॥4॥
सखा कही तुम्ह नीति उपाई। करिअ दैव जौं होइ सहाई। मंत्र न यह लछिमन मन भावा। राम बचन सुनि अति दुख पावा॥1॥
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