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MMRCA &Rising Krishna Menonism In Defence : क्या भारत दम्भी अज्ञान वश रक्षा की आवश्यकताओं की उपेक्षा कर रहा है

MMRCA &Rising Krishna Menonism In Defence : क्या भारत दम्भी अज्ञान वश रक्षा की आवश्यकताओं की उपेक्षा कर रहा है

Rajiv Upadhyay rp_RKU-150x150.jpg

India-China-War-1आज भी दंश मारने वाली १९६२ के भारत चीन युद्ध की अपमान जनक पराजय के  मुख्य दोषी  तत्कालीन रक्षा मंत्रि कृष्णा मेनन और उनकी अपनी दंभ व् अज्ञान  भरी श्रेष्टतः  मैं अटूट विश्वास ही थे . वह अपने समान किसी को बुद्धि मान नहीं मानते थे और कोई सेना प्रमुख या अधिकारी उनको सच नहीं बताता था .दुसरे दोषी तत्कालीन प्रधान मंत्रि  नेहरु थे जिन्होंने अपनी व्यर्थ झूठी तालियाँ बजवाने वाली गुट निरपेक्ष विदेश नीति पर इतना विश्वास था की उनको लगता था की चीन भारत से कभी युद्ध नहीं करेगा . देश का रक्षा बजट अपने निम्न स्तर पर पहुँच गया था और ऑर्डनेन्स फेक्ट्रियाँ कॉफ़ी मशीन बनाने लगी थीं .यहाँ तक की सेना का उपयोग क्वार्टर बनाने के लिए किया जाने लगा था . प्रधान मंत्रि नेहरु का अक्षम कृष्णा मेनन पर अपरिमित विश्वास देश के लिए बहुत घातक  बन गया . रक्षा मंत्रालय के बाबु आज ही की तरह  नेताओं को सेना की क्रान्ति का हउआ दिखा कर सेनाओं पर अपना राज जमाने मैं व्यस्त थे . तत्कालीन इन्तेलिजेंस के मुखिया बी.मलिक

सब कुछ जान कर भी नेहरु जी को पूरी सच्चाई बिना बताये  ‘ फॉरवर्ड पालिसी’  से नहीं रोक सके .

 

nehru menon१९६२ की ही तरह सेनाओं के वेतन व्  पेंशन के बाद हथियारों के लिए बचा रक्षा बजट बहुत अपर्याप्त है . पिछले दशकों मैं लोक लुभावन मनरेगा जैसे अनेकों खर्चों ने सरकारी कोष खाली कर दिया है और इसके कारण  रक्षा का वास्तविक बजट लगातार घट रहा है और चीन या  पाकिस्तान के मुकाबले के लिए  बहुत कम है . सी पेक के बाद चीन व् पाकिस्तान हम से लाहोर से अरुणांचल प्रदेश तक एक साथ हमला कर सकते हैं .दो नेवी प्रमुखों की अपमान जनक बर्खास्तगी के बाद अब सेना प्रमुख सच जानते हुए भी चुप हैं और सार्वजनिक मंचों से व्यर्थ के अर्ध राजनीतिक  बयान देते रहते हैं . पूर्व मंत्रि खंडूरी जी ने सब रक्षा मंत्रालय संसदीय समिति की रिपोर्ट भी सेना के पुराने सामान व् अपर्याप्त तैयारी का वर्णन किया तो उन्हें समिति से निकाल दिया गया. मीडिया पर रोज़ पकिस्तान का बैंड  बजा कर जनता को भ्रमित कर रखा है . सारा देश मीडिया द्वारा दी जा रही उरी व् बालाकोट की अफीम के नशे मैं धुत्त है.इतने सारे पोलिस सशस्त्र दलों की क्या ज़रुरत है ? आई टी बी पी , सीमा सुरक्षा बल व् असम राइफल रिटायर्ड सैनिकों व् अफसरों से क्यों नहीं भरी जा सकतीं ? सिर्फ पुलिस अपने को सेना से ऊपर मानती है और उसे अपनी अलग  सेना चाहिए .

वायु सेना ने अंग्रेजों के बाद  से देश की सशक्त रक्षा के लिए ४२ स्क्वाड्रन  हवाई जहाज़ों की आवश्यकता आंकी गयी . तब तो चीन व् पाकिस्तान का खतरा भी इतना बड़ा नहीं था .१९६५ के युद्ध मैं हमारे पास पाकिस्तान से ढाई गुने ज्यादा हवाई जहाज थे जो आज सवाये या ड्योढ़े ही  रह गए हैं जबकी चीन के लिए अब हमारी आवश्यकता बहुत बढ़ गयी है . तब तो लाल बहादुर शास्त्री जी ने लाहोर पर हमला कर अपमानजनक पराजय की स्थिती को बचा लिया था . आज कौन हमें बचाएगा ? १९८० मैं हमारे पास लगभग ४५ स्क्वाड्रन थे .1971 के बांग्लादेश युद्ध के दौरान भी हमारे पास ३६ स्क्वाड्रन  थे जो आज घट कट सिर्फ ३२ रह गए हैं जो बहुत कम हैं . इनमें भी लगभग  दो सौ हवाई जहाज तो १९६० के दशक के मिग २१ हैं जिन्हें उड़ता ताबूत ही कहा जाता है. सन २०००  में हमने मिग को बदलने का निर्णय लिया था और वायु सेना ने १२६ हवाई जहाज की आवश्यकता आंकी थी . २००८ मैं सरकार ने १२६ जहाज़ों का टेंडर निकाला था . आज बीस साल बाद भी हम ने सिवाय फ्रांस से ३६ राफेल के अलावा कोई जहाज नहीं खरीदा .स्वयं मोदी सरकार ने ११४ जहाज़ों खरीदने का टेंडर निकाला था . अब फिर पैसे की कमी के कारण फिर से सिर्फ ३६ राफेल खरीदने की बात हो रही है . अभी तक न तो  किसी ने अमका देखा न तेजस मार्क -२ और न ही कावेरी इंजन बना है . . सिर्फ हवाई बातों को उड़ाया जा रहा है . इसका आधार फिर  कृष्णा मेनन काल का झूठा मूल्यांकन है की चीन व् पाकिस्तान हम पर मिल कर हमला नहीं करेंगे . फिर से हमें अपनी झूठी शान भरी विदेश नीति पर अटूट विश्वास हो रहा है और हमें लग रहा है की कोई अमरीका , जापान या फ्रांस हमें हमले से बचा लेगा . हम भूल रहे हैं की कैसे स्टॅलिन के रूस ने जर्मनी  से रक्षा समझौते के बावजूद अपनी तैयारियों मैं कमी नहीं की थी . उन्हीं तैयारियों ने उसे बचा लिया था हालांकि उस लड़ाई मैं रूस के करोड़ लोग कथित रूप से  मर गए थे . हमारा तो इतनी लम्बी लड़ाई लड़ कर जीतने का कोई इतिहास भी नहीं है . पानीपत के सब युद्ध तो सिर्फ एक दिन मैं समाप्त हो गए थे . गौरी , गजनी तो हार कर अगले साल फिर लड़ने आ जाते थे परन्तु न राजपूत न मराठे एक बड़ी  पराजय के बाद फिर उठ सके .हमें अपनी वास्तविकता का भान होना चाहिए.

पाकिस्तान को कम आंकने की गलती घातक होगी . उसने सदा अविश्वसनीय साहस का काम किया है . जिन्ना के पठान/ अफगान मुजाहिदोनों से कश्मीर ले लेने जैसी बात हम कभी सोच नहीं सकते थी . मात्र दस आदमियों से मुंबई या पार्लियामेंट जैसा हमले  का विचार तो  तो हमें सपनों मैं भी नहीं आता .युद्ध मैं वह क्या गुल खिला दे इसका भरोसा नहीं . सिर्फ लम्बे युद्ध मैं हम उसे हरा सकते हैं जो परमाणु बम नहीं होने देगा.

इजराइल  ने अपनी शातिरता से अचानक पूरी वायु सेना को झोंक हमला कर  तीन घंटों मैं मिस्र की ५०० हवाई जहाज़ों वाली वायु सेना को पूर्णतः ध्वस्त कर दिया था . सऊदी अरेबिया को हाल ही मैं कुछ मिसाइलों के हमले से हमला करवा ईरान ने उसे उसकी औकात दिखा दी थी . पाकिस्तान के पास हम  से ज्यादा बम और मिसाइल  हैं . जे ऍफ़ – १७ ब्लाक ३ काफी अच्छा हवाई जहाज है . पाकिस्तान हमसे ज्यादा हवाई जहाज बना रहा है . अभी बालाकोट के बाद हमारी संचार व्यवस्था को ध्वस्त कर हमें अपने हमले से चकित कर दिया था . हमारे सुखोई छोटी दूरी की मिसाईल के कारण धरे के धरे रह गए थे . पाकिस्तान को कम आंकना  बहुत बड़ी गलती होगी . हमारी और पाकिस्तान की वायु सेना मैं अब बहुत कम अंतर रह गया है . चीन कभी भी उसे जे –  २० जहाज दे सकता है . दस दिन की लड़ाई मैं वह छोटा देश होने के कारण शीघ्र टैंक  को ला कर  हम पर भारी पड़  सकता हाँ .यदि हम सशक्त रहे तो युद्ध नहीं होगा . पर यदि हम कमज़ोर हुए तो हम पर ज़रूर हमला होगा . कोई रक्षा प्रणाली अकेले पूर्णतः सफल नहीं होती .हम कितनी जागे एस – ४०० आगा लेंगे . हमें हवाई युद्ध मैं भी आक्रमण कर जीतने की शक्ति रखनी होगी और सिर्फ छतीस जहाज खरीदने की बात इसको असंभव बना देगी.

इसलिए सभी पैसों की उहा पोह छोड़ हमें अपने जहाज़ों व् मिसाइलों की कमी को पूरा करना चाहिए . चाहे हम जापान से सौ पुराने ऍफ़ –  १५ खरीदें या रूस से मिग २९ व् सुखोई खरीदें या फ्रांस से राफेल पर एक बार हमें अपनी घटते हुए जहाज़ों की संख्या पूरी करनी होगी . इससे तरह एक महीने की लड़ाई के लिए हर अरह की युद्ध सामग्री होना भी आवश्यक है . मुंबई व् पार्लियामेंट के हमले के समय पाकिस्तान को जबाब देने मैं असमर्थ थे .दुबारा उसी गलती को दोहराना मुर्खता नहीं बल्कि आत्म ह्त्या होगी .

सीडीएस अभी नए नए आये हैं . उनको चुप रह कर पहले काम सीखना चाहिए . भारत ने स्थल सेना वायु सेना व् नौ सेना के संयुक्त अभियान नहीं किये हैं . उनका विश्लेषण व् ज्ञान अर्जित करना आवश्यक है .तीनों सेनाओं का अपना विशेष ज्ञान है उसका लाभ लेना चाहिए. सीडीएस को एक महीने के युद्ध को जीतने के लिए सब सामान खरीदने की पॉवर देनी चाहिए जिसमें सीवीसी, सीबीअई, विजिलेंस वित्त विभाग इत्यादि का दखल न हो .

हमें कृष्णा मेनन युग को दुबारा नहीं आने देना चाहिए

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