क्या बाबू रक्षा में आत्मनिर्भरता को ‘ मेक इन इंडिया ‘ की तरह ध्वस्त कर देंगे : Eternal Wait For Oredrs For Successfully Developed Indigenous Armaments – राजीव उपाध्याय
भारत का रक्षा सामग्री के भारत मैं उत्पादन का ‘ Make In India ‘ प्रोजेक्ट बुरी तरह से टांय टांय फिस्स हो गया क्योंकि कोई बड़ी हथियार बनाने वाली विदेशी कंपनी भारत में फैक्ट्री लगाने के लिए तैयार नहीं हुई .ले देकर रूस की विश्व विख्यात कलाश्निकोव कम्पनी अमेठी मैं AK २०३ असाल्ट राइफल बनाने की फैक्ट्री लगाने के लिए तैयार हुई . प्रारंभिक चरण मैं सात लाख राइफल बनानी थी . फैक्ट्री अब भी आर्डर का इंतज़ार कर रही है क्योंकि राइफल का दाम तय नहीं हो रहा . इस दौरान आयतित अमरीकी राइफल आ भी गयी परन्तु भारत के सरकारी क्षेत्र मैं अमेठी मैं बनने वाली रूसी राइफल दूर दूर तक नहीं दीख रही क्योंकी बाबुशाही जब फ़ाइल आईगी तो फैसला करेगी !
देश के हर स्वदेशी हथियार बनाने वाली कंपनी वर्षों से आर्डर के लिए तरस रही हैं परन्तु बाबुओं के कानों मैं जूँ नहीं रेंगती .
हम एच ए एल के धीमी गाती से हवाई जहाज बनाने की बात जानते हैं क्योंकि वह दीखता है . एच ए एल के ८३ तेजस मार्क १ ए का आर्डर अभी तक नहीं दिया गया जबकी रक्षा मंत्रालय इसे लगभग एक साल पहले स्वीकृती दे चुका है . उसे पहले वायु सेना के कहने पर डिजाईन मैं अनेकों परिवर्तन किये गए और उनकी टेस्टिंग में वर्षों लग गए . तेजस मार्क २ की तो बात ही न की जाय तो अच्छा है .
यही हाल ११८ अर्जुन मार्क १ ए टैंक का है . टैंक में अनेकों परिवर्तनों के बाद उसे आधुनिकतम बना कर सेना ने पास किया परन्तु आर्डर का अभी तक वर्षों से इन्तिज़ार ही हो रहा है .
पूर्व राष्ट्र पति कलाम के प्रिय मिसाइल प्रोजेक्ट की कड़ी के टैंक भेदी नाग मिसाइल के सारे परिक्षण समाप्त हो गए परन्तु उसके ८००० मिसाइल का आर्डर दूर दूर तक नहीं दीख रहा जो की वैज्ञानिकों के लिए अत्यंत निराशापूर्ण है .
इसी तरह एच ए एल बहुत अच्छा एल सी एच हेलीकाप्टर बना कर सारे टेस्ट के बाद आर्डर की वर्षों से प्रतीक्षा कर रही है . आयातित अमरीकी हेलीकाप्टर तो आ गए पर एच सी एल को आर्डर नहीं मिला ! ऐसे ही रूस के कमोव हेलीकाप्टर का आर्डर अभी तक नहीं दिया गया जब की यह हमारे प्रधान मंत्रि व् रूसी राष्ट्रपति के बीच का फैसला था .
जो बाबू पंसारी की दूकान नहीं चला सकते उनको प्राइवेट सेक्टर से हथियार बनवाना कैसे आयेगा .
बोफोर तोपों के बाद भारत की टाटा व् कल्याणी ग्रुप की तोपें ४८ किलोमीटर गोला दाग कर विश्व रिकॉर्ड बना चुकी हैं . सेना उनसे पूरी तरह संतुष्ट है . पर तोप बनाने के लिए देश उनका आभार तो प्रकट कर सकता है पर उनको आर्डर कब मिलेगा शायद ईश्वर भी नहीं जानता .इसी तररह लारेसें टुब्रो ने परमाणु पनडुब्बी बना ली पर अगला आर्डर , पता नहीं ! बाबू यह नहीं जानते की कोई सफल कंपनी को तीन से चार साल की आर्डर बुक चाहिए . यदि हर आर्डर द्रौपदी का चीर बन के रह जाएगा तो हर हथियार बनाने वाली कंपनी तो दिवालिया हो जायेगी . एक उदाहरण और देखें वर्षों पहले एच ए एल ने कहा की सुखोई हवाई जहाज की निर्माण लाइन का काम समाप्त हो रहा है और ३६ हवाई जहाज बहुत सस्ते मैं बनाये जा सकते हैं और लाइन भी चलती रहेगी . बाबुओं ने कोई फैसला नहीं किया . अब जब चीन से लड़ाई की संभावना देखी तो आनन फानन मैं इमरजेंसी बेसिस पर १२ सुखोई का आर्डर रूस को देने जा रहे हैं .बाबु सिर्फ दफ्तर की फ़ाइल पर अंग्रेज़ी लिखना जनता है . उसे कारखानों का कोई ज्ञान य अनुभव नहीं है . किसी गलत फैसले की उस पर जिम्मेंवारी नहीं डाली जाती और इसी गुरुर मैं वह अपनी सत्ता के घमंड मैं चूर चूर रहता है . चाहे एच ए एल या कल्याणी या टाटा बंद हो या अभिनन्दन पकड़ा जाय या बीस जवान गलवान घाटी मैं मारे जाएँ उसे रात को छोटा पेग पी कर सो जाना है और अगले दिन किसी और फाइल पर दस लम्बे नोट लिख देने हैं जिनको पार करने मैं दो साल लग जाने हैं .
यदि इसी तरह से काम किया गया तो ‘मेक इन इंडिया’ की तरह प्रधान मंत्रि का रक्षा में आत्म निर्भरता का अभियान भी कागजों की धुल ही चाटता रह जाएगा .
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