क्या बॉलीवुड और मीडिया भारतीय संस्कृति को दूषित व् नष्ट करने की कोई देसी या विदेशी साजिश पर काम कर रहे हैं ?

 

क्या बॉलीवुड और मीडिया भारतीय संस्कृति को दूषित व् नष्ट करने की कोई देसी या विदेशी साजिश पर काम कर रहे हैं ?

राजीव उपाध्याय

कृपया पूर्ण  सच जानने के लिए वीडियो को पूरा देखिये . अन्यथा समय के आभाव मैं इंटरव्यू की स्क्रिप्ट पढ़ लें पर इसमें विडियो क्लिप व् चित्र नहीं हैं .

https://youtu.be/GdQC_qJSu9s

मैं मीनू पेत्रियोत फोरम के खरी खरी कार्यक्रम के चौथे एपिसोड मैं आपका स्वागत करती हूँ . आज हम चर्चा करेंगे कि क्या बॉलीवुड और मीडिया  भारतीय संस्कृति को दूषित व् नष्ट करने की किसी देसी या विदेशी साजिश पर काम कर रहे हैं ?

हमारे आज के अतिथि हैं श्री राजीव कुमार उपाध्याय जी  जो रेलवे के जनरल मेनेजर के पद से रिटायर होने के बाद दस साल से पेत्रिओत्स फोरम से जुड़े हुए हैं.

उपाध्यायजी आपका आज के कार्यक्रम में स्वागत है . 

प्रश्न १  उपाध्याय जी पहले तो यह बताइये कि जिस बॉलीवुड ने अस्सी के दशक मैं रामायण व् महाभारत बनाई हो व् जिसने मदर इंडिया व शहीद जैसी पिक्चारों से देश की संस्कृति के सुन्दर चित्रण किया हो वह क्यों हमारी  संस्कृति दूषित करने को राजी होगा ?

उत्तर : मीनू जी आपने ठीक ही प्रश्न किया है . परन्तु भारत अब बहुत बदल चुका है . महाभारत व् रामायण के निर्माता ,

स्वर्गीय बी आर चोपडा जी का जन्म १९१४ और रामानंद सागर जी का जन्म १९१७ मैं हुआ था . महाभारत के नए व्यास रही मासूम राजा का जन्म १९२७ मैं हुआ था .यह एकआदर्शवादी युग था.

उस युग का सर्वोत्कृष्ट उदहारण १९५४ की फिल्म अमर एक बहुत सुन्दर चित्रण किया भजन है ‘ इन्साफ का मंदिर है यह भगवान् का घर है ‘.फिल्म के निर्माता निर्देशक थे स्वेगीय महबूब खान ,गायक मुहम्मद रफ़ी , संगीत नौशाद और बोल शकील बदायुनी जी के थे. गीत मैं मधुबाला व् दिलीप कुमार मंदिर की सीढ़ियों पर चढ़ रहे हैं . महबूब खान साहब तो होली के गानों के राज कपूर थे .सब रसखान शैली के मुसलमान थे .

परन्तु अब नए भारत की अभिनेत्री सना शेख के टी वी सीरियल मैं कृष्ण दासी के मांग मैं सिन्दूर लगाने व् मंगल सूत्र पहनने पर मुसलामान मौलवियों नी आपत्ती जाहिर कर दी और सोशल मीडिया पर उनको ट्रोल किया गया .अपने समय के सुपर स्टार राजेंद्र कुमार ने जब मेरे महबूब फिल्म मैं हीरो का रोल किया तो किसी को लेश मात्र आपत्ती नहीं हुयी .

इसलिए हमें समकालीन भारत की फिल्मों पर विवेचना करनी होगी.

. प्रश्न २ – चलिए तो यह बताइए कि आज के समकालीन भारत की फिल्मों से आप ओ क्या आपत्ती है ?

उत्तर : मीनू जी , पिछले अनेक वर्षों से हिंदी पिक्चरों व् मीडिया के माध्यम भारतीय संस्कृति विशेतः हिन्दू समाज को को दूषित करने की मुहीम चलाई जा रही है . इसमें मीर जाफर सरीखे लालची व् स्वार्थी निर्माता मिर्देशक मिले हुए हैं .इसका प्रभाव अब समाज के बदले स्वरुप मैं दीखने लगा है . पर हाल के वर्षों में अब यह बहुत बढ़ गया है और नए मीर जाफर दुस्साह्सी भी हो गए हैं . इसका दुष्प्रभाव भारत के लिए बहुत गंभीर खतरे लेकर आयेगा .इस को समझिये कि जब भारत अनेकों राजाओं व् राज्यों के बीच बंटा हुआ था तब भी इसको भारतीय संस्कृति व् हिन्दू धर्म जोड़े हुआ था हालाँकि यह कड़ी सामरिक रूप से कमजोर थी पर थी . हमारे धर्म व् पारिवारिक मूल्यों ने देश की हज़ार सालों तक देश की रक्षा की और इसे ईरान य मिस्र नहीं बनने दिया .विदेशी इस बात को समझ गए हैं . इसलिए वह पैसे व लालच के बल पर हमारी इस मजबूती को तोड़ना चाह रहे हैं और इसके लिए मीडिया ,टीवी  व सिनेमा को धीरे फैलने वाले मीठे जहर की तरह उपयोग कर रहे हैं . वह जानते हैं की जब तक भारतीय संस्कृति हमारी आत्मा की तरह अक्षुण्य है तब तक वह भारत पर कब्जा नहीं कर सकते .

३. प्रश्न ३ –  उपाध्याय जी यदि आप चुनिन्दा फिल्मकारों को मीर जाफर सिद्ध करना चाह रहे हैं तो पहले कुछ सशक्त उदाहरण तो दीजिये की जिससे दर्शक स्वतंत्र आंकलन कर आप से सहमत हो सकें .

उत्तर – मीनू जी संस्कृति को तोड़ने के लिए पहले आस्था व् श्रद्धा को तोड़ना आवश्यक होता है . आप देखियी पिछले बीस वर्षों मैं हमारी श्रद्धा व् आस्था के हर स्तम्भ पर चोटें की गयीं हैं .फिल्म पी के इसका श्रेष्ठ उदाहरण है .देखिये शिवजी को रिक्शा चलाते हुए चित्र को जो शूट तो हुआ पर शायद काट दिया गया . पर शिव जी का बाथरूम मैं छुपना इत्यादि जो दृश्य दिखाए गए वह अत्यंत फूहड़ व् अपमान जनक थे { clip}

https://youtu.be/BIszUPoe_H4

.इसी का दूसरा स्वरुप अमेज़न की फिल्म तांडव मैं किया गया . ‘ओ माय गोड ’ में भगवान कृष्ण का जो चित्रण हुआ वह फूहड़ व खेदजनक था . इसी तरह सब हिन्दू साधू ढोंगी व्  शैतान होते हैं जिन्हें अंत में लात अवश्य मारी जाती हैं . यहाँ तक की बाजी राव मस्तानी मैं पिता के धर्म को न मानने वाली ,मस्तानी, हिन्दुओं को मनोकामना पूर्ण होने के लिए मज़ार पर चद्दर चढाने का ताना मार ही देती है . क्या मारधाड़ की बकवास फिल्म को रामलीला नाम ही रखने को मिला था . इसके विपरीत नाना पाटेकर की फिल्म मुस्तफा का नाम बदल कर ‘ गुलाम ए मुस्तफा’  किया गया . फिल्म सिंग्हम २ में  अजय देवगन पुलिस की वर्दी में मस्जिद को सेल्यूट करता है . पादरी को फादर कह कर सदा आदरणीय रूप दिखाया जाता है. क्या कभी चर्च के पादरियों द्वारा नन या बच्चों का शोषण दिखाते हैं ?

 

किसी मुल्ला या मौलवी के हलाला के दुरूपयोग को क्यों नहीं दिखाते . इसके अब तो हिन्दुओं पर फब्ती तो अनेकों फिल्मों में मिल जाती हैं . यद्यपि सांप के विष का भी उपयोग होता है .इसलिए विष ही सही, पर  आम हिन्दू जनता साधू के वेश में फरेबियों से सचेत अवश्य हो जाती है. परन्तु शिवजी के रिक्शा चलाने या डर कर बाथ  रूम में छुपने से से क्या लाभ होता है ? इसी तरह अमेज़न प्राइम के तांडव में सवर्णों द्वारा दलितों का अपमान उनको भडकाने के लिए दिखाया गया है . क्या कभी अज्लफ़ व अशरफ के भेदभाव पर चर्चा की है ? क्या भारत में कोई ‘ Last temptation of Christ ‘ बना कर दिखा सकता है .

एक और पहलू पर सोचिये . पहले फिल्मों में इतने सुन्दर भजन होते थे . आपने आखीरी  सुंदर भजन किस फिल्म में देखा था ? बीस साल मैं ‘ मन मोहना ‘ के अलावा कोई भजन याद आता है . गुलशन कुमार की ह्त्या के बाद क्या कोई सफल धार्मिक फिल्म बनी है . उनकी ह्त्या के बाद हमारा राग रागनियों वाला परम्परागत कर्णप्रिय संगीत अचानक कैसे लुप्त हो गया ? भगत सिंह या राणाप्रताप या विदेशों से उच्च शिक्षा प्राप्त कर लौटे डोक्टरों के बजाय गुंडे See the source image, मवाली , टपोरी या स्मग्ग्लर्स पर फ़िल्में क्यों बनने लगीं .

क्या यह धीरे धीरे हिन्दू धर्म, संस्कृति व् समाज के अपमान करने व् श्रद्धा तथा आस्था के अवमूल्यन या समाप्त करने के लिए नहीं किया जा रहा है ? 

प्रश्न ४ – उपाध्याय जी आपकी बात में कुछ सच्चाई तो सब को दीख रही है तो अब यह भी फिर स्पष्ट कीजिये की महबूब खान की ‘अमर’ और मदर इंडिया से ‘ पी के’ व  और पेशावर छोड़ भारत मैं बसने वाले दिलीप कुमार से ‘देश छोड़ कर अन्यत्र  जाना चाहने  वाले बेहद अमीर आमिर खान’  तक हम कब, क्यों और कैसे पहुँच गए ?

उत्तर – मीनू जी आप के प्रश्न का सटीक उत्तर देना संभव नहीं है . क्योंकि तथ्य तो सामने हैं पर असली जानकारी के अभाव मैं उनके संभावित कारण  मात्र अन्दाज होता है जो सही भी हो सकता है और गलत भी . उदाहरणतः कोई यदि पूछे कि हेरोइन मोनिका बेदी ने अबू सालेम जैसे गैंगस्टर से शादी क्यों की या लाखों के दिलों ई धड़कन मंदाकिनी, दवूद इब्राहीम के चक्कर मैं क्यों फंस गयी ? सब अंदाज लगा सकते हैं कि धमकी , डर व धोखे का उपयोग अवश्य किया गया होगा पर पूरा सच तो कोई नहीं जानता या बता सकता . इसलिए मदर इंडिया के महबूब खान व अमर के दिलीप कुमार से पी के से  आमिर खान तक के सफ़र के कारणों को अंदाज़ से ही बताया जा सकता है किसी प्रमाण के साथ नहीं .डा सुब्रमण्यम स्वामी ने तो पी के की फंडिंग आई एस आई द्वारा किये जाने का आरोप भी लगाया था .

इस दुखद परिवर्तन के मुझे चार मुख्य कारण लगते हैं .

Petro Islam :

१९७३ के तेल के दाम अचानक बढ़ने से सऊदी अरेबिया , ईरान इत्यादि ने इस्लाम के प्रचार प्रसार के लिए बहुत पैसे खर्च करने शुरू कर दिए . १९७५ से २००० तक अकेले सऊदी अरेबिया ने १५०० नयी मस्जिदें बनवाईं जिन्होंने कट्टर वहाबी इस्लाम को बढ़ावा दिया ( विकी ) . भारतीय उप महाद्वीप के सूफी व् सहिष्णु इस्लाम को धीरे धीरे हाशिये पर ला दिया . सना शेख की सिन्दूर घटना उसी असहिष्णु शील  इस्लाम की द्योतक है जो रसखान का इस्लाम नहीं था .

Afghan War :

1979 – 80 के सोवियत युनियन के अफ़ग़ानिस्तान पर काबिज़ होने के बाद अमरीका को लड़ने के सस्ते मुजाहदीन चाहिए थे . इसलिए उसकी शह पर सऊदी अरेबिया ने पाकिस्तान मैं बेहद पैसा बहाया तथा भारत व् बांग्लादेश मैं भी बहुत पैसा भेजना शुरू कर दिया . इससे यहाँ पर भी वहाबी कट्टरपन बेहद बढ़ गया . हज़ारों नए मदरसे खोले गए जो कट्टरपंथी इस्लाम का गढ़ बन गए . अफगानिस्तान के कारण इन सब देशों की इस्लामिक सोच कट्टरपंथी हो गयी .

भ्रष्टाचार : १९९० के बाद देश मैं भ्रष्टाचार बेहद बढ़ गया और काला धन बहुत पैदा हो रहा था . इससे फ़िल्में पूरी तरह ब्लैक मनी पर आश्रित हो गयीं और उनके बजट बहुत बढ़ गए .इससे कलात्मक सिनेमा लुप्तप्राय होने लगा .

डावूद का आतंक :

गुलशन कुमार व दिव्या भारती की संदेही ह्त्या व राकेश रोशन पर प्राण लेवा हमले ने दावूद के आतंक को बहुत बढ़ा दिया और फिल्म जगत पर उसका एक छत्र राज्य हो गया जिसके दुष्परिणाम आज दीख रहे हैं .

 

५ . प्रश्न ५ – उपाध्याय जी परन्तु अधिकाँश फिल्म निर्माता , गीत कार , संगीत कार तो हिन्दू हैं तो फिर वह मिल कर इस पतन को रोक क्यों नहीं सकते ?

उतर – मीनू जी आप ने बहुत दुखती रग दबा दी . क्यों दो सौ अँगरेज़ सिपाही की सेना से अन्ग्रेज दो सौ साल तक हम पर राज करते रहे ? वही कारण इस पतन के लिए जिम्मेवार हैं . दावूद से कौन भिड़े ? फिर ब्लैक मनी तो सरकारों को भी चाहिए तो फिल्म निर्माताओं को सुरक्षा कौन देगा ? बैंकों के ब्याज पर लिए पैसे से फिल्म बन नहीं सकती . आसान ब्लैक मनी दावूद सरीखों के पास ही होता है . यदि एक फिल्म डूब गयी तो एक और सेठ का अपहरण कर के कमा लेंगे ! तो सुशांत सिंह हत्याकांड के लिए चर्चित परन्तु बहुत सफल  करन जोहर

 ‘ माय नाम इज़ खान’  बनाते हैं या समलैंगिक पुट लिए दोस्ताना बनाते हैं या विवाह का अवमूल्यन करने वाली ‘ ऐ दिल है मुश्किल’  बनाते हैं’ .  भंसाली अपनी फिल्म के नाम रामलीला के नाम को खुद नहीं बदलते और इस्लामिक मस्तानी का महिमामंडन करते हैं , कभी ‘ १९४२ लव स्टोरी ‘ बनाने वाले विधु विनोद चोपडा ‘ पी के’  के शिवजी के अपमान को कला बताते हैं ,अनुराग कश्यप फिल्मों मैं गालियाँ ठूसने को कला व् सृजनात्मक अभिव्यक्ति बताते हैं . महेश भट्ट के परिवार के सदस्य मुंबई काण्ड के आरोपे हैडली के भारतीय मित्र पाए जाते हैं और महेश भट्ट स्वयं ब्लू फिल्म की अभिनेत्री को मुम्बई में प्रमोट करते हैं .

क्या कहें , इस घर को  आग लग गयी घर के चिराग से . आज भी फिर दो सौ अँगरेज़ ५००० हज़ार करोड़ रूपये से आसानी से भारत को गुलाम बना लेंगे .

प्रश्न ६ _ उपाध्याय जी यदि फिल्मों को ब्लैक मनी व् आतंक के चुंगुल में मान भी लें तो भी टी वी चेनल, अखबार , टीवी सीरियल, मैगज़ीन , यू ट्यूब , इन्टरनेट इत्यादि भी तो हैं . उनको क्यों नहीं संस्कृति को बचाने के लिए प्रयोग करते . फिर परिवर्तन तो समय का नियम है उस पर क्षोभ क्यों ?

उत्तर : आपने एक बार फिर दुखती हुयी रग को दबा दिया . हमारे बंगाली व् तमिल भाई तो तब भी अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए सचेत हैं . परन्तु उत्तर भारतीय संभ्रांत व् बहु शिक्षिक हिन्दू वर्ग तो स्वार्थी हो गया है और निस्स्वार्थ सेवा बहुत कम कर रहा है. वह पश्चिम की संस्कृति को आधुनिक व औद्योगिक प्रगति की चकाचौंध में अनुकरणीय मान बैठा है . जैसे फिल्म जगत को दावूदी आतंक व सस्ते काले धन से दबाया हुआ है उसी तरह पश्चिम जगत ने मीडिया को दबाया हुआ है . अन्यथा कौन भारत मैं समलैंगिकता या Mee too , वैलेंटाइन डे , लड़कियों के शराब पीने , नारी मुक्ति के नाम पर परिवारों को तोड़ने को प्रोत्साहन दे रहा है . किसने मिशनरियों का आना आसान कर दिया .  वह तो एक वीसा देकर या रोक कर कुछ भी करवा सकते हैं उनके पास भी अपरिमित पैसा भी है और सरकारें उनके चुंगुल मैं हैं . हर राष्ट्रवादी को भक्त या बहनजी जैसे संबोधनों से तंज करते हैं .

आप जो परिवर्तन देख रहीं वह प्राकृतिक नहीं बल्कि सुनियोजित व योजनाबद्ध षड्यंत्र है जो सफल हो रहा है . इसलिए ही हम दुखी हैं .पर यह लंबा विषय है जिस पर हम अगले प्रोग्राम में विस्तार से चर्चा करेंगे .

प्रश्न ७ – तो उपाध्याय जी क्या इन परिस्थितियों मैं कुछ नहीं किया जा सकता ? पहले भी तो भारत मुसीबतों से निकल चुका है . कुछ तो उपाय होगा ही ?

उत्तर – नहीं मीनू जी , ऐसा भी नहीं है . हमारी संस्कृति व  धर्म भविष्य के लिए अधिक उपयुक्त है . हमारे बड़े बूढों को , शिक्षकों को , बहु शिक्षित सेवा निवृत वर्ग को निस्स्वार्थ भाव से धर्म व् संस्कृति की रक्षा के लिए आगे आना चाहिए और सिर्फ बोलना ही नहीं कुछ ज़मीन पर करना भी चाहिए . बच्चों को भारतीय संस्कृति से परिचित कर उसका उपयोग व महत्व समझाना होगा और उसकी प्रासंगिकता को उजागर करना होगा .

यदि हम सब कमर कस लें तो अभी सब खोया नहीं है .

 

समापन : हमारी आपको शुभ कामनाएं और हम आशा करते हैं की आपके इस अभियान मैं और लोग जुड़ेंगे . . और इस के साथ हम आज के संस्करण के समापन पर आते हैं . यदि आपको यह अच्छा लगा हो तो सब्सक्राइब व् लाइक  बटन को दबा दें ताकी भविष्य मैं हम आपकी पसंद के प्रोग्राम ला सकें .

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