मंहगाई मैं जन हित व ग्राहक के अधिकार को बचाएं , बिचौलिए दूकानदार को नहीं : सरकार अपना कर्तव्य निभाये
राजीव उपाध्याय
खबरें आ रहीं हैं कि सरकार अब अमेज़न व् फ्लिप्कार्ट को सस्ते आयातित फ़ोन व् टीवी इत्यादी ‘ सेल ‘ पर बेचने पर प्रतिबन्ध लगाने वाली है . इसका औचित्य यह बाताया जा रहा है की दूकानदारों की बिकवाली कम हो गयी है और उनके मुनाफे भी कम हो गए हैं .परन्तु उपभोक्ताओं को इससे फायदा था क्योंकि उसे वही सामान सस्ता मिल रहा था .
दूकानदारों के वोट बैंक के लिए सरकार अब बड़ी भूल कर रही है .पहले ही इस सरकार में मध्यम वर्ग की कमर तोड़ रखी है .कोरोना से निकलने के बाद हर सामान्य उपयोग की चीज़ दस से बीस प्रतिशत मंहगी हो गयी है . उदाहरणतः बाल कटाने की कीमत भी बीस प्रतिशत बढ़ गयी है . खाने का सामान मंहगा हो गया है . दूकानदारों को तो अपना मुनाफ़ा मिल रहा है परन्तु उपभोक्ता चक्की में पिस रहा है . सरकारी कर्मचारियों को एक साल से अधिक से मंहगाई भत्ता नहीं दिया गया है जबकी दाम इतने बढ़ गए हैं . दशकों से इनकम टैक्स में भी उन्हीं को कोई छूट नहीं दी जाती . इस दूकान दारों की सरकार मैं मध्यम वर्ग की कोई सुनवाई नहीं है .बच्चों की फीस बेहद बढ़ गयी . नौकरियां मिल नहीं रहीं हैं .कोई कुछ नहीं कर रहा क्योंकि उनकी संख्या कम है .
ऐसे मैं सरकार सिर्फ व्यापारियों पर ही क्यों मेहरबान है ?
अच्छे टीवी की कीमतें पिछले एक वर्ष मैं दस प्रतिशत से अधिक बड़ी हैं . लोग साल मैं दीवाली की सेल मैं कुछ सस्ते टीवी या मोबाइल खरीद लेते थे. सरकार अब यह भी बंद करना चाहती है . यह तो टाँगे वालों को बचाने के लिए बस पर रोक लगाने जैसा है . यदि कभी बस का सस्ता सफ़र जनता का अधिकार था तो आज के सामान्य लोगों के उपयोग के सस्ते टीवी या मोबाइल पाना भी जनता का अधिकार है .दूकानदार ग्राहकों की सेवा के लिए होते हैं ग्राहक दूकानदार की सेवा के लिए नहीं . सरकार का दायित्व जनता के हित की रक्षा है . जब सस्ते चीनी सामान ने भारतके छोटे उद्योग बन्द किये तो कोई नहीं रोया . वेस्टन ,डायोनारा ,वीडियोकोन जैसी सब टीवी कंपनियां बंद हो गयीं . दूकानदारों ने सस्ता चीनी सामान बेचना शुरू कर दिया . उनका मुनाफ़ा बचा रहा . लाखों मजदूर सस्ते चीनी आयात से बेरोजगार हो गए .अब तो उन फक्ट्रियों को दुबारा चालू करना भी सम्भाव नहीं है .
अमेज़न , फ्लिप्कार्ट व् रिलायंस रिटेल ,टाटा क्रोमा चीनी या किसान कोआपरेटिव की तरह ही हैं . बिचौलिए मुफ्त मैं बेहद मुनाफ़ा कमा रहे थे और यह बिचौलियों के दाम बचा रहे थे .सरकार ने भी तो कभी इसी लिए सुपर बाज़ार खोले थे .वैसे भी अधिकाँश सस्ते टीवी व् मोबाइल चीनी ही हैं . ग्राहक को इन से सस्ता और अच्छा सामान मिल रहा है तो क्यों सरकार इसमें फालतू में दखल दे रही है . एक बारहवीं पास दूकानदार आज एक इन्जीनीयर से कहीं ज्यादा कमा रहा है .अगर टाँगे वालों या सपेरों , मदारियों की तरह उसकी जरूरत नहीं रह गयी तो वह कोई और व्यापार ढूंढें जैसे सारे विश्व मैं हुआ है . गरीब जनता पर उसका बोझ क्यों डाला जा है ? क्या यह एक नया परोक्ष वोट बैंक टैक्स नहीं है जो जनता पर बेवजह लादा जा रहा है ?
रह गयी बात उनके विदेशी होने की तो इसका फायदा भारतीय निर्यात बढाने के लिए किया जाय जैसा कारों के साथ हुआ . कार बनाने वाली भी अधिकाँश कंपनियां विदेशी ही हैं .पर वह भारत मैं पूंजी लगा रही हैं और निर्यात बढ़ा रही हैं . बिरला तथा अन्य बड़े समूहों को भी इस क्षेत्र मैं आने के लिए प्रोत्साहन दिया जाय .विदेशी एकाधिकार दुखदायी होगा . पर इस एकाधिकार को रोकने के अन्य उपाय खोजे जाएँ जिससे जनता के हितों की भी रक्षा हो सके .
परन्तु जनता को मंहगा माल दिलवाना उसके साथ धोखा होगा .
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