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जम्मू व् कश्मीरी पंडितों की समस्या को सुलझाए बिना चुनाव बेमानी होंगे : जम्मू को एक और ईस्ट पाकिस्तान नहीं बनाएं

जम्मू व् कश्मीरी पंडितों की समस्या को सुलझाए बिना चुनाव बेमानी होंगे : जम्मू को एक और ईस्ट पाकिस्तान नहीं बनाएं

कश्मीर मैं ऐतीहासिक व् अपार लोकप्रिय  परिवर्तन  करने के बाद अचानक भारतीय सरकार अंतर्राष्ट्रीय दबाब मैं आ गयी प्रतीत हो गयी लगती है . एक थके तैराक की भांति किनारा आने से पहले ही तैरना छोड़ना चाह रही है .बाज़ार मैं अफवाहें गरम हैं की जम्मू कश्मीर को राज्य बना कर उसे धारा ३७१ मैं ड़ाल दिया जायेगा जिसमें नागालैंड सरीखे राज्य हैं . अगर ऐसा हुआ तो यह जम्मू निवासियों  और कश्मीरी पंडितों के साथ बहुत बड़ा अन्याय होगा . कम से कम कश्मीरी पंडितों की पूरी सम्पत्ती को अनाधिकृत कब्ज़े  से मुक्त  कर सर्कार के कब्ज़े मैं  लेकर उनको एक सुरक्षित कॉलोनी मैं बसा कर उनको पूरा मुआवजा दिया जाय . पंडितों के घर रिटायर्ड सैनिओं को सस्ते  दामों मैं दिए जाएँ जो भविष्य  मैं पंडितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हों . जिन्होंने पंडितों  को निकाला उनको इस का कोई लाभ नहीं मिलना चाहिए और हिंसा करने वालों को दंड मिलना चाहिए जैसाबंग्लादेश ने किया . इसके अलावा पाकिस्तानी समर्थन पर उछलने वाले अलगाव वादियों को  को कम से कम दस साल जेल मैं रहने दें जिससे पाकिस्तान का प्रभाव सदा के लिए समाप्त हो जाय .

इसके अलावा जम्मू के हिंदु देश की  अच्छी छवि के लिए सत्तर साल से कुर्बान किये जा रहे हैं . जम्मू,  कश्मीर का ईस्ट  पाकिस्तान है जिसके साथ भाषा , संस्कृति  और विकास के  साधनों के बंटवारे मैं घोर अन्याय किया जाता रहा है . सत्तर  सालों से विधान सभा मैं जनसंख्या के अनुपात मैं सीट भी नहीं दी गयीं . अधिक  पढ़े लिखे होने के बावजूद राज्य  सेवाओं मैं मात्र  बीस प्रतिशत नौकरियां  हिन्दुओं को मिली है . शंकराचार्य  मंदिर पर्वत   के नाम को बदलने की प्रक्रिया सत्तर सालों से चल रही है . डोगराओं  से लड़ने के लिए चालीस हज़ार रोहिंग्या  मुसल्मानों को म्यन्मार से उठा कर जम्मू मैं बसाया गया है . और कोई जगह नहीं मिली थी . कौन उन्हें जम्मू लाया ? क्या यह चुनाव प्रभावित करने के लिए नहीं किया गया था ?

जम्मू का क्षेत्रफल अधिक है . घाटी के अधिकाँश मुसलमान आबादी श्रीनगर शहर के आस पास रहती है . दूर दराज़ क्षेत्रों  के  विकास के लिए ज्यादा पैसा चाहिए होता है . कारगिल लद्दाख  की भी यही समस्या  थी . दशकों से सिर्फ श्रीनगर विकसित किया जा रहा था . जम्मू  इलाके को को ईस्ट पाकिस्तान की तरह डोगरी या हिंदी के बजाय  उर्दू पढनी पड़ती है . वैष्णव देवी मंदिर के अस्सी  लाख   तीर्थ यात्रियों को दो दिन जम्मू मैं बिताने के लिए प्रेरित करने वाले पर्यटन  विकास कार्य नहीं किये जाते परन्तु श्रीनगर व् पहल गाम को छः लाख सैलानियों के लिए पूरी तरह से विकसित किया जा रहा है . ३०००  औद्योगिक इकाईयां कश्मीर मैं रजिस्टर्ड हैं जबकी जम्मू मैं मात्र ६५० के करीब हैं जबकी जम्मू उद्योगों के लिए कश्मीर से अधिक सुविधाजनक है .इसलिए अगले दस वर्षों तक जम्मू को श्रीनगर के बराबर लाने के लिए अधिक धन की आवश्यकता होगी जो मुफ्ती सरीखी नेता कभी नहीं देंगी .जब की एक प्रतिशत आबादी वाला कश्मीर केंद्र की दस प्रतिशत सहांयता राशी पाता  है और इस लिए उसका विकास उत्तर प्रदेश या बिहार से अधिक है .केंद्र की विकास राशि अब जम्मू को दो एक के अनुपात मैं मिलनी चाहिए जिससे पिछले अन्याय दूर हो सकें .श्रीनगर जम्मू को समकक्ष करना एक दूर गामी सर्व सम्मत उद्देश्य होना चाहिए .

अन्यथा एक बार साहस कर जम्मू को अलग राज्य बना दें .अगली सरकार हो सकता है इतनी साहसी नहीं हो या बीजेपी का इतना प्रचंड बहुमत न हो .इस समस्या को  पूर्णतः सुलझाए  बिना कश्मीर पुनः अब्दुल्ला मुफ्ती गंग को सौंपना बहुत बड़ी भूल होगी . धारा ३७१ के संभावित दुरूपयोग को भी  ध्यान मैं रखना जरूरी है .कश्मीर ऋषि कश्यप के काल से भारत का ऐतहासिक  व् पारंपरिक अभिन्न अंग  है नागालैंड नहीं .इसलिए ३७० हटा कर उससे बड़ी ३७१ मैं कश्मीर को न झोंका जाय .

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