दिल्ली प्रदुषण की कामधेनु व दिवाली के पटाखों का पाखण्ड : टीवी नहीं है तो जनता के लिए घर पर एंटीना ही लगा दो
दिल्ली के प्रदुषण हाल के वर्षों में पहली बार २०१६ में गंभीर बढ़ोतरी हुई जब दिवाली के बाद चार दिन तक भयंकर धुंध छा गयी और इंडेक्स ५०० पहुँच गया . दिल्ली से लाहौर तक हर जगह धुंध छाई रही . तब किसी को इतनी धुंध का कारण नहीं समझ आया और इसको हवा न चलने से पटाखों का रुका हुआ धुआं बता दिया . और इसके बाद पहले से ही किसी मुद्दे से अपनी पहचान बनाने के लिए बेताबी से बैठी मृत स्वयं सेवी संस्थाओं को ऑक्सीजन मिल गयी . आप पार्टी कि सरकार , न्यायालय इत्यादि सब इस मैं कूद बड़े . भारतीय पुलिस की गौरवमयी परम्परा को निभाते हुए दिल्ली सरकार ने दिवाली पर पटाखे छोड़ने पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा दिया . पर पाकिस्तान तो सच जनता था . उसके बचाव मैं बीबीसी ने पाकिस्तान के प्रदुषण के लिए भारत की जलाई जाने वाली पराली को दोषित ठहरा दिया .Is India’s crop burning polluting Pakistan’s air? – BBC News 
आई आई टी कानपूर की एक रिपोर्ट मैं पाया गया कि पटाखों व डीजल कार का तो प्रदुषण बिगड़ने मैं नाम मात्र का योगदान ही होता है . दिल्ली मैं तो सड़कों की धुल ही बहुत घातक होती है . किसानों को पराली जलाने से रोकने के लिए कहने का साहस किसी सरकार मैं नहीं था इसलिए इसको सब ने दबा दिया .पर प्रदुषण रोकने के लिए हर अपनी गंभीरता दिखा कर कोई मुफ्त की वाह वाही बटोरना चाहता था . तो सरकारों ने कई बेतुके पुराना फोर्मुला को झाड पोंछ कर निकाल लिया .
‘ यदि टीवी के पैसे नहीं है तो पड़ोसियों को जलाने के लिए के लिए घर पर एंटिना ही लगा दो !’
तो फिर तो झांसे की एंटिना लगाने वालों की चांदी हो गयी !
सबसे पहले तो दीवाली के पटाखों को फांसी दे दी गयी .लोगों ने हमारे पारंपरिक त्योहारों मैं दखलंदाजी का विरोध किया . परन्तु धुंध इतनी थी कि जनता ने इस अन्याय को चुप चाप सह लिया . बाद मैं यह आदत ही बन गया .फिर दिल्ली मैं कारों का सम विषम फोर्मुला आया . असली प्रदुषण तो मोटर साइकल करती थी पर उस वोट बैंक को केजरीवाल सरकार नहीं नाराज़ करना चाहती थी . ऐसा ही अत्यंत विवादास्पद फैसला 1996 मैं सब गाड़ियों मैं सी एन जी किट लगाने का था . बाद मैं मुख्य न्यायाधीश के बेटे की एजेंसी को इससे बहुत लाभ मिला पाया गया था पर कौन शेर की मांद मैं हाथ डाले .डीजल कारों को दस साल और पेट्रोल कारों को पंद्रह सालों मैं अनुपयोगी करने का फैसला भी अत्यंत विवादस्पद था . फिर घर बनाने पर अनावश्यक रोक और एस डी एम् को निरीक्षण करने का आदेश बाबुओं की कामधेनु बन गया .सबसे मुर्खता का कदम केजरी सरकार का पराली पर छिडकाव कर गलने के विज्ञापन पर करोड़ों रूपये फूंकने का था जब कुछ गिनती के किसानों ने इसका उपयोग किया .
इस वर्ष तो प्रकृति ने सारी पोल खोल दी . दिल्ली मैं आनंद विहार / विवेक विहार मैं दिवाली से पहले प्रदुषण ८५० पहुँच गया जो की २०१६/१७ से लगभग दुगना था . दीवाली के बाद सुबह यह इसका आधा ही था .दिल्ली पंजाब मैं तो आप पार्टी की ही सरकार थी . पर पराली पर बिल्ली के गले मैं घंटी बाँधने का कोई साहस नहीं कर पाया . कुछ बेरोजगार पडी संस्थाएं फिर भी बेशर्मी से पटाखों का राग फिर भी अलापने लगीं .
पर इस साल दिल्ली कि जनता थक चुकी थी और उसे इस गोरखधंधे से ऊब हो चुकी थी .उसने इस बार दिवाली पर कुछ तो पटाखे जलाए . कपिल शर्मा जैसे छोटे नेताओं ने भी अपनी विरोध की आवाज़ बुलंद की . हिन्दू त्योहारों का कोई माई बाप ही नहीं बचा है . कभी पटाखे रोक दिए जाते हें तो कभी दही हांडी पर बहस छेड़ दी जाती है .सिर्फ दिवंगत जय ललिता मैं साहस था कि उसने जल्ली कुट्टू त्यौहार पर सर्वोच्च न्यायलय कि दखलंदाजी को मानने से इनकार कर दिया . अंत मैं सरकार को आर्डिनेंस लाना पडा . आशा है कि अगले साल कपिल शर्मा कि तरह बाक़ी नेता भी दीवाली को दुनिया जहान की ऊट पटांग दखलंदाजी से मुक्त करायेंगे और पर्यावरण के नाम पर चलती सार्वजनिक दूकानें बंद कराएँगे .
केंद्र सरकार को भी दिवंगत शीला दीक्षित के उपाय व गडकरी जी बाई पास सड़क की तरह प्रदूषण कम करने के लिए वास्तविक साहसिक कदम उठाने चाहिए जिसमें पराली जलाने के पर्याय ढूंढना प्रमुख होने चाहिए .
दिल्ली सरकार से जनता को टीवी के बजाय सिर्फ एंटीना देने से रोकना शायद संभव न हो इस लिए जनता को ही आगे आना होगा .

