चुनाव ३.० : खोदा पहाड़ और निकली चुहिया वह भी मरी हुई : न कोई उमंग है न कोई तरंग है , देश की  ज़िंदगी तो शायद इक कटी पतंग है : More Things Change More They Remain Same .

चुनाव ३.० : खोदा पहाड़ और निकली चुहिया वह भी मरी हुई : न कोई उमंग है न कोई तरंग है , देश की  ज़िंदगी तो शायद इक कटी पतंग है : More Things Change More They Remain Same .

राजीव उपाध्याय

२०२४ के चुनाव आये और अनुमानतः एक लाख करोड़ रूपये फूंक कर चले गए .

इस चाय के कप के तूफ़ान से वास्तव मैं कुछ भी तो नहीं बदला . सरकार कुछ बड़ी हो गयी और पुराने मंत्रियों के जैसे ही कुछ और नए मंत्री आ गए . संसद मैं शोर करने के लिए कुछ और विरोधी दलों के सदस्य आ गए जिनको ई डी / सीबीआई से डरा कर थोड़ा सा बोलने कि अनुमति तो होगी पर कुछ बड़ा करने नहीं दिया जाएगा .देश को जो दो लोग चला रहे थे वही उसी ढंग से चलाते रहेंगे. राज दरबार मैं चापलूसी का बाज़ार गर्म ही रहेगा . चापलूस उस तिलचट्टे की तरह होते हें जिन्हें एटम बम भी नहीं मिटा सकता . वह हर सरकार पर काबिज़ हो जाते हें . इसका नज़ारा हम १९७७ के बाद संजय गाँधी और उनके चमचों के 1980 मैं पुनः सत्ता पर काबिज़ होने मैं देख चुके हें .

देश का भविष्य क्या है ?

हम चाँद और अंतरिक्ष मैं और बड़ी सफलता प्राप्त कर लेंगे . रक्षा उपकरणों का स्वदेशी उत्पादन बढ़ जाएगा. High Speed Rail और नयी सड़कें आ जायेंगी. विदेशों मैं भारत की इज्ज़त और बढ़ेगी. बिजली व वैकल्पिक ऊर्जा के क्षेत्रों मैं कुछ बड़ी उपलब्धियां संभव हें . अंडमान मैं शायद तेल भी निकाल आये.

परन्तु हम एक आलसी और सुस्त देश हें जिसमें साहस और नए चिंतन का अभाव है . इसलिए हम चीन से  हर क्षेत्र मैं और पिछड़ जायेंगे . वियतनाम और बांग्लादेश जैसे  देश भी हमसे ज्यादा आर्थिक व औद्योगिक प्रगति  कर लेंगे . जापान व जर्मनी कि रुग्ण  अर्थ व्यवस्थाओं के चलते हम विश्व की तीसरी बड़ी अर्थ व्यवस्था बिना कड़ी मेहनत या बड़ी उपलब्धि के बिना  ही बन जायेंगे और इस का झूठा ढिंढोरा पीटेंगे. परन्तु  चुपचाप  देश के अमीर और बहुत अमीर हो जायेंगे और गरीब और गरीब हो जायेंगे. मध्यम वर्ग की कोई सुनवाई नहीं होने वाली है और उसके आधे लोग गरीब हो जायेंगे. गरीबी को असहनीय न होने देने के लिए नौकरी पेशा लोगों से और टैक्स वसूल कर और मुफ्त का राशन दे दिया जाएगा या कोई नयी मनरेगा स्कीम आ जायेगी. भूखी जनता अमीरों की बरात कि लाईट व पटाखे देख कर देख कर या फिर मुफ्त का सिनेमा देख कर ही खुश होती रहेगी.

इन चुनावों से संसार मैं भारतीय प्रजातंत्र  पर विश्वास कुछ बढ़ गया है .  भारत एक स्थिर देश के रूप मैं पहले से जाना जाता था . इस चुनाव ने यह विश्वास और सुदृढ़ कर दिया . विदेशी सरकारों  व उद्योगपति और निवेश कर्ताओं ने राहत की सांस ली कि अब वह बिना डरे अपनी प्लानिंग के अनुरूप काम कर सकते हें . स्थिरता के अपने फायदे होते हें जो भारत को मिलते रहेंगे. भारत को अस्थिर करने के विदेशी प्रयासों मैं कुछ कमी आयेगी.

परन्तु देश की जनता तो ठगी गयी और अब उसके उत्थान की कोई और आशा भी नहीं रही. उसने चुनाव द्वारा अपना रोष दिखाया पर वह बेकार हो गया . अपनी पराजय से किसी ने कुछ नहीं सीखा . चुनावी हार के लिए किसी चूहे  को दोषी ठहरा कर सूली पर चढ़ा कर सब संतुष्ट हो जायेंगे. राम मंदिर जैसी महान उपलब्धि को धुल धूसरित होने से भी कोई चिंतित नहीं होगा क्योंकि वही पुरानी  सरकार वापिस आ गयी है जो परम दोष रहित व महा प्रगतिशील है !

आर्थिक प्रगति के नए प्रभाव शाली  विचारों के अभाव मैं शिक्षित  युवक बढ़ती बेरोजगारी से लड़ते रहेंगे और बड़ों की सीख के अनुसार चाय पकोड़े की दूकान के अलावा नाई , पंचर इत्यादि की दूकान खोल कर  संतुष्ट रहेंगे. जब  नौकरी ही नहीं है तो इंजीनियरिंग और एमबीए कि पढाई की दुकानें बंद हो जायेंगी. अब तो डोक्टरों को भी नौकरी नहीं मिल रही. विदेशों मैं भी नौकरियां नहीं मिल रहीं क्योंकि कनाडा, जर्मनी , इंग्लैंड  जैसे देशों मैं भी औद्योगिक प्रगति बहुत मंदी है.

समस्यायों को यदि दिखाएँ और गंभीर चिंतन करें तो शायद कोई समाधान मिल जाये . पर हमारे मीडिया को तो उनको छुपाने मैं महारथ हासिल हो गयी है. टीवी पर रोज़ कुत्ते बिल्लियों की लड़ाई दिखा कर भ्रमित किया जाता रहेगा .

पर एक चेतावनी है .

जनता अब सचेत हो चुकी है .पुराने तरीके अब असफल हो रहे हें . राज्यों मैं डम्मी मुख्य मंत्री हानिकारक सिद्ध हो चुके हें .सरकारी तंत्र मैं धार्मिक या जाती वादी अन्याय  कोई नहीं चाहता. धर्म अब महत्व पूर्ण मुद्दा   नहीं रहेगा . आर्थिक प्रगति के  झूठे आंकड़ों  कि सच्चाई तो संसद मैं ही खोल दी जायेगी. जनता का रोष कहीं तो फटेगा . अगले चुनाव मैं यदि आर्थिक स्थिति व बेरोजगारी मैं सुधार नहीं हुआ तो सरकार को कुछ और अप्रिय परिणामों के लिए तैयार रहना होगा . ईडी , सीबीआई , नयायालयों के राजनितिक दुरूपयोग को जनता सख्त नापसंद करती है और उनका उपयोग न ही करें तो अच्छा रहेगा .

अच्छा होगा यदि प्रधान मंत्री धन्ना सेठों व चापलूसों से दूर रहें और कुछ स्पष्ट बोलने वाले ज्ञानी  विचारकों  प्रोत्साहित करें और विशेषतः आर्थिक मामलों मैं उनकी सलाह को सुनें व उपयुक्त हो तो मानें .

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