Atul Subhash Suicide : पिशाचिनी माँ बेटी को उम्र कैद होनी चाहिए और झूठे मुकद्दमों से बचाव कि कठोर व्यवस्था हो
9 दिसंबर को अतुल शर्मा , बैंगलोर के एक होनहार इंजिनियर ने पत्नी और उसकी माँ कि दहेज़ , घरेलु हिंसा , बड़ी मेंटेनेंस के, अप्राकृतिक सेक्स के अनेकों झूठे मुकद्दमों से तंग आ कर आत्महत्या कर ली .उसे उन मुकद्दमों के लिए बैंगलोर से जौनपुर जाना पड़ता था .उसकी इस मजबूरी का फायदा उठा कर पिशाचिनी माँ बेटी ने ३ करोड़ रुपयों की मांग रख दी. यद्यपि कर्णाटक पुलिस ने माँ बेटी भाई को गिरफ्तार कर लिया है पर चाचा को अलाह्बाद हाई कोर्ट ने जमानत दे दी है जो अब सबूत मिटाने का पूरा प्रयास कर सकता है. भाई भी पुलिस कि कोई मदद नहीं कर रहा है .पूरा मामला सबूत न मिलने के अधर पर ख़ारिज किया जाए इसका प्रयास होगा.
इसी तरह के अनेकों पत्नी के आत्महत्या नोट को साक्षय मान के केस मैं पोलिस पति को तुरंत गिरफ्तार कर आत्महत्या के लिए उकसाने का मुकद्दमा रजिस्टर कर लेती है. इस केस मैं अतुल ने विडियो और चिट्ठी दोनों दी है .इस लिए ऐसी स्त्री जाती के लिए कलंकिनी माँ बेटी को भी इसी तरह जिम्मेवार मान कर उचित दंड मिलना चाहिए . दादा ने पोते का संरक्षण माँगा है जो जेल मैं बंद माँ के कारण उन्हें मिल जाना चाहिए . अन्यथा पति की हत्यारिनी पिशाचिनी इस का दुरूपयोग कर जमानत मांगेगी जो उसके जघन्य कृत्त्य का घोर अन्याय होगा .
अब दहेज़ व घरेलु हिंसा के दुरूपयोग कि सभी हदें पार हो गयीं हें . पश्चिम कि तरह भारत मैं भी बढ़ते हुए तलाक के कारण इन कानूनों का दुरूपयोग बढेगा और अनेक अतुल सबला नारियों कि इस झूठी संवेदनाओं के चलते बलि चढ़ेंगे.
किसी स्त्री को पालना पुरुष की जिम्मेवारी नहीं है जैसे पुरुष को पालना स्त्री की जिम्मेवारी नहीं है. हर प्राणी को अपना पेट खुद भरना होता है. पुराने हिन्दू संस्कार अब समाप्ती की कगार पर हें . यदि लड़की पढी है तो अपना जीवन खुद चलाये और अपनी कमाई मैं जिए . पति की कमाई पर उसका कोई नैसर्गिक हक़ नहीं है. आज कल दो संतान के लड़की के बूढ़े माँ बाप भी स्वार्थवश उसको को पुनः रखने के लिए तत्पर रहते हें . तलाकशुदा औरत बच्चे नहीं पाल सकती तो पति को दे दे . यह धारणा कि पुरुष बच्चे नहीं पाल सकता नौकरी शुदा औरतों के लिए लागू नहीं होती. दूसरी शादी के बाद तो कोई भी भत्ता दिया ही नहीं जाना चाहिए .
दहेज़ , घरेलु हिंसा जब तक पर्याप्त साक्षों से सिद्ध न हो जाय पति को दोषी नहीं माना जा सकता . इनको व विवाह के हर केस को सिविल केस माना जाना चाहिए , अपराध नहीं . अप्राकृतिक सेक्स तो अब आधुनिक समाज मैं कोई दोष ही नहीं है क्योंकि हर घर मैं स्वेच्छा से होता है . इसलिए इसे भारतीय दंड व्यवस्था से निकाल देना चाहिए .
कुल मिला कर अब आज की सबला नारी किसी विशेष सामाजिक संवेदना की हक़दार नहीं है और इन इकतर्फा कानूनों मैं तुरंत व्यवहारिक व बराबरी की बुनियाद पर सुधार होना चाहिए. एक साल तक हर विवाह को ट्रायल माना जाना चाहिए और बिना बच्चों के दंपत्ति को स्वेच्छा से सिर्फ कोर्ट मैं हलफनामा दर्ज कर तलक स्वतः मिल जाना चाहिए बिना किसी मेंटेनेंस के . बच्चे माँ बाप कि जिम्मेवारी होते हें और असहिष्नु स्त्री को अपने गहने जेवर ले कर माँ बाप के घर लौट जाना चाहिए और अपना जीवन अपने ढंग से शुरू करना चाहिए.