अतुल सुभाष व गीतिका शर्मा : दो समान आत्महत्याएं , समान आरोप तो सजाओं मैं भिन्नता क्यों : समान न्याय के लिए सबला नारी की क्रूरता पर कोई अतिरिक्त दया नहीं दिखानी चाहिए
यह देख कर दुःख होता है कि एक होनहार युवक अतुल सुभाष की लालची पथभ्रष्ट हत्यारिनी माँ और बेटी निकिता को मात्र बीस दिन मैं निचली अदालत ने जमानत दे दी . जिस छोटे बच्चे ढाल बनाया उसकी कस्टडी तो अतुल के माँ बाप भी मांग रहे थे और वह उसकी देख रेख कर सकते थे. मामला उच्च न्यायलय मैं था . उसको को ढाल बनाना और अपना असीम लालच व पति की ह्त्या का पाप छुपाना कैसे उचित है ?
इसी तरह के दुसरे केस मैं हरयाना के मंत्री गोपाल कांडा को एयर होस्टेस गीतिका शर्मा कि आत्महत्या के केस मैं जमानत देने मैं हाई कोर्ट पर जाना पडा और एक वर्ष से ज्यादा कि जेल के बाद जमानत मिली . इस केस मैं गीतिका ने कांडा पर नाजायज़ तंग करने का आरोप लगाया था. इसका संज्ञान लेना उचित था . पर यह भी सोचिये कि जब गीतिका एक सामान्य एयर होस्टेस से बिना औचित्य के एयरलाइन कि डायरेक्टर बना दी गयी और मेर्सदेज कार मैं घूमती थी तो उसे पता नहीं था कि यह किस लिए कृपा बरसाई जा रही है . जब परिणाम सामने आया तो फिर कोई रास्ता नहीं बचा था. अतुल सुभाष ने तो ऐसा कुछ नहीं किया था . उसके साथ तो घोर अन्याय हुआ . उसने तो महिला जज पर भी पैसे मांगने व उसके उत्पीडन मैं संलग्न होने का आरोप लगाया था . लोगों को यह भी अन्दर से संशय है कि शायद इसी लिए कोर्ट ने उसके आत्मह्त्या के नोट को इतना महत्व नहीं दिया .
नारी के प्रति इस बेवकूफी वाली संवेदना की हद तो इंग्लैंड की किरनजीत अहलुवालिया केस कि है जिसने अपने शराबी पति कि ह्त्या कर दी . उसे मात्र ढाई साल बाद छोड़ दिया गया और अब वह नारी मुक्ति आन्दोलन का प्रतीक चिन्ह बन गयी है.इसके विपरीत बंबई के नेवी के अफसर नानावती ने अपनी पत्नी को रंगे हाथ पकड़ उसके प्रेमी अहुजा की गोली मार के ह्त्या कर दी . सेशन कोर्ट के छोड़ने के बाद भी हाई कोर्ट ने फैसला पलट नानावती को कारावास कि सज़ा दी जो सर्वोच्च न्यायलय ने बरकरार रखी .
सवाल यह है अब भारत भी पुरानी पति परमेश्वर को समर्पित पत्नी के युग से दम्भी , लालची व स्वार्थी पत्नी कि राह पर चल चुका है .भविष्य मैं और तलाक बहुत बढ़ेंगे . इसी तरह और झूठे केस बनाए जायेंगे . अतुल जैसे पतियों का शोषण रोकने कि अब सख्त जरूरत है . समाज इस के प्रति अभी सजग नहीं हुआ है.
सबला नारी किसी विशेष सहानभूति कि हकदार नहीं है. न ही वह बच्चों कि नैसर्गिक हकदार है . उसको तलाक से मिलने वाली अधिक राशि उसकी असहनशीलता को बढ़ा रही है . वह सैर सपाटे को ध्येय मान घर का काम नहीं करना चाहती और इस लिए पति के माँ बाप को साथ नहीं रखना चाहती .इसके विपरीत वह अपने माँ बाप को साथ रखने के लिए तत्पर रहती है . दो बच्चों के युग मैं तलाकशुदा लड़की माँ बाप पर अब कोई बोझ नहीं होती है न ही समाज उसे हेय दृष्टि से देखता है . इसलिए माँ बाप भी अब उसका मार्ग दर्शन नहीं कर रहे हें .
इसलिए अब इस्लामिक निकाह की तरह हिन्दू पति को शादी से पहले कॉन्ट्रैक्ट करने का अधिकार मिलना चाहिए जिसमें मेहर कि तरह तलाक कि राशि भी तय होनी चाहिए और पारिवारिक दायित्व लिखे होने चाहिए. पत्नी का पैत्रिक संपत्ति या ससुराल की सम्पत्ती पर कोई अधिकार नहीं हो सकता. यदि स्वतंत्रता चाहिए तो खुद कमाओ. यह प्रथा हिन्दुओं को भी अपनाने की आवश्यकता है . इसी तरह सेक्स के प्रति भी रुख बदलने की आवश्यकता है. स्वेच्छा से लिव इन मैं कोई मेंटेनेंस नहीं और इसे सेक्स के अपराध मुक्त करना चाहिए . न ही नाजायज़ औलाद को सम्पत्ती मैं कोई हक़ होना चाहिए . शादी की शर्तें व्यक्तिगत होनी चाहिए और वह किसी वोट बैंक का गुलाम नहीं बन सकती .
हिन्दुओं ने अपनी हीरे समान बहुमूल्य पारंपरिक परिवार कि व्यवस्था को पश्चिम की नक़ल मैं तोड़ लिया है . वोट बैंक के कारण संसद भी बहुत धीरे परिवर्तन लाएगी . समाज को अब मिल कर आवाज़ उठानी चाहिए
इसलिए न्यायपालिका को अब पत्नी पीड़ित पतियों की एक कर्तव्य समझ कर रक्षा करनी चाहिए .