If Only Prithvi Raj Chauhan Had a Chanakya: भारत मैं क्यों बिना चाणक्य के अनेक चन्द्रगुप्त बेकार हो गए ? रोबर्ट क्लाईव का दो सौ साल मैं कोई तोड़ क्यों नहीं निकला ?
भारत के दो वीर सपूतों का वर्णन हर भारतीय को भाव विभोर कर देता है . एक बालक से मौर्य वंश के संस्थापक बने सम्राट चन्द्र गुप्त व दूसरे अजमेर व दिल्ली के महाराज पृथ्वी राज चौहान जो पहली बार मुहम्मद गौरी को तराई मैं हराने के बावजूद अंततः किवदंतियों के अनुसार एक अंधे कैदी कि तरह यातनाओं को झेलते प्राण त्यागने को मजबूर हुए.
यह भारत का दुर्भाग्य था कि परम प्रतापी पृथ्वी राज चौहान का यह हाल इसे लिए हुआ क्योंकि उनके पास कोई आचार्य चाणक्य नहीं था .
इससे बड़ा दुर्भाग्य तो यह है कि उसे अपने लम्बे इतिहास मैं अनेक चन्द्रगुप्त तो मिले पर कोई चाणक्य दुबारा नहीं पैदा हुआ . मौर्य वंश के इलावा सिकंदर की तरह विश्व विजय का सपना तो हमने युधिष्टिर के अश्वमेध यज्ञ के बाद ही देखना बंद कर दिया . परिणाम यह हुआ कि अंग्रेजों के एक रोबर्ट क्लाईव का काट हम दो सौ साल मैं नहीं पैदा कर सके .
हम पुनः पृथ्वी राज चौहान पर वापिस आते हें .
पृथ्वीराज ग्यारह वर्ष की आयु मैं ही पिता कि मृत्यु के बाद सिंहासन पर बिठा दिए गए . पर शासन उनकी माँ ही देख रही थीं . उनकी सहायता चाचा विग्रह राज कर रहे थे . पृथ्वीराज के दो छोटे भाई भी थे जो बहुत छोटे थे . राज्य सभा मैं अनेक गुट थे .
इसलिए शिवाजी की तरह पृथ्वीराज को समस्त भारत को एक कर बहुत विशाल साम्राज्य बनाने कि प्रेरणा किसी ने नहीं दी .
पर तब भी उन्होंने युवा होने पर राज्य को अपने अधिकार मैं लिया और आस पास के कई राजाओं को हरा कर अपने राज्य का विस्तार पंजाब , हरयाणा , दिल्ली , राजस्थान व मध्य प्रदेश कि बड़े हिस्सों मैं फैलाया . पर सारी लड़ाइयाँ अपने आस पास के छोटे राजाओं से ही लड़ी और उनका कोई बृहत् उद्देश्य नहीं था . संयोगिता के विवाह के बाद तो वह ऐय्याशी राजा ही हो गए और राज कार्य की अवहेलना करने लगे . इसके विपरीत चाणक्य ने कभी चन्द्रगुप्त को उच्छ्रिन्खल नहीं होने दिया . यहाँ तक की स्वयं चन्द्रगुप्त को विष से बचने के लिए यंके भोजन मैं धीरे धीरे विष कि मात्रा बढ़ा दी . जिससे चन्द्रगुप्त की पत्नी महारानी दूरधरा का देहांत हो गया . परन्तु मरने के बाद भी रानी के पेट से बच्चा निकाल कर उसे बड़ा किया जो सम्राट बिन्दुसार बना .
न तो पृथ्वीराज के पास कोई चाणक्य था न ही उनमें चन्द्रगुप्त के समान अनुशासन व किसी गुरु पर श्रद्धा थी. इस लिए पृथ्वीराज न कभी मौर्य वंश कि तरह साम्राज्य नहीं खड़ा कर सके न ही किसी सम्राट अशोक को पैदा कर सके .
मुहम्मद गौरी तो पहली बार पंजाब जीत कर वापिस जाने वाला था . पृथ्वी राज ने स्वयं उस पर हमला के लिए प्रस्थान किया तो गौरी भी युद्ध मैं आ गया . पृथ्वी राज ने उसे हरा कर माफी मांगने पर क्षमा दान कर छोड़ दिया . दूसरी बार पृथ्वीराज तैयार नहीं थे . वह बाकी राजपूत राजाओं को साथ मैं जोड़ भी नहीं पाए .विशाल सेना के बावजूद वह एक छोटी परन्तु तैयार व अनुशासित सेना से युद्ध हार गए . विजयी और चालाक गौरी ने वह विशाल ह्रदय नहीं दिखाया और भारत एक हज़ार वर्षों के लिए गुलाम बन गया . यह कहानी तो राज्य कवि चाँद बरदाई कि किताब रासो से प्रचलित हुयी है जो संभवतः ठीक नहीं थी . कई किताबों मैं लिखा है कि गौरी अजमेर मैं पृथ्वीराज को शासक बनाना चाहता था पर यह न हो सका . अंत मैं उसने उनके पुत्र गोविन्दराज को अपने प्रतिनिधि के रूप मैं सिंहासन पर बिठा दिया . आर्चाय चाणक्य होते तो यह कभी नहीं होने देते .
वास्तव मैं भारत मैं गुप्त वंश के बाद बड़ी सोच ही समाप्त हो गयी . सभी छोटे मोटे राजा आपस मैं लड़ कर ई अपनी बहादुरी सिद्ध करते रहे . इसके विपरीत अलाउद्दीन खिलजी , बाबर , अकबर , औरंगजेब सभी विशाल साम्राज्य बनाने के लिए सतत प्रयासशील रहे और इसमें सफल भी हुए .
५०० अँगरेज़ सैनिकों की सेना वाले क्लाईव को हराना क्या मराठों या टीपू सुल्तान के लिए संभव नहीं था ? थोड़ा बहुत साहस मराठाओं ने दिखाया . पर वहां भी आचार्य चाणक्य जैसा कोई गुरु नहीं था . पानीपत जैसे भयंकर युद्ध से पहले क्या कभी कोई सेना घर वालों कों पिकनिक की तरह तीर्थ दिखाने ले जाती है ?
क्या चाणक्य चन्द्रगुप्त को यह करने देते ?
भारत के राजा वीरता तो थे पर बुद्धिमान नहीं ! राजा का अपने को बुद्धिमान व सर्वज्ञानी समझने के भ्रम मैं रहने की परम्परा तब से आज के युग तक भी विद्यमान है. अमरीका मैं थिंक टैंक बुद्धिमान मंत्री का दायित्व निभाते हों . हमारे थिंक टैंक रिटायर चापलूस आई ए एस या नौकरशाहों के आधिपत्य से बेकार हो गए हें . श्रेष्ठी भामाशाह नहीं रहे बल्कि राजा बनने के सपने देखने लगे हें .
इसलिए हमारा देश न तो कभी चीन बन सकता न ही इसका सपना ही देख सकता है . देश को आज फिर एक आचार्य चाणक्या की आवश्यकता है . पर हमें वीर पर अहंकारी पृथ्वीराज ही मिलते रहते हें और हम अगले किसी बाबर , गौरी नादिरशाह या हूँण से फिर युद्ध हार जायेंगे .
इस आचार्य चाणक्य हीन देश कि स्वतन्त्रता कितनी लम्बी चलेगी पता नहीं !