Exit Vivek Ramaswamy From Elon Musk’s Washington : सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयान्न ब्रूयात् सत्यमप्रियम्। प्रियं च नानृतं ब्रूयादेष धर्मः सनातनः : पर क्यों आकाश से गिरे सिर्फ भारतीय थे इसलिए या क्रीज़ के बाहर खेल गए ?
विवेक रामास्वामी जो ट्रम्प के पार्टी नामांकन के दिन अपनी स्पीच से हर दिल पर छा गए थे वह क्यों सरकार बनने के के मात्र दो दिन मैं सरकार से निकाल दिए गए ?
यह कहानी किसी रोमांचक हिंदी फिल्म की ही लगती है . ट्रम्प ने उन्हें मंत्री तो नहीं बनाया था पर एलोन मस्क के जूनियर के रूप मैं सरकार के खर्चे कम करने के लिए एक नए विभाग DOGE मैं रखा था . विवेक रामास्वामी ने पहले तो H1-B वीसा का खुले आम समर्थन किया जो की एलोन मस्क भी कर रहे थे और ट्रम्प भी मान गए थे . परन्तु एलोन मस्क विश्व के सबसे अमीर आदमी हें, गोरे हें , और अमरीका क्या पूरे संसार के हीरो हैं . उनकी बात को सब अमरीका मान लेता है .विवेक रामास्वामी द्वारा कही यही बात लोगों को बहुत पसंद नहीं आ रही थी . बहुत सारे अमरीकी उसे कम वेतन पर भारतीयों से नौकरियों को भरने का तरीका मान रहे था . संख्या बहुत बढ जाने से अब भारतीयों का भी विरोध अमरीका मैं होने लगा है .
इस जले अमरीकी दिल पर विवेक रामास्वामी ने एक बड़ी ट्वीट कर आग लगा दी . उन्होंने कहा कि १९९० से अमरीकी संस्कृति भटक गयी है . अब यहाँ सर्व श्रेष्टता का नहीं बल्कि औसत मेडीओक्रिटी को बढावा दिया जा रहा है . हद तो उन्होंने तब कर दी जब यह कहा कि यदि अमरीकी गणित की ओल्म्पिक चैंपियन शिप के बदले School Prom Queen को ज्यादा महत्त्व देंगे तो फिर बढ़िया इंजिनियर कैसे अमरीका मैं पैदा होंगे .
देखा जाए तो सारा पश्चिमी जगत इस बीमारी से ग्रस्त है और वह इसे जानता है . कोई गणित या इंजीनियरिंग जैसे मुश्किल विषय नहीं पढ़ना चाहता .हर कोई आर्ट , कॉमर्स वकालत या ऐसे ही आसान विषयों को पढ़ा कर अपार धन कमाना चाहता है . एक प्रसिद्द इतिहासकार गिबन ने रोम के पतन का यही कारण बताया था . अमीरी ने बहादुर रोमन लोगों को आलसी बना दिया और वह लड़ाई मैं भी गुलामों को भेजने लगे थे . अंततः विशाल रोमन साम्राज्य का अंत इस आलस ने ही कर दिया .
इसका ही दुष्परिणाम आज हम पश्चिमी जगत मैं देख रहे हें .
पर इस अप्रिय सत्य को वहां कोई राज नेता लोक प्रियता खोने के डर से नहीं बोल रहा . विवेक रामास्वामी के इस अप्रिय सत्य के ट्वीट ने सारे अमरीकी समाज को नाराज कर दिया और ट्रम्प के लिए उनको सरकार मैं एक दिन भी रखना मुश्किल हो गया. कहने को वह ऑहियो राज्य के गवर्नर का चुनाव लड़ेंगे पर वह तो अभी दो साल दूर है
दूसरी बात यह भी है कि एलोन मस्क उनको अपने साथ नहीं रखना चाहते थे . उनके बहुत विरोधी रिपब्लिकन पार्टी मैं थे . जिनको उनके इस ट्वीट ने मौक़ा दे दिया और उन्होंने इस मौके का बहुत फायदा उठाया .
अच्छा होता विवेक ने मनु स्मृति का यह श्लोक पढ़ा होता जिसमें अप्रिय सत्य को न बोलने को कहा है.
सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयान्न ब्रूयात् सत्यमप्रियम्। प्रियं च नानृतं ब्रूयादेष धर्मः सनातनः
यही गलती कवि भूषण ने की थी जब उन्होंने औरंगजेब के उकसाने पर
‘किबले के ठौर बापू बाद शाह जहाँ ताकू कैद कीनो माने मक्का आग लायी है ‘
कविता दरबार मैं सुना दी थी और उसके बाद वह भी विवेक रामास्वामी कि तरह तुरंत रातों रात जान बचा कर भागने को मजबूर हो गए थे .
अमरीका समेत समस्त पश्चिमी जगत भारतियों को सिर्फ एक मजबूरी मान रहा है . इसलिए इससे सिद्ध हो गया कि अभी हमको सिर्फ चुपचाप अपनी नौकरी और अपने काम पर ध्यान देना होगा . इंग्लैंड मैं ऋषि सुनक की ही तरह अमरीका अभी भारतियों से ज्ञान नहीं लेना च़ाहता है और न ही उनको श्रेष्ठ मानता है . इंग्लैंड की भारतीय मूल की मंत्री सुएला ब्रेवार्मन इस सत्य को भली भांति जानती हें और अंग्रेजों से ज्यादा अँगरेज़ हें . प्रीत भरारा जैसे अमरीकी भारतीय भी इस तथ्य से भली भांति परिचित हें . 
पर मैं कहूंगा कि विवेक का टैलेंट ट्रम्प को फिर याद आयेगा . उनको ऐसे कार्य करने चाहिए जिनसे उनकी खोई लोकप्रियता वापिस आ सके . तब तक रहीम के इस दोहे से सांत्वना लें
रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर।
जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर॥

