अच्छे दिन कब आयेंगे : समय पाय तरुवर फले केतहु सीचो नीर : पर सरकारी चुप्पी क्यों ?
देश की जनता ने बड़ी आशा से एक फल का पेड़ इस चुनाव मैं लगाया था जिसका नाम था मोदी .
जनता को बहुत आशाएं थीं की मोदी का पेड़ उन्हें मीठे मीठे फल देगा और सब उन फलों का बड़ी बेसब्री से इन्तिज़ार कर रहे हैं . तीन महीने बीत गए पर एक फल भी नहीं आया . कांग्रेस जो एक कीकर के पेड़ तरह देश को सिर्फ कांटे चुभाती रही थी, जनता को उकसा रही है की कहाँ है वह फल जिसके लिए तुमने मोदी का पेड़ लगाया था .हम मैं क्या कमी थी . भ्रष्टाचार के कांटे थे तो क्या था कम से कम सुरक्षा की छाया तो देते थे . हमारी मानो, हमें पुनः अपना लो. मोदी का फलों का वायदा सिर्फ छलावा है .
चुनाव को पंद्रह दिन हुए की सब टीवी चैनलों ने कहना शुरू कर दिया की बहुत देर हो गयी , अच्छे दिन कब आयेंगे . फिर रेल की किराये बढे जनता को बताया की क्या इन्ही अच्छे दिनों का तुम्हें इन्तिज़ार था ? किसी ने नहीं कहा की सात साल से किराये नहीं बढे थे उन्हें बढना तो था ही . पेट्रोल डीजल की कीमतें बढीं तो फिर कहा क्या इन्ही अच्छे दिन का इन्तिज़ार था . कुछ बारिश देर से हुयी कीमतें बढ़ गयीं . पहले प्याज फिर टमाटर व् अन्य सब्जियों के दाम बेहद बढ़ गए . जनता का धैर्य टूट रहा था . फिर बजट आया पर टैक्स कम नहीं हुआ जो बी जे पी हमेशा से कहती रही थी . पाकिस्तान ने सीमा पर गोलाबारी की पर हम शांति का मनमोहन का कोंग्रेसी राग अलापने लगे .
जनता को बी जे पी भी कांग्रेस की कॉपी लगने लगी .
जनता पर चैनलों का प्रभाव पढ़ना लाजमी था . वह अब सोचने लगी है की क्या अच्छे दिन का वायदा मात्र छलावा था . कीकर का पेड़ कोंग्रेस व् अन्य विरोधी पार्टियां जोर जोर से बोल रहीं है की हमने तो पहले ही कहा था की अच्छे दिन कभी नहीं आयेंगे . तूमने वास्तव मैं फल का पेड़ नहीं विष की बूटी लगाई है , अब भोगो अपने चुने और बोये हुए विष को !
देश द्रोही विद्शियों के हाथ बिके टीवी चैनल जिन्होंने विदेशियों के कहने पर पहले मोदी को व्यर्थ मैं गोधरा का वीत राग गा कर अनंत काल तक बदनाम किया था अब जोर जोर से देश तोड़ने की बात कर रहे हैं .पहले हिंदी को जबरदस्ती थोपने की अफवाह उडाई . बिना बात के इंटरव्यू दर इंटरव्यू लिए गए की हिंदी को जबरदस्ती थोपना गलत है . किसने हिंदी थोपी कब थोपी ? क्या प्रधान मंत्री का हिंदी मैं बोलना हिंदी थोपना था . सूत न कपास जुलाहों मैं लट्ठम लट्ठा ! सिर्फ अन्ग्रेजियत को देश भक्ती मानाने वालों से कोई और उम्मीद भी नहीं कर सकते . वह रुका तो फिर लगातार बलात्कार की ख़बरों से देश को भड़काया .अब सांप्रदायिक दंगों की खबरों को बढ़ा चढ़ा के बोला जा रहा है . उद्देश्य वही पुराना है देश को विदेशियों के हाथ की कठपुतली बनाना . जय चंदी देश द्रोही टीवी चैनलों पर लगाम लगाना बहुत ज़रूरी है. .
पर अच्छे दिन वास्तव मैं क्यों नहीं आ रहे . वह कब आयेंगे ?
जनता की आशाओं पर क्यों तुषारापात हो रहा है ?
इसे समझना आवश्यक है और जनता को समझाना उतना ही आवश्यक है .
जनता की दो प्रमुख इच्छाएं हैं एक महंगाई कम होना दूसरा आर्थिक विकास दर का फिर से आठ से दस प्रतिशत तक जाना जिससे युवकों के लिए नयी नौकरियां आयें और गरीबी कम हो. बाकी और बहुत भी इच्छाएं हैं पर यही दो ही मुख्य हैं .
महंगाई कांग्रेस के भ्रष्टाचार की देन है. अपने चरम भ्रष्टाचार को छुपाने के लिए उसने सरकारी खजाने को लुटा के व्यर्थ वह वाही लूटने के लिए जनता मैं पैसा बाँटने का सहारा लिया . कभी दुर्योधन ने पांडवों के वर्णवृत जाने पर यह किया था . इस श्रंखला मैं सबसे खराब थी मनरेगा योजना . सरकार ने हर गाँव मैं नौजवानों को बिना असली काम के पैसा बाँट दिया . हर साल घास कट कर सड़क बनाओ ! उत्पादन तो किसी चीज़ का बढ़ा नहीं पर सब्जी चीनी व् तेल इत्यादि की मांग बढ़ गयी . इसलिए उनके दाम बढ़ने लगे .उनकी देखा देखी और चीज़ों के दाम बढ़ने लगे . पंजाब मैं बिहारी मजदूर जाने बंद हो गए क्योंकि घर बैठे बिना काम के पैसा मिलने लगा . पंजाब व् सब जगह मजदूरी के भाव बढ़ गए क्योंकि मन रेगा से ज्यादा पैसा दो तब ही तो मजदूर आयेंगे . मजदूरी डेड सौ रूपये रोज़ से बढ़ कर ढाई सौ हो गयी .महंगाई और बढ़ गयी . आखिर मैं मनरेगा का पैसा भी महंगाई के चलते बेकार हो गया तो रेट और बढ़ा दिया . देश को डूबाने की इससे अच्छी कोई स्कीम नहीं थी . बिहारी नवयुवकों को पंजाब जा कर मेहनत से पैसा कमाने के बजाय घर निठल्ले बैठने के पैसे दिए जाने लगे . देश को अब दुश्मन नहीं दोस्त ही मार रहे थे . मनरेगा ने निठल्लेपन की अफीम नवयुवकों को खूब खिलाई. ऐसे ही खाद्यान सुरक्षा योजना . क्या देश की साठ प्रतिशत आबादी को कहीं भी किसी भी देश मैं लगभग मुफ्त जैसी दरों पर कोई खाना देता है ? पर चुनाव आ रहे थे किसे देश की या पैसे की चिंता थी . हालत ठीक लखनउ के उन नबाबों की तरह हो गयी जो घर गिरवी रख नौकरों की फौज को तनख्वाह देते थे . कब तक चलता . देश को गिरवी रख कर डूबना तो था ही सो डूब गया .
कांग्रेस तो हार कर पल्ला झाड कर दूर हो गयी . मोदी की गोद मैं अपने पाप की परिणिति को डाल कर मुंह मोड़ लिया . मोदी कहाँ से शुरू करें ? मनरेगा को कौन और कैसे बंद करें . कैसे खाद्यान सुरक्षा के बिल को वापस लें . बाकि सरकारी योजनायें भी लोक लुभावन पर् बेहद व्यर्थ के खर्च वाली थीं .
एक साधारण गृहणी जानती है की जूता कितना ही अच्छा हो पर अगर पैसा हो तभी खरीदें उधार से नहीं . कांग्रेस सरकार यह भूल गयी . पर मोदी अगर इस बर्बादी को रोकें तो गरीब विरोधी कहलायेंगे . राज्यों के चुनाव आ रहें हैं . गरीब विरोधी तम्गेका कांग्रेस अपने दुश प्रचार मैं उपयोग करेगी . राज्य सभा के लिए राज्यों के चुनाव जीतना भी जरूरी है . तो महंगाई तो अभी नहीं रूकेगी जल्दी मैं तो नहीं .
जनता को यह सच्चाई कौन बताये , यही समस्या है . कौन बिल्ली के गले घंटी बंधे ?
अब आर्थिक उन्नती के अवरोध को लें .
जो पैसा बिजली सड़क या कारखानों मैं लगना था वह व्यर्थ मैं बाँट दिया गया . उससे महंगाई बढी उस महंगाई को रोकने के नाम पर उद्योगों का गला घोट दिया . ब्याज दरें बढ़ा दी गयीं जिसकी कतई भी जरूरत नहीं थी . गलती मनरेगा की और बीमार उद्योगों को कर दिया . पर मोदी करें क्या ? कोई इलाज़ नहीं है ! जनता मुफ्त के अफीम खाने की आदी हो गयी है.
इसलिए देश उन्नति के लिए विदेशी पैसे पर फिर निर्भर हो गया जिसकी शर्तें आत्मसम्मान के विरुद्ध हैं
देश मैं बिजली की कमी है , बिजली के कारखाने कोयले के लिए बंद हैं , कोयले के ब्लाक ब्लाक मार्किट के लिए ले कर बैठ गए , आयात के लिए विदेशी मुद्रा कम है . पर सोने का झूठा सच्चा आयात निरंतर चल रहा है
तो मोदी अच्छे दिन कैसे लायें ?
इसलिए अच्छे दिन धीरे धीरे ही आएंगे . जनता को मुफ्त मैं घर बैठे रोटी खाने की आशा छोड़ देनी चाहिए . कोई जादू की छडी किसी के पास नहीं है . इसलिए मोदी को देश ठीक करने के लिए समय दीजिये और पैसे के लिए मेहनत कीजिये . मीठा फल जरूर आयेगा पर ऋतू के आने पर ही . चैनल ज्ञान तो देश मैं विद्रोह कराने के लिए बांटा जा रहा है . कांग्रेस तो मोदी को झूट सिद्ध करने के लिए उतारू है.
देश की वास्तविक आशा इमानदार संस्कारी मोदी ही हैं . उन्हें डेढ़ वर्ष का समय दीजिये और देश धोखा नहीं खायेगा .
पर यह सरकार पूर्णतः निर्दोष नहीं है . सरकार मैं विश्वसनीय विद्वानों का नितांत अभाव है. साधारण मंत्रियों मैं से कोई जनता का दिल जीतने मैं सक्षम नहीं है. सरकार भी मनमोहन वाली चुप्पी ले कर बैठ गयी है . एक चुप्पी से पहले से तंग थे अब दूसरी आ गयी . देश को कोई सच्ची राह नहीं बता रहा . मोदी से ज्यादा साहस की उम्मीद थी . पर उन्हें कोई राह नहीं सुझा रहा . देश को जामवंत की ज्यादा आवश्यकता है . इमानदारी मोदी की अनमोल अमानत है इसका सही उपयोग जनता को सच्चाई बताने के लिए होना चाहिए .
इस स्थिति का दुश्मन तो दुरूपयोग करेंगे ही सो कर रहे हैं .
भारत के विकास के लिए मोदी को मार्गरेट थेचर सा साहसी व् चर्चिल जैसा कुशल प्रधानमंत्री ही बनना पडेगा !