मोदी जी उछ्रिन्कल नारीवाद से उपजे जनाने मर्द व् मर्दानी औरतें राष्ट्र का आदर्श नहीं हो सकती : लड़कों को पुरुषों के व् लड़कियों नारियों के भारतीय आदर्शों मैं ही पलने दें
by Rajiv Upadhyay
मोदीजी आपका पंद्रह अगस्त का लाल किले की प्राचीर से देश को सम्बोधन के व…िषयों का चुनाव उचित था . गाँधी जी ने स्वतंत्रता के अलावा समाज सुधर के व्यापक प्रयत्न किये थे . परन्तु उसके बाद प्रधान मंत्री सिर्फ सरकार के प्रतिनिधि रह गए जिसे आपने बदलने का साहस किया है
आपके भाषण मैं मुझे कुछ बातें देश के व्यापक हित मैं नहीं लगीं .
आपका कहना की ‘लड़कों से भी तो पूछो की कहाँ जा रहे हो ’ इस ढंग से कहा गया की उसने फिर एक दुर्भाग्य पूर्ण बहस को तूल दे दिया जो देश मैं पश्चिम के अन्धानुकरण से तथाकथित नारी मुक्ति आंदोलनों की कर्ताधर्ताएं कर रही हैं . विगत वर्षों मैं भारतीय नारी का स्वरुप तोड़ कर जबरदस्ती उसका पश्चिमीकरण किया जा रहा है . पश्चिम के रंग मैं रंगी कुछ
नारियां , जिन्हें पहले एन डी ए के अध्यक्ष ने श्री शरद यादव ने कभी संसद मैं ‘ बलकटी ‘ कहा था , ‘ टीवी चैनलों , अख़बारों इत्यादि की सुर्ख़ियों मैं बनी रहती हैं और देश के नारियों का नारी मुक्ति के नाम पर घोर अहित व् चरित्र ख़राब कर रही हैं .
नारी मुक्ति आन्दोलन की नींव पहले व् दूसरे विश्व युद्ध मैं तब पड़ी जब पुरुषों को जबरदस्ती सेना मैं भर्ती कर युद्ध मैं भेज दिया गया और महिलाओं को कारखानों मैं काम दिया गया . सैनिकों के वापिस आने से उपजे तनाव ने सन साठ मैं अमरीका मैं व्यापक नारी मुक्ति आन्दोलन शुरू कर दिया . प्रजातंत्र के एक वोट के सिद्धांत ने पहले सरकार व् बाद मैं न्यायलयों को नारीवादी बना दिया .उसके बाद इकतरफा कानून बनते गए . पुरुष जो कभी सेना मैं बहादुरी से प्राण देने के लिए जबरदस्ती भेजे जाते थे अब अत्यंत बेचारे व् मजबूर हो गए . बंदूकों व् मशीनों ने शारीरिक सौश्टव का महत्त्व समाप्त कर दिया . गर्भ निरोधक गोली ने वास्तव मैं नारी को मुक्ती दिला दी .भारत मैं तो इकतरफा कानूनों के दुरूपयोग की सब सीमायें तोड़ दीं . अब वैश्याएँ चेक बाउंस होने पर बलात्कार का कसे डाल सकती हैं जैसे रोल न देने पर तीन साल तक जैन एक्ट्रेस का फिल्म निर्माता पर बलात्कार का आरोप .
पर पश्चिम के समाज ने इस पचास सालों मैं नारी मुक्ति से क्या पाया इसका आंकलन भी आवश्यक है .
१९६० से शुरू हुए नारी मुक्ती आन्दोलन ने अमरीका मैं २०१३ तक तलाक की दर को बढ़ा कर ४४% से ५०% तक कर दिया है . आज अमरीका मैं पैदा हुए बच्चे मैं से आधे ही १८ वर्ष की आयु तक माँ बाप को साथ देख पाएंगे . शीघ्र ही बिना शादी के मा बाप के पैदा हुए बच्चों की संख्या शादी शुदा मा बाप के बच्चों से ज्यादा हो जाएगी. आज अमरीका मैं पचास प्रतिशत पुरुष व् महिलाएं बिना शादी के रहते हैं . १९७२ मैं ७२% जवान पुरुष व् महिलाएं शादी शुदा होते थे. बिना शादी के साथ रहने वाले जोड़े अक्सर बच्चा होने पर अलग हो जाते है . तलाक के बाद सम्पन्न परिवारों की आय भी आधी रह जाती है . न तो बच्चे न ही महिलाएं इस परिस्थिति से लाभान्वित नहीं होतीं हैं . महिला मुक्ति ने महिलाओं को असहनशील व् असहिष्णु बना दिया है . इस असहिष्णुता के कारण अब तो शादी की संस्था ही समापन की ओर चल पड़ी रही है क्योंकि तलाक के डर से पुरुष शादी नहीं करना चाहते और बच्चे होने के डर से महिलायें . परन्तु सेक्स की जरूरत के लिए एक छत के निचे बिना शादी के रहना बहुत प्रचलित हो रहा है .
यूरोप तो और बुरी हालत है . वहां तो महान यूरोपीय संस्कृति ही समाप्त होने के आसार नज़र आ गए हैं . किसी सभ्यता को अक्षुण्य रखने के लिए एक युगल के २.२ बच्चे होने चाहिए नहीं तो धीरे धीरे लुप्त व् नष्ट हो जाती है . यूरोप मैं अनेक देशों की नए बच्चों की संख्या १.२ – १.४ तक पहुँच गयी है फ्रांस व् कई देशों मैं जनसंख्या घटने लगी है. इस गैप को इस्लामिक संस्कृति से भरा जा राहा है . अगले पच्चीस वर्षों मैं यूरोप यूरेबिया बन जायेगा . इंग्लैंड की राजकुमारी डायना तो शादी मैं असहिष्णुता की मिसाल बन गयीं हैं जिन्होंने बदले मैं अपने रसोइये , मिस्र के दूकानदारों तक से शारीरिक सम्बन्ध बना लिए.
कौमार्य की इन्टरनेट पर नीलामी लग रही है. सलट वाक मैं महिलाएं नग्नता की आज़ादी मांग रही हैं .
पुरुषों का तो अतिनारिवाद के चलते और विश्व भर मैं बुरा हाल है .
फ्रांस मैं पुरुषों के वीर्य मैं स्पर्म की गिनती पिछले बीस वर्षों मैं ३५ प्रतिशत कम हो गयी है. हालाँकि अभी यह नपुंसकता के खतरे पर नहीं पहुँची है पर अब ख़तरा मंडराने लगा है . पुरुष स्वस्थ तेज़ी से गिर रहा है .
पुरुषों पर परिवार का मुखिया होने का बहुत तनाव होता है . भारत की आत्म हत्यायों का अध्ययन सिद्ध करता है की शादी शुदा पुरुष जैसे किसान भारी मात्रा मैं पारिवारिक तनाव के चलते महिलाओं से दुगनी आत्महत्याएं करते हैं . यह बुरा है पर पुरुष परिवार को भोजन व् सुख देना आज भी अपनी जिम्मेवारी मानता है उसकी असफलता उसे आत्महत्या पर मजबूर कर देती है .
तो उससे व् पिता से इतनी असहानभूति क्यो ?
जीवन भर जमीन बेच कर बंधुआ मजदूरी कर लड़की की शादी करने वाले पुरुष को अब दबा दिया गया है . टीवी सिर्फ बलात्कार और दहेज़ की बातें करके एक झूटा चित्र बनता है . कुछ महिलाएं हो सकता है दहेज़ के लिए मारी जाती हों पर लाखों पुरुष असमय मृत्यु को ग्रास बनते हैं . अपराध व् बीमारियाँ अपवाद होते हैं उनके आधार पर समाज नहीं बनाया जाता जेल व् अस्पताल बनाये जाते हैं .पुरुष के जीवन मैं आज ऑफिस व् घर दोनों का तनाव दे दिया गया है जिससे हृदय रोग बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं .
भारत मैं भी शरद यादव जी की ‘ बलकटी ‘ औरतें बाकियों को बरगला रही हैं और भारत की पारंपरिक पारिवारिक व्यवस्था को तोड़ने के लिए तुली हुयी हैं . हमारी व्यवस्था मैं प्रेम था कोई अन्याय नहीं था . पिता की संपत्ति पुत्र को मिलने से कोई अन्याय नहीं था क्योंकि अधिकाँश पुरुष अपने से ज्यादा महिलाओं पर खर्च करते थे . आज भी अधिकाँश संपन्न घरों मैं पुरुष अपने से ज्यादा महिलाओं पर खर्च करते हैं . और भारतीय शादियाँ तो जीवनों प्रांत चलती हैं .महिला या पुरुष की अलग सम्पत्ती नहीं थी . दोनों साथ उसी घर मैं जीते और मरते थे.
तथाकथित नारी मुक्ति हमारी सुन्दर परिवार व्यवस्था को उसी तरह छिन्न भिन्न कर देगी जैसे इसने पश्चिम मैं किया है . नारी ,सिगरेट, नग्नता व् और शराब पीने को आधुनिकता मानने लगेगी . शीला दीक्षित जैसी संभ्रांत महिलाओं को भी सिर्फ शालीन कपडे पहनने की राय देने पर अपमानित कर दिया . टीवी पर तो जो जरा भी महिलाओं को टोके उस पर चढ़ जाती हैं . नारी मुक्ति स्वच्छंदता व् उच्छ्रिकलता का पर्याय बन गयी है .हजारों वर्षों का पारिवारिक सुखी जीवन जो हमें विरासत मैं मिला था इन बल्कटीयों के अभिमान की भेंट चढ़ जायेगा और हमारे यहाँ भी तलाकों का , बिन ब्याहे रहने का व् नाजायज़ / हराम के बच्चों का प्रचलन शुरू हो जायेगा . समाज को ये नारियां तोड़ तो सकती हैं परन्तु भारतीय समाज को फिर से जोड़ना किसी के लिए संभव नहीं है बलकतियों के लिए तो बिलकुल नहीं . इसलिए अभी चेतना आवश्यक है . लड़कियों को परिवार मैं घुल मिल कर सेवा व् प्यार से हृदय जीतने की ही पारंपरिक शिक्षा देना उचित है. लड़कों को आदर्शवादी , खतरों से खेलना और जीवन की विकटताओं से कभी न हारने वाला ही बनाना चाहिए.
जब अमरीकी औरतों को व् समाज को साठ साल मैं इससे कुछ नहीं मिला तो भारतीय औरतों को कैसे मिल जायेगा सिर्फ सब का सुख चैन छीन जायेगा .
इस लिए आवश्यक है की इस हर किसी को नुक्सान पहुँचाने वाली तथाकथित नारी मुक्ति आन्दोलन की किसी की आवश्यकता नहीं है.
लड़कियों को सीता और लड़कों को राम ही बनने की शिक्षा दें .
by Rajiv Upadhyay
मोदीजी आपका पंद्रह अगस्त का लाल किले की प्राचीर से देश को सम्बोधन के व…िषयों का चुनाव उचित था . गाँधी जी ने स्वतंत्रता के अलावा समाज सुधर के व्यापक प्रयत्न किये थे . परन्तु उसके बाद प्रधान मंत्री सिर्फ सरकार के प्रतिनिधि रह गए जिसे आपने बदलने का साहस किया है
आपके भाषण मैं मुझे कुछ बातें देश के व्यापक हित मैं नहीं लगीं .
आपका कहना की ‘लड़कों से भी तो पूछो की कहाँ जा रहे हो ’ इस ढंग से कहा गया की उसने फिर एक दुर्भाग्य पूर्ण बहस को तूल दे दिया जो देश मैं पश्चिम के अन्धानुकरण से तथाकथित नारी मुक्ति आंदोलनों की कर्ताधर्ताएं कर रही हैं . विगत वर्षों मैं भारतीय नारी का स्वरुप तोड़ कर जबरदस्ती उसका पश्चिमीकरण किया जा रहा है . पश्चिम के रंग मैं रंगी कुछ
नारियां , जिन्हें पहले एन डी ए के अध्यक्ष ने श्री शरद यादव ने कभी संसद मैं ‘ बलकटी ‘ कहा था , ‘ टीवी चैनलों , अख़बारों इत्यादि की सुर्ख़ियों मैं बनी रहती हैं और देश के नारियों का नारी मुक्ति के नाम पर घोर अहित व् चरित्र ख़राब कर रही हैं .
नारी मुक्ति आन्दोलन की नींव पहले व् दूसरे विश्व युद्ध मैं तब पड़ी जब पुरुषों को जबरदस्ती सेना मैं भर्ती कर युद्ध मैं भेज दिया गया और महिलाओं को कारखानों मैं काम दिया गया . सैनिकों के वापिस आने से उपजे तनाव ने सन साठ मैं अमरीका मैं व्यापक नारी मुक्ति आन्दोलन शुरू कर दिया . प्रजातंत्र के एक वोट के सिद्धांत ने पहले सरकार व् बाद मैं न्यायलयों को नारीवादी बना दिया .उसके बाद इकतरफा कानून बनते गए . पुरुष जो कभी सेना मैं बहादुरी से प्राण देने के लिए जबरदस्ती भेजे जाते थे अब अत्यंत बेचारे व् मजबूर हो गए . बंदूकों व् मशीनों ने शारीरिक सौश्टव का महत्त्व समाप्त कर दिया . गर्भ निरोधक गोली ने वास्तव मैं नारी को मुक्ती दिला दी .भारत मैं तो इकतरफा कानूनों के दुरूपयोग की सब सीमायें तोड़ दीं . अब वैश्याएँ चेक बाउंस होने पर बलात्कार का कसे डाल सकती हैं जैसे रोल न देने पर तीन साल तक जैन एक्ट्रेस का फिल्म निर्माता पर बलात्कार का आरोप .
पर पश्चिम के समाज ने इस पचास सालों मैं नारी मुक्ति से क्या पाया इसका आंकलन भी आवश्यक है .
१९६० से शुरू हुए नारी मुक्ती आन्दोलन ने अमरीका मैं २०१३ तक तलाक की दर को बढ़ा कर ४४% से ५०% तक कर दिया है . आज अमरीका मैं पैदा हुए बच्चे मैं से आधे ही १८ वर्ष की आयु तक माँ बाप को साथ देख पाएंगे . शीघ्र ही बिना शादी के मा बाप के पैदा हुए बच्चों की संख्या शादी शुदा मा बाप के बच्चों से ज्यादा हो जाएगी. आज अमरीका मैं पचास प्रतिशत पुरुष व् महिलाएं बिना शादी के रहते हैं . १९७२ मैं ७२% जवान पुरुष व् महिलाएं शादी शुदा होते थे. बिना शादी के साथ रहने वाले जोड़े अक्सर बच्चा होने पर अलग हो जाते है . तलाक के बाद सम्पन्न परिवारों की आय भी आधी रह जाती है . न तो बच्चे न ही महिलाएं इस परिस्थिति से लाभान्वित नहीं होतीं हैं . महिला मुक्ति ने महिलाओं को असहनशील व् असहिष्णु बना दिया है . इस असहिष्णुता के कारण अब तो शादी की संस्था ही समापन की ओर चल पड़ी रही है क्योंकि तलाक के डर से पुरुष शादी नहीं करना चाहते और बच्चे होने के डर से महिलायें . परन्तु सेक्स की जरूरत के लिए एक छत के निचे बिना शादी के रहना बहुत प्रचलित हो रहा है .
यूरोप तो और बुरी हालत है . वहां तो महान यूरोपीय संस्कृति ही समाप्त होने के आसार नज़र आ गए हैं . किसी सभ्यता को अक्षुण्य रखने के लिए एक युगल के २.२ बच्चे होने चाहिए नहीं तो धीरे धीरे लुप्त व् नष्ट हो जाती है . यूरोप मैं अनेक देशों की नए बच्चों की संख्या १.२ – १.४ तक पहुँच गयी है फ्रांस व् कई देशों मैं जनसंख्या घटने लगी है. इस गैप को इस्लामिक संस्कृति से भरा जा राहा है . अगले पच्चीस वर्षों मैं यूरोप यूरेबिया बन जायेगा . इंग्लैंड की राजकुमारी डायना तो शादी मैं असहिष्णुता की मिसाल बन गयीं हैं जिन्होंने बदले मैं अपने रसोइये , मिस्र के दूकानदारों तक से शारीरिक सम्बन्ध बना लिए.
कौमार्य की इन्टरनेट पर नीलामी लग रही है. सलट वाक मैं महिलाएं नग्नता की आज़ादी मांग रही हैं .
पुरुषों का तो अतिनारिवाद के चलते और विश्व भर मैं बुरा हाल है .
फ्रांस मैं पुरुषों के वीर्य मैं स्पर्म की गिनती पिछले बीस वर्षों मैं ३५ प्रतिशत कम हो गयी है. हालाँकि अभी यह नपुंसकता के खतरे पर नहीं पहुँची है पर अब ख़तरा मंडराने लगा है . पुरुष स्वस्थ तेज़ी से गिर रहा है .
पुरुषों पर परिवार का मुखिया होने का बहुत तनाव होता है . भारत की आत्म हत्यायों का अध्ययन सिद्ध करता है की शादी शुदा पुरुष जैसे किसान भारी मात्रा मैं पारिवारिक तनाव के चलते महिलाओं से दुगनी आत्महत्याएं करते हैं . यह बुरा है पर पुरुष परिवार को भोजन व् सुख देना आज भी अपनी जिम्मेवारी मानता है उसकी असफलता उसे आत्महत्या पर मजबूर कर देती है .
तो उससे व् पिता से इतनी असहानभूति क्यो ?
जीवन भर जमीन बेच कर बंधुआ मजदूरी कर लड़की की शादी करने वाले पुरुष को अब दबा दिया गया है . टीवी सिर्फ बलात्कार और दहेज़ की बातें करके एक झूटा चित्र बनता है . कुछ महिलाएं हो सकता है दहेज़ के लिए मारी जाती हों पर लाखों पुरुष असमय मृत्यु को ग्रास बनते हैं . अपराध व् बीमारियाँ अपवाद होते हैं उनके आधार पर समाज नहीं बनाया जाता जेल व् अस्पताल बनाये जाते हैं .पुरुष के जीवन मैं आज ऑफिस व् घर दोनों का तनाव दे दिया गया है जिससे हृदय रोग बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं .
भारत मैं भी शरद यादव जी की ‘ बलकटी ‘ औरतें बाकियों को बरगला रही हैं और भारत की पारंपरिक पारिवारिक व्यवस्था को तोड़ने के लिए तुली हुयी हैं . हमारी व्यवस्था मैं प्रेम था कोई अन्याय नहीं था . पिता की संपत्ति पुत्र को मिलने से कोई अन्याय नहीं था क्योंकि अधिकाँश पुरुष अपने से ज्यादा महिलाओं पर खर्च करते थे . आज भी अधिकाँश संपन्न घरों मैं पुरुष अपने से ज्यादा महिलाओं पर खर्च करते हैं . और भारतीय शादियाँ तो जीवनों प्रांत चलती हैं .महिला या पुरुष की अलग सम्पत्ती नहीं थी . दोनों साथ उसी घर मैं जीते और मरते थे.
तथाकथित नारी मुक्ति हमारी सुन्दर परिवार व्यवस्था को उसी तरह छिन्न भिन्न कर देगी जैसे इसने पश्चिम मैं किया है . नारी ,सिगरेट, नग्नता व् और शराब पीने को आधुनिकता मानने लगेगी . शीला दीक्षित जैसी संभ्रांत महिलाओं को भी सिर्फ शालीन कपडे पहनने की राय देने पर अपमानित कर दिया . टीवी पर तो जो जरा भी महिलाओं को टोके उस पर चढ़ जाती हैं . नारी मुक्ति स्वच्छंदता व् उच्छ्रिकलता का पर्याय बन गयी है .हजारों वर्षों का पारिवारिक सुखी जीवन जो हमें विरासत मैं मिला था इन बल्कटीयों के अभिमान की भेंट चढ़ जायेगा और हमारे यहाँ भी तलाकों का , बिन ब्याहे रहने का व् नाजायज़ / हराम के बच्चों का प्रचलन शुरू हो जायेगा . समाज को ये नारियां तोड़ तो सकती हैं परन्तु भारतीय समाज को फिर से जोड़ना किसी के लिए संभव नहीं है बलकतियों के लिए तो बिलकुल नहीं . इसलिए अभी चेतना आवश्यक है . लड़कियों को परिवार मैं घुल मिल कर सेवा व् प्यार से हृदय जीतने की ही पारंपरिक शिक्षा देना उचित है. लड़कों को आदर्शवादी , खतरों से खेलना और जीवन की विकटताओं से कभी न हारने वाला ही बनाना चाहिए.
जब अमरीकी औरतों को व् समाज को साठ साल मैं इससे कुछ नहीं मिला तो भारतीय औरतों को कैसे मिल जायेगा सिर्फ सब का सुख चैन छीन जायेगा .
इस लिए आवश्यक है की इस हर किसी को नुक्सान पहुँचाने वाली तथाकथित नारी मुक्ति आन्दोलन की किसी की आवश्यकता नहीं है.
लड़कियों को सीता और लड़कों को राम ही बनने की शिक्षा दें .