5:37 pm - Sunday January 22, 0840

तूफानों की ओर घुमा दो नाविक – शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

आज सिंधु ने विष उगला है
लहरों का यौवन मचला है
आज हृदय में और सिंधु में
साथ उठा है ज्वार

तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार |

लहरों के स्वर में कुछ बोलो
इस अंधड़ में साहस तोलो
कभी कभी मिलता जीवन में
तूफानों का प्यार

तूफानों की ओर घुमा दो नाविक|

यह असीम निज सीमा जाने
सागर भी तो ये पहचाने
मिट्टी के पुतले मानव ने
कभी ना मानी हार

तूफानों की ओर घुमा दो नाविक|

सागर की अपनी क्षमता है
पर मांझी भी कब थकता है
जब तक साँसों में स्पंदन है
उसका हाथ नहीं रुकता है
इसके ही बल पर कर डाले
सातों सागर पार

तूफानों की ओर घुमा दो नाविक|

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