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केन्द्रीय बजट , जो अच्छा होते हुए भी दिल खुश नहीं कर पाया : सरकार की राजनैतिक अपरिपक्विता की मिसाल

केन्द्रीय बजट , जो अच्छा होते हुए भी दिल खुश नहीं कर पाया : सरकार की राजनैतिक अपरिपक्विता की मिसाल – –  –     राजीव उपाध्यायRKU

मैं पिछले एक साल से जिस बजट की ओर टकटकी लगाए बैठा था उस का पूरा भाषण सुनना तो आवश्यक था ही बल्कि मैं तो इस भाषण के बाद बीजेपी विरोधियों का मुंह बंद करने की आशा लगाए बैठा था . दुःख इस बात का है कि आशाओं के बावजूद मैंने किसी के मुंह पर बजट के बाद खुशी नहीं देखी . यह नहीं है की बजट बुरा था . पर वह बाबुओं का बजट था और बाबुओं के अंदाज़ मैं ही पेश किया गया था . बाबु काम तो जनता ही है . इसलिए उसने एक अच्छा बजट का दस्तावेज़ बना दिया . परन्तु उसमें राजनितिक परिपक्वता का तडका लगाना बाबू का काम नहीं होता है इस लिए बजट अभिभाषण एक सफल परिपक्व राजनीतिग्य नहीं बल्कि एक रिटायर्ड कैबिनेट सचिव का भाषण सा लगा . इससे बीजेपी को बहुत नुक्सान होगा . एक तरफ केजरीवाल हैं जो बुरा ही सही पर बिजली पानी के दाम को तुरंत कम कर अपने वोटरों को अपने साथ रखते हैं . दूसरी ओर जेटली जी एक सशक्त बजट बना कर भी अपने व् बीजेपी के समर्थकों को लगातार खोते जा रहे हैं .

इसका कारण उनकी राजनितिक अपरिपक्विता ही कही जा सकती है. हम मोदी जी को याद दिलाएंगे की उनकी राजनितिक सफलता की यात्रा चुनाव पूर्ण रेवाडी से सैनिकों की सभा से प्रारंभ हुयी थी . सैनिकों की एक रैंक एक पेंशन मांग को बाबुओं ने सेना से वैर मैं ही लटका रक्खा है. वह सिर्फ सेना का अपमान कर अपने को सशक्त सिद्ध कर रहे हैं जैसा उन्होंने सैनिक क्रांति की अफवाह फैला कर किया था . इससे उनके कट्टर समर्थक सेनिकों मैं बहुत आक्रोश है और मोदी जी की छवि को बहुत नुक्सान पहुंचा है. रक्षा के लिए २६००० करोड़ रूपये और देने के उपरान्त भी और रक्षा मंत्री के आश्वासन के बावजूद भी बजट मैं इसकी घोषणा नहीं हुयी . सरकार पर बाबु तंत्र के पूरी तरह हावी होने की यह बीजेपी के लिए प्राणघातक मिसाल है. दूसरा उदाहरण लें . बीजेपी ने चुनाव से पहले कहा था की आय कर छूट की सीमा तीन लाख रूपये होनी चाहिए . पिछले बजट मैं जेटली जी ने भी आश्वासन दिया था की जब उनके पास पैसा होगा तब वह इस सीमा को अवश्य बढ़ा देंगे . इस बजट मैं यह संभव था . राज्यों को ज्यादा पैसा देना व्यर्थ है क्योंकि सब राज्य गुजरात नहीं होते . बिहार , उत्तर प्रदेश इत्यादि अनेक राज्य इस पैसे का सदुपयोग नहीं कर पाएंगे जैसे मायावती ने अपने कार्यकाल मैं मूर्तियाँ बनवाने मैं किया था .राज्यों के मुकाबले केंद्र सरकार की कार्य शैली अधिक उत्तम है. इस लिए राज्यों को अधिक पैसा देना मोदीजी को अपने कटु अनुभवों को याद भुलाने मैं सहायक तो हो सकता है पर जनता के मन से फिसल रही बीजेपी की छवि को सुधरने मैं नहीं . वैसे भी भारत का इतिहास गवाह है कि एक सशक्त केंद्र सरकार ही भारत की एकता को बचा पाती है. राज्यों का बहुत अधिक सशक्तिकरण देश के हित मैं नहीं है. मैं तो यहाँ तक कहूंगा की इस मामले मैं मोदीजी को केजरीवाल से सीख लेनी चाहिए और चुनाव के वायदे तुरंत पुरे करने चाहिए जिसमें आर्थिक ही नहीं सांस्कृतिक मुद्दे भी शामिल हैं . उनको अपनी गिरती  छवि को सुधरने के लिए समुचित कदम उठाने चाहिए. विशेषतः सैनिकों व् मध्यम वर्ग के साथ जेटली जी ने जो  छलावा किया है उसे बजट मैं बहस के दौरान अवश्य ठीक कर लेना चाहिए.

कांग्रेस तो जाते जाते आर्थिक प्रगति के रास्ते मैं जितनी खाद्यान सुरक्षा जैसी बारूदी सुरंगे बिछा गयी है की उन्हें हटाते हटाते दस साल लग जायेंगे . जेटली जी ने वेल्थ टैक्स हटा कर , कॉर्पोरेट टैक्स कम कर , गार व् पीछे की तारिख से बदले कानून को छोड़ कर हमारी गिरी हुयी अंतर्राष्ट्रीय साख को बहुत बचाया है . इससे विदेशी विनिवेश मैं बहुत कमी आई है . उनका आश्वासन की विदेशी विनिवेश को पूर्व निर्धारित गाइड लाइन्स के अनुसार होने पर लम्बी प्रक्रिया से नहीं गुजरना होगा बहुत उत्तम विचार है पर बाबु वर्ग इसे सैनिकों की पेंशन की तरह आसानी से पूरा नहीं होने देगा. इसलिए इसे प्रभावी ढंग से जल्दी लागू करने के लिए सचेत रहने की आवश्यकता है. इसी प्रकार सॉफ्टवेर क्षेत्र को राहत ठीक समय पर दी है. अब इस क्षेत्र मैं ही फायदा कम होता जा रहा है . और कई अन्य प्रावधान भी अच्छे हैं . परन्तु बिना बिके घरों के की बढ़ती सम्स्या  के लिए लिए होम लोन की ब्याज दर मैं कमी करना भी आवश्यक था . इसे जल्दी किया जाये . यदि जनसंख्या की अनुपात मैं घर बनाने हैं तो उसके लिए कम ब्याज पर कर्जा देना आवश्यक है. सरकार को गरीब वर्ग के मेधावी बच्चो  को छात्रवृति देना चाहिए . अब तो सारी छात्रवृतियाँ सिर्फ जाती व् धर्म के आधार पर हो गयी हैं . गरीब मेधावी उच्च ( वास्तव मैं नीची ) जाति  के बच्चों को कौन देखेगा ? क्या वह किसी सरकार का हिस्सा नहीं हैं ? देश के उद्योग पतियों का पुनः विश्वास पाना भी आवश्यक है. उन्हें पिछली सरकार ने बहुत त्रस्त  कर दिया था .उन्हें सिर्फ छड़ी से हांकना ठीक नहीं होगा . वह ही तो दुखी हो कर भारत की पूँजी विदेशों मैं लगा रहे हैं . अंत मैं यह फिर कहूंगा की बीजेपी अपने कोर वोटरों के प्रति राजनितिक परिपक्विता नहीं दिखा रही है जिसका खमियाजा उसने दिल्ली मैं उठाया है. इसको राष्ट्र हित मैं तुरंत बदलने की आवश्यकता है.

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