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आमिर खान साहेब ज़रा १९४७ मैं पाकिस्तान जाने वाले फिल्म कलाकारों की दास्तां पढ़िए और फिर इस देश से हाथ जोड़ कर माफी मांगिये

आमिर खान साहेब ज़रा १९४७ मैं पकिस्तान जाने वाले फिल्म कलाकारों की दास्तां पढ़िए और फिर इस देश से हाथ जोड़ कर माफी मांगिये

राजीव उपाध्यायRKU

आमिर खान साहेब आपने इस देश से अपनी सारी बेशुमार शोहरत व् दौलत बटोरने के बाद बड़े आराम, से कह दिया की आपकी पत्नी देश छोडने की बात सोच रहीं हैं .

इस देश छोड़ कर कहाँ जायेंगे पाकिस्तान ? तो आप से पहले जिन फ़िल्मी व् अन्य कलाकारों ने देश छोड़ा था उनकी दास्ताँ सुन लीजिये और फिर अपनी इस गुस्ताख हरकत के लिए हाथ जोड़ कर इस देश से aamir khan intoleranceमाफी मांगिये.

आप सहिष्णुता की बात करते हैं तो लीजिये वहीँ से शुरू करते हैं . फैज़ अहमद फैज़ आज़ादी सबसे बड़े शायर भारत छोड़ कर पाकिस्तान चले गए . उनकी साम्यवादी सोच के लिए तब  के पाकिस्तान मैं कोई जगह नहीं थी .अंत मैं उन्हीं लम्बी जेल की सज़ा दे दी गयी जो तत्कालीन प्रधान मंत्री लिअकत अली खान के मरने के बाद १९५५ मैं माफ़ हुयी पर उन्हें देश निकाला दे दिया गया . वापिस आने पर उन्हें फिर गिरफ्तार कर लिया और रूस भेज दिया गया . वहां से वह इंग्लैंड चले गए . लौटे तो फिर लेबनान चले गए ..जिंदगी के आखिरी वर्ष बड़ी मुश्किल से लाहौर मैं बिताये और वहीँ उनका निधन हो गया .faiz

भारत के सबसे प्रसिद्द गीतकार साहिर लुधियानवी भी लाहौर मैं बसे थे . सन १९४९ मैं पाकिस्तान मैं उनके नाम का वारंट निकलने पर भाग कर वह भारत आ गए . यही उनकी ज़िन्दगी का सबसे सही फैसला था . क्योंकि यहाँ आ कर उनका फिल्म जगत मैं वह मुकाम हो गया जो कभी बाद मैं यहाँ सलीम जावेद का था .फिर सुबह होगी फिल्म के लिए उन्होंने ऐसे संगीतकार की मांग की जिसने दोस्तोवोस्क्य को पढ़ा हो . आखिर मैं शंकर जय किशन को हटा कर खय्याम से उस फिल्म का संगीत दिलाया गया .यह सहिष्णु भारत था अन्यथा वह भी फैज़ की तरह किसी जेल मैं सड़ रहे होते .sahir

एक और कहानीकार थे मंटो . सन १९४८ मैं उपेन्द्रनाथ अश्क रेडियो कलाकार के रूप मैं लड़ाई से पकिस्तान चले गए .वहां उन पर तीन वारंट निकल गए और उनकी त्रतालिस साल की उम्र मैं शराब से मौत हो गयी .बड़े गुलाम अली खान भी पकिस्तान गए थे पर कुछ ही वर्षों मैं वापिस भाग कर भारत आ गए और भारत के सबसे बड़े शास्त्रीय संगीत के गायक बन गए और हम सब के दिलों पर राज किया .

जो अदाकारा पकिस्तान जा कर भी सबसे अधिक सफल हुईं वह थीं मलिका ए तर्रनुम के नाम से जाने वाली नूर जहां . वह अपनी बुलंदी की सबसे सफल सीढी पर थीं जब उन्होंने देश छोड़ने का फैसला लिया .पकिस्तान मैं भी वह अत्यंत सफल हुईं . एक स्टूडियो उन्हें दे दिया गया था . उन्होंने बतौर गायक , निर्देशक , प्रोडूसर अनेकों फिल्म बनाईं . उनका पकिस्तान मैं ठीक वही मुकाम था जो यहाँ  लता मगेश्कर का है . परन्तु उसके बाद भी सोचिये १९४८ मैं दिलीप कुमार की सुपर हिट नायिका को वहां उन्हें कलाकार के रूप मैं चमकाने वाला कोई न मिला. उनके आखिरी अति प्रसिद्द गीत पंजाबी फिल्मों के थे जिनकी पहुँच बहुत कम थी और वह एक कलाकार के रूप मैं बहुत सिमट कर लता से कहीं पीछे रह गयीं जो विश्व की सबसे अधिक गाने वाली गायिका बन गयीं . अंत मैं तो नूर जहां बांग्लादेश युद्ध मैं जनरल याहया खान से नजदीकियों से खासी बदनाम भी हुईं .noor jahaan yahyaa

आप जिस सहिष्णुता की बात करते हैं तो सुनिए आमिर खान साहेब नूर जहां ने पकिस्तान मैं एक भजन भी गाया था जो रेडियो पकिस्तान ने प्रतिबंधित कर दिया . यहाँ पर तो पाकिस्तानी गायक अदनान सामी का‘ झोली भर दे मुहम्मद ‘ गीत फिल्म बजरंगी भाईजान मैं खूब चला और उसे एक पाकिस्तानी गायक के गाए होने पर भी किसी ने उसे बुरा नहीं कहा .

सहिष्णुता की बात करने से पहले कुछ सोच तो लेते की आप क्या बोल रहे हैं .

अब अपनी और यहाँ के अन्य मुसलमान फ़िल्मी कलाकारों की बात सुनिए .

क्या के आसिफ लाहोर मैं मुगले आज़म बना सकते थे ? क्या महबूब खान पकिस्तान मैं मदर इंडिया बना सकते थे . क्या सलीम जावेद पकिस्तान मैं वह शोहरत पा सकते थे जो उन्होंने भारत मैं पाई .क्या नौशाद , मुहम्मद रफ़ी , मजरूह , दिलीप कुमार , मधुबाला वहां पनप सकते थे . हम इसे भारत का और अपनी सहिष्णुता वादी संस्कृति का सौभाग्य व् वरदान मानते हैं की जहां नूर जहाँ का भजन पकिस्तान मैं प्रतिबंधित हो गया वहां भारत मैं रही मासूम राजा ने एक महाभारत की विलक्षण पटकथा लिख वर्षों तक हिन्दू समाज को अपनी सहिष्णुता पर ही चलते रहने का विश्वास दे दिया .उनसे पहले भी यही परम्परा रही थी . इस देश का सबसे प्रसिद्द फिल्म बैजू बावरा का भजन ‘ मन तडपत हरी दर्शन को आज ‘ रफ़ी ने गाया . नौशाद ने संगीत दिया व् शकील बदायूनी ने लिखा . मिर्ज़ा ग़ालिब की सबसे सुरीली ग़ज़लें जगजीत सिंह की गाई हुयी हैं .कम से कम इस देश की महान परम्पराओं को एक बार जान तो लेते .

इस महान सहिष्णुता की परम्परा के वारिस आपने , जिसे भारत की जनता ने सबसे ज्यादा प्यार व् आदर दिया, उनके इष्टदेव शिवजी जी का आपने ‘पीके’ फिल्म मैं अत्यंत अपमान किया . आपने अपने देश व् हिन्दुओं को दावूद सरीखों के पैसे के लिए लिए समस्त विश्व मैं बदनाम कर दिया .आज आपका जो विश्व मैं नाम है उसमें भारत की सहिष्णु संस्कृति का भी बहुत योगदान है . और अच्छी तरह जानिये की यह परम्परा हिन्दुओं का अस्तित्व खत्म करने वाले पाकिस्तान या बंगलादेश की नहीं है. तो फिर ज़रा यह भी बताईये की यह सहिष्णुता की  परम्परा किसकी है?

यह हिंदुस्तान ही है जिसने आपको वह बनाया जो आप हैं अन्यथा किसी पाकिस्तानी मशहूर एक्टर फवाद खान की तरह आप अंतर्राष्ट्रीय गुमनामी की जिंदगी गुज़र कर रहे होते .एक बार अपनी या शारुख की तुलना अपने समकक्ष फवाद खान से कर लें फिर सोचें ?

इसलिए आमिरखान साहिब अपनी इस बड़ी गलती को समझिये व् देश से दोनों हाथ जोड़ कर माफी मांगिये .

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