AOL’s World Cultural Festival and Indian Media : त्तुझे मिर्ची लगी तो मैं क्या करूँ

AOL’s World Cultural Festival and Indian Media : त्तुझे मिर्ची लगी तो मैं क्या करूँ
राजीव उपाध्याय
यह देश का सौभाग्य है की हमारे यहाँ श्री श्री रवि शंकर जी या बाबा रामदेवजी जैसे महापुरुष हैं .rp_RKU-150x150.jpg

वरना विश्व मैं कितने लोग ११२ देशों से कलाकारों को इतनी बड़ी संख्या मैं किसी समारोह मैं शामिल होने के लिए बुला सकते हैं ?
क्या विश्व मैं कहीं इतना बड़ा अंतर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक समारोह आयोजित होता है जितना बड़ा समारोह श्री श्री रवि शंकर जी ने भारत मैं आयोजित किया ? ब्राजील या जर्मनी मैं कुछ राष्ट्रीय समारोह आयोजित होते हैं जो अलग तरह के होते हैं .aol 3
क्या विश्व मैं कोई एक व्यक्ति अपने व्यक्तिगत बूते पर इतने राज नेताओं को बुला सकता है ?
क्या संस्कृति खेल से इतनी महत्वहीन है की एक तरफ हम ओलिंपिक या एशियाड पर अरबों रूपये खर्च कर सकते हैं और दूसरी ओर संस्कृति मेले पर किये हुए कुछ करोड़ रुपयों पर इतना हंगामा हो जाता है .

अब नदियों को लीजिये ?AOL 1
हमारी सबसे बड़ी व् पवित्र नदियों पर कुम्भ मेले हज़ारों वर्षों से लगते आ रहे हैं .उन पर इतना खर्चा भी होता रहा है .क्या किसी ने उस पर आपत्ती जताई .तो उस यमुना के तट पर एक सांस्कृतिक कार्यक्रम करने पर इतना हंगामा क्यों ?दिल्ली मैं यमुना मैं पानी तो सिर्फ बरसात मैं ही आता है वरना तो इसे गंदा नाला ही बना दिया है क्योंकि सारा पानी तो हथिनी कुंद बराज मैं ही रोक लेते हैं .इस पर बात कौन करे क्योंकि इस से चैनलों को विज्ञापन थोड़े ही मिलता हैं .AOL 2
अच्छा तो होता की मीडिया एक बैलेंस रूप से मेले की समीक्षा करता . उसकी अच्छाई व् बुराइयों पर चर्चा करता . भारत के लिए यह अवश्य ही गौरव का क्षण था और वह इसे सही रूप से परिलिक्षित करता .परन्तु चर्चा या तो यमुना तट खराब करने की हुयी या चोरी की हुयी या ज़िंबाबवे के राष्ट्रपति के दिल्ली मैं हो कर भी कुछ राजनितिक कारणों से भाग न लेने की हुई .AOL 4

वास्तव मैं हमारा मीडिया व् अंग्रेजी वर्ग देश की जनता की संस्कृति व् अभिलाषाओं को को जानता ही नहीं .जो स्वयं कुछ नहीं कर सकते वह सिर्फ कुछ करने वालों की बुराई ही कर सकते हैं . पर देश का अंग्रेज़ी मीडिया अब देश द्रोह की सीमा पर पहुँच गया है .पहले तो हर समय बुरी ख़बरों को तूल दे के देश के आत्मविश्वास को तोड़ रहा है .ख़बरों को सुनें तो लगता है की देश मैं अपराधों के अलावा कुछ होता ही नहीं .फिर वह भारतीयता का दुश्मन है . ओबामा आते हैं तो सब चैनल समलैंगिकता को ऐसा उछालते हैं जैसे सम्लैग्कों पर अत्याचार ही देश की सबसे बड़ी समस्या है . भारत मैं समलैंगिकों की समस्या को कौन पूछता है?फिर रोज़ किसी बलात्कार को या अखलाक की ह्त्या को या रोहित या कन्हैया प्रकरण को भुनाते रहते हैं . गोधरा का जिस तरह से प्रसारण किया गया वह मात्र दुर्भागया पूर्ण नहीं बल्कि शर्मनाक था .भारतीय मीडिया पर रोक जरूरी है क्योंकि इसका दिश्प्रचार देश का बहुत अहित कर रझा है .

अब न्यायलयों को ही लीजिये . लाल नील पीले रंगबिरंगे नयाय्लयों की क्या बात करें . वह रोजमर्रा की सोच रखते हैं . उनका काम नदी के तटों की रक्षा करना है सो वह करते हैं . परन्तु न्यायालयों को नदियों का अधिकृत उपयोग व् दुरूपयोग मैं अंतर कर पाना व् बताना सरकार का काम है .इसलिए राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल के बारे मैं मैं कुछ नहीं कहना चाहूंगा सिवाय इसके कि वह इस सर्वथा नए विषय को सरकार व् संसद के विवेक पर इस फैसले को छोड़ दे .

वास्तव मैं श्री श्री रवि शंकर जी ने जो पहल की है वह संयुक्त राष्ट्र के स्तर की बात है .आशा है की संयुक्त राष्ट्र इसे संज्ञान मैं लेगा और इस तरह के बड़े अंतर राष्ट्रीय सांस्कृतिक आयोजनों को प्रोत्साहित करेगा .
हमें श्री श्री रवि शंकर जी की इस पहल का स्वागत करना चाहिए .

एक गोविंदा का गाना था ‘ तुझे मिर्ची लगी तो मैं क्या करूँ ?’

इतने नए आयोजन की अच्छाइयों को देखने के बजाय यदि अंग्रेज़ी मीडिया को मिर्ची लगी तो हम क्या करें ?

Filed in: Articles, World, संस्कृति

One Response to “AOL’s World Cultural Festival and Indian Media : त्तुझे मिर्ची लगी तो मैं क्या करूँ”