क्या भारत और रूस की मित्रता लम्बी चलेगी : भारत के पास विकल्प ; Russia Is No Longer India’s Reliable Friend – OpEd :
भारत प्रेमचंद की हिंदी की कहानी ‘ बूढ़ी काकी ‘ की तरह है जो शादी मैं न बुलाये जाने के बावजूद बारात के आने तक निमंत्रण की आस मैं सज़ धज के बैठी रहती है जो आस वरमाल के बाद टूट गयी .
भारत भी रूस की पुरानी मित्रता की सुखद स्वपनॉ की याद मैं जी रहा है जबकी रूस की बारात दरवाज़े से निकल चुकी है और सिर्फ वरमाल पडनी बाकी है .जब रूस भारत का मित्र था तब भारत का गुट निरपक्ष देशों पर प्रभाव था . संयक्त राष्ट्र संघ मैं वोटों का महत्व था . रूस का विरोधी अमरीका था . नेहरु का सोशलिस्ट भारत अपनी नीतियों मैं रूस के निकट था और सदा रूस के साथ ही वोट दिया . इंदिरा गाँधी ने अपने पिता की नीतियों को निभाया .उधर पाकिस्तान अमरीका के सैन्य गुटों का सदस्य था इसलिए भारत गरीब राष्ट्र होते हुए भी रूस के लिए महत्वपूर्ण था .रूस दे हमें तकनीकी मदद भी मिलती रहती थी जिसकी हमें आवश्यकता थी .
रूस का कश्मीर हमें सदा साथ देना और हमारा रूस के साथ अरब देशों व् अन्य महत्त्व पूर्ण विषयों पर वोट देना एक लेन देन मित्रता थी जिसका आधार परस्पर एक दुसरे की आवश्यकता थी . परन्तु बांग्लादेश के समय भारत का खुला पूर्ण समर्थन कर महाशक्ति रुसने मित्रता को अविश्वसनीय रूप से आगे बढाया .
परन्तु माइखेल गोर्बाचोव का रूस बदल चुका था और भारत के लाख प्रयास के बावजूद गोर्बाचोव व् येल्स्तिन ने पुरानी मित्रता को निभाने मैं कोई उत्सुकता नहीं दिखाई . येल्स्तिन के बाद रूस की आर्थिक हालत बुरी हो गयी . परन्तु भारत से रूस को आर्थिक फायदे होते रहे जिससे मित्रता का फटा हुआ आवरण और नहीं खुला .
पिछले दो दशकों मैं भारत ने इतनी प्रगति कर ली है की अब रूस के पास सिर्फ देने के लिए तेल व् सैन्य सामान ही रह गया है . तकनीकी विषयों से भारत को अब पश्चिम की टेक्नोलॉजी की जरूरत है रूस की नहीं . रूस से अब चीन बहुत आगे निकल गया है . रूस को चीन की आवश्यकता अधिक है क्योंकि चीन ने ४०० बिलियन डॉलर का गैस का अनुबंध किया है . रूस उसे भारत के लिए नाराज़ नहीं करेगा . उधर चीन भारत से इतना आगे निकल गया है की भारत को उससे खतरा बहुत बढ़ गया है ..इसलिए भारत अमरीका .की तरफ जा रहा है . वहां से उसे पैसे व् हथियारों की पूर्ति अधिक प्रिय है . अमरीका रूस से इसलिए दोस्ती नहीं कर रहा क्योंकि यूरोप मैं रूस की सैन्य शक्ति खतरा है . इसलिए भारत की आज अमरीका को भी आवश्यकता है जो कभी रूस को थी .
इधर साउथ चाइना सी की घटना क्रम ने सब को चीन से डरा दिया है . चीन ने सब अंतर्राष्ट्रीय कानूनों को ताक रख सारे समुद्र पर अपना अधिकार जता दिया है . इसलिए भारत , विएतनाम ,अमरीका व् जापान साथ आ रहे हैं . रूस अब चीन की तरफ जा रहा है . भारत रूस को दबा नहीं पायेगा क्योंकि रूस का इतना सैन्य सामान हमारे पास है की उसके पुर्जों के लिए हम लम्बे समय तक रूस पर आश्रित रहेंगे . इसलिए पंद्रह वर्ष बाद भी रूस आर्थिक रूप से समृद्ध भारत से दबेगा नहीं . इसलिए उसने मोदी जी बड़े आर्डर के बाद भी गोआ मैं पाकिस्तान की बुराई करने से मना कर दिया . वह पकिस्तान को हवाई जहाज बेच सकता है .
अंततः चीन , रूस , ईरान व् पाकिस्तान एक सैन्य ब्लाक बन सकते हैं . चीन और रूस इस्ल्मिक देशों के रक्षक बन कर उभरेंगे जिसमें पाकिस्तान के परमाणु हथियारों व् लम्बी दूरी की मिसेलों का बड़ा हाथ रहेगा . वह यूरोप व् इजराइल को डरा सकते हैं . बीस वर्षों मैं अमरीका विश्व की इकलौती शक्ति नहीं रहेगा .भारत की दुविधा अब बढ़ रही है . इसलिए भारत की सुरक्षा अब अधिक तेज़ी से आर्थिक विकास मैं ही है . भारत का १९६५ मैं कृषि की तरह अब रक्षा सामग्री मैं भी स्वाबलंबन की उतनी ही आवश्यकता है . क्योंकि रूस व् पश्चिमी देश से आयात बहुत महंगा पड रहा है . मोदी जी की मेड इन इंडिया नीति तो बिलकुल सामयिक है पर उसे त्वरित रूप से बढाने की आवश्यकता है . जब तक भारत आर्थिक व् सामरिक रूप से चीन के समकक्ष नहीं होगा तब तक हमें कोई बड़ा नहीं मानेगा .महाभारत की द्रुपद व् द्रोंण की कहा की बराबरी मैं ही मित्रता होती है को याद रखना पडेगा .
परन्तु फिर भी भारत अब आने वाले वर्षों मैं मित्र हीन ही रहेगाक्योंकि वह किसी देश से सैनिक समझता नहीं करेगा . . पाकिस्तान CPEC के बाद चीन के लिए अत्यधिक आवश्यक हो गया है और वह उसकी हर तरह से मदद करेगा . वह रूस पर पकिस्तान क साथ देने के लिए दबाब डालेगा . पुरानी मित्रता अब संभव नहीं है .
परन्तु बड़े होने पर आदमी अपना परिवार बसा लेता है और उसके बचपन के मित्र सुखद याद ही रह जाते हैं .
हमें अब रूस को बहुत गहरा मित्र नहीं समझना चाहिये . वह बचपन का मित्र था और अब हम बड़े हो गए हैं .
परन्तु अगले बीस वर्षों तक हम रूस पर आश्रित अवश्य रहेंगे जिसका वह भरपूर फायदा उठाएगा जो अमरीका भी करेगा . अंतर्राष्ट्रीय संबंधों स्वार्थ के आधार पर होते हैं मित्रता के नहीं .
पश्चिमी देश भारत से युद्ध के लिए सैनिक चाहते हैं जो भारत को नहीं देना चाहिए . उनके बिना वह अपनी मदद की पूरी आर्थिक कीमत वसूलेंगे . इसलिए त्वरित आर्थिक प्रगति भारत की सुरक्षा के लिए अब बहुत आवश्यक है .
Russia Is No Longer India’s Reliable Friend – OpEd
By Anita Inder Singh October 6, 2016
Indo-Russian ties are at a crossroads. A strong relationship between India and Russia was forged in the 1960s amid growing Sino-Russian hostility and Sino-Pakistani amity. Given America’s interest in mending its own fences with China in 1971, Russia offered India some political insurance against security threats from China and Pakistan Both have laid claim to parts of India’s territory since it achieved independence in 1947. For more than sixty years New Delhi could count on Moscow’s support for India’s stance against Pakistan on the Kashmir dispute.
However, the distance between India and Russia became evident at least since June 2014, when Russia broke its arms embargo on Pakistan. Nearly a fortnight ago, the gap it was clear that the gap between them had widened. Russia started its first military drill with Pakistan on 24 September. The drill will end on 10 October. Labeled as a ‘counter-terrorism’ exercise by Pakistan and Russia, the drill is being held in Gilgit-Baltistan, which, together with the rest of Pakistani Kashmir, is contested territory between India and Pakistan. Earlier, Russia had assured India that the exercises would not take place on disputed turf, so India was unpleasantly surprised when Russian troops landed in Gilgit-Baltistan on 23 September.
On the other side, from late September to early October, Indian and Russian forces are also engaged in joint counter-terrorism military maneuvers in the Russian port of Vladivostok – but that is not disputed territory with any country that is hostile to Russia.
From New Delhi’s perspective, the timing of the Russia-Pakistan maneuvers could not have been more offensive. They are being held as India tries to isolate Pakistan internationally after Pakistan-sponsored terrorists killed 18 Indian soldiers in the north-western Indian base at Uri, and as New Delhi confronted violence in its own part of Kashmir. At the same time India is also drawing international attention to its own claims over Gilgit-Baltistan.
India has also found it hard to swallow the claim that Russia and Pakistan are engaged in an anti-terrorism exercise, especially as it felt impelled to retaliate for the assault on Uri with surgical strikes on militants based in Pakistan.
The drills are taking place as Russia increases arms sales to Pakistan. Since Russia has not complained about American arms sales to both India and Pakistan over many years Moscow does not see why India should be miffed at its arms deals with Pakistan. Economic necessity and the imposition of western sanctions since Russia invaded Ukraine in 2014 have also prompted Moscow to sell matériel to India’s arch-rivals — China and Pakistan.
Yet New Delhi has not been unrealistic or naive. Over the last decade India has strengthened its own military and economic ties with the US. After a long time as India’s top defense partner Russia was replaced in 2014 by the US, which was now India’s biggest arms retailer. given India’s ambition to become a major Asian power, the Indo-Russian tie also needs more than weapons to be sustained – and Russia’s economic weakness has made it hard to shore up the relationship.
The uncertainty of political friendships is also revealed by Russia’s closer military and economic ties with China. Trade and politics do not reflect the same trends. China is America’s top trading partner – but it challenges America’s primacy in Asia. It has Moscow’s support in Asia against the deployment of THAAD missiles in South Korea and on the Hague tribunal’s ruling on the South China Sea. But Moscow has no intention of playing second fiddle to Beijing.
The fact is that both Russia and India are maximizing their political and military options. Like India’s expanding ties with the US and the Pakistan-Russia drills – along with Russia’s strengthening ties with China and Pakistan –– have brought their changing priorities out into the open. Russia, China and India are all maneuvering for strategic advantage in Asia. Apparently Russia thinks that Pakistan and China can advance its aims.
But Moscow’s insensitivity to Indian concerns about Gilgit-Baltistan will dispel any possible illusions that Prime Minister Narendra Modi might have entertained when he told President Vladimir Putin last December that Russia is still India’s reliable friend.
As Russia strengthens relationships with China and Pakistan, India will strengthen its co-operation with the US, if only because the US offers it more economically and militarily than Russia. A new era in Russia-India ties has begun. Inconsistency, uncertainty and changing priorities will be its hallmarks.
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