भारतीय सबसे अधिक असहिष्णु शील होते हैं और अँगरेज़ सबसे कम : इंग्लैंड के अख़बार की नयी खोज
राजीव उपाध्याय
एक इंग्लैंड के अख़बार डेली मेल ने एक नयी खोज की है मि भारतीय सबसे अधिक असहिष्णु शील होते हैं व् सबसे कम . इस खबर को वाशिंगटन पोस्ट ने भी बहुत प्रमुखता दे कर छापा है . यह खोज मात्र एक प्रश्न के उत्तर पर आधारित है की क्या आप अपने साथ पड़ोस मैं दूसरी जाती के लोगों के साथ रहना पसंद करेंगे .४४ % भारतीयों ने इसका उत्तर न मैं दिया और इसलिए किसी रिसर्च वर्कर ने कहा की यह नस्लीय/ जातीय असहिष्णुता का प्रतीक है और इसका मतलब हुआ की भारतीय सबसे अधिक नस्ली/जातीय असहिष्णु होते हैं . फिर आनन् फानन मैं यह खबर विश्व मैं फैला दी गयी . क्या यह खबर अज्ञान का परिणाम है या किसी आने वाले षड्यंत्र की भूमिका .
इंग्लैंड यूरोपीय यूनियन छोड़ने के बाद विदेशियों के लिए सख्त आव्रजक क़ानून लेन वाला है . यह उन लोगों का षड्यंत्र हो सकता है जो भारत के लोगों के इंग्लैंड मैं बसने पर प्रतिबन्ध लगाना चाहते हैं . अन्यथा भारतीय तो अपने देश मैं सदियों से अनेकों धर्मों के लोगों के सस्थ रहते आये हैं . भारत मैं तो कोई स्किन हेड या एनोक पॉवेल पैदा नहीं हुआ . भारत मैं कुत्तों और अंग्रेजों को न घुसने देने वाले बोर्ड नहीं लगाए गए जैसा की अंग्रेजों ने यहाँ किया था .भारत मैं तो हिन्दुओं ने कभी विधर्मियों को लाखों मैं हैं मारा . यह सच है की यूरोप के मुकाबले इंग्लैंड मैं सब लोगों को स्वतंत्रता अधिक है .अँगरेज़ अब अपनी नफरत को दिखाता नहीं है और वह अब एक मिली जुली संस्कृति की तरफ अधिक प्रयत्नशील है और उसमें सफल भी हुआ है . परन्तु वह आज भी भारतीय मूल के लोगों को पसंद नहीं करता .
परन्तु अंग्रेज़ी सभ्यता एकाकी जीवन शैली वाली होती है . वहां मा बाप भी बच्चों के पास पूछ के जाते हैं .उसे पड़ोसी से कोई मतलब नहीं होता . हमारे पड़ोस से चीनी उधार लेने की परम्परा है . हमारा पड़ोसी सुदूर जगह परिवार का काम्कर्ता है और हमारी गप्पों मैं शरीक होता है .इसलिए हमारे लिए पड़ोसी का महत्व अधिक है . इसमें कोई बुराई नहीं की हम अपनों के पास रहें . इसी तरह भारतीय अपनों मैं शादी करता है . तंज़ानिया के जूलियस नेरे ने भारतीयों को एक ट्राइब जनजाती कहा .
अंग्रेज़ी अख़बार का प्रश्न व् उत्तर की परिभाषा गलत थी .
असहिष्णुता और पसंद मैं अन्तर होता है . क्योंकि हमारे लिए पड़ोसी अत्यंत महत्व पूर्ण है इसलिए हम अपनों के साथ रहना चाहते है . एकाकी संस्कृतियों मैं पड़ोसी से कोई अंतर नहीं पड़ता . बहुत अंग्रेजों को भारतीय खाने के हींग के छौंक की गंध अत्यंत अप्रिय है .परन्तु यह असहिशुनिता नहीं है . स्किन हेड का भारतियों को सड़क पर पीटना असहिष्णु ता है .अंग्रेजों का भारतीयों को अपने क्लब मैं न घुसने देना असहिशुनिता है . जर्मन लोगों का यहूदियों को मारना असहनुशीलता है .
इसलिए अच्छा होगा की डेली मेल पहले संस्क्रित्यों के के अंतर को समझे तब लिखे .
Britain is one of the most racially tolerant countries on the planet, a survey claims.
The global social attitudes study claims that the most racially intolerant populations are all in the developing world, with Jordan and India in the top five.
By contrast, the study of 80 countries over three decades found Western countries were most accepting of other cultures with Britain, the U.S., Canada and Australia more tolerant than anywhere else.
Racism: This map shows the nations of the world where people have the most and least tolerant attitudes
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The data came from the World Value Survey, which measured the social attitudes of people in different countries, as reported by the Washington Post.
The survey asked individuals what types of people they would refuse to live next to, and counted how many chose the option ‘people of a different race’ as a percentage for each country.
Researchers have suggested that societies where more people do not want neighbours from other races can be considered less racially tolerant.
The country with the highest proportion of ‘intolerant’ people who wanted neighbours similar to them was Jordan, where 51.4 per cent of the population would refuse to live next to someone of a different race.
Next was India with 43.5 per cent.
Racist views are strikingly rare in the U.S., according to the survey, which claims that only 3.8 per cent of residents are reluctant to have a neighbour of another race.
Diverse: The multicultural U.S. is among the least racially intolerant countries, according to the data
Other English-speaking countries once part of the British Empire shared the same tolerant attitude – fewer than five per cent of Britons, Canadians, Australians and New Zealanders showed signs of racism.
People in the UK are also tolerant of other differences such as speaking a foreign language or practising an alternative religion – for example, fewer than two per cent of Britons would object to having neighbours of a different faith to them.
Similarly, fewer than one in 20 people in most South American countries admitted harbouring prejudice against other races.
The Middle East, which is currently dealing with large numbers of low-skilled immigrants from south Asia, seems to be a hotbed of racial tension, however.
Europe is remarkably split – the west of the continent is generally more tolerant than the east, but France is
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striking outlier with 22.7 per cent of the French rejecting neighbourhood diversity.
Some have pointed out problems in the survey data, claiming that because the polls span a long period of time they are an unreliable guide to current attitudes.
However, a more serious flaw could be the fact that in most Western countries racism is so taboo than many people will hide their intolerant views and lie to the questioners.
Max Fisher of the Washington Post suggested that maybe ‘Americans are conditioned by their education and media to keep these sorts of racial preferences private, i.e. to lie about them on surveys, in a way that Indians might not be’.
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An earlier version of this article incorrectly stated that Hong Kong and Bangladesh were two of the world’s least racially tolerant countries. We are happy to clarify this is not the case.
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