रानी पद्मावती : लालची व् दावूद से सहमे डरे फिल्मकारों द्वारा भारतीय संस्कृति की कुरुपण बंद कराया जाय
राजीव उपाध्याय देश अभी की आमिर खान फिल्म पिके के शिवजी से रिक्शा चलवाने के अपमानजनक प्रकरण से उबार भी नहीं पाया था की संजय लीला भंसाली ने कथित रूप से भारतीय संस्कृति के सबसे बड़े प्रेरक प्रसंगों मैं से एक रानी पद्मावती के प्रसंग का दवूद को खुश करने के लिए कुरूप चित्रण करने का प्रयत्न किया है . यदि करणी सेना की खबर सच है तो एक स्वपन मैं अल्लुद्दीन व् रानी पद्मिनी का प्रेम प्रसंग व् उसे रानी का चुम्बन लेते हुए दखाया जाएगा .हमारे पास फिल्म की स्क्रिप्ट नहीं है .परन्तु यदि यह सच है तो जो हुआ वह उचित ही था . इसके पहले भी उन्होंने राम लीला नाम से एक फिल्म बनाई थी जिसका बाद मैं आन्दोलन से नाम थोड़ा बदल दिया था. क्या उनको रामलीला के अतिरिक्त कोई और नाम नहीं मिला ? कानून इन लालची फिल्मकारों का कुछ नहीं कर पा रहा है . एक कोई ऐसी चिंगारी छोड़ कर सुर्खियाँ बटोर कर फिल्म को हिट करना एक ऐसी शर्मनाक कहानी बन गया है जिसका यदि सरकार ने कोई समाधान नहीं निकाला तो जनता को तमिल नाडू के जल्लिकुट्टू आन्दोलन की तरह कानून को अपने हाथ मैं लेना पडेगा .
फिल्मों मैं बड़े अरसे से गुलशन कुमार की ह्त्या के बाद अच्छे भजन आने बंद हो गए . क्या भारतीय जनता भजन नहीं चाहती? ऐसा नहीं है . बॉलीवुड को वास्तव मैं दवूद के गुर्गों ने लालच व् आतंक से खरीद लिया है . इसको स्वतंत्र कराना बहुत आवश्यक है नहीं तो अल्लुद्दीन की क्रूरता व् समलैंगिकता व् रानी पद्मावती के प्राण हरता के बजाय उसका रानी पद्मावती से लव जिहाद वाला प्रेम ही दीखने लगेगा . कहने को फिल्मकार किसी किताब का सहारा ले लेते हैं .सुनते हैं की भंसाली ने भी मुहम्मद जायसी की पद्मावत को आधार बनाया है . परन्तु उस मैं भी अल्लुद्दीन का प्रेम प्रसंग तो नहीं है .वह इतिहास ग्रथ भी नहीं है . इस बारे मैं निम्न लेख पढ़ें .रानी पद्मावती के जौहर को किसी किताब मैं कुछ लिखा होने से कलुषित करना निंदनीय व् भर्त्सनीय है.
https://patriotsforumindia.com/rani-padmavati-and-allauddin-khilji-separating-facts-from-fiction/
रानी पद्मावती व् चित्तोड की सब रानियों ने जौहर कर लिया था . यह एक सच है जो हमारी संस्कृति का एक गौरवमई प्रसंग है . आज हालाँकि कहने लगे हैं की उन्होंने युद्ध मैं जान क्यों नहीं दे दी . पर हर युग को उसकी मान्यताओं से नापना चाहिए . सीता को नारी मुक्ति आन्दोलन का या पद्मावती को अल्लुद्दीन कि प्रेयसी दिखाने का प्रयास गलत है . पर उससे भी अधिक यह ज़रूरी है की फिल्मकारों को अच्छे तरह से बताया जाय अपनी कला के बल पर पैसा कमायें किसी कोर्ट रूम के ड्रामे से या पोर्न एक्ट्रेस को हेरोइन बना कर अमीर न बनें . हिन्दू शांती अंतहीन नहीं है व् किसी दिन बॉलीवुड के दावूदिकरण का बहुत दुखदाई परिणाम आयेगा . संजय भंसाली को अल्लाउद्दीन के महिमा मंडान से बचना चाहिए . इसे पाकिस्तानी फिल्मों के लिए छोड़ दें .
सरकार को गुलशन कुमार के हत्यारों को फांसी दिलवानी चाहिए व् बॉलीवुड को दवूद के चुंगुल से तुरंत मुक्त करना चाहिए . इसके अतिरिक्त सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष पहलाज निहानी का समर्थन करना कहिये.
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