२०१९ का चुनाव हांरे बिना वाजपेयी काल के समकक्ष औद्योगिक प्रगति संभव है : राष्ट्रीय आर्थिक दिशा बदलें
प्रगतिशील चिन्तक व् देशभक्त अर्थश्स्त्री पिछले ढाई वर्षों से जिस वाजपेयी कालीन आर्थिक व् औद्योगिक विकास की आशा लगाए बैठे हैं .वह अभी तो दुस्वप्न ही बन गया प्रतीत होता है . अब तक तो लगता है की सरकार ने यह मान लिया है की राज्यों के चुनाव जीतना ही उसकी प्राथमिकता है . यह ठीक भी है क्योंकि चाहे देश की आज जितनी भी आर्थिक प्रगति हो कोई भी सोनिया गाँधी के घोर हिन्दू विरोधी व् बेईमान काल की वापसी नहीं चाहता है . न ही दिल्ली की जनता को झूठे दिलासों मैं फंसाने वाली आप सरकार को देश सौंपना चाहता है . परन्तु सरकार का यह सोचना की चुनावी जीत के लिए आर्थिक विकास को तिलांजलि देनी पड़ेगी उचित नहीं है . सरकार दिल्ली व् बिहार की हार के बाद हतप्रभ हो गयी और उसने इंदिरा गाँधी युग की ओ र दिशा परिवर्तन कर लिया . राहुल गाँधी की सूत बूट की सरकार व् केजरीवाल का अम्बानी की सरकार का दंश सरकार को बहुत चुभ गया . उसने फिर उसे दोबारा नहीं होने देने की कसम खा ली जो उत्तर प्रदेश व् उत्तराखंड जीत कर पूरी कर दी . परन्तु कहीं सरकार से चू क हो गयी . बीता समय वापिस नहीं आता . आर्थिक विकास के झूठे आंकड़ों से देश को सदा के लिए झुठलाया नहीं जा सकता .
देश को चीन समक्ष आर्थिक विकास की परम आवश्यकता है क्योंकि अन्यथा चीन हमसे आगे बढ़ता जाएगा और जैसे उसने बांग्लादेश व् श्री लंका मैं घुसपैठ की है और जैसे अब वह नेपाल व् मालदीव मैं घुसना चाह रहा है वह राष्ट्र के लिए अहितकर . रक्षा के बजट को बढाने के लिए आर्थिक विकास बहुत जरूरी है . इसी तरह गरीबी हटाने के लिए भी आर्थिक विकास बहुत जरूरी है . पुरानी वाजपयी फोर्मुले की आठ या नयी जेटली फोर्मुले की समकक्ष दस प्रतिशत की विकास दर बिना अगला लोक सभा का चुनाव हारे संभव है .
परन्तु इसके लिए बिलकुल नए चिंतन व् तरीकों की जरूरत है जो इस सरकार मैं अभी कोई करने वाला नहीं दीख रहा है . देश ने पिछले ढाई वर्षों मैं देश के उद्योगपतियों के साथ बहुत दुर्व्यवहार किया है .टैक्स बढाने के लिए अंधा धुंध टारगेट दे दिए. उद्योगपतियों को अवांछनीय व्यक्ति की तरह धमका धमका के टैक्स लिया गया . जो टैक्स नहीं दे रहे थे उनको कुछ नहीं हुआ .इसी तरह सरकार पारदर्शिता के नाम पर बिलकुल खतरा नहीं लेना चाहती . काम करेंगे तो गलती होगी . नहीं काम पर तो कोई सज़ा नहीं होगी . औद्योगिक प्रगति मात्र तीन प्रतिशत है पर कोई जिम्मेवार नहीं है . यह सरकार बाबुओं के हाथ मैं फंस गयी प्रतीत होती है जिनका अर्थ्शस्त्र का ज्ञान पिछले तीन वर्षों मैं पिट चुका है .इसी तरह बाबा राम देव बहुत बड़े योगी अवश्य हैं पर उनकी आर्थिक नीतियों से चीन सरीखा औद्योगिक विकास संभव नहीं है . नोट बंदी बहुत लोकप्रिय हुयी क्योंकि जनता को इमानदारी बहुत अच्छी लगती है पर उससे विकास दर तो कम होगी ही . आज घर नहीं बिक रहे मोटर साइकिल नहीं बिक रहीं . उद्योगों मैं मंदी छाई हुयी है . छोटे उद्योगपति देश छोड़ रहे हैं और विदेशी नागरिकता लेने लगे हैं . वास्तविक स्थिति बुरी है पर कोई चिंतित नहीं है .
सरकार के बजट दिशा हीन हैं .किसी बाबू या मंत्री को वास्तविक स्थिति सुधरने का मन्त्र नहीं आता है. आज हम विदेशी पूंजी के पीछे भाग रहे हैं परन्तु वाजपयी काल मैं कितना विदेशी पैसा आया था ? तब तो हमने बम फोड़ा और हम पर आर्थिक प्रतिबन्ध थे .तब भी हम अभूतपूर्व प्रगति कर गए क्योंकि देश के उद्योगपतियों को पूँजी निवेश के अवसर मिले . इस वित्तीय आतंकवादी माहौल मैं कोई क्यों निवेश करेगा .इसलिए औद्योगिक विकास ठप्प है .
आर्थिक विकास से मोदीजी वाजपयी जी की तरह २०१९ का चुनाव हार जायेंगे ऐसा नहीं है .
एक उदाहरण देखें . हम सब जानते हैं की विश्व मैं बूढ़े लोगों की संख्या बढ़ रही है . विकसित देशों की विदेशी स्वस्थय सेवायें जरूरतों को पूरी नहीं पा रहीं . हर देश मैं स्वस्थ सेवाओं के सुधरने की मांग है . परन्तु अमरीका मैं डॉक्टर के पास जाना अत्यधिक महंगा है . भारत के लिए यह नया सॉफ्ट वेयर क्षेत्र बन सकता है . परन्तु जैसे राजीव गांधी ने कंप्यूटर को बहुत सस्ता कर दिया था वैसे ही भारत मैं नए बड़े अस्पताल खोलने के लिए राज्य सरकारों को मुफ्त ज़मीन देनी चाहिए . अस्पताल की मशीन का आयात ड्यूटी फ्री कर देना चाहिए . विदेशी बीमारों से अस्पतालों की आय को निर्यात मान लेना चाहिए व् अस्पतालों को उसका उपयोग दवाओं को आयत करने के लिए फ्री कर देना चाहिए . हो सकता है भारतियों को मेक्सिको , ग्रीस , स्पेन इत्यादि मैं सस्ते अस्पताल खोलने पड़ें जहाँ से अमरीकी व् युरोपियों का सुविधापूर्ण इलाज़ कर सकें .नए कानूनों की आवश्यकता होगी और इसे सरकार का प्रबल समर्थन चाहिए होगा . इस क्षेत्र को बढावा देने से देश मैं कोई विरोध नहीं करेगा क्योंकि भारतीयों को भी इससे लाभ होगा . इसी तरह शिक्षा के क्षेत्र मैं नए चिंतन की आवश्यकता है . हमारी इंजीनियरिंग व् मेडिकल की शिक्षा का स्तर बढ़ने की आवश्यता है . पर यह घिसे पिटे बाबुओं के बस का नहीं है .वह तो तीन सालों से मंत्रियों को गुमराह कर रहे है.
नरसिम्हा राव अपना मनमोहन ढूंढा . परवेज़ मुशर्रफ ने अपना शौकत अज़ीज़ ढूंढा . मोदी जी को भी अपने बाबुओं के चुंगुल से निकल नयी प्रतिभा को खोजना होगा . अन्यथा यह झूटा कागजी विकास ही देश की नियति बन जाएगा .
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