अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप की नयी विदेश निति की आहट : सऊदी अरेबिया , इजराइल व् वैटिकन यात्रा के भारत को नए खतरनाक इशारे
अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने अपनी पहली विदेश यात्रा इजराइल न कर सऊदी अरेबिया की . वहां उन्होंने पचास से अधिक इस्लामिक राष्ट्रों का सम्मलेन बुलाया और उसमें इरान की जम कर बुराए की गयी . परन्तु सऊदी अरेबिया ने इसकी कीमत १०० बिलियन डॉलर के हथियार अभी और अंततः अगले दस साल मैं ३५० बिलियन डॉलर के हथियार खरीदने के वायदे से अदा कर दी .अमरीका ने यमन मैं सऊदी नरसंहांर की भर्त्सना नहीं की बल्कि उसे ठीक करार दे दिया .इससे सऊदी अरेबिया की मुस्लिम राष्ट्रों की चौधराहट को कबूल कर लिया . कहने को यह संगठन आतंकवाद के विरुद्ध होगा .परन्तु वास्तव मैं यह सऊदी अरेबिया की इस्लामिक जगत की चौधराहट को विश्वमैं स्थापित करने के लिए हुआ.विश्व मैं आतंकवाद फैलाने मैं सऊदी पैसे का बहुत योग दान है . सरे मदरसे वहाबी इस्लाम का प्रचारसऊदी पैसे के लालच मैं करते हैं . ओसामा भी कभी सऊदी अरेबिया का नागरिक था जो अमरीका से खफा हो गया हां . अमरीका सऊदी शाही परिवार को कभी भी मरवा सकता है . ईरान तो सिर्फ लेबनान , इजराइल इत्यादि इलाके मैं इस्लामिक आतंकवादियों की पैसे से सहायता कर रहा है . परन्तु सऊदी अरेबिया अमरीका के हितों की रक्षा कर शेष विश्वमें इस्लाम का प्रभुत्व जमा रहा है . डा सुब्रमनियन स्वामी के हार्वर्ड से निकाले जाने मैं अमरीका का क्या हित था ? जब तक सौदियों के पास सिर्फ ऐसा था तब तक उन्होंने उस का उपयोग वहाबी इस्लाम को फैलाने मैं किया . अब जब उसके पास शक्ति भी आ जायेगी तो वह क्या करेगा . भारत को सऊदी अरेबिया से अधिक खतरा है .वह पाकिस्तान को सदा बढावा देता रहेगा . परन्तु उसे भारत की मंडी की भी आवश्यकता है . अमरीका इससे सब शक्तियों की धरी बन कर विश्व शक्ति बना रहेगा . सऊदी सिर्फ अमरीका से दबेंगे . इस्लामिक जगत और चीन सदा पकिस्तान के लिए एक हो जायेंगे क्योंकि ओ आई सी सदा से कश्मीर पर पाकिस्तान का खुल कर साथ देता रहा है .इसलिए भारत को संभल संभल के कदम बढाने होंगे .जापान व् जर्मनी किसी युद्ध मैं भारत का साथ नहीं देंगे . न ही रूस अब चीन के विरुद्ध हमारा साथ देगा . भारत को अपनी रक्षा स्वयं करनी होगी .
इस सम्मलेन मैं पाकिस्तान की बेईज्ज़ती हुयी . नवाज़ शरीफ बहुत तैय्यारी कर इस्लमिक उम्माह (एकता) पर भाषण देने गए थे . उनको सउदियों ने बोलने का मौक़ा ही नहीं दिया . बंगलादेश व् अफगानिस्तान के राष्ट्राध्यक्षों को बोलने का मौक़ा मिला पर पाकिस्तान को नहीं . राष्ट्रपति ट्रंप ने पाकिस्तान से कोई मुलाक़ात भी नहीं की और भारत को आतंकवाद से पीड़ित देश बताया .पाकिस्तान मैं इससे बहुत रोष है . वह चीन की और और अधिक झुकेगा . भारत को तो हर तरफ से खतरा ही है .
इसके बाद ट्रम्प इसराइल गए .उसके पहले उन्होंने इजराइल को अमरीकी समर्थन मैं कमी का संकेत दे दिया .क्योंकि अमरीका इन देशों मैं शांति चाहता है . उसके बाद ट्रंप पोप से मिले . इस तरह उन्होंने तीन धर्मों के संघर्ष को समाप्त करने को अपनी प्राथमिकता का इशारा दे दिया जिसे इस्रैल मैं पसंद नहीं किया जा रहा .परन्तु यदि सऊदी अरेबिया अमरीका के समर्थन मैं इजराइल का किरदार अदा कर दे तो अमरीका को इस्राईल की आवश्यकता कम रह जाती है . इस्राईल इन हालातों मैं एक तैवान सरीखा देश मात्र रह जाएगा जो अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए अमरीका पर सदा आश्रित रहेगा. भारत व् इजराइल के मैत्रीपूर्ण संबंधों से दोनों को बहुत फायदा होगा . भारत को इजराइल का उपयोग करना चाहिए .
भारत के लिए इन बदलावों ने कुछ नए समीकरण बना दिए हैं . हमारी आर्थिक प्रगति मैं निर्यात बढाने की बहुत आवश्यकता है अपरिमित निर्यात चीन की बहुत बड़ी ताकत है . इसको कम करने के लिए चीन से अमरीका अपना व्यापार कम करने को तैयार है यदि भारत चीन से सस्ता सामान बना सके . भारत की मजदूर यूनियन देश के कानूनों को नहीं बदलने दे रहीं न ही हम उद्योगों को सस्ती ज़मीन दे पा रहे हैं . स्पेक्ट्रम ,अयस्कों, कोयले इत्यादि की बोली लगा के बेचने से उद्योगों पर बहुत क़र्ज़ चढ गया है और वह अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धा के योग्य नहीं रहे . इसी तरह विदेशों मैं वीसा पर प्रतिबंधों से हमारी सेवाओं के निर्यात बढाने की आशाओं पर तुषारापात हो जाएगा . हमें उद्योगों को राजनीति के लिए कुर्बान नहीं करना चाहिए जो हम तीन सालों से कर रहे हैं .
यदि हम अमरीका को चीन पर आश्रित रहने देंगे तो इजराइल की तरह हम भी एक तैवान बन कर रह जायेंगे . हमें अमरीका की आवश्यकता बनना होगा .अमरीका का नया शासन सिर्फ पैसों की भाषा समझेगा .
इसलिए हमें अपने आर्थिक विकास को ही प्राथमिकता देनी होगी क्योंकि विश्व शक्ति को आर्थिक शक्ति होना आवश्यक है ..
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