कंगना रनौत , सनी लियोनि व् औरतों के लालच य प्रेम मैं असफलता पर पुरुषों पर बेबुनियाद आरोप : औरतों को सिर्फ अबला व् देवी मानना बंद करें

कंगना रनौत , सनी लियोनि व् औरतों के लालच य प्रेम मैं असफलता पर पुरुषों पर बेबुनियाद आरोप : औरतों को अबला व्  देवी मानना बंद करें

राजीव उपाध्याय RKU

कंगना रनौत ने हाल के आप की अदालत मैं साक्षात्कार मैं अपने ऋतिक रोशन से प्यार की बात स्वीकार की और उनसे कभी शादी की इच्छा थी बताया . इसके पहले मीडिया मैं उनमें और ऋतिक मैं बहुत तू तू मैंमैं हुयी थी .ऐसे मैं पहले साधारणतः पहले पुरुष को दोषी मान लिया जाता है . औरतें अपने इच्छाओं की पूर्ती के लिए सेक्स का उपयोग स्वयं भी करती हैं और समर्थ पुरुषों को फंसाती भी हैं इसका ज्वलंत उदाहरण पोर्न स्टार सनी लियोनि है जिसे लालची निर्माता भारत मैं हेरोइन का रोल दे रहें हैं . यदि सनी लियोनि ठीक है तो आदित्य पंचोली भी ठीक है .यदि औरतों के पास देने के लिए सेक्स है और आदमियों के पास पैसा है तो उनका सम्बन्ध तो मात्र पैसे का है . इसमें कौन ठीक और कौन गलत है ?

जानवरों की तरह आदमी के लिए भी सेक्स कुछ पल की ही जरूरत है . इसको जीवनोंप्रांत परिवार का रूप देना एक सामाजिक प्रतिभा की खोज है . परिवार मैं सब का कोई न कोई कर्तव्य होता है . औरतों का घर के काम व् पुरुषों का बाहर का काम एक स्वाभाविक बँटवारा था जो शारीरिक संरचना के उपयुक्त होने के कारण हज़ारों वर्ष चला . बच्चों को देखने के लिए नारी का घर मैं रहना आवश्यक था .मशीनों के आने से शारीरिक शक्ती की आवश्यकता कम हो गयी और दितीय विश्व युद्ध मैं अत्यधिक पुरुषों के सेना मैं जाने से पुरुषों की जगह औरतों ने नौकरी करनी शुरू कर दी . बच्चे कम होने लगे इसलिए उनकी देख रेख की जरूरत कम हो गयी .युद्ध के बाद यह प्रथा बन गयी .परन्तु इस से पश्चिम का समाज टूट गया .शादी एक धर्म से घाट कर मात्र समझौता बन गयी .

नारी यदि अबला थी तो उसे संरक्षण की आवश्यकता थी . पर कंगना या सनी लियोनि अबला नारी नहीं हैं . उनको अबलाओं का संरक्षण नहीं दिया जा सकता . यदि नारी सेक्स का दुरूपयोग करती है जैसे की प्रीती जैन ने मधुर भंडारकर के साथ किया किया तो यह तो पुरुष का भी शोषण है . पुरुष को सेक्स्में फंसा कर ब्लैक मेल करना या शादी के लिए मजबूर करना देहिक शोषण है .नारी को जीवन भर पालना पुरुष की जिम्मेवारी नहीं है . यदि पत्नी के कर्तव्य निभाएगी तो पत्नी के अधिकार पायेगी . कोई पुरुष दबंग पत्नी नहीं चाहता और दबंग औरतों को शादी नहीं करनी चाहिए . अकेले उन्मुक्त जीवन बिताना ज्यादा अच्छा हैकिसी पुरुष की जिन्दगी खराब करने से ज्यादा अच्छा है . तलाक पर पत्नी को आधी आय देने के कानूनों की पुनर्व्याख्या जरूरी है . पुरुष को इस्लामिक शादी की तरह अपनी शर्तों पर शादी का अधिकार होना चाहिए और मुस्लिम मेहर की तरह हर पुरुष को तलाक की धन राशि निर्धारित करने का अधिकार होना चाहिए . न्यायालयों ने हिन्दू विवाह के परम्पराओं की धज्जी उड़ा दी गयी है . इनसे नारी उच्छ्रिन्कल हो गयी है और पुरुष का शोषण कर रही है .

सरकारी विज्ञापनों मैं लड़कों को रसोई मैं खाना बनाने के लिए कहना गलत है . सरकार के महिला विभाग को इसका अधिकार नहीं है और यह विज्ञापन बंद होने चाहिए . पुरुष शरीर के लिए  के लिए भग दौड़ जरूरी है .मर्दानी औरतें चाहें तो बहार जाएँ व् जिम मैं डोले  बनाएं पर इसके लिए पुरुषों को जनाना बनाना या नेल पालिश लगाने की प्रेरणा देना जरूरत नहीं है .इसी तरह बूढ़े मा बाप को किसी एक की जिम्मेवारी देना ठीक है . हरयाना ने जो कानून बनाया वह ठीक है .लड़कियों को प्रॉपर्टी मैं अधिकार देना बुढ़ापे की दुर्गति करना है . इसके बाद किसका काम क्या है के झगड़े शुरू हो जायेंगे . सामाजिक प्रथाओं मैं सरकारी दखलंदाजी बंद करें . अब तो आयु बढ़ रही हैं . ये सरकारी विभागों की महिलायें अपना बुढ़ापा खराब कर रही हें .इसके बाद पश्चिम की तरह अलग रहना व् बुढ़ापे मैं घर गिरवी रख उधार ले कर जीने की प्रथाएं  आयेंगी .मर्दानी औरतें किसी की जरूरत नहीं हैं . उनको स्वयं अकेले मैं खुश रहना चाहिए .

सरकार को इसमें दखल नहीं देना चाहिए .

आज पुरुष को अति महिलावाद से  न्यायिक संरक्षण की आवश्यकता है जिस पर विचार आवश्यक है .

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