वह चंद्रगुप्त का पीछा करती थी
एक ब्लॉग से जिसकी सत्यता के बारे में हम नहीं कह सकते – संपादक
यही हेलेन बिंदुसार की मां बनी। महान सम्राट अशोक बिंदुसार का बेटा था यानी हेलेन सम्राट अशोक की दादी थी। एक तरह से चंद्रगुप्त और हेलेन की शादी यूनानी और भारतीय संस्कृति का मिलन थी और संदेश यह कि युद्ध पर प्यार भारी पड़ता है। लेकिन सेल्युकस अंत तक नहीं जान पाया कि उसकी बेटी और चंद्रगुप्त के बीच इतना महान प्रेम पल रहा था।
बात उन दिनों की है, जब चंद्रगुप्त मौर्य अभी भारत का सम्राट नहीं बना था और अपने गुरु चाणक्य की देख-रेख में वाहीक प्रदेश में युद्ध विद्या का अभ्यास कर रहा था। एक दिन हेलेन ने देखा कि एक अत्यंत रोबीला और सुगठित शरीर वाला नौजवान एक साथ सात-सात सैनिकों से हाथ आजमा रहा है। एक साथ सातों उसके ऊपर वार करते और वह हंसते-हंसते उनके वारों को काट डालता। अपने वार को बार-बार खाली जाते देख वे सातों खीझ उठे और अब वे अभ्यास के लिए नहीं, बल्कि वास्तव में घातक वार करने लगे, लेकिन वह नौजवान तो अब भी हंसे जा रहा था और आसानी से उनके वारों को विफल कर रहा था। थोड़ी देर तो वह युवक उनके वारों से अपने को बचाता रहा लेकिन उसके जैसा योद्धा के लिए यह समझना मुश्किल नहीं था कि वे सातों उसे मारने पर आमादा थे। बस, क्या था ….. उस युवक ने देखते ही देखते तलवार के ऐसे करतब दिखाए कि सातों के हाथों से उनकी तलवारें छूट गईं और वे निहत्थे खड़े हो गए। उन्हें लगने लगा कि अब उनके प्राण बचने वाले नहीं। लेकिन उस युवक ने उन्हें मार नहीं, बल्कि हंसते हुए कहा, ‘ हमारी तलवार का आब इतना मगरुर नहीं कि वह निहत्थों पर वार करे। अगर तुमलोग मुझसे सचमुच युद्ध करना चाहते हो, तो मुझे कोई ऐतराज नहीं, लेकिन अभ्यास के बहाने युद्ध तो ना करो, कम से कम तलवार को इज्जत तो बख्शो। मेरी तलवार सिर्फ कमजोरों की रक्षा में उठती है। अगर मुझे पराजित करना चाहते हो तो अपनी तलवार के लिए भी यही जिम्मेदारी मुकर्रर करो। ’ वे सातों चुपचाप खड़े रहे। उसके बाद वह युवक अखाड़े से बाहर आया और अपने घोड़े पर सवार होकर अपने खेमे की और निकल गया। यह युवक कोई और नहीं, बल्कि पाटलीपुत्र का भावी सम्राट स्वयं चंद्रगुप्त मौर्य था।
जिस समय चंद्रगुप्त सात-सात सैनिकों से अकेले हाथ आजमा रहा था, उस वक्त अनेक लोग उसकी तलवारबाजी का जौहर देख रहे थे। जब चंद्रगुप्त ने सातों को पराजित कर दिया तो चारों तरफ से वाह-वाह की ध्वनि उठने लगी। सभी उसकी तलवारबाजी की कला की सराहना कर रहे थे। लेकिन इस कोलाहल से अलग चंद्रगुप्त को तलवारबाजी करते एक युवती भी देख रही थी और यह युवती कोई और नहीं, बल्कि यूनानी सम्राट सेल्यूकस निकेटर की बेटी हेलेन थी। वह चंद्रगुप्त के सुंदर रूप, शालीन व्यवहार और तलवारबाजी के दांव-पेंच मंत्र-मुग्ध होकर देख रही थी। इतना सुंदर मर्दाना रूप उसने आज तक नहीं देखा था। जब चंद्रगुप्त अपने घोड़े पर सवार होकर अपने खेमे की तरफ चला तो हेलेन उसे जाते अपलक देखती रही। जब चंद्रगुप्त का घोड़ा आंखों से ओझल हो गया तो वह अन्यमनस्क भाव से अपने महल में लौट चली। वह महल में लौट तो आई लेकिन अपना दिल चंद्रगुप्त को दे आई। वह दिल ही दिल में चंद्रगुप्त से प्यार करने लगी। अब उसका मन उसके हाथ में नहीं रह गया था, वह हमेशा चंद्रगुप्त को एक नजर देखने का बहाना ढूंढ़ने में लगी रहती। उसने अपने विश्वस्त सैनिकों और दासियों को चंद्रगुप्त की दिनचर्या पर नजर रखने के लिए लगा दिया, ताकि उसे पता चल सके कि वह अकेले कहीं आता-जाता है या नहीं। चंद्रगुप्त के दीदार के लिए उसका मन मचलने लगा, दिल में मिलन की प्यास बढ़ती जा रही थी। लेकिन मिलना क्या इतना आसान था। आखिर हेलेन एक बादशाह की बेटी थी। वह जहां भी जाती, उसके सैनिक और नौकर-चाकर भी साथ रहते। इसके बावजूद वह चंद्रगुप्त को एक नजर देखने के लिए उसका पीछा करते रहती थी और कभी-कभी तो काफी दूर तक और देर तक पीछा करती थी। मिलने का मौका तो नहीं मिलता था, लेकिन दूर से देख कर ही वह अपने दिल को दिलासा दिलाया करती थी।
इस बीच चंद्रगुप्त चाणक्य की मदद से नंद वंश का नाश करने में सफल हो गया और उत्तर भारत में अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया। चंद्रगुप्त को इस बात की कोई भनक नहीं थी कि हेलेन उससे प्यार करती है। वह तो यह भी नहीं जानता था कि हेलेन नाम की कोई लड़की भी है। एक बार पाटलीपुत्र का काम-काज निपटा कर वाही प्रदेश पहुंचा। वहां वह अपनी शासन-व्यवस्था को सुचारू रूप देने के के लिए पहुंचा था। एक दिन अपने चंद सैनिकों के साथ झेलम नदी के किनारे टहल रहा था। अचानक वह अकेले अपने घोड़े को लेकर अकेले ही झेलम नदी के कगार की तरफ फेर दिया। जब बिलकुल किनारे पहुंचा तो देखा कि कई सुंदर युवतियों के बीच एक युवती आराम फरमा रही है। चंद्रगुप्त के मन में कौतुहल जगा कि इतनी सुंदर युवतियों के बीच बैठी वह युवती कौन हो सकती है। चंद्रगुप्त अपने घोड़े से उतर गया और उसे देखने के लिए दबे पांव आगे बढ़ा। अब युवती का मुखड़ा उसके सामने था। चंद्रगुप्त को ऐसा लगा जैसे आकाश में अचानक चांदनी छिटक आई हो। चंद्रगुप्त अपनी सुध-बुध खोकर उसका रूप पान करने लगा। यूं तो चंद्रगुप्त ने अनेक सुंदर युवतियों को देखा था लेकिन स्तब्ध करने वाली ऐसी सुंदरता की तो उसने कल्पना भी नहीं की थी। उसका दिल हेलेन के गेसुओं में गिरफ्तार हो गया। अब चंद्रगुप्त की दशा भी वैसी ही हो गई, जैसी कल तक हेलेन की थी। अब चंद्रगुप्त भी उसे देखने की जुगत में रहने लगा। दोनों के दिल में प्रेम के अंकुर फूट चुके थे, लेकिन दोनों ही अपने-अपने प्यार के संसार में तनहा थे। यह तनहाई तो तभी दूर हो सकती थी, जब उनकी मुलाकात होती, लेकिन मिलना तो दूर, अभी तो दोनों को यह भी पता नहीं था कि कौन क्या है, न तो चंद्रगुप्त जानता था कि हेलेन कौन है और न हेलेन जानती थी कि चंद्रगुप्त कौन है….दोनों एक-दूसरे के नाम से भी अनजान थे। यह दो अजनबियों का अनोखा प्यार था। वे मिलना तो चाहते थे, लेकिन समस्या यही थी कि मिलें भी तो कैसे मिलें। दोनों ने ही अपने प्यार का राज दुनिया से अभी तक छुपा रखा था। अपने-अपने दिल की हालत सिर्फ वही जानते थे और यह समझ नहीं पा रहे थे कि अपना हाल-ए-दिल एक-दूसरे से बताएं भी तो कैसे। अंत में चंद्रगुप्त ने अपने एक विश्वसनीय दोस्त से अपने दिल की बात बता दी। दोस्त ने बताया कि उस युवती तक उसके प्यार का पैगाम पहुंचाना कोई इतना मुश्किल काम भी नहीं है। यह सुनकर चंद्रगुप्त को तसल्ली तो मिली, लेकिन वह समझ नहीं पा रहा था कि उसका दोस्त उसके प्यार का पैगाम उस तक पहुंचाएगा भी तो किस तरह, क्योंकि न तो वह उस युवती का नाम जानता है और न उसका पता। चंद्रगुप्त की उलझन ताड़ कर उसके दोस्त ने कहा, ‘ यह सब मेरे ऊपर छोड़ दीजिए, आप सिर्फ उस युवती का रंग-रूप बताइए। ’ चंद्रगुप्त ने जब उस युवती के रूप का वर्णन किया तो दोस्त को समझते देर नहीं लगी कि वह तो सेल्यूकस निकेटर की बेटी हेलेन के बारे में बातें कर रहा है। उसने यह भी महसूस किया कि हेलेन का रंग-रूप बताते वक्त चंद्रगुप्त बार-बार खयालों में खो जाता था। दोस्त की अनुभवी आंखों के लिए अब यह राज नहीं रह गया था कि चंद्रगुप्त हेलेन के प्यार में पूरी तरह डूब चुका है और उससे मिले बिना इसे चैन नहीं मिलने वाला। अपने दोस्त और सम्राट की यह दशा उससे देखी नहीं जा रही थी। उसने चंद्रगुप्त से हेलेन के नाम मुहब्बत का पैगाम लिखने के लिए अर्ज किया और इजाजत लेकर वहां से चल दिया। चलते समय उसने सम्राट से कहा कि वह थोड़ी देर में लौटेगा, तब तक वह अपना पैगाम लिख डालें। दोस्त के जाने के बाद चंद्रगुप्त हेलेन के नाम प्रेम-पत्र लिखने बैठ गया।
जब तक दोस्त वापस आया, चंद्रगुप्त हेलेन के नाम प्रेम-पत्र लिख चुका था। दोनों बातचीत करने लगे। अचानक चंद्रगुप्त ने महसूस किया कि उसका दोस्त उससे कुछ छुपाने की कोशिश कर रहा है। चंद्रगुप्त ने आंखों-आंखों में ही सवाल किया कि वह क्या छुपा रहा है तो दोस्त ने हंसते हुए उसे सामने कर दिया। चंद्रगुप्त ने देखा कि उसके हाथ में एक सुंदर-सा कबूतर है। उसके दोस्त ने बताया कि यह कोई साधारण कबूतर नहीं है, बल्कि यह रानी कबूतरी है, जो गुप्त संदेश लाने और पहुंचाने में अत्यंत माहिर है। दोस्त ने यह भी बताया कि पिछले तीन सालों से यह कबूतरी आपके साम्राज्य की सेवा में लगी है और इस दौरान इसने एक भी गलती नहीं की है। यह आपके मुहब्बत का पैगाम सीधे हेलेन तक पहुंचा देगी, आप निश्चिंत रहें। उधर एक दिन हेलेन अपने महल के बरामदे में अन्यमनस्क भाव से अकेले टहल रही थी। उसकी विश्वस्त महिला गुप्तचर ने उसे बता दिया था कि वह युवक कोई और नहीं, बल्कि स्वयं मगध सम्राट चंद्रगुप्त हैं। अचानक हेलेन ने देखा कि एक कबूतरी तेजी से उड़ती आई और उसके सामने बरामदे में बैठ गई। पहले तो हेलेन ने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया लेकिन धीरे-धीरे वह कबूतरी हेलेन के पास आ गई। अब हेलेन ने देखा कि उसके गले में कोई कागज का टुकड़ा लटक रहा है। उसने उत्सुकता से कबूतरी की तरफ जब अपना प्यार भरा हाथ बढ़ाया तो वह सिमट कर और भी पास आ गई। हेलेन ने उस कागज को कबूतरी के गले से निकाला और उसे देखने लगी। उसे यह देख कर आश्चर्य हुआ कि उस कागज पर खूबसूरत यूनानी अक्षरों में कुछ लिखा है। वह पढ़ने लगी। पहला वाक्य पढ़ते ही उसके कपोल गुलाबी हो गए। वह कबूतरी से भी लजाने लगी। अपने पत्र में चंद्रगुप्त ने अपना हृदय निकाल कर रख दिया था। हेलेन पत्र पढ़ती जाती और रोती जाती….खुशी के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। उसने चंद्रगुप्त के पत्र को न जाने कितनी बार पढ़ा, लेकिन पढ़ने से उसका मन ही नहीं भर रहा था। चंद्रगुप्त का रोबीला रूप उसके सामने आ गया, वह उसका पान करने लगी—आंखें बंद कर। चंद्रगुप्त का चेहरा उसकी आंखों से ओझल होने का नाम ही नहीं ले रहा था….वह खुद भी तो ओझल होने देना नहीं चाहती थी। चंद्रगुप्त के खयालों से आजाद होने के लिए वह तैयार ही नहीं थी, लेकिन तब तक रानी शोर मचाने लगी। रानी अपनी हरकत से हेलेन को समझाना चाह रही थी कि उसे अब लौटना होगा, क्योंकि पहले ही काफी देर हो चुकी है। उसने गर्दन की जुंबिश से यह भी बयान किया कि उसे जवाब भी ले जाना है ।
हेलेन जवाब लिखने बैठ गई….लेकिन मुश्किल आन पड़ी कि लिखे क्या। फिर भी चंद पंक्तियों में ही उसने वह सब कुछ लिख दिया, जिसके लिए कभी-कभी किताबें भी कम पड़ती हैं। उसने लिखा, ‘मैं तो सिर्फ आपकी अमानत हूं, आइए और मुझे ले जाइए। आपके बिना जीना गवारा नहीं…. पर मन भय से कांपता है कि कहीं हमारा प्यार मेरे पिता को स्वीकार होगा भी या नहीं….मुझे लगता है कि मेरे पिता हमारे मिलन के लिए तैयार नहीं होंगे, पर क्या एक बार…सिर्फ एक बार, हमारी मुलाकात नहीं हो सकती है?’ मुलाकात कैसे नहीं होती….कहते हैं न कि अगर किसी को सच्चे दिल से प्यार किया जाए तो सारी कायनात उसे मुकम्मल करने में जुट जाती है, वही इन प्रेमियों के साथ हुआ। लेकिन थोड़ी नाटकीयता के साथ।
सेल्यूकस निकेटर (निकेटर का अर्थ विजेता है) अपने साम्राज्य के आंतरिक कलह से परेशान था। बेबिलोनिया से लेकर भारत तक उसके साम्राज्य के स्थानीय क्षत्रप बगावत के बिगुल बजाने लगे थे। इस बीच हेलेन बेबिलोनिया चली गई। चंद्रगुप्त की तो जैसी जिंदगी चली गई। क्षत्रपों की बगावत कुचलने के लिए उसे भारत में मदद की जरूरत थी और उसकी यह जरूरत तब सिर्फ चंद्रगुप्त ही पूरी कर सकता था। लेकिन सेल्यूकस अपनी यह जरूरत अपनी शर्तों पर पूरा करना चाहता था यानी मदद मांगने के पहले वह युद्ध भूमि में चंद्रगुप्त को पराजित करने की मंशा रखता था, ताकि मनमानी शर्तों पर समझौता किया जा सके। सेल्यूकस ने चंद्रगुप्त को पराजित करने के लिए एक बड़ी फौज जुटायी और ईसा पूर्व 312 ईं में चंद्रगुप्त के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया, लेकिन उसकी चाहना के विपरीत इस युद्ध में सेल्यूकस को जबर्दस्त शिकश्त मिली। वह बंदी बना लिया गया। सेल्युकस को लगा कि उसका अंत आ चुका है, क्योंकि वह जानता था कि उसने जा काम किया है, उसके लिए उसे चुंद्रगुप्त माफ नहीं करने वाला। रहम की कोई गुंजइश उसे नहीं दिखायी दे रही थी, लेकिन उसे तब घोर आश्चर्य हुआ, जब चंद्रगुप्त ने न सिर्फ उसका कुसूर माफ कर दिया, बल्कि उसने यह भी कहा कि विद्रोहियों को दबाने में उनकी मदद भी करना चाहता है। सेल्यूकस अपने को चंद्रगुप्त के एहसान तले दबते महसूस कर रहा था और मन ही मन उसकी सराहना कर रहा था। एहसान से दबा सेल्युकस ने पूछा, ‘आप मेरे योग्य कोई सेवा बताएं, मैं तन-मन-धन से उसे पूरा करने की कोशिश करूंगा।’ चंद्रगुप्त ने कहा कि भगवान की कृपा से उसके पास सब कुछ है…थोड़ी देर रुक कर फिर कहा, ‘बस, मेरे पास सिर्फ एक चीज नहीं है, लेकिन वह आपके पास है……अगर मैं वह मांगू तो क्या आप दे सकते हैं….समझिए, जिंदगी का सवाल है।’ सेल्यूकस ने कहा, ‘सम्राट, अगर यह आपकी जिंदगी का सवाल है, तब तो मैं इसे मौत की कीमत पर भी आपके हवाले कर दूंगा।’ चंद्रगुप्त ने बड़ी शालीनता से कहा, ‘अगर मैं आपकी बेटी हेलेन का हाथ मांगू तो क्या आप स्वीकार करेंगे।’ थोड़ी देर के लिए तो वह चकरा-सा गया लेकिन जल्दी ही संभल गया और उसके चेहरे पर एक गहरी खामोशी छा गई। सेल्यूकस ने कहा, ‘मुझे हेलेन का हाथ आपके हाथ में देने में कोई गुरेज नहीं, लेकिन उसकी रजामंदी तो जानना ही होगी।’ सेल्युकस सोच रहा था कि उसकी बेटी किसी हिंदुस्तानी को अपने शौहर के रूप में अपनाने को लिए शायद राजी न हो, लेकिन तब उसे घोर आश्चर्य हुआ, जब उसने अपनी बेटी से चंद्रगुप्त के साथ विवाह के बारे में पूछा और जवाब में हेलेन ने खुशी-खुशी इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। उसने चंद्रगुप्त के साथ हेलेन की शादी की इजाजत दे दी। लिखने वाले लिखते हैं कि चंद्रगुप्त बड़ी आन-बान के साथ हेलेन से विवाह करने पहुंचा था। उसका बारात इतना भव्य था कि उसी से उसके सम्राट होने के पता चल रहा था। विवाह के बाद चंद्रगुप्त हेलेन को लेकर पाटलीपुत्र आ गया। यही हेलेन बिंदुसार की मां बनी। महान सम्राट अशोक बिंदुसार का बेटा था यानी हेलेन सम्राट अशोक की दादी थी। एक तरह से चंद्रगुप्त और हेलेन की शादी यूनानी और भारतीय संस्कृति का मिलन थी और संदेश यह कि युद्ध पर प्यार भारी पड़ता है। लेकिन सेल्युकस अंत तक नहीं जान पाया कि उसकी बेटी और चंद्रगुप्त के बीच इतना महान प्रेम पल रहा था।
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