पर्यावरण की नयी कामधेनु : बिना पटाखों के दिवाली का दुखद अवमूल्यन दुबारा नहीं होना चाहिए : न्यायलयों को त्योहारों से दूर रखना क्यों उचित होगा ?

पर्यावरण की कामधेनु : बिना पटाखों के दिवाली का दुखद अवमूल्यन दुबारा नहीं होना चाहिए : न्यायलयों को त्योहारों से दूर रखना क्यों उचित होगा ?

राजीव उपाध्याय rp_RKU-150x150.jpg

बिना पटाखों के दिल्ली मैं इस बार दिवाली एक दम फीकी पड गयी . गरीबों व् अमीरों की वर्ष भर की प्रतीक्षा के बाद आने वाले समान रूप से सबसे सुखद त्यौहार को न जाने किस मंथरा की नज़र लग गयी जो कैकयी राजा दशरथ से पटाखों के बेचने पर रोक लगाने की मांग कर बैठी . सब प्रजा के दिवाली पर पटाखों को चाहने के बाद भी राजा दशरथ कैकयी को न नहीं कर सके और पटाखों को दिल्ली से वनवास दे दिया . उनके बिना दिल्ली में दिवाली एक दम फीकी पड गयी . अगर बद दुआओं मैं असर होता तो दिवाली को बदरंग करने वाले कब के भस्म हो चुके होते पर कलयुग मैं बद दुआओं का असर भी तो नहीं होता .

कहने को तो यह सब प्रदुषण को रोकने के लिये किया गया है .पर जानकार जानते हैं की इसका दिल्ली के प्रदुषण पर कोई असर नहीं होगा . यह सिर्फ उंगली काट के शहीद होने की बात है . जिस २०१६ के प्रदूषण के आधार पर यह सब हो रहा है उसमें तो लाहोर भी धुएँ की गिरफ्त मैं आ गया था .वहां तो अब कोई दिवाली मानाने वाला नहीं बचा . जांच से पाया गया की वह प्रदुषण पंजाब व् हरयाना के खेतों में भूसी जलने से फैला था . किसानों का तो सरकार कुछ कर नहीं सकती तो कुछ करने ली ललक ने दिवाली ही को बर्बाद कर दिया !

फिर दिल्ली मैं लगभग अस्सी लाख कारें व् पचपन लाख मोटर साइकिल हैं . एक लाख से ज्यादा गाड़ियां हर साल नयी आ जाती हैं , ट्रक व् ऑटो अलग हैं . इसके अलावा अनेक उद्योग व् बिजली घर दिल्ली के पास हैं . ऐसे मैं दिल्ली के प्रदुषण को कौन रोक सकता है ? इसके अलावा आई आई टी कानपूर के वैज्ञानिक अध्ययन ने पाया की १० पी एम् के मुख्य कारणों मैं सड़क पर धूल मुख्य है जो आधे से अधिक प्रदूषण की जिम्मेवार है . उसके बाद सीमेंट व् घर बनाने से प्रदूषण होता है . २.५ के पी एम् मैं सड़क की धूल का ३८ % योगदान होता है . गाड़ियों द्वारा तो मात्र ९ % प्रदूषण होता है . उसमें भी ट्रक मुख्य हैं जिनके बाद तिपहियों व् मोटर साइकिल का नंबर आता है .

ऐसे मैं पटाखों पर रोक लगाना सिर्फ एक रस्म अदायगी है ठीक वैसा है जैसे गंगा साफ़ करने के लिए फक्ट्रियों के प्रदूषण को नज़र अंदाज़ कर धोबी घाट बंद कर देना . धोबी चिल्लायेंगे पर उनकी पीड़ा को राष्ट्र हित मैं त्याग करार दिया जाएगा जैसा की पटाखा उद्योग की उत्पन्न बेरोजगारी को बृहतर   राष्ट्रहित मैं आवश्यक करार दिया जाएगा .चमड़े की फक्टोरियों व् मल मूत्र विसर्जन का प्रदुषण वैसा का वैसा रहेगा .

एक यह भी अहम् सवाल है कि वह कौन है जो हिन्दू त्योहारों के विरूध दुष्प्रचार कि मुहिम चला रहा है . उदाहरण के लिए

१ होली को पानी के दुरुपयोग के लिये व गुलाल मै रसायनो होने के लिए रोकने कि बात है

२ दीवाली को पटाखों कि रोक से बरबाद कर दिया बची खुची कोई चीनी व् घी के कारण मिठाइयों पर रोक लगवा कर पूरा कर देगा क्योंकि ह्रदय रोग बढ़ रहे हैं !

३ महिषासुर को दलितो का मसीहा बताया जा रहा है व दुर्गा को वैश्या . दुर्गा की प्रतिमा के रंग  खतरनाक बताये जा रहे है और प्रतिमा विसर्जन पर राजनिति हो रही है

४ गणेश विसर्जन समुद्र के बजाय लोहे के टैंकों मै किया जाने वाला है .

५ दही हाँडी की ऊँचायी पर रोक लग गयी व तमिलनाडू के पारम्परिक जलिकुतटी खेल पर रोक लग गयी .

६ मन्दिर तो अब हिन्दुओं के बचे ही नहीं वह तो राम नवमी , रक्षाबंधन व् जन्माष्टमी की छुट्टी की तरह सरकारी धर्म निरपेक्षता की बलि चढ़ गए .

हमैं प्रदुषण की शिक्षा देने वाले स्पेन के टमाटर उतसव , जर्मनी के बीयर उत्सव , भूतों व् चुडैलों अजीब से हेलोवीन उत्सव ,मुहररम की स्वयं को यातना देने कि सार्वजानिक परेड , बकरीद पर करोड़ों बकरे कटने पर कोई प्रश्न नहीं उठता . बनजी कूदने व परा ग्लाइडिंग को जांबाजी का खेल और दही हाँडी को खतरनाक खेल मान लिया जाता है .

दीवाली पर आतिशबाजी सन १४४२ मैं राजा कृष्ण देव राज के समय से चल रही है और पेशवाओं ने इसे पूर्ण प्रश्रय दिया .अब कोई बाल ठाकरे भी तो नहीं बचा जो हिन्दुओं की बात बिना डरे उठा सकता . उनकी मृत्यु के बाद तो बौने हिन्दुओं के अवतार बन बैठे हैं .

यह सामाजिक विषय न्यायालयों में नहीं बल्कि सरकार के साथ मिल बैठ कर निपटाने चाहिए . मिल बैठ कर कुछ कुछ सबकी मानी जाती है और एक सर्वमान्य समाधान निकाला जाता है .जैसे की दीवाली सात दिन पहले व् सात दिन बाद तक भूसी व् पत्तियों का जलाना रोका जा सकता है . यदि कार व् स्कूटर  पंद्रह दिन सैम व् विषम नंबर के चलाये जा सकते हैं तो यह दीवाली से तीन दिन पहले व् बाद किया जा सकता है . बड़े बमों पर रोक लगाई जा सकती है .दिल्ली मैं दीवाली से एक दिन पहले व् एक दिन बाद तक बाहर  के ट्रकों के प्रवेश पर रोक लगाई जा सकती थी . परन्तु मिल बैठ के समस्या पर सब के हितों का ख्याल रखते हुए चर्चा सरकार करा सकती है न्यायालय नहीं . न्यायालयों की पिछली सरकार की तरह बढ़ती हिन्दू विरोधी छवि उनके स्वयं के हित मैं नहीं है . उनको इन पचड़ों से दूर रहना चाहिए .

फिर एक बात और है . जयंती नटराजन व् जयराम रमेश ने पर्यावरण विभाग को जो कामधेनु बनाया था वह जगत विदित है .डीज़ल कार व् रवि शंकर के मेले पर रोक ने ग्रीन ट्रिब्यूनल की प्रतिष्ठा बढ़ाई नहीं है . गंगा यमुना की सफाई के प्रयासों ने दिखा दिया की पर्यावरण की समस्या वर्षों के अनवरत प्रयास व् लगन से ही  सुलझेगी परतु अब तो हर कोई पर्यावरण को  सिर्फ दुहने के लिए तैयार है .

सरकार को तुरंत अगली  दिवाली को सामान्य बना कर न्यायलयों को सामाजिक मुद्दों से दूर करना चाहिए .

दिवाली के त्यौहार की यह दुर्गति अगले साल नहीं होनी चाहिए .

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