बजट २०१८ – वेतन भोगी मध्यम वर्ग फिर अनाथ व् ठगा गया
अंततः २०१८ का बजट और वर्तमान सरकार का अंतिम पूर्ण बजट लोक सभा मैं वित्त मंत्री ने पेश कर दिया . वेतन भोगी मध्यम वर्ग फिर ठगा सा रह गया. बजट मैं सब के लिए कुछ न कुछ था परन्तु वेतन भोई माध्यम वर्ग के लिए ४०००० रूपये का जो झुनझुना पकड़ा दिया वह तो सिर्फ दिखावे का था . एक तरफ उसे दे कर ट्रांसपोर्ट व् मेडिकल अलाऊंस दिया जाता था उसे काट दिया . तिस पर सेस को तीन से बढ़ा कर चार प्रतिशत कर दिया . कुल मिला कर टैक्स की कमी सिर्फ ७००० रूपये की आय पर होगी . यह तो न के बराबर ही है .
प्रश्न है की यह सरकार वेतन भोगी मध्यम वर्ग के इतना खिलाफ क्यों है . पहले बजट मैं वित्त मंत्री ने आशवासन दिया था की आय बढ़ने पर वह कुछ और कटौती करेंगे . चार बजट बीतने के बाद भी वित्त मंत्री अपने आश्वासन को पूरा नहीं कर सके क्यों ?
उन्होंने खुद बजट भाषण मन कहा था की वेतन भोगी करदाता औसतन ७५००० रूपये टैक्स देता है और व्यापारी वर्ग मात्र २५००० रूपये . इसके बाद जितने भी सर्विस टैक्स इत्यादि लगे वह सब वर्गों पर समान लगे . तो वेतन भोगी वर्ग ठगा ही रह गया क्योंकि वः तो सारे अतिरिक्त कर भी देने लगा . नौकरियां बढी नहीं ,स्कूल व् कोलेजों की फीसें भी बढ़ गयी . होटल रेस्टोरेंट सिनेमा सब के टिकेट बढ़ गए . बिजली, रेल यात्रा , केबल इत्यादी सब पर सर्विस टैक्स लग गया जो अब जी एस टी कहलाता है . इस वर्ग को तो दोनों तरफ से मार पड़ रही है . सरकार का धंधे वालों को महत्व देना एक मजबूरी भी है क्योंकि वह नौकरियां कैसे बढाए नहीं जानती .वह इस मृग मरीचिका मैं फांसी है की सिफ पैसा उधार देने से नवयुवक फक्टारियाँ लगाने लगेंगे .ऐसा नहीं होता है . एक पढ़ा लिखा बुद्धिमान वर्ग सिर्फ नौकरी करना भी चाहता है . उसे व्यापार करना नहीं आता है .उसकी किसी को फ़िक्र नहीं है .
सरकार की इस पढ़े लिखे बुद्धिमान परन्तु साधन हीन व् नौकरी पर आश्रित वर्ग के प्रति विमुखता सिर्फ धंधे वालों को को अपनी प्रमुखता देना बुद्धि हीनता ही दिखाती है. देश की उन्नति मैं इस वर्ग का बहुत योगदान है . किसान से सस्ती दाल खरीद के जनता को महंगा बेच देने से देश का विकास नहीं होता है .देश की प्रगति मैं सॉफ्टवेर का योगदान इसी वर्ग का है .सरकार इसे देश पर भार मानती है .इसी लिए पांच वर्षों मैं इसका इतना अवमूल्यन हुआ है . अभी भी सरकार अपनी भूल सुधार कर स्टैण्डर्ड डिडक्शन की सीमा बढ़ा कर एक लाख रूपये कर सकती है .
इसका परिणाम भी दृष्टि गोचर है .सरकार के कार्यों मैं बुद्धिमत्ता का अभाव साफ़ झलकता है .जैसे नोट बंदी के बीच मैं बार बार नियम बदले और जैसे जीएसटी को बारबार बदला गया उससे स्पष्ट है की सरकार बहुत सोच समझ कर कदम उठाने के बजाय हर समय कुछ शीघ्र उपलब्धि जनता को दिखाना चाह रही है . इसी लिए देश की आर्थिक प्रगति वाजपेयी व् यूपीए – १ से कम है .
परन्तु गरीब वर्गों का बजट मैं बहुत ख्याल अवश्य रखा गया है जो की एक स्वागत योग्य कदम है . देश की उन्नति का गरीब को लाभ अवश्य मिलना चाहिए . परन्तु भ्रष्टाचार के कारण सरकारी स्कीमें सफल नहीं हो पाती जैसा की मनरेगा मैं हुआ था . नयी सरकार की स्कीमों कि नियती भी वैसी ही होंगी . बड़े उद्योगों की लगने की संभावना कम है . सरकार छोटी स्कीमों की जिस मृग मरीचिका के जाल मैं फांसी है उसके सफल होने की संभावना बहुत कम है . छोटी सिंचाई की योजनायें महाराष्ट्र मैं अजीत पवार के समय फ़ैल हो चुकी हैं . उन पर पैसा खर्चना व्यर्थ है .कौशल सम्बन्धी योजनाओं की सफलता मैं संदेह है . बाबु खा पी कर पैसा बर्बाद कर देंगे . बिना उपज बढाए किसान व् खेती से आय नहीं बढ़ेगी .इसके लिए नयी टेक्नोलॉजी की आवश्यकता है .
सब मिला के बुद्धिमान परन्तु साधन हीन लोगों काजो पिछले चार वर्षों मैं जो अवमूल्यन हुआ है देश को उसका खमियाजा भुगतना होगा .
2 Responses to “बजट २०१८ – वेतन भोगी मध्यम वर्ग फिर अनाथ व् ठगा गया”