वित्त मंत्री : चालीस हज़ार दे कर पैंतीस हज़ार लेना वेतन भोगी वर्ग के साथ धोखा है , टैक्स छूट एक लाख करो !
वित्त मंत्री ने इस बजट मैं जो वेतन भोगी वर्ग के साथ धोखा किया है उससे ज्यादा बुरे उनके जी – टीवी को दिए साक्षात्कार मैं दिए गए कारण थे !
वित्त मंत्री ने संसद मैं स्वीकार किया था की वेतन भोगी वर्ग औसतन ७५००० रूपये टैक्स देता है जब की अन्य वर्ग औसतन २५००० रूपये टैक्स देते हैं . उन्होंने अपने पहले बजट मैं वेतन भोगी मध्यम वर्ग को पैसा आने पर और छूट देने का वादा भी किया था . तो सत्ता मैं आते ही क्या ऐसा हो गया की रघुकुल रीति सदा चली आयी प्राण जाए पर वचन न जाई ‘ को आधार मानने वाली सरकार मध्यम वर्ग से किये अपने वादे से मुकर गयी ?
वित्त मंत्री का तर्क की टैक्स बेस ( आधार ) बहुत कम है पूर्ण सत्य नहीं है पिछले दस वर्षों मैं टैक्स बेस बहुत बढ़ा है .यह बात अलग है की अधिकाँश टैक्स रिटर्न जीरो टैक्स देते हैं . सिर्फ वेतनभोगियों का टैक्स सोर्स पर काट लिया जता है .यह तो सरकार की असफलता ही दर्शाता है की वह टैक्स इंस्पेक्टरों का ठीक से उपयोग नहीं कर सकी . अन्यथा इतने बड़े देश मैं इतने कम लोग क्यों टैक्स देते हैं ? दुसरे इस से सिद्ध होता है की सरकार को अपने आंकड़ों की फिकर लोगों से ज्यादा है . यह भी बहुत दुखदायी है .
दूसरा जब चिदम्बरम साहेब ने टैक्स कम किया था उसके बाद पंद्रह वर्षों मैं टैक्स की राशी दस गुना से ज्यादा बढ़ गयी थी . वित्त मंत्रि यह बात अच्छी तरह जानते हैं .इस सरकार मैं इच्छा शक्ति की कमी है .
परन्तु सरकार की इस भूल का खमियाजा वर्तमान वेतन भोगी ही क्यों भुगतें ?
उनका दूसरा तर्क इस स्टैण्डर्ड डिडक्शन की छूट के कीमत सात हज़ार करोड़ रूपये का था. तो यह कीमत तो कुछ भी नहीं है. सरकार के आँकडों के अनुसार देश के सकल उत्पाद की कीमत और सरकार का बजट बहुत बढ़ गया है जो ग्राफ से स्पष्ट है . सरकार की अप्रत्यक्ष टैक्सो से आय भी बहुत बढ़ी है जो सब बराबर देते हैं . व्यक्तिगत आय कर से आय भी बहुत बड़ी है .
व्यापारियों की आय मैं पिछले चार वर्षों मैं बेहद वृद्धि हुयी है . आते दाल सब्जियों के दाम तो बहुत बढे हैं परन्तु किसानों को नहीं व्यापारियों को फायदा हुआ है . स्टॉक एक्सचेंज के लाखों करोड़ों रूपये के फायदे से अमीर वर्ग को ही फायदा हुआ है . बड़े डोक्टरों व् वकीलों ने अपनी फीस बहुत बढ़ा दी है .वित्त मंत्री ये सब जान कर भी अनजान बनते हैं .
सरकार की आय मैं भी बेतहाशा वृद्धी हुयी है. बजट कई गुना बढ़ गया है . इस लेख के ग्राफों से यह स्पष्ट दीख जाता है .
इन अब के विपरीत सातवें वेतन आयोग ने पिछले सब वेतन आयोगों से कम वेतन वृद्धि दी थी . अधिकाँश वेतन वृद्धि टैक्स के दायरे मैं थी जिस पर पांच से तीस प्रतिशत टैक्स लगा .महगाई भत्ते पर टैक्स लगा कर सरकार वार्षिक वेतन वृद्धि मंहगाई से कम कर देती है और वेतन भोगी वर्ग की क्रय शक्ति कम होती जाती है .
सरकार का गरीब प्रेम उचित है परन्तु विकास को जिन लोगों ने सबसे अधिक अधिक संभव बनाया उन को लगातार भुला देना भी गलत है . आज देश को बचाने वाले सॉफ्टवेर मैं लगे नौ जवान इसी वर्ग के हैं . सरकारी डॉक्टर , नर्स , अध्यापक , डाकिये , इंजिनियर सभी इसी वर्ग के हैं .इनके पास आय के कोई और साधन नहीं हैं . सरकारी करमचारियों को व्यापार की इज़ाज़त भी नहीं है . यह वेतन भोगी वर्ग कोई शेष नाग या एटलस नहीं है जो सम्पूर्ण पृथ्वी का भार उठाये . गरीबों के किये तो सरकार ने बहुत कुछ किया परन्तु पिछले चार वर्षों केवल इस वर्ग की खुशियाँ छिनी हैं . उसका जीवन स्तर खाद्यानों , सब्जी फलों व् दूध इत्यादि की महगाई ने घटाया है . यह वर्ग रिक्शा चालकों या व्यापारियों की तरह दाम नहीं बढ़ा सकता . यह तो सिर्फ अपने खर्च कम कर सकता है . तो अब उसने सिनेमा , रेस्तौरेंट ,पिकनिक जाना कम कर दिया .
प्रश्न है की जब सब देश उन्नति कर रहा है तो सरकार केवल इसी वर्ग को क्यों उन्नति से वंचित रखे हुए है .
इसको झुटलाना कठिन है की सरकार सिर्फ धधे वालों की फ़िक्र कर रही है .उसका प्यार चन्दा देने वाले व्यापारियों व् वोट देने वालों गरीबों तक सीमित है .अन्यथा सरकारी कोष मैं अपने पसीने से अधिक से अधिक टैक्स देने वाले वेतन भोगी वर्ग की भी परवाह होती .
वित्त मंत्री को तुरंत स्टैण्डर्ड डिडक्शन की सीमा बढ़ा कर एक लाख रूपये करनी चाहिए जो की पिछले चार वर्षों मैं की अनदेखी का बहुत कम खमियाजा होगी .
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