पश्चिम व् वामपंथी प्रेरित सफल भारत विरोधी दुष्प्रचार राष्ट्रवादियों की हार है : Amartya Sen: India Has Taken A Quantum Jump In The Wrong Direction After 2014
राजीव उपाध्याय
साठ साल के लम्बे कांग्रेसी शासन ने ,जिसका अध्यात्मिक आधार वामपंथी व् समाजवादी विचारधारा थी ,देश की मानसिकता पर इतनी हावी हो चुकी है की अभी भी राष्ट्रवादी डरे से रहते हैं और खुल कर अपनी बात देश व् अंतर्राष्ट्रीय पटल पर नहीं रख पा रहे हैं . राष्ट्र की मुख्य कांग्रेसी विचार धारा तब की है जब नेहरु जी समेत सभी एशिया व् अफ्रीका के गुलाम देश पश्चिम को उपनिवेश वादी नीतियों के कारण गलत मानते थे . चार्ल्स डिकेंस के उपन्यासों मैं जिस पूंजीवादी शोषण का चित्रण था वह भयावह था और रूस के स्पुतनिक व् युरी गगारिन को अंतरिक्ष मैं भेजने से समाजवाद या साम्यवाद विश्व के कई प्रमुख नेताओं को ज्यादा अच्छा लगता था . इसलिए लम्बी विदेशी गुलामी व् धर्म को अफीम मानने वाले चिंतन ने हिन्दू धर्म व् मान्यताओं को को देश के चिंतन पटल से हटा कर विदेशी मान्यताएं हम पर थोप दीं. धीरे धीरे शिक्षा तंत्र के दुपुप्योग से यें हिन्दू विरोधी विकृत मानसिकता राष्ट्र के प्रबुद्ध वर्ग का मूल चिंतन बन गयीं .
जब तक भारत गरीब था पश्चिम को इसकी चिंता नहीं थी .परन्तु अब एशिया के अनेक देशों के तीव्र विकास से जिसमें जापान , चीन ,कोरिया , तैवान व् सिंगापूर प्रमुख हैं विश्व को हिला दिया है . पहले जापान ने और अब चीन की प्रबल आर्थिक व् सामरिक ताकत ने पश्चिम जगत को हिला दिया है . इसलिए उनके लिए अब आर्थिक व् सामरिक रूप से उभरते हुए भारत के बढ़ते राष्ट्रवाद को रोकना उनके लिए आवश्यक हो गया है .
हाल ही मैं भारत को मह्लिलाओं को सबसे खतरनाक देश के रूप मैं चिह्नित करना , विश्व हिन्दू परिषद् व् बजरंग दल को आतंकवादी कहना , धर्म परिवर्तन की रोक को मानवाधिकारों से जोड़ना इसी तरह की मुहीम का अंग हैं .दूसरी तरफ वर्षों से देश के मानस पटल पर हावी साम्यवादी/समाजवादी ताकतें अपने खोये वर्चस्व से दुःखी हैं और छटपटा रही हैं और देश मैं भ्रम फैला कर सत्ता पुनः हासिल करना चाहती हैं . छद्म धर्म निरपेक्षता के आवरण के हटने से जाकिर नायक जैसे लोग दुःखी है व् भारत विरोधी प्रचार कर रहे हैं . कश्मीर को अब राजनितिक के बजाय धार्मिक उन्माद मैं बदला जा रहा हैं.
यद्यपि इस सरकार ने शिक्षा या किसी अन्य क्षेत्र मैं कोई नए विशेष राष्ट्रवादी कदम नहीं उठाये हैं और देश मैं यथास्थिति को ही रखा है फिर भी जो पतन को रोका है उस पर भी प्रहार र्हो रहे हैं .
डॉक्टर सुब्रमनयम स्वामी को छोड़ कर कोई भी राष्ट्रवादी चिन्तक देश के पटल पर नहीं उभरा है . जो कुछ चिन्तक थे जैसे अरुण शौरी या मुरली मनोहर जोशी वह भी रुष्ट हैं . भारत के राष्ट्रवादी चिंतन को देश के व् विदेश के मीडिया पर प्रभावी रूप से कोई नहीं रख पाया है . वास्तव मैं शशि थरूर या अम्रातय सेन या जाकिर नायक जैसे अन्तर्रष्ट्रीय ख्याति ( कुख्याती ?) प्राप्त लोगों की राष्ट्रवादियों मैं बहुत कमी है . अमरीका मैं राजीव मल्होत्रा अत्यधिक प्रशंसनीय व् अनुकरणीय कार्य कर रहे हैं . इस सरकार मैं बुद्धि जीवियों की कमी बहुत खटकती है .जिससे सरकार का पक्ष सामने कोई नहीं रख पा रहा है .
अम्रातय सेन का नीचे उद्धृत लेख बहुत भ्रामक है . परन्तु उनके नाम के चलते इसको बहुत लोग पढेंगे .इसमें कोई नया तथ्य नहीं दिया गया है . नरसिम्हा राव के समय से आज तक हमारी आर्थिक नीतियों मैं कोई बदलाव नहीं आया है . वित्त मंत्रि के रूप मैं मनमोहन सिंह ने मजबूरी से जो रास्ता बनाया था भारत की हर सरकार उसी रास्ते पर चल रही है .इससे देश का बहुत भला हुआ है और गरीबी मैं बहुत कमी आयी है . परन्तु अमीरी भी बहुत बड़ी है .समाजवाद मैं गरीबी बड़ी थी पर अमीर भी नहीं बढे थे .समाजवादी अमीरों के दुःख से खुश थे चाहे वह गरीबों या देश के लिए कुछ नहीं कर पाए. तो अंततः यदि भारत मैं सौ मुकेश अम्बानी हो भी जाएँ परन्तु भारत के नागरिकों को बेहतर जीवन मिल जाए तो यह ज्यादा अच्छा है . सरकार अभी ज्यादा धन बांटने मैं सक्षम नहीं है . एक पीढी को तो त्याग करना पडेगा . इस बात को समझाने की आवश्यकता है . परन्तु गरीबों को भी विकास मैं समुचित महत्त्व देना भी आवश्यक है.
इसी प्रकार हमारे देश को गुलामी की मानसिकता से निकालना ही नहीं बल्कि भारत के हिन्दू राष्ट्रवादी चिंतन का अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर पुरजोर वकालत करना भी आवश्यक है . एक विदेशी इसाई संस्था ने भारत के धर्म परिवर्तन पर रोक पर नाखुशी जाहिर की . सोनिया गाँधी ने इसाई मिशनरियों को जो बढ़ावा दिया था उसका राष्ट्र ने बहुत हर्जाना भुगता है . अमरीका इसाई व् मध्य एशिया के राष्ट्र इस्लाम धर्म को हथियार के रूप मैं पतन के लिए हमारे प्रयोग करेंगे .
सरकार बुद्धिजीवियों के प्रति उदासीन है . वह उनका सीमित वोटों से मूल्यांकन करती है . अमरीका अपने बुद्धिजीवियों कप प्रमुखता व् सम्मान देता है .भारत तकनीक मैं पीछे रह सकता है परन्तु अन्य क्षेत्रों मैं पिछड़े पन को क्यों नहीं हटाता . शिक्षा मंत्रालय इसकी मुहीम की जान बन सकता था परन्तु वह भी राजनीती की भेंट चढ़ गया है . पिछले शिक्षा मंत्रि की मानसिक उपलब्धियां जग जाहिर हैं . उसके पिछलों ने संस्कृत को हटा कर जर्मन भाषा को पाठ्य कर्म मैं घुसा दिया था . देश को मानसिक गुलामी से कौन निकालेगा ? राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ व् अन्य हिन्दू वादी संगठन शुभ चिन्तक अवश्य हैं पर इस बड़े कार्य के लिए अभी सक्षम नहीं हैं.
सरकार को अपनी इस भूल को तुरंत सुधारना चाहिये अन्यथा अंतर् राष्ट्रीय मंचों का भारत विरोधी गतिविधियों उपयोग जारी रहेगा .
Amartya Sen: India Has Taken A Quantum Jump In The Wrong Direction After 2014
Outlook Web Bureau July 08, 2018 00:00 IST Amartya Sen: India Has Taken A Quantum Jump In The Wrong Direction After 2014
2018-07-08T23:17:35+0530
Nobel laureate and economist Amartya Sen said that despite being the fastest-growing economy the country has taken a “quantum jump in the wrong direction” since 2014. He also said that due to moving backwards, the country is now second worst in the region.
The renowned economist and author was speaking in Delhi at the launch of ‘Bharat Aur Uske Virodhabhas’, the Hindi edition of his book ‘An Uncertain Glory: India and its Contradiction’ that he co-authored with development economist Jean Dreze.
“Things have gone pretty badly wrong… It has taken a quantum jump in the wrong direction since 2014. We are getting backwards in the fastest-growing economy”he said.
Twenty years ago, he added, of the six countries in this region — India, Pakistan, Bangladesh, Sri Lanka, Nepal and Bhutan, India was the second best after Sri Lanka. “Now, it is the second worst. Pakistan has managed to shield us from being the worst”, said Sen.
Sen further said that the government has also deflected from issues of inequalities, the caste system and the schedules tribes have been kept out.
There were a whole group of people, those who clean lavatories or sewage with their hands, he said, whose demands and needs have been neglected.
While highlighting the recent report of a Dalit youth who was whipped for asking a salary hike from the manager of a petrol pump in Madhya Pradesh, he said they (Dalits) are going around without any kind of certainty about their next meal, healthcare or education.
Taking a dig at the BJP-led government, he added that during freedom struggle it was difficult to see that a political battle could be won by playing up the Hindu identity, but that has changed now.
“But, that has happened. Which is why, at this time, the whole issue of Opposition unity is so important,” the 84-year-old economist said.
“It is not a battle of one entity against the other (or) Mr Modi against Mr Rahul Gandhi, it is an issue of what India is,” Sen added
Also speaking at the event, development economist and activist Jean Dreze termed the soon-to-be launched Ayushmann Bharat health scheme a “hoax” as it was actually not big as it was being claimed to be.
“The budget (for the scheme) for this year is 2,000 crore. Even if it is spent, it’s less than 20 rupees per person,” he said.
It is projected as health insurance for 50 crore people, but it is virtually nothing, said Dreze, who helped draft the first version of the Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee Scheme (MGNREGA).
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