अजातशत्रु वाजपेयी का निधन : सैद्धांतिक राजनीती का विश्व व्यापी पराभव और प्रखर हुआ
श्री अटल बिहारी वाजपेयी भारत की राजनीती के अजात शत्रु सरीखे व्यक्तित्व के धनी थे . राजनीती मैं सत्ता मैं होते हुए भी वह हर पार्टी के नेता के नेता थे . बी जे पी से विरोध अनेक पार्टियों का था परन्तु अटल जी का कोई विरोधी नहीं था . यहाँ तक की जयललिता के एक वोट से सरकार गिराने के बाद भी व्यक्तिगत वैमनस्य नहीं हुआ . इसी लिए अनेक दल बीजेपी से मिल सके .बी जे पी की अभूत पूर्व जीत के जनक अडवानी जी और उनकी की रथ यात्रा के असीम योगदान के बाद भी अडवाणी जी और वाजपयी सदा की तरह मित्र रहे .सनकी ममता व् मायावती , मह्त्वाकांशी नितीश , शांत पटनायक सब ही उनके मित्र थे . उनकी इस सर्व व्यापी मित्रता का कारण उनका विनम्र स्वभाव व् राजनीती मैं सिद्धांतो को प्रमुखता देना था . जब गृह मंत्रि अडवाणी जी व् मुख्य मंत्रि शीला दीक्षित ने अलग अलग व्यक्तियों को दिल्ली का प्रधान सचिव बनाने की राय दी तो वाजपेयी जी ने मुख्य मंत्रि की राय को प्रमुखता दी क्योंकि वह जनता की चुनी हुयी सरकार का प्रतिनिधित्व कर रही थीं . यही तरीका उन्होंने एन डी ए के घटक दलों के साथ निभाया . परन्तु उनके काल मैं कोई घटक दल प्रधान मंत्रि की राय के ऊपर नहीं जाता था .नेहरु जी के बाद वह देश के सबसे सर्वमान्य ,लोकप्रिय व् सक्षम प्रधान मंत्रि थे .
विपक्ष के नेता के रूप मैं भी उन्होंने कभी कोई छिछोरी बात नहीं की व् सदा सदन की गरिमा व् पद की मर्यादा को ध्यान मैं रखा . हिंदी के कवि होने से उनके भाषणों मैं जो जोश व् प्रेरणा होती थी वह अद्वितीय थी . प्रधानमंत्री के रूप मैं उन्होंने बड़े पैमाने पर सड़क बनाने , मोबाइल फ़ोन के प्रसार मैं , परमाणु बम विस्फोट , अमरीका से प्रगाढ़ संबंधों की शुरुआत की .उनका कार्यकाल सच मैं देश का एक स्वर्णिम काल था . परन्तु शायद गरीब तक कुछ फायदा पहुँचने मैं देर हो गयी जिसके कारण वह अगला चुनाव हार गए .
परन्तु राजनीती मैं सत्ता पाना सदा सदाचार से संभव नहीं होता .चाणक्य ने भी साम दाम दंड भेद की नीति अपनाई थी . सदा सदाचार को साथ लेकर चलने से वाजपेयी जी राजनितिक उपलब्धियां कम थीं .
उनके बीजेपी के अध्यक्ष काल मैं बी जे पी १४ से २ सीट वाली पार्टी बन गयी . उनके गांधीवादी समाजवाद को न जनसंघियों ने पसंद किया न जनता ने .वह नेहरु जी के व्यक्तित्व से अनजाने मैं बहुत प्रभावित थे . उनके प्रबल हिंदुत्व समर्थक होने के बावजूद उनमें कट्टरता नहीं थी .दूसरों का विचार समझने व् आदर करने की उनमें नैसर्गिक प्रतिभा थी .इसलिए हिन्दू मुसलिम सिख ईसाई सब उनका आदर करते थे .विदेशों से भी चीन के साथ उनका समझौता आज भी बरकरार है . पाकिस्तान से समझौता बस होते होते रह गया .
परन्तु अब ट्रम्प कालीन विश्व मैं केनेडी कालीन अमरीकी आदर्शवाद नहीं बचा है . न ही संयुक्त राष्ट्र पुरानी जैसी आदर्शवादी संस्था बची है . सऊदी जैसे सरे मैं विश्व वहाबी इस्लामिक कट्टरवाद को प्रबल समर्थन दे रहे हैं . पाकिस्तान मुंबई काण्ड कर के भी शर्मिन्दा नहीं है और जो प्रधानमंत्री शर्मिन्दा था उसे जेल डाल दिया .इसलिए आज के काल मैं कोरी आदर्शवादिता की राजनीती राष्ट्रहित मैं नहीं है . इसलिए बीजेपी का नया नेत्रित्व वाजपेयी जी का आदर करते हुए भी भिन्न है और उसमें यथार्थ का अधिक व् आदर्श का पुट कम है .
परन्तु वाजपेयी जी एक मील स्तम्भ की तरह थे जो राजनीती मैं भटकों को राह दिखा सकते थे . उनका राज धर्म का व्यक्तव्य दिशा मार्ग दर्शक था . उनके जाने से इस दिशा स्तम्भ का अभाव हो गया है जो देश को बहुत समय तक खटकेगा .
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