कर्मवीर
– अयोध्या सिंह उपाध्याय’ हरीऔध ‘
देख कर बाधा विविध बहुविघ्न घबराते नहीं ।
रह भरोसे भाग्य के दुख भोग पछताते नहीं ।।
काम कितना भी कठिन हो किन्तु उकताते नहीं ।
भीड़ में चंचल बने जो वीर दिखलाते नहीं ।।
हो गए एक आन में उनके बुरे दिन भी भले ।
सब जगह हर काल में वे ही मिले फूले -फले।।
पर्वतों को काट कर सड़कें बना देते हैं वे ।
सैकड़ों मरुभूमि में नदियां बहा देते हैं वे ।।
गर्भ में जलराशि के बेड़ा चला देते हैं वे ।
जंगलों में भी महा मंगल रचा देते हैं वे ।।
भेद नभ- तल का उन्होने है बहुत बतला दिया ।
है उन्होने ही निकाली तार की सारी क्रिया ।।
चिलचिलाती धूप को जो चाँदनी देते बना ।
काम पड़ने पर करें जो singh का भी सामना ।।
जो की हंस हंस के चबा लेते हैं लोहे का चना ।
है कठिन कुछ भी नहीं जिनके है जी में यह ठना ।।
कोस कितने ही चलें पर वह कभी थकते नहीं ।
कौन सी है गांठ जिसको खोल वे सकते नहीं ।।
व्योम को छूते हुए दुर्गम पहाड़ों के शिखर ।
वे घने जंगल जहां रहता है तम आठों प्रहार ।।
गरजती जलराशि की उठती हुई ऊँची लहर ।
आग की भयदायिनी फैली दिशाओं में लवर ।।
यह काँपा सकती कभी जिनके कलेजे को नहीं ।
भूल कर भी वह कभी नाकाम रहते हैं कहीं ?
काम को आरंभ करके यों नहीं जो छोड़ते ।
सामना करके नहीं जो भूल कर मुख मोड़ते ।।
जो गगन के फूल बातों से वृथा नहीं तोड़ते ।
सम्पदा मन से करोड़ों की नहीं जो जोड़ते ।।
बन गया हीरा उन्ही के हाथ से है कार्बन ।
काँच को करके दिखा देते हैं वे उज्ज्वल रत्न ।।
आज करना है जिसे करते उसे वे आज ही।
सोचते कहते हैं जो कुछ कर दिखते हैं वही ।।
मानते जो भी हैं, सुनते हैं सदा सबकी कही ।
जो मदद करते हैं अपनी इस जगत में आप ही ।।
भूल कर वे दूसरों का मुंह कभी तकते नहीं।
कौन सी है गांठ जिसको खोल वे सकते नहीं ।।
जो कभी अपने समय को यौं बिताते हैं नहीं।
काम करने की जगह बातें बनाते हैं नहीं ।।
आज-कल करते हुए जो दिन गँवाते हैं नहीं ।
यत्न करने से कभी जो जी चुराते हैं नहीं ।।
बात है वह कौन जो होती नहीं उनके लिए।
वे नमूना आप बन जाते हैं औरों के लिए ।।
सब तरह से आज जितने देश हैं फूले फले ।
बुद्धि, विद्या, धन, वैभव के हैं जहां डेरे डले ।।
वे बनाने से उन्हीं के बन गए इतने भले ।
वे सभी हैं हाथ से ऐसे सपूतों के पले ।।
लोग जब ऐसे समय पाकर जनम लेंगे कभी।
देश की और जाति की होगी भलाई भी तभी ।।