Guru Teg Bahadur was the fifth and the youngest son of fifth Sikh guru guru Har Govind Singh . He was born in Amritsar near gurudwara Guru mahal . He was the ninth guru of Sikhs . He was tortured to death by Aurangzeb when he refused to accept Islam . He was protecting the Kashmiri Pandits . Gurudwara shishganj in Chandini chowk was the spot where he was killed . Bhai Matidas was killed by sawing him alive .
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24 november 2013 शहीदी दिवस विशेष
धरम हेत साका कीआ …सीस दीआ पर सिरड न दीआ…जी हां बलिदान त्याग की मूर्त …नौवे गुरू साहिब श्री गुरू तेग बहादुर जी…जिन्होंने देश और धर्म की खातिर अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया…मगर ऊफ तक नहीं की …यही तो होती है सच्चे गुरू और शहनशाह की पहचान।जी हां सिखों के नौवें गुरु तेग बहादुर जी शांति ,क्षमा और सहनशीलता की मूर्त थे…जिन्होने हमेशा प्रेम, प्यार, आपसी भाईचारे का पाठ पढ़ाया…उसी दया की मूर्त साहिब श्री गुरु तेग बहादुर जी का आज है शहीदी दिवस …जिसे देश भर में बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जा रहा है। गुरु तेग बहादुर जी का जन्म की तारीख के संबंध में विद्वानों के कई मतभेद हैं…कुछ विद्वानो का मानना है कि साहिब श्री गुरू तेग बहादुर जी का जन्म 5 बैसाख सम्वत् 1678 ई. में हुआ…तो कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इनका जन्म 18 अप्रैल 1621 में हुआ…इनकी माता का नाम नानकी था…इनका जन्म अमृतसर में हुआ … यहां आजकल गुरू का महल गुरूद्वारा स्थित है…आप सिखों के छठे गुरू हरगोबिन्द सिंह जी के पांचवे और सबसे छोटे पुत्र थे..आपने अपने शुरूआती जीवन के 9 साल अमृतसर में व्यतीत किए …इसी स्थान पर आजकल गुरू का महल गुरूद्वारा स्थित है.. इसके बाद आप करतारपुर के जिला जालंधर आ गए…गुरू जो होता है परमात्मा का रूप …क्या होना है और क्या आगे होगा वो जानी जान होते हैं इसलिए तो सिखों के आठवे गुरू हरिकृष्ण साहिब जी ने अपने आखिरी समय में कह दिया था…बाबा वस्से ग्राम बकाले…अर्थात् गुरू तेग बहादुर जी इस धरती को भाग्य लगाएंगे। आठवें गुरू हरिकृष्ण की अकाल मृत्यु हो जाने के कारण…उस अकालपरख के हुक्म के अनुसार गुरू तेग बहादुर जी को नौंवे गुरू बनाया गया ।
त्याग ,दया की मूर्त गुरू तेग बहादुर जी का बचपन का नाम त्यागमल्ल था …जिसका अर्थ है त्याग की मूर्त …कहा जाता है कि माता पिता की परवरिश का प्रभाव उनके बच्चों पर काफी पड़ता है…मात्र 14 साल की उम्र में आपने अपने पिता के साथ मुगलों के खिलाफ युद्ध लड़कर …वीरता का परिचय दिया…उनकी वीरता , दलेरी, बहादुरी से प्रभावित होकर इनके पिता ने उनका नाम त्यागमल से बदलकर तेग बहादुर रखा…तेग बहादुर जो कि नाम से ही स्पष्ट है ….तलवार चलाने मे माहिर।गुरू तेग बहादुर जी को छोटी उम्र में ही तलवार और घुड़सवारी में मुहारत हासिल थी…इन दोनों कलाओं में बाबा बुढ्ढा और भाई गुरदास ने सिखलाई दी …
युद्ध स्थल पर हुए रक्तपात का गुरू तेग बहादुर जी के मन पर ऐसा गहरा प्रभाव पड़ा कि उनका मन अध्यात्मिक की ओर झुक गया…अमृतसर के बाबा बकाला में रहकर तकरीबन 20 साल तक प्रभु की भक्ति में लीन रहे…इस दौरान गुरु तेग बहादुर जी ने बहुत सी रचनाएं लिखी जो गुरु ग्रंथ साहब के महला 9 में संग्रहित हैं…इन्होंने शुद्ध पंजाबी में सरल और भावयुक्त पदों और साखियों की रचना भी की।सिख धर्म के प्रचार और प्रसार के लिए इन्होंने कई स्थानों की यात्राएं की ।आनंदपुर साहिब से आप कीरतपुर, रोपड़, सैफाबाद होते हुए खिआला पहुंचे…यही नहीं आप दमदमा साहिब से होते हुए कुरूक्षेत्र पहुंचे…कुरूक्षेत्र से आप यमुना किनारे होते हुए घड़ाम और कपूरी पहुंचे ।इसके अलावा गुरु तेग बहादुर जी ने प्रयाग, बनारस, पटना , असम क्षेत्रों की यात्राएं की।
इन यात्राओं का उद्देशय रूढ़ियों , अंधविश्वासों में फंसे लोगों को कुरीतियों को बाहर निकालना और लोगों को गुरू भक्ति के साथ जोड़ना था…फरवरी 1633 में गुरू तेग बहादुर जी की शादी गुजरी जी के साथ हुई जो कि लाल चन्द और बिशन कौर की बेटी थी…जब वो धर्म प्रचार के लिए यात्राएं कर रहे थे तभी 1666 में पटना साहिब में साहिबजादें ने जन्म लिया ये साहिबजादे थे गुरू गोबिन्द सिंह जी…
.गुरू तेग बहादुर जी का बचपन बड़ा ही सादा था …आप हमेशा सहज और प्रभु भक्ति में लीन रहते थे…सहनशीलता , मधुरता सौम्यता उनमें कूट कूट के भरी हुई थी …उनके जीवन का उद्देश्य था कि धर्म कोई जाति विशेष का नहीं है..उनके लिए धर्म का अर्थ था सच के मार्ग पर चलना…क्योंकि सच्चाई की हमेशा जीत होती है…जब गुरु तेग बहादुर जी ने गुरुगद्दी संभाली तब औरंगजेब के अत्याचारों से हर कोई परेशान था ।काजी और मुल्लाओं का बोलबाला था…हिन्दुओं पर अत्याचार किए जा रहे थे इस्लाम धर्म कबूल करने के लिए हिन्दुओं को जबरदस्ती मुस्लमान बनाया जा रहा था… औरगंजेब इस बात से भली – भांति वाकिफ था कि सबसे ज्यादा हिन्दु पंडित कश्मीर में हैं इसलिए औरंगजेब ने निशाना बनाया कश्मीर को….उसने शहशानआलम को कश्मीर में भेजा और उसने जाकर कश्मीर में ढिढोरा पिटवा दिया कि जो गैर मुस्लमान यानि कि हिन्दुओं को जजिया कर देना पड़ेगा…औरंगजेब का असल मक्सद हिन्दुओं को मुस्लमान बनाना था…अपनी इसी समस्या को लेकर कश्मीरी पंडित गुरू तेग बहादुर जी के पास फरियाद लेकर आए कि सच्चे पातशाह औरंगजेब हम पर जुल्म कर रहा है जो हमारी बर्दाशत से बाहर हैं…वो हमें जबरदस्ती मुस्लमान बनने के लिए मजबूर कर रहा है ….कश्मीरी पंडितों की बात सुनकर गुरू साहिब चिंता में डूब गए और उनको चिंता में डूबे देखकर उनके साहिबजादे गुरू गोबिन्द उनके पास आए और उनकी उदासी का कारण पूछा इस पर गुरू तेग बहादुर जी ने उन्हें कश्मीरी पंडितों की समस्या बताई और फिर बाल गोबिन्द ने पूछा कि इस समस्या का समाधान क्या है तो गुरू साहिब ने कहा कि इसके लिए बलिदान देना होगा…बालक गोबिन्द ने कहा कि आपसे महान कोई हो नहीं सकता आप बलिदान देकर हिन्दु धर्म की रक्षा करें…वहां बैठे लोगों ने कहा कि इससे आप यतीम हो जाओगे और आपकी मां विधवा हो जाएगी…इस पर बालक गोबिन्द ने कहा कि अगर मेरे यतीम होने से लाखों बच्चे यतीम होने से बच जाते हैं और लाखों माएं विधवा होने से बच जाती हैं तो मुझे ये बलिदान मंजूर है।
बालक गोबिन्द की बातों से प्रेरित होकर साहिब गुरू तेग बहादुर ने कश्मीरी पंडितों को कहा कि जाओ औरंगजेब को जाकर कहो कि पहले हमारे गुरू तेग बहादुर जी को इस्लाम कबूल करने को कहो अगर वो इस्लाम कबूल कर लेंगे …तो हम अपने आप कर लेंगे।
सहनशीलता , कोमलता और सौम्यता की मिसाल के साथ साथ गुरू तेग बहादुर जी ने हमेशा यही संदेश दिया कि किसी भी इंसान को न तो डराना चाहिए और न ही डरना चाहिए । इसी की मिसाल दी गुरू तेग बहादुर जी ने बलिदान देकर …जिसके कारण उन्हें हिन्द की चादर या भारत की ढाल भी कहा जाता है उन्होंने दूसरों को बचाने के लिए अपनी कुर्बानी दी। गुरू तेग बहादुर जी को अगर अपनी महान शहादत देने वाले एक क्रांतिकारी युग पुरूष कह लिया जाए तो कहना जऱा भी गलत न होगा….औरंगजेब ने शेर अफगान को कश्मीर का हाकिम बना दिया …उसने हिन्दुओं पर इतने जुल्म किए …हाकिम के अत्याचारों से तंग आकर इसकी गुजारिश उन्होंने गुरू साहिब से की और गुरू साहिब जो सब कुछ जानते थे …इसलिए अपने साहिबजादे गुरू गोबिन्द सिंह को गुरूता गद्दी सौंप कर आनंदपुर , रोपड़, सैफाबाद, समाना , संडोरा , पलवल से होते हुए आगरा पहुंचे …वो खुद औरंगजेब के दरबार में पहुंचे…उन्हें कई तरह के लालच दिए गए…उनके शिष्यों को उनकी आंखों के सामने मार दिया गया…जो हिन्दू मुस्लिम धर्म कबूल नहीं करते थे …उन पर कई तरह के जुल्म किए जाते थे…जुल्म की इंतहा तो ये हो गई कि इस्लाम कबूल न करने वाले लोगों से कई जबर जिनाह किए जाते थे… हिन्दुओं को जबरदस्ती इस्लाम कबूल करने के लिए दबाव बनाया जाता था…गुरू की रज़ा में राजी रहने वालों ने इस्लाम कबूल नहीं किया और यहां तक उन्होंने अपना बलिदान दे दिया…भाई मतिदास जो कि गुरू की रहनुमाई में रहे और उस सच्चे पातशाह के भाणे ( रज़ा) में रहे यही नहीं मुगलों ने उन्हें इस्लाम न कबूल करने पर आरों से काटा डाला…यही नहीं सति दास जो कि उस सर्वव्यापक परमेश्वर के भाणे में रहे और मुगलों के जुल्मों को हंसते हंसते सहन किया और मगर अपने दीन और ईमान से नहीं डोले…उनको रूई से लपेट कर आग के हवाले कर दिया गया …भाई मतिदास और सतिदास दोनों भाई थे और दोनों ही ब्राहम्ण भाईचारे से सम्बंध रखते थे …यही नहीं भाई दिआला जी को ऊबलती देग पर बैठाया गया….मगर वो भी सिखी सिदक में रहे ….यही नहीं जब इन पर जुल्म हो रहें थे तो इन सबकी जुबान उस अकाल पुरख का नाम था…यहीं नहीं मुगलों ने ये सब कुछ गुरू तेग बहादुर जी की आंखों के सामने किया और गुरू तेग बहादुर जी एक पिंजरे में कैद करके रखा…त्याग , बलिदान की मूर्त सब कुछ अपनी आंखों से देख रहे थे…गुरू तेग बहादुर जी को डराने की कोशिश की गई…मगर वो नहीं माने…गरू साहिब ने औरगंजेब को कहा कि तुम सच्चे मुस्लमान नहीं हो क्योंकि इस्लाम धर्म में किसी को जबर्दस्ती मुस्लिम नहीं बनाया जाता…ये बात सुनकर औरगंजेब आग बबूला हो गया और उसने दिल्ली के चांदनी चौक में गुरू साहिब का शीश कलम का फरमान जारी कर दिया… गुरू तेग बहादुर जी को डराया धमकाया गया….
गुरु तेग बहादुर जी के सामने अब्दुल बहाव कोरा ने तीन शर्ते रखीं …ये शर्तें थीं कलमा पढ़ों , करामात दिखाओ या मौत कबूल करो ।गुरु तेग बहादुर साहिब जो कि सर्वव्यापक, सर्वज्ञानी थे…उन्होंने कहा कि धर्म त्यागने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता….करामात दिखाना तो कहर करना है…इसलिए उन्होंने शहीद होना बेहतर समझा।11 नवम्बर 1675 ई. चांदनी चौक में उनका शीश धड़ से अलग कर दिया गया…उनके शहीदी वाली जगह पर आज कल शीश गंज गुरूद्वारा है…इस तरह उन्होंने हिन्द की चादर बनकर धर्म की रक्षा की…गुरु तेग बहादुर जी की लासानी शहादत को याद करते हुए देशभर में उनके शहीदी दिवस को बड़ी ही श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है।
गुरबाणी में भी आता है धर्म हेत साका जिनि कीआ…सीस दीआ पर सिरड़ न दीआ …. गुरु तेग बहादर जी का बलिदान सर्व धर्म समभाव की ओर इशारा करता है। वहीं गुरु के रंग में रंगा प्यारा सेवक भी अपने सतगुरु के पदचिन्हों पर चलता हुआ…उसी के रंग में रंग जाता है और अपने गुरु के असूलों पर चलता हुआ वो किसी के तानों की परवाह नहीं करता ।… सच्चा गुरु सब कुछ जानता है …और कैसे अपने प्राणों से प्यारे शिष्य की रक्षा करनी है वो अकाल पुरख जानता है …जो सृष्टि के कण कण में समाया हुआ है…जब गुरू तेग बहादुर जी को दिल्ली के चांदनी चौक में शहीद कर दिया गया तो किसी की हिम्मत नहीं थी कि वो वहां से गुरू साहिब का शरीर ले जाए…मगर उसी वक्त अकालपुरख ने ऐसी आंधी चलाई कि चारों और धूल और आंधी दिखाई दी …और इसी अंधेरे में भाई जैता जी गुरू जी के शीश को लेकर आनंदपुर ले गए तो दसम पातशाह साहिब श्री गुरू गोबिन्द सिंह ने भाई जैता को गले से लगाकर कहा …
रंगरेटा गुरू का बेटा अर्थात् गुरू का पुत्र कहकर सम्बोधित किया।
कहा जाता है जब गुरू तेग बहादुर जी के शीश को भाई जैता जी लेकर आनंदपुर जा रहे थे तो वो रास्ते में जीरकपुर रूके थे इसी स्थान पर बना है गुरूद्वारा नाभा साहिब है ….
दूसरी ओर दिल्ली के शाही ठेकेदार और गुरु के सेवक लक्खी शाह वणजारा अपने साथियों की मदद से गुरू साहिब के शरीर को रूई में छिपाकर बैल गाड़ी में गांव रायसीना के रकाबगंज मोहल्ले में रात ढली अपने घर को आग जलाकर गुरु साहिब का संस्कार किया… यहां आजकल स्थित है रकाबगंज गुरूद्वारा…इसलिए तो कहा गया…
धन्य हैं गुरू साहिब धन्य हैं गुरू के सिख
पूरा गुरू चमत्कार या करमातें नहीं दिखाता…वो उस अकालपुरख की रजा में रहता है और अपने सेवकों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करता है…गुरू तेग बहादुर जी ने धर्म की खातिर अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया …ऐसा कोई संत परमेश्वर ही कर सकता है…जिसने अपने पर में निज को पा लिया हो…अर्थात् अपने हृदय में परमात्मा को पा लिया उसके भेद को तो कोई बिरला ही समझ सकता है…आज जरूरत गुरू घर से जुड़ने की इसलिए तो गुरबाणी में कही गई बातों को अमली जामा पहनाने ।