आखिर क्यों सोमनाथ मन्दिर बार-बार ध्वस्त हुआ और होता रहेगा
सोमनाथ मंदिर की गिनती 12 ज्योतिर्लिंगों में सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में होती है। गुजरात के सौराष्ट्र के प्रभास क्षेत्र के वेरावल में स्थित इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण स्वयं चन्द्रदेव ने किया था। इसका उल्लेख ऋग्वेद में भी मिलता है। इसे अब तक 17 बार नष्ट किया गया है और हर बार इसका पुनर्निमाण किया गया। प्राप्त जानकारी के अनुसार सर्वप्रथम एक मंदिर ईसा के पूर्व में अस्तित्त्व में था जिस जगह पर द्वितीय बार मंदिर का पुनर्निर्माण सातवीं सदी में वल्लभी के मैत्रक राजाओं ने किया। आठवीं सदी में सिन्ध के अरबी गवर्नर जुनायद ने इसे नष्ट करने के लिए अपनी सेना भेजी। प्रतिहार राजा नागभट्ट ने 815 ईस्वी में इसका तीसरी बार पुनर्निमाण किया। इस मन्दिर की महिमा और कीर्ति दूर-दूर तक फैली थी। अरब यात्री अल-बरुनी ने अपने यात्रा वृतान्त में इसका विवरण लिखा, जिससे प्रभावित हो महमूद गजनवी ने सन् 1024 में मन्दिर के अन्दर हाथ जोड़कर पूजा- अर्चना कर रहे लगभग सभी भक्तों को कत्ल कर दिया। मूर्ति भंजक होने के कारण तथा सोने-चांदी को लूटने के लिए उसने मन्दिर में तोड़फोड़ भी की थी। महमूद के मन्दिर लूटने के बाद राजा भीमदेव ने पुनः उसकी प्रतिष्ठा की। सन् 1093 में सिद्धराज जयसिंह ने भी मन्दिर की प्रतिष्ठा और उसके पवित्रीकरण में भरपूर सहयोग किया। 1168 ई. में विजयेश्वर कुमारपल और सौराष्ट्र के राजा खंगार ने भी सोमनाथ मन्दिर का सौन्दर्यीकरण करवाया था। सन् 1297 में जब दिल्ली सल्तनत के अलाऊद्दीन खि़लजी ने गुजरात पर कब्जा किया तो इसे पांचवी बार गिराया गया। उसके सेनापति नुसरत खां ने जी भरकर मन्दिर को लूटा। सन् 1395 ई. में गुजरात का सुल्तान मुजफ्फरशाह भी मन्दिर को विध्वंस करने में जुट गया। अपने पितामह के पद चिह्नों पर चलते हुए अहमदशाह ने पुनः सन् 1413 ई. में सोमनाथ मन्दिर को तोड़ डाला। प्राचीन स्थापत्यकला जो उस मन्दिर में दृष्टिगत होती थी, उन सबको उसने तहस-नहस कर डाला। मुगल बादशाह औरंगजेब ने इसे पुनः 1706 ई. में गिरा दिया। मन्दिर का बार-बार खण्डन और जीर्णोद्धार होता रहा शिवलिंग यथावत रहा, लेकिन सन् 1026 में महमूद गजनवी ने जो शिवलिंग खण्डित किया, वह सही आदि शिवलिंग था। इसके बाद प्रतिष्ठित किए गए शिवलिंग को 1300 ई. में अलाउद्दीन की सेना ने खण्डित किया। इसके बाद कई बार मन्दिर और शिवलिंग खण्डित किया गया और मूल मन्दिर के ध्वस्त होने के कारण जब सोमनाथ की पूजा बन्द कर दी गई तब ई.सन् 1783 में इन्दौर की रानी अहिल्याबाई द्वारा मूल मन्दिर से कुछ ही दूरी पर पूजा-अर्चना के लिए सोमनाथ महादेव का एक और मन्दिर बनवाया गया। भारतीय स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद ध्वस्त पड़े मन्दिर को राष्ट्र के प्रथम राष्ट्रपति डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद और गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने देश के स्वाभिमान को जाग्रत करते हुए पुनः सोमनाथ के मूल मन्दिर को जो बार-बार नष्ट किया गया था का अत्यन्त भव्य निर्माण करवाया। 1970 में जामनगर की राजमाता ने अपने स्वर्गीय पति की स्मृति में मंदिर के आगे पूर्व दिशा में उनके नाम से भव्य एवं सुन्दर दिग्विजय द्वार बनवाया। बाद में दिग्विजय द्वार के सामने थोड़ी दूरी पर सरदार वल्लभभाई पटेल की प्रतिमा भी स्थापित की गई। प्राचीन सोमनाथ मन्दिर के आसपास की भौगोलिक स्थिति के कारण ही जितनी बार भी मन्दिर का निर्माण हुआ है हर बार उसके कुछ सालों बाद ही मन्दिर ध्वस्त भी होता रहा। यह बनने और ध्वस्त होने का क्रम मन्दिर की भौगोलिक स्थिति के वास्तुदोष के कारण ही चलता रहा, जो इस प्रकार है – समुद्र तट पर बने पूर्वमुखी सोमनाथ मन्दिर की दक्षिण दिशा, नैऋत्य कोण और पश्चिम दिशा में समुद्र है और वायव्य कोण, उत्तर दिशा, ईशान कोण, पूर्व दिशा तथा आग्नेय कोण में जमीन है। समुद्र का यह किनारा एक ओर नैऋत्य कोण से पश्चिम दिशा के साथ मिलकर वाव्यय कोण की ओर बढ़ाव लिए है तो दूसरी ओर दक्षिण दिशा के साथ मिलकर दक्षिण आग्नेय में बढ़ाव लिए हुए है। इस प्रकार नैऋत्य कोण 90 डिग्री से ज्यादा का हो गया है। वास्तुशास्त्र के अनुसार अगर पश्चिम दिशा के साथ मिलकर वायव्य में बढ़ाव होता है तो प्लाट का स्वामी चित्त-चांचल्य, राजा का क्रोध, अपमान, अनेक चिन्ताओं, धन नष्ट, पुत्र नष्ट और गरीबी से पीडि़त होगा और दक्षिण दिशा के साथ मिलकर दक्षिण आग्नेय में बढ़ाव होता तो परिवारिक झगड़े, मानसिक व्यथा, अशान्ति और धन नष्ट होंगे। समुद्र के किनारे पर होने के कारण मन्दिर की जमीन में उत्तर दिशा से दक्षिण दिशा की ओर तथा पूर्व दिशा से पश्चिम दिशा की ओर ढलान है और ढलान के आगे समुद्र की गहराई है। इस प्रकार मन्दिर की उत्तर दिशा, ईशान कोण व पूर्व दिशा ऊंची है और आग्नेय कोण, दक्षिण दिशा, नैऋत्य कोण, पश्चिम दिशा तथा वायव्य कोण में नीचाई है। वास्तुशास्त्र के अनुसार ऐसे प्लाट पर बने भवन के स्वामी की संतान और सम्पत्ति नष्ट होगी, झगड़े-शत्रुता और जन-हानि होगी और वहां रहने वाले कई व्यथाओं का सामना करेगा। प्राचीन मन्दिर को पूर्व दिशा स्थित राजमार्ग का शुभ मार्ग प्रहार था। इस वास्तुनुकूलता के कारण यह मन्दिर भक्तों को आकर्षित करता रहा और पर्याप्त धन आगमन होता रहा इसलिए बार-बार ध्वस्त होने के बाद भी हर बार यह मन्दिर बनता रहा। स्वतन्त्रता के बाद बने नवनिर्मित सोमनाथ मन्दिर और उसके परिसर का निर्माण कुछ इस प्रकार हो गया है जिस कारण सोमनाथ में कुछ पुराने महत्त्वपूर्ण वास्तुदोषों के साथ कुछ अन्य नए महत्त्वपूर्ण वास्तुदोष और जुड़ गए हैं, जो इस प्रकार हैं – नव निर्माण के समय मन्दिर के चारों ओर कम्पाऊण्ड वाल बनाई गई है, जबकि प्राचीन समय में मन्दिर के चारों ओर कम्पाऊण्ड वाल नहीं थी। मन्दिर के आसपास कम्पाऊण्ड वाल के अन्दर चारों ओर की जमीन को मिट्टी डालकर समतल किया गया है, जिससे मन्दिर के बाहर जो ढलान पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर तथा पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर जो ढलान थी वह समाप्त हो गई। कम्पाऊण्ड वाल बनने से मन्दिर की ढलान का वास्तुदोष दूर हो गया और समुद्र की गहराई का कुप्रभाव काफी कम हो गया परन्तु कम्पाऊण्ड वाल की बनावट अनियमित आकार की हो गई है, क्योंकि इसका निर्माण दक्षिण एवं पश्चिम दिशा में समुद्र के किनारों के समानान्तर किया गया है, इस कारण कम्पाऊण्ड वाल में एक ओर नैऋत्य कोण से पश्चिम दिशा के साथ मिलकर पश्चिम वायव्य में बढ़ाव है तो दूसरी ओर दक्षिण दिशा के साथ मिलकर दक्षिण आग्नेय में भी बढ़ाव है। अनियमित कम्पाऊण्ड वाल के कारण उत्तर एवं पूर्व दिशा में भी महत्त्वपूर्ण वास्तुदोष आ गए हैं। कम्पाऊण्ड वाल का उत्तर ईशान दबा हुआ है जहां श्री कपर्दी विनायक मन्दिर है और कम्पाऊण्ड वाल के उत्तर वायव्य में जहां मन्दिर में रोजाना होने वाले साऊण्ड एण्ड लाईट कार्यक्रम का ऑफिस बना हुआ है, इससे कम्पाऊण्ड वाल का उत्तर वायव्य बढ़ने के साथ-साथ ढक भी गया है। वास्तुशास्त्र के अनुसार उत्तर दिशा के उपरोक्त वास्तुदोषों के कारण धन नष्ट होगा, शत्रुओं की संख्या बढ़ जाएगी। शत्रुओं से चिन्ता उत्पन्न होगी और सुख का अभाव रहेगा, अपमान, अशान्ति और दुःख से पीड़ा होगी। पूर्व दिशा में बना दिग्विजय द्वार भी दोषपूर्ण बना है। द्वार के कारण पूर्व में कम्पाऊण्ड वाल का पूर्व ईशान एवं पूर्व आग्नेय दबा हुआ है और मध्य पूर्व आगे बढ़ा हुआ है। द्वार के नीचे बेसमेंट में सुरक्षा विभाग का दफ्तर है। इस वास्तुदोष के कारण शत्रुओं की संख्या बढ़ती है एवं धन नष्ट होता है और अग्नि भय होता है। कम्पाऊण्ड वाल के अन्दर मुख्य मन्दिर से सटकर वायव्य कोण में पार्वती मन्दिर के अवशेष का एक बड़ा चबूतरा जो लगभग 25×25 का 8 फीट ऊंचा है। वायव्य कोण का यह अवशेष भी वास्तुदोष पैदा कर रहा है जो मृत्युभय और अग्निभय का कारण बनता है। मन्दिर परिसर की मुख्य चारदीवारी के बाद पूर्व दिशा में दिग्विजय प्रवेशद्वार के सामने बड़े खुले प्रांगण में एक ओर चार दीवारी बनाई गई है, जिसका प्रवेश द्वार पूर्व आग्नेय में है जहां से आगे जाकर सिक्युरिटी चैक करने के बाद दक्षिण दिशा में दो कमरे पास-पास बने हुए हैं, जिसमें से एक में प्रसाद वितरण का कमरा है और एक शू स्टैण्ड है। बाहरी चारदीवारी की इस बनावट के कारण मन्दिर परिसर के पूर्व आग्नेय से प्रवेश करके दिग्विजय द्वार तक जाने की सड़क तीरछी हो गई है। इससे प्राचीन मन्दिर का पूर्व दिशा स्थित राजमार्ग का शुभ मार्ग प्रहार अब अशुभ मार्ग प्रहार हो गया है जो शत्रुता और विवाद का कारण बनता है। उपरोक्त वास्तुदोषों के अलावा परिसर के अन्दर और भी कई छोटे-छोटे वास्तुदोष हैं। सोमनाथ मन्दिर के आसपास दो महत्त्वपूर्ण हिन्दू धार्मिक स्थान है। इस कारण इस क्षेत्र का और भी महत्व बढ़ गया। मन्दिर से पांच किलोमीटर दूर भालका तीर्थ है, लोक कथाओं के अनुसार यहीं श्री कृष्ण ने देहत्याग किया था और एक किलोमीटर दूर तीन नदियों हिरण, कपिला और सरस्वती का महासंगम होता है। इस त्रिवेणी में धार्मिक दृष्टि से स्नान का बहुत महत्त्व है, क्योकि इसी त्रिवेणी पर श्रीकृष्ण जी नश्वर देह का अग्नि संस्कार किया गया था। वर्तमान में सोमनाथ मन्दिर अत्यन्त भव्य, सुन्दर और वैभवशाली बना हुआ है। भारत के 12 ज्योर्तिलिंगों में से यह एकमात्र ज्योर्तिलिंग है, जिसका रखरखाव, साफ-सफाई इत्यादि बहुत ही अच्छे तरीके से की जा रही है। अब यह स्थान आस्था के केन्द्र के साथ-साथ पर्यटक स्थल भी बन गया है। भालका तीर्थ तथा त्रिवेणी संगम जैसे दोनों महत्त्वपूर्ण धार्मिक स्थान भी इसी क्षेत्र में है, किन्तु इतना सब होने के बाद भी सोमनाथ मन्दिर के वास्तुदोषों के कारण मन्दिर के दर्शनार्थियों की संख्या तुलनात्मक रुप से बहुत कम है। आतंकवादियों से मिली धमकियों के कारण शासन द्वारा मन्दिर की सुरक्षा का जबरदस्त चाक-चैबन्द प्रबन्ध किया गया है। दर्शनार्थियों की कई स्थानों पर सुरक्षा की जांच होती है। समुद्र से भी मन्दिर पर पूरी तरह निगरानी रखी जाती है। निगरानी के लिए जगह-जगह पर कैमरे भी लगे हुए हैं, किन्तु वर्तमान सोमनाथ मन्दिर के वास्तुदोषों को देखते हुए यह तय है कि यदि समय रहते इसके वास्तुदोष दूर नहीं किए गए तो शासन चाहे मन्दिर की सुरक्षा का कितना ही इंतजाम क्यों ना कर ले परन्तु पहले की तरह ही सोमनाथ मन्दिर कभी ना कभी फिर से ध्वस्त अवश्य होगा। शासन को चाहिए कि समय रहते इसके वास्तुदोषों को दूर करे, जो कि सम्भव भी है। ताकि मन्दिर का वैभव सदियों तक बना रहे और दर्शनार्थिंयों की संख्या में बढ़ौत्तरी हो और भक्तजन निर्विघ्न भगवान सोमनाथ का आर्शीवाद प्राप्त करते रहें। –
वास्तु गुरू कुलदीप सलूजा
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