अक्सर कहा जाता है की आधा ज्ञान अज्ञान से अधिक खतरनाक होता है . हिन्दू धर्म की व्याख्या अक्सर आधे ज्ञान से की जाती है और विधर्मी उसका मजाक उड़ने मैं सफल हो जाते हैं . एक ऐसा ही प्रसंग है की हमरे तैतीस करोड़ देवी देवता हें .इसको ले कर विधर्मी अक्सर चटखारे ले ले कर बताते हैं . वास्तविकता यह है की संस्कृत मैं कोटि शब्द का प्रयोग हुआ है . कोटि शब्द के संस्कृत मैं दो अर्थ हैं एक है करोड़ व् दूसरा है प्रकार . अदि काल मैं मनुष्य के हित मैं हर वास्तु को आदर देने के लिए उसमें देव अंश बताने का प्रचालन था . इसके अनुसार हिन्दू देवता तैतीस प्रकार के थे तैतीस करोड़ नहीं . इस विषय पर पूरे ज्ञान के लिए दो लेख नीच उद्धृत हैं जिसमें से एक हिंदी व् दूसरा इंग्लिश मैं है .
तैतीस करोड़ देवी-देवताओं का तार्किक सत्य
हिन्दु धर्म में तैतीस करोड़ देवी-देवताओं की आस्था सर्व विदित है। यह कितनी सत्य अथवा तार्किक है, धर्म ग्रथों में यहाँ एक बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह लगता है। शास्त्रों में और विशेष रुप से वैदिक साहित्य में तैंतीस कोटि देवी-देवताओं का वर्णन मिलता है। इसके धर्म गुरुओं और अनेक बौद्धिक वर्ग ने दो प्रकार से अर्थ निकाले हैं जो वस्तुतः आधारित हैं कोटि शब्द के द्विभाषी अर्थ पर। कोटि शब्द का एक अर्थ करोड़ है और दूसरा प्रकार अर्थात श्रेणी भी। तार्किक दृष्टि से देखा जाए तो कोटि का दूसरा अर्थ इस विषय में अधिक सत्य प्रतीत होता है अर्थात तैंतीस प्रकार की श्रेणी या प्रकार के देवी-देवता।
परन्तु शब्द व्याख्या, अर्थ और सबसे ऊपर अपनी-अपनी समझ और बुद्धि के अनुरुप मान्यताए अलग-अलग हो गयीं। शब्द का अर्थ और अर्थ का अनर्थ कैसे हो जाता है- आप स्वयं मनन कर लें।
कुंती शब्द से यदि बिंदु हट जाए तो वह कुती बन जाता है। रोको, मत जाने दो और रोको मत, जाने दो में एक अर्ध विराम के थोड़े से परिवर्तन के कारण अर्थ ही बदल गया है। बच्चे को बन्द रखा गया। यदि एक शब्द भी इधर से उधर हो जाए तो अनर्थ ही हो जाता है – बच्चे को बन्दर खा गया। आदि सैकड़ों उदाहरण दिए जा सकते हैं। कुछ ऐसी ही भ्रम उत्पन्न हुआ है कोटि शब्द के अर्थ को लेकर।
जीव से पहले प्रऔति का अस्तित्व था, यह-तर्क पूर्णतया वैज्ञानिक है। प्रऔति के कारण ही जीव अस्तित्व मे आया। जब जीव के मन में भय ने स्थान ग्रहण करना प्रारम्म किया तब वह प्रऔति से सुरक्षा के साधन तलाशने लगा। धीरे-धीरे बुद्धि के विकास के साथ-साथ यह समझ में आने लगा कि गंगा पावन है। गाय माँ तुल्म हैं, उसमें तैंतीस कोटि देवी-देवताओं का वास है। पीपल, बड़, आँवला, तुलसी, केला आदि वनस्पति जीवन को अमृत्व प्रदान करती हैं, इसलिए आस्था जगने लगी कि यह अथवा इनके जैसी अन्य वनस्पती देव तुल्य हैं अथवा इनमें देवताओं का वास है। यही वस्तुतः मूल कारण रहा कि इन सबको धर्म और आस्था से जोड़ दिया गया। दूसरे अथरें में यह भी कहा जा सकता है कि जीव के पालन और संरक्षण के कारण प्रकृति अर्थात देव रुप इस अनंत, अनल, अविनाशी, दुःखहर्ता, सुख कर्ता श्रेष्ठ आदि और आप जो कुछ भी कल्पना कर सकते हैं, को देवी-देवताओं से जोड़ दिया गया और अपने- अपने बुद्वि-विवेक से उसकी पूजा अर्चना की जाने लगी।
वैदिक व्याख्या के परिपेक्ष्य में देखा जाय तो तैंतीस करोड़ देवी देवताओं की बात मिथ्या लगती है। समस्त सृष्टि के पालक और संरक्षक के रुप में प्रत्येक पदार्थ, जीव, वनस्पती आदि को तैंतीस रुपों में प्रस्तुत किया गया जिसका वर्गीकरण निम्न प्रकार से स्पष्ट है –
8 वसु – जितने भी पदार्थ हैं वह सब वसु में है। सबके निवास स्थान होने के कारण यह वसु कहे गए। आठ वसु है अग्नि, पृथ्वी, वायु, अन्तरिक्ष, आदित्य, द्यौः, चन्द्रमा और नक्षत्र। वसु के अन्य आठ नाम भी हैं। यह हैं – धर, धुर्व, सोम अह, अनिल, अनल प्रत्युष और प्रभाष।
11 रुद्र – दस प्राण और एक आत्मा से मिलकर शरीर की रचना होती है। शरीर के दस प्राण हैं – प्राण, अपान, व्यान, उदान, नाग, कुर्भ, औकल, देवदत्त, धनज्ज्य, अनल और ग्यारहवाँ है जीवात्मा। जीवात्मा के शरीर छोड़ने के बाद पार्थिव शरीर को लेकर इष्ट-मित्र, सगे-सम्बन्धी आदि शोक करके रुदन करते हैं, चिल्लाते हैं। सम्भवतः इसीलिए इसका नाम रुद्र हुआ। रुद्र के अन्य नाम हैं – हर, बहुरुप, त्र्यम्बक, अपराजिता, वृषाकपि, शम्भु, कपर्दी, म्रग्व्यध और र्श्व।
12 आदित्य – प्रत्येक पदार्थ की आयु ग्रहण करने के कारण इनको आदित्य कहा गया। धाता, मित, अर्यमा, शक्र, वरुण, अंश, भग, विवस्वान, पूषा, सविता, त्वष्टा और विष्णु यह बारह आदित्य कहे गए हैं।
2 अश्विनी – एक इन्द्र और एक प्रजापति।
इस प्रकार 8 वसु, 11 रुद्र, 12 आदित्य और 2 अश्विनी मिलाकर कुल बनते है 33 और यही संख्या तार्किक लगती है। अपने दिव्य गुणों के कारण से ही यह तैसीस देव कहलाते हैं।
मानसश्री गोपाल राजू (वैज्ञानिक)
Devas and devis[edit]
The pantheon in Śrauta consists of many deities. Gods are called devas (or devatās) and goddesses are called devis. The most ancient Rigvedic deities included Indra, Agni, Soma, Varuna, Mitra, Savitr, Rudra, Prajapati, Vishnu, Aryaman, and the Ashvins. Important goddesses were Sarasvati, Ushas, and Prithvi. Later scriptures called the Puranas recount traditional stories about each individual deity, such as Ganesha and Hanuman, and avatars such as Rama and Krishna.
The Thirty-three gods of the Vedas are:
- Mitra, the patron god of oaths and of friendship,
- Varuṇa, the patron god of water and the oceans,
- Śakra, also called Indra, the king of gods, and the god of rains
- Dakṣa,
- Aṃśa,
- Aryaman,
- Bhaga, god of wealth
- Vivasvat, also called Ravi or Savitṛ,
- Tvāṣṭṛ, the smith among the gods,
- Pūṣan, patron god of travellers and herdsmen, god of roads,
- Dhātṛ, god of health and magic, also called Dhūti
- Yama, god of Dharma (moral ethics), of death and of justice.
Assistants of Indra and of Vishnu
- Agni the “Fire” god, also called Anala or “living”,
- Vāyu the “Wind”, the air god, also called Anila (“wind”)
- Dyauṣ the “Sky” god, also called Dyeus and Prabhāsa or the “shining dawn”
- Pṛthivī the “Earth” god, also called Dharā or “support”
- Sūrya the “Sun” god, also called Pratyūsha, (“break of dawn”, but often used to mean simply “light”), the Saura sectary worshipped Sūrya as their chief deity.
- Soma the “Moon” god, also called Chandra
- Aha (“pervading”) or Āpa (‘water’ or ether), also called Antarikṣa the “Atmosphere” or “Space” god,
- Dhruva (“motionless”) the Polestar, also called Nakṣatra the god of the “Stars”,
They are the 8 personifications of god Rudra and have various names.
The Ashvins (also called the Nāsatyas) were twin gods. Nasatya is also the name of one twin, while the other is called Dasra.
Number of deities[edit] विकिपेडिया
There is no fixed “number of deities” in Hinduism any more than a consistent definition of “deity”. There is, however, a popular perception stating that there are 330 million (or “33 crore“) deities in Hinduism.[11]
The number 33 is based on a verse in the Rigveda[citation needed]and Brihadaranyaka Upanishad – Chapter 3. which 11 gods each in heaven, on earth and in mid-air. Another verse[citation needed] of the Rigveda states that “3,339 gods have worshipped Agni”.[12] The extension to 330 million in popular tradition has been attributed to mistranslation.[4][13] Another source suggests the number is just “intended to suggest infinity”.[14] In the Brhadaranyaka Upanishad (1.9.1), Yajnavalkya asked how many gods there are, and he answers that there are 303,303. When the question is repeated, he says 33. When the question is repeated again, he says six, and when asked yet again, he answers one. The number 33 according to the Brhadaranyaka Upanishad (1.9.2) consists of eight Vasus, eleven Rudras, twelve Adityas, plus Indra and Prajapati.
Yaska in his commentary on the Rigveda states that there are three deities, Agni (in the earth), Vayu or Indra (in the air), and Surya (in the sky).