पाकिस्तानी सेना के मुखौटे इमरान खान की आक्रामक विदेश नीति : भारत अब क्या करे ?

पाकिस्तानी सेना के मुखौटे इमरान खान की आक्रामक विदेश नीति : भारत क्या करे ?

rkuराजीव उपाध्याय

पश्चिम में पढ़े , इंग्लैंड की अँगरेज़ जेमिना  से शादी किये, पाकिस्तान के नए प्रधान मंत्रि इमरान खान से उम्मीद थी की वह एक खुले विचारों वाले पाकिस्तानी प्रधान मंत्रि होंगे जो भारत से अन्य पुराने प्रधान मंत्रियों की तरह मित्रता ही चाहेंगे . यह आशा भारत में और बढी  जब उन्होंने अपने पहले भाषण में दो कदम लेने की बात की . परन्तु बाद की घटनाओं ने उन्हें पूरी तरह से बेवकूफ व् स्वार्थी पाकिस्तानी फौज का मुखौटा ही सिद्ध कर दिया है .

पाकिस्तानी फौज,  वर्तमान पाकिस्तानी सरकार व् न्यायालयों पर पूरी तरह से हावी है और वह भारत से हर वक्त एक अघोषित युद्ध लडती रहती है . उसकी हर सोच व् बात में भारत से मुकाबला छूपा होता है और वह अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर सदा जीतने के ख्वाब देखती रहती है . नवाज़ शरीफ ,ज़रदारी , बेनजीर भुट्टो सब के सब भारत से मित्रता चाहते थे . वह मित्रता वास्तविकता के धरातल पर चाहते थे . मुशर्रफ की तरह , ज़रदारी व् उनकी  की विदेश मंत्रि हीना रब्बानी खार और नवाज़ शरीफ दोनों समझ चुके थे की भारत पाकिस्तान मित्रता धीरे धीरे व्यापार व् अन्य मुद्दों पर प्रगति कर व् कश्मीर को किनारे रख कर ही बढ़ेगी . ज़रदारी ने भारत को एम् ऍफ़ एन का दर्ज़ा देने का प्रस्ताव भी पारित कर दिया था परन्तु फौज ने उसे रुकवा दिया . बल्कि आई एस आई ने  मुंबई काण्ड करवा  कर  राष्ट्रपति ज़रदारी का मित्रता व् शांति का सारा सपना ध्वस्त कर दिया .

अब इमरान खान मुंबई काण्ड व् आतंक व् कारगिल की पुरानी  घटनाओं को पूरी तरह भुला कर कश्मीर का फौजी राग अलापने लगे हैं . एक तरफ खूंखार आतंकी हाफिज सईद को चुनाव लड़वाते हैं और दूसरी और शांति दूत बनने का ढोंग रचते हैं .उनके विदेश मंत्रि कुरेशी सेना की मदद से प्रधान मंत्रि बनाने का सपना संजोये हुए हैं . इसलिए वह सेना के इशारों पर नाचते हें और करतारपुर कोरिडोर जैसे बड़े प्रशंसनीय प्रयास को इमरान की गूगली कह कर और खालिस्तान से जोड़ कर गुड गोबर कर देते हैं . इमरान खान भी चुप रहने के बजाय बी जे पी को मुसलमान विरोधी पार्टी कह कर कांग्रेस की मदद करना चाहते हैं . जिन सिखों को कभी लाहोर से मुसलामानों ने धक्के देकर निकाला था उन्हीं सिखों को खालिस्तान का ख्वाब दिखा रहे हैं . वह पाकिस्तान की जिया वाली हज़ार घावों देने वाली पोलिसी से भारत को कमजोर करने का जो ख्वाब देख रहे हैं जो उनकी  सेना के जनरल मुशर्रफ करके देख चुके हैं और कारगिल में बुरी तरह हार चुके हैं . अब गिरवी रखे , कंगाल देश , पाकिस्तान के प्रधान मंत्रि इमरान क्या उसे पूरा करेंगे ?

इस भारत को अंतर राष्ट्रीय मंचों पर हराने के चक्कर में पाकिस्तानी की बची खुची अर्थव्यवस्था और डूब जायेगी .

आतंक का पर्याय बने , चीन को खाड़ी के मुंह पर ग्वादर में बसा कर और छोटे परमाणु बमों के भण्डार के कारण विश्व के बड़े देश पाकिस्तान को सब विश्व शान्ति के लिए खतरा मानते हें . अब चीन व् तुर्की को छोड़ कोई भी देश उसका विश्वास नहीं करेगा . दोस्ती व् शांति के जुमले बोल कर , कश्मीर व् कुलभूषण का राग अलाप कर कभी न कभी भारत को फंसा लेने की उम्मीद तब ही  रंग ला सकती है जब भारत किसी मुद्दे पर अमरीका व् पश्चिम के विरुद्ध खड़ा होगा जैसे पर्यावरण या झूठे मानवाधिकारों की वकालत को न मानना इत्यादि . उस समय पश्चिमी देश पाकिस्तान से भारत को दबाने का प्रयास करेंगे . पाकिस्तान की विश्व में बस इतनी ही उपयोगिता शेष है . परन्तु वहां की सेना भारत को थोड़ा सा भी कष्ट पहुंचा कर खुश हो जायेगी चाहे उस के लिए कितनी भी कीमत चुकानी पड़े .

प्रश्न है की भारत पाकिस्तान सेना व् सरकार के इस अघोषित युद्ध से कैसे निबटे ?

अब  भारत को पकिस्तान की बची खुची अंतर्राष्ट्रीय विश्वसनीयता को भी समाप्त करना होगा . इसके लिए उसके उग्रवादी वर्ग का आशिया बीबी जैसी ईसाईयों , अहमदियों  , हिन्दू व् सिखों पर किये गए अत्याचारों को जग विदित करना होगा . बलूचों पश्तूनों के दमन की कहानी को सब के सामने लाना होगा . पाकिस्तानी सेना के डाकू सेना होने के प्रमाणों को जुटा कर जग विदित करना होगा . कुवैत की भाँति  ही  इसके नागरिकों को खाड़ी  के देशों मैं मिलने वाला काम आधा करवाना होगा . जनसंख्या के अनुपात में  खाड़ी के देशों में बहुत ज्यादा पाकिस्तानी काम कर रहे हैं उनको क़तर व् दुबई में आधा करवाना  बहुत आवश्यक है और संभव भी है . दुबई व् अन्य खाड़ी के देशों के लिए चीन का ग्वादर में प्रभुत्व एक  खतरा बन गया है जिसको भुनाया जा सकता है .अमरीका व् अन्य पश्चिमी देशों में उसके नागरिकों को बहुत प्रवेश मिल रहा है जिसे कम करवाया जा सकता है . इसी तरह पाकिस्तानी बासमती चावल , कपास व् टेक्सटाइल के निर्यात को अलाभकारी बनाना होगा . इसके लिए पाकिस्तान में बढ़ती हुई  कृषि की लागत सहयोगी होगी . चीन व् रूस के  के चलते पकिस्तान का विघटन कठिन हो गया है . अब अमरीका भी थक गया है . पाकिस्तान को  चीन से दूर करना अब संभव नहीं है . परन्तु चीन का उपयोग उसे ज़हर के दाँत तोड़ने के लिए किया जा सकता है हालाँकि चीन भारत को प्रतिद्वंद्वी मानता है . रूस भी अमरीका के विरुद्ध पाकिस्तान से मित्रता बढ़ा रहा है . उसे आर्थिक रूप दे कर सीमित किया जा सकता है .

परन्तु पकिस्तान से तू तू  मैं मैं करने से भारत को नुक्सान होगा . वह अब अंतर राष्ट्रीय स्तर पर वह के मुंह लगाने लायक नहीं है . इसलिए इस पूरी फिल्म को अफ्गानिस्तान जैसे पकिस्तान से डरे किसी और देश से  चलवाना होगा . अमरीकी लोबियों को भी उपयोग में लाया जा सकता है .पेंटागन मैं उसके अभी भी मित्र बचे हें उनको समाप्त करना होगा . दूसरी ओर पाकिस्तानी सेना को पाकिस्तान में अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए नए  दुश्मन देने होंगे जिससे उसका ध्यान बाँट सके . बलूचिस्तान की रक्षा , आतंकी संगठनों से पाकिस्तान की रक्षा इत्यादि ऐसी मुहीमें हें जिन मैं फंस कर सेना अपनी उपयोगिता दिखा सकती है . पाकिस्तानी सेना अत्यंत स्वार्थी परन्तु देशभक्त भी है . उसके स्वार्थ व् देश भक्ति का उपयोग भारत छोड़ किसी अन्य उद्देश्य से पूरा करने वाला समाधान चाहिए .

अगले बीस वर्षों में जब भारत पाकिस्तान से दुगना विकसित हो जाएगा तब अमरीका की तरह पाकिस्तानी सेना को लालच के पाश में भी बांधा जा सकता है . परन्तु तब तक पाकिस्तान चीन का इतना गुलाम हो जाएगा की भारत के लिए और बड़ा खतरा बन जाएगा . इसलिए उसके स्वाभिमान और स्वतंत्रता  को बचाना भी भारत के हित में है . भारत को पकिस्तान के कृषि उत्पादों , सीमेंट व् कोयले  को बड़ी मात्रा में खरीदना एक तरीका हो सकता है . शायद भारत को पाकिस्तानी किसानों से भी समर्थन मूल्यों पर बासमती चावल , तिलहन , दूध , घी ,चीनी व् सब्जियां खरीदना  उपयोगी हो सकता है जिससे उसकी कृषि भारत पर आश्रित हो कर उसके स्वाभिमान को चीन का गुलाम न बनने के लिए प्रेरित कर सके . भारत की सस्ती स्वास्थ्य सेवाएँ भी पाकिस्तानी पत्रकारों व् किसानों को बड़ी मात्रा में उपलब्ध कराई जा सकती हैं.

अंततः पड़ोसी से अच्छे सम्बन्ध फायदेमंद होते हें . उसकी की दुश्मनी से लाभ तो कभी नहीं हो सकता परन्तु यदि गुंडा पड़ोसी बन जाए तो उससे बचने के उपाय कुछ अलग ही होते हें . भारत को कुछ ऐसे ही कारगर उपाय खोजने होंगे . परन्तु अगले बीस वर्षों तक पाकिस्तानी सांप के स्वाभिमान को बचा कर चीन के अलावा अन्य उपयोगी देश बन कर उसके ज़हर को कम कर अपने को डसने से बचाना एक अजीब सी चुनौती है जो भारत को स्वीकारनी होगी .

 

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