Election 2019 : Like Mahabharat, The Results Were Far Better than the conduct In The War : किस पर ज्यादा खुश हों , मोदी जी की जीत या दिग्विजय सिंह की हार — Rajiv Upadhyay
बीजेपी की आशातीत विजय से अभी समाप्त हुआ , भारत का 2019 का चुनाव , महाभारत के युद्ध के समान था . युद्ध मैं शालीनता, नीतियों व् नियमों का जम कर उल्लंघन हुआ . दुर्योधन , कर्ण , अभिमन्यु , भीष्म, गुरु द्रोणाचार्य सब ही तो गलत तरीके से मारे गए . परन्तु युद्ध के परिणाम मैं जीत धर्म की ही हुई . कौरवों ने युद्ध के दौरान पांडवों से कम पाप किये परन्तु पुराने पापों के बोझ तले मर गए . इसी तरह इस चुनाव में शालीनता की सीमायें तो भारतीय जनता पार्टी ने ज्यादा तोडीं परन्तु कांग्रेस पुराने पापों के तले इतनी दबी रही और अंततः हार गयी. भारत की जनता ने फिर एक बार अपनी १९७७ व् २०१४ की तरह अपनी बुद्धिमत्ता का परिचय दिया और अटकलों को दरकिनार कर , देश को अगले पाँच साल के लिए एक स्थिर व् सक्षम सरकार दे दी. परन्तु २०१९ के चुनावों की समीक्षा मैं भारतीय जनता के निर्णय की सही व्यख्या करना आवश्यक है
चुनाव परिणाम देश की जनता विशेषतः गरीब जनता का मोदी जी पर विश्वास दिखाते हैं और पाँच साल पुरानी सरकार के लिए यह बहुत हर्ष का विषय है . परन्तु यह भी सच है कि पिछले पांच वर्षों में देश की आर्थिक , कृषि व् औद्योगिक प्रगति हुई तो है पर आवश्यकता और आशा अनुरूप नहीं हुई है तथा बेरोजगारी भी बहुत बढी . इसे छुपाने के लिए वर्तमान इमानदार सरकार भी जीडीपी के आंकड़ों की हेराफेरी को मजबूर हो गयी .सरकार भी सड़क, जलमार्ग व् बिजली छोड़ कर किसी आर्थिक व् औद्योगिक क्षेत्र में कोई बड़ी उपलब्धि नहीं प्राप्त कर सकी और इतने बड़े देश में छोटी छोटी उपलब्धियों जैसे शौचालय , गैस, जनधन इत्यादि का का बड़ा बखान किया . पर जिन गरीबों को यह सुविधाएं मिलीं मिली विशेषतः महिलाओं को मिली शौचालय की उनके लिए वह बहुत बड़ी थी .गरीबों को घर बनाने के लिए धन राशि , मुद्रा ,जनधन योजना व् छोटे किसानों की आर्थिक मदद बहुत उचित व् उपयोगी थीं परन्तु ऐसी सुविधाओं के प्रसार के लिए सुदृढ़ अर्थ व्यवस्था बहुत आवश्यक है . उत्तर प्रदेश मैं गहरी जड़ें जमाये जातिवादी समीकरण का टूटना भी सामाजिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण है .नोट बंदी व् जी एस टी अच्छे निर्णय थे पर उनका का कार्यान्वन बुरा रहा . नोट बंदी ने देश व्यापी मांग कम कर व्यापार व् विशेषतः प्रॉपर्टी उद्योग की तो कमर ही तोड़ दी. नोट बंदी के इतने बड़े व् व्यापक आर्थिक कुप्रभाव को पूरी तरह समझना आसान नहीं है किन्तु आवश्यक है .शिक्षा की गुणवत्ता जैसे सरल क्षेत्र में भी सरकार दम्भी व् शैक्षणिक रूप से अनुपयुक्त मंत्रियों के चलते कुछ नहीं कर पायी जब की उन्नति की असीम संभावनाएं थीं . रिश्तों में तनाव के कारण वाजपेयी काल जैसा विपक्ष का सहयोग नहीं मिला .हालाँकि चीन के सामान भारत जैसे बड़े देश के एक अभूतपूर्व सक्षम नेता व् प्रधान मंत्रि के लिए यह उपलब्धियां बहुत कम थीं परन्तु इनसे देश की गरीब जनता को सरकार उनकी खैरख्वाह लगने लगी और विपक्ष को हमले का मौक़ा नहीं मिला .
बीजेपी व प्रधान मंत्रि मोदी भूल गए की २०१४ के प्रचंड जनादेश के कारण उनसे शिक्षित व् जानकार लोगों की अपेक्षाएं व् उनकी तुलना चीन के डेंग या चाऊ एन लाइ से थी बौने राहुल गाँधी या सोनिया से नहीं , जिस में वह पूरे नहीं उतर पाए . आर्थिक क्षेत्र में तो वह मनमोहन सिह की यूपीए – १ की लाचार सरकार व् वाजपेयी जी का भी मुकाबला नहीं कर सके . इसके लिए उनका कल्पना शुन्य ,घमंडी और अक्षम वित्त विभाग ही जिम्मेवार था जिस के चलते विकास के वायदे पर चुनी हुई सरकार अपनी विकास की उपलब्धियों पर चुनाव नहीं लड़ सकी .
विदेशों में देश का सम्मान अवश्य बहुत बढ़ा जो सरकार की एक प्रमुख उपलब्धि थी और जनता इससे काफी खुश थी .
परन्तु भारतीय राजनितिक पर्य्पेक्ष मैं जो कुछ भी थोड़ा बहुत आर्थिक विकास हुआ वह मंहगाई के कम रहने से जनता को चुभा नहीं . मंहगाई न बढ़ने से सरकारी अनदेखी का शिकार मध्यम वर्ग ही नहीं बल्कि सारा देश संतुष्ट रहा और उसी संतोष का इनाम चुनावी परिणाम रहा . युवा बेरोजगार इमानदार व् दमदार सरकार से खुश थे और अपनी बेरोजगारी को सरकारी नीतियों से नहीं जोड़ सके और इन सब से प्रधान मंत्रि सब के चहेते बने रहे .
सबसे अधिक प्रभावशाली रही पुलवामा व् बालाकोट की एक घटना ने देश का मूड रातों रात बदल दिया . यद्यपि बालाकोट न तो इसराएल का एन्तेब्बे था न ही इंदिरा गांधी का बांग्लादेश इसलिए व्यर्थ सीना ठोकने लायक बिल्कुल नहीं था . परन्तु मुंबई की भयंकर घटना पर इतने वर्षों में कुछ न कर सकने से और कंधार काण्ड से अपमानित जनता को सदैव से दब्बू भारत का यह नया आक्रामक रूप बहुत भा गया . पाकिस्तान जैसा छोटा देश हमें पिछले सत्तर सालों में बार बार ठोक देता था यह बहुत अपमान जनक था . अब स्थिति बदल गयी है और अब पाकिस्तान अपने परमाणु बम की धमकी नहीं देता है .परन्तु जानकार लोग जानते हैं की उसे अब भूलना ही श्रेष्ठ होगा क्योंकि रक्षा मंत्रालय में बाबुओं के वर्चस्व व् पैसे के अभाव में हमारी सेनायें अभी युद्ध के लिए कदापि तैयार नहीं हें जो पकिस्तान के तुरंत हवाई हमले ने सिद्ध कर दिया . रक्षा क्षेत्र में आमूल चूल परिवर्तन की आवश्यकता है और देश की सुरक्षा में वित्त विभाग व् बाबुओं की दखलंदाजी को बहुत कम करने की आवश्यकता है . पाकिस्तान द्वेष को को टीवी पर अब भूल जाना ही ठीक होगा और रिश्तों को सामान्य बनाना ही हितकारी होगा .
बीजेपी ने सफलता पूर्वक इस चुनाव को दो मुद्दों तक सीमित कर दिया . मोदी जी का व्यक्तित्व व् कांग्रेस का हिन्दू विरोध .
परन्तु वास्तव में जनता ने मोदी जी को उनकी धार्मिक जीवन शैली , इमानदारी व् लगन के लिए पुनः चुना क्योंकि विपक्षी नेताओं के सर्कस में किसी पर भी जनता का विश्वास नहीं था . पंद्रह साल मुख्य मंत्रि रहे व् पांच साल प्रधानमंत्री रहे मोदी पर मात्र एक घर है और कार भी नहीं है , उनकी माँ व् भाई साधारण जीवन बिता रहे हें . इसलिए उन पर भ्रष्टाचार का आरोप टिकता नहीं है चाहे कोर्ट या राहुल गाँधी कुछ भी कहें .कांग्रेस का भ्रष्टाचारी अतीत व् हिन्दु संस्कृति से नफरत देश के हिन्दू भुला नहीं पायेंगे . झूठे हिन्दू आतंकवाद के ढोल पीटने वाली व् संस्कृत को हटा कर जर्मन भाषा को पढ़ाने वाली घोर हिन्दू विरोधी कांग्रेस को भारत की जनता कभी नहीं क्षमा करेगी जो हिन्दू विरोध के प्रणेता व् प्रतीक पूर्व मुख्य मंत्रि रहे दिग्विजय सिंह की एक साधारण आरोपी महिला से शर्मनाक हार ने सिद्ध कर दिया.इसलिए जब तक सोनिया गाँधी या उनके वंशज कांग्रेस के सिरमौर रहेंगे और यदि बी जे पी सामान्य राजनितिक परिपक्विता से जनता को संतुष्ट मात्र रख पायेगी तब तक कांग्रेस की सत्ता में वापिसी संभव नहीं है . कौतुहल इस बात का है की मुसलमान उसे बाबरी मस्जिद का दोषी मानते हैं और हिन्दू उसे तुष्टिकरण की राजनीती का दोषी मानते हें और दोनों कुपित हैं और कोई क्षमा नहीं कर रहा .कांग्रेस को वापिसी के लिए जिस नए फोर्मुले की जरूरत है वह अभी इजाद नहीं हुआ है जबकि देश को सशक्त राष्ट्रीय विपक्ष की आवश्यकता है जो कांग्रेस ही हो सकती है .
पर यह देश की विडम्बना है की उसे चीन जैसा सक्षम नेत्रित्व नहीं मिल पा रहा जो शायद राष्ट्रीय चरित्र की कमी है. बीजेपी में ग्यानी व् प्रखर चिंतकों का बहुत अभाव है .प्रखर चिंतकों व् चिंतन के अभाव में प्रचंड बहुमत के बाद भी सरकार आर्थिक व् अन्य क्षेत्रों में कुछ विशेष नया नहीं कर सकी. देश में सड़कों , जलमार्गों व् बंदरगाहों को छोड़ कर किसी भी क्षेत्र में बड़े चिंतन का अभाव था .मोदी जी चन्द्रगुप्त मौर्य की तरह एक मात्र सक्षम नेता और उनकी तुरंत कार्यावन शैली अद्भुत है .परन्तु उन्हें हनुमान की तरह आर्थिक क्षेत्र में एक जामवंत या चाणक्य की तरह प्रखर चिन्तक की आवश्यकता है या कहिये नरसिम्हा राव के मनमोहन य परवेज़ मुशरफ के शौकत अज़ीज़ की आवश्यकता है. अभी तो कोई ऐसा व्यक्ति दीख नहीं रहा है और उनको घेरे चापलूस प्रखर विचारक नहीं हो सकते क्योंकि ज्ञानी चाणक्य अहंकारी भी हो सकता है जो मोदीजी को कभी मान्य नहीं है . दूसरी तरफ ग्यानी को चापलूसी अमान्य होती है . आज का सर्व शक्तिमान चापलूस बाबु ग्यानी नहीं होता है और देश को उबार नहीं सकता . फिर भी हम अब आशा कर सकते हैं की अब जब बीजेपी को पुनः जनादेश मिल गया है और राज्या सभा मैं भी बीजे पी की परिस्थिति अच्छी है इसलिए अगले पाँच वर्ष वह बिना आंकड़ों की हेराफेरी के चीन समान वास्तविक आठ प्रतिशत ( ९.५ प्रतिशत आज के आंकड़ों से ) की आर्थिक व् उपयुक्त औद्योगिक व् कृषि की प्रगति दे पायेगी .
इसी प्रबल आर्थिक प्रगति से ही देश का सर्वांगीण विकास और सुरक्षा हो सकेगी .
पर एक प्रश्न का उत्तर कठिन है , जनता ईमानदार व् प्रखर राष्ट्रवादी मोदी जी की जीत से ज्यादा खुश है या तथाकथित हिन्दू आतंकवाद के प्रणेता , प्रतीक व् जनक दिग्विजय सिंह की हार से या टाइम , वाशिंगटन पोस्ट व् इंग्लैंड के गार्डियन जैसे भारत विरोधियों के मुंह पर करारे चपत पर ?
The elections 2019 are thankfully over . The best and the worst thing about them was that although like Mahabharat there were so many slips in propriety and morality during the war but at the end the victory was of ‘ Dharma ‘ . The campaign had its moments of Duryodhan , Bhisham, Guru Dronacharya , Karan , Abhimanyu being killed in gross violation of rules of war but finally the right side won .
government’s pro poor and farmer measures were greatly appreciated by rural voter and it gave PM great acceptance in that segment However it is also true that although the last five years saw some economic growth but it was highly inadequate and far below expectation . Industrial development was very slow . Exports were static . Agricultural growth was also low and unemployment was at peak . In a true lawyer style government tempered with statistics to hide evidence of its economic inadequacies . Road and power sectors were the real saviors . But low inflation kept Indian public satisfied so ignoring the unemployment and slow industrial growth people voted for BJP.
India’s prestige abroad also went up considerably thus adding to public satisfaction.
Balakot was a great game changer . It was neither an Entebbe nor a Bangladesh and chest thumping is not justified . But Kandhar and inaction on Mumbai for so many years made it appear great in contrast. However with it India crossed a rubicon of unlimited self restraint displayed so far by our government and the public loved this new India .
Indian public trusted PM and voted for PMs personal honesty , simple life style and stability . It rejected congress’s anti Hinduism as reflected by coinage of term ‘ hindu terrorism ‘ and removal of Sanskrit from school curriculum .
We can hope for a better future in which government will be able to deliver genuine 8% growth ( 9.5% by new formula ) with matching growth in agriculture and industry. This alone can make India truly great and PM Modi is like Hanuman capable of delivering it if he can get a Jamwant like Shaukat Aziz or Man Mohan Singh to head the and finance ministry and keep its ignorant babus in check.
This alone will ensure defence of country and well being of our population .
But the current million dollar question is that is the India public celebrating a nationalist and honest PM Modi’s victory or ‘hindu terror’s ‘ term’s originator and creator Digvijay Singh’s defeator a hard slap to Time , Washington Post or British Guardian newspaper paper ?