महाभारत की नारियों के दिए श्राप क्या नारी मानसिकता के द्योतक थे ?
राजीव उपाध्याय
महाभारत की कथा वास्तव मैं एक सागर है जिसमें जो जितनी गहरी डूबकी लगाएगा उतने मोती पाएगा . इस कथा के मुख्य चरित्रों मैं व् इसके केंद्र बिंदु मैं कुछ नारियां हैं जो सदियों से बहुत आदरणीय रहीं हैं .परन्तु जब हम उनके पूरे जीवन का मूल्याङ्कन करते हैं तो कुछ लोक प्रिय धारणाएं उतनी सही नहीं लगती जितनी मानी जाती हैं . विशेषतः जब उन्होंने क्रोध वश श्राप दिए हों . उन श्रापों का औचित्य सदिग्ध है और उन्हें देने वाले की मानसिकता पर एक प्रश्न चिन्ह लगा देता है .
इनमें प्रमुख है गांधारी का महाभारत के अंत मैं कौरव वंश के समान श्री कृष्ण के सामने ही यदु वंश के विनाश का श्राप .यह श्राप फलीभूत भी हुआ और ऋषि दुर्वासा के श्राप के साथ सारे यदु वंशी सागर तट पर शराब के नशे मैं एक दुसरे से लड़ कर मर गए जिनमें श्री कृष्ण के पुत्र भी थे. परन्तु गांधारी के श्राप देने का कारण विचित्र था . उसका विश्वास था की यदि कृष्ण चाहते तो युद्ध रोक सकते थे पर उन्होंने युद्ध होने दिया और परिणाम स्वरुप पूरा कुरु वंश नष्ट हो गया . श्री कृष्ण के तर्क की उन्होंने तो सिर्फ पांडवों को सिर्फ पाँच गाँव ही देने को कहा था जो दुर्योधन ने अस्वीकार कर दिया . तो पांडवों का इस अन्याय को स्वीकारना भी गलत होता .परन्तु गांधारी का मानना की श्री कृष्ण का युद्ध को किसी भी कीमत पर रोकना ही उचित था गलत था . लाक्षय गृह , चीर हरण , चौसर मैं षड्यंत्र , अंत मैं चौदह वर्ष के वनवास के बाद भी इंद्रा प्रस्थ न देना उस युग की राजनीती का निम्न तम स्तर थे .इसलिए श्री कृष्ण का तर्क की युद्ध हो जाना ही मानवजाति के लिए श्रेष्ठ था ठीक ही था . पर शोक मैं डूबा गांधारी का माता ह्रदय यह नहीं समझ सका . अपितु समस्त घटनाओं को भुला स्वयं गांधारी नी दुर्योधन को अंत मैं लौह सरीखा शरीर देने के लिए अपनी जीवन भर की तपस्या दांव पर लगा दी थी .
फिर श्री कृष्ण को श्राप क्यों? अंत मैं नारी मानसिकता छोटे सोच मैं ही फंस जाती है .
दूसरा उदाहरण अम्बा का लें . महाभारत के अनुसार
अम्बा महाभारत में काशीराज की पुत्री बताई गयी हैं।[1] अम्बा की दो और बहनें थीं अम्बिका और अम्बालिका। अम्बा, अम्बिका और अम्बालिका का स्वयंवर होने वाला था। उनके स्वयंवर में जाकर अकेले ही भीष्म ने वहाँ आये समस्त राजाओं को परास्त कर दिया और तीनों कन्याओं का हरण करके हस्तिनापुर ले आये जहाँ उन्होंने तीनों बहनों को सत्यवती के सामने प्रस्तुत किया ताकि उनका विवाह हस्तिनापुर के राजा और सत्यवती के पुत्र विचित्रवीर्य के साथ सम्पन्न हो जाये।[2] जब अम्बा ने यह बताया कि उसने राज शाल्व को मन से अपना पति मान लिया है तो विचित्रवीर्य ने उससे विवाह करने से इन्कार कर दिया। भीष्म ने उसे राजा शाल्व के पास भिजवा दिया। राजा शाल्व ने अम्बा को ग्रहण नहीं किया अतः वह हस्तिनापुर लौट कर आ गई और भीष्म से बोली, “हे आर्य! आप मुझे हर कर लाये हैं अतएव आप मुझसे विवाह करें।” किन्तु भीष्म ने अपनी प्रतिज्ञा के कारण उसके अनुरोध को स्वीकार नहीं किया। अम्बा रुष्ट हो गई और यह कह कर कि वही भीष्म की मृत्यु का कारण बनेगी उसने बहुत तपस्या की . स्वयं गंगा ने जब उसकी कहानी सुनी तो उसे श्राप दिया की उसका आधा हिस्सा नदी मैं बह जाएगा .परन्तु अपमान को न भुला पाने वाली अम्बा पहले स्त्री रूप मैं शिखंडीनी नाम से जन्मी पर उसके पिताने उसे अंततः पुत्र जान उसकी शादी एक स्त्री से कर दी .जिसके दुष्परिणाम हुए . बाद में अम्बा शिखंडी बन गयी और भीष्म की मृत्यु का कारण बन अपना प्रतिशोध पूरा किया .
अब इसका विश्लेषण करें . यदि अम्बा साहस कर अपहरण के समय भीष्म को सच बता देती तो उसकी वह दुर्गति न होती .यदि वह शाल्व के युद्ध के समय भी बोल देती तो भी बच जाती . जब वह उचित समय गंवा बैठी तो पिता की मजबूरी को समझ अपनी बहनों की तरह विचित्र वीर्य से विवाह हो जाने देती .पर उसने तब शाल्व प्रेम प्रकट किया जब सत्यवती ने विचित्रवीर्य के विवाह को मजूरी दे दी . तब भी भीष्म ने उसे सदर शाल्व के पास भेज दिया . उसने अपनाने से मना करने वाले शाल्व को भी श्राप नहीं दिया संभवतः उसने भीष्म से युद्ध कर अपना धर्म निभा दिया था . वह पिता के घर जा सकती थी . कोई पिता अपनी पुत्री को नहीं त्यागता और शेष जीवन वह वहीँ बिता सकती थी . गांधारी का भी अपहरण सा ही हुआ था परन्तु उसने नियति को स्वीकार कर अंधे ध्रितराष्ट्र से विवाह कर लिया था .यदि इस प्रसंग मैं किसी की गलती थी तो सत्यवती की थी . क्यों उसने अपने नपुंसक पुत्र विचित्रवीर्य व् अंधे पुत्र धृत राष्ट्र का विवाह राज कुमारियों से किया ? पर कोई सत्यवती की चर्चा नहीं करता पर उसका माता सदृश्य आदेश मानने वाले गंगा पुत्र भीष्म को दोषी ठहराते हैं . स्वयम्वर मैं जीती गयी य अप हरण की गयी स्त्री बराबर ही सुख पाती हैं . उस युग की यही प्रथा थी . स्वयं अर्जुन ने श्री कृष्ण की बहन सुभद्रा का अपहरण किया था . इसलिए अपहरण को दोष देना भी उचित नहीं है. अम्बा प्रकरण मैं अम्बा का ही दोष अधिक था पर उसे सब ने उसकी तपस्या के फल स्वरुप प्रतिशोध का वरदान दे दिया .
तीसरा उदाहरण स्वयं द्रौपदी का लें . पूरे महाभारत मैं दुर्योधन का कामी चरित्र का कहीं कोई वर्णन नहीं है .वह और कर्ण वस्त्र हरण के समय विवाहित थे .इसलिए भरी राज्य सभा मैं साधारणतः द्रौपदी के वस्त्र हरण करने का आदेश नहीं देते . पर द्रौपदी संभवतः अहंकारिणी थी . सीरियल मैं ‘ अंधे का पुत्र अंधा’ वाक्य उन्हें बहुत खल गया . इसी तरह कर्ण को अंग नरेश मान कर स्वयम्वर मैं बुलाना पर उसको सूत पुत्र कह दुत्कारना भी कर्ण का घोर अपमान था क्योंकि कर्ण उस समय अंग नरेश था .तो यदि अम्बा को प्रतिशोध का अधिकार था तो दुर्योधन व् कर्ण को क्यों नहीं ? यह प्रकरण अत्यंत अशोभनीय है और भीष्म , द्रोंण , कर्ण अंत तक इसके लिए पश्चाताप करते रहे . परन्तु द्रौपदी ने भी अम्बा की तरह ही अपने अपमान के प्रतिशोध को ही अपने जीवन का ध्येय बना लिया .इस प्रतिशोध की अग्नि मैं उसका सारा वंश नष्ट हो गया . युद्ध के प्रारंभ मैं ही भीष्म की इच्छा मृत्यु के वरदान व् गुरु द्रोंण के अजेयता का सबको पता था . इसलिए प्रारम्भ मैं सामान्यतः पांडवों के युद्ध के जीतने की संभावना बहुत कम थी . परन्तु द्रौपदी ने फिर भी अपने पतियों, पुत्रों, पिता भाई व् अन्य सम्बन्धियों का जीवन दांव पर लगा दिया पर अपना प्रतिशोध पूरा किया . क्या हमें इस चरित्र को अनुकरणीय मानना चाहिए यह एक वाद विवाद का विषय है .
परन्तु इन तीनों प्रकरणों से एक बात स्पष्ट है की नारी प्रतिशोध मैं उचित अनुचित का बोध खो बैठती है और इस लिए ऐसे समय मैं उसका निर्णय विश्वसनीय नहीं होता .