अर्जुन ने प्रेमातुर उर्वशी को माँ कह कर नपुंसकता का श्राप क्यों लिया
उर्वशी ने क्यों दिया था अर्जुन को नपुंसक होने का श्राप
उर्वशी और अर्जुन – महाभारत काल में पांडु के पांच पुत्रों की ख्याति आज भी मौजूद है।
महाभारत के युद्ध में पांडवों को भगवान कृष्ण की मदद से विजय प्राप्त हुई थी। किंतु युद्ध में जीत के बाद भी पांडवों को शांति नहीं मिली। उनका जीवन भी कष्टों और चुनौतियों से भरा रहा था।
महाभारत युद्ध में अपने ही भाईयों का वध करने का दुख पांडवों के मन को हमेशा कचोटता रहता था और इस युद्ध में उन्हें अपने स्वयं के सभी पुत्रों की भी बलि देनी पड़ी थी। इसी तरह पांडु पुत्र अर्जुन के जीवन का भी एक ऐसा सत्य है जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार स्वर्ग की अप्सरा उर्वशी ने अर्जुन को नपुंसक होने का शाप दिया था।
आइए जानते हैं कि उर्वशी और अर्जुन के पीछे छिपी पौराणिक कथा के बारे में …
उर्वशी और अर्जुन –
स्वर्ग की अप्सरा थी उर्वशी
उर्वशी स्वर्ग की अप्सरा थी और एक बार उसकी नज़र अर्जुन पर पड़ गई। एक दिन स्वर्ग में चित्रसेन अर्जुन को संगीत और नृत्य की शिक्षा दे रहे थे और उस समय वहां पर इंद्र की अप्सरा उर्वशी आ गई और उसे अजुर्न का बल और आकर्षण बहुत पसंद आया। उसने पांडु पुत्र अर्जुन पर मोहित होकर उससे विवाह करने की इच्छा जताई।
उर्वशी ने अर्जुन से कहा कि मैं तुमसे विवाह करके अपने मन की इच्छा को तृप्त करना चाहती हूं। उर्वशी के इन शब्दों को सुनकर अुर्जन ने कहा – देवी.. हमारे पूर्वजों ने आपसे विवाह करके हमारे वंश का गौरव बढ़ाया था। इस नाते आप हमे माता तुल्य हैं। मैं आपके साथ विवाह नहीं कर सकता हूं।
रूष्ट होकर दिया शाप
अर्जुन की इन बातों को सुनकर उर्वशी को अपमान महसूस हुआ। क्रोधित होकर उर्वशी ने कहा कि तुमने नपुंसकों जैसे वचन कहे हैं और तुम्हारी इस बात से नाराज़ होकर मैं तुम्हें एक साल तक नपुंसक होने का शाप देती हूं। इतना कह कर उर्वशी वहां से चली गई और उसने अर्जुन की एक बात ना सुनी।
इंद्र देव की क्या की प्रतिक्रिया
जब इंद्र देव को उर्वशी और अर्जुन के बीच हुई इस घटना के बारे में पता चला तो उन्होंने अर्जुन से कहा कि तुमने उर्वशी के साथ जैसा व्यवहार किया है उसका फल तो तुम्हे जरूर मिलेगा। अज्ञातवास के दौरान तुम्हें इस शाप का लाभ होगा। अज्ञातवास के एक साल के दौरान ही तुम नपुंसक रहोगे और अज्ञातवास पूर्ण होने के बाद तुम्हें दोबारा पुंसत्व की प्राप्ति होगी। इंद्र देव की इस बात को सुनकर अर्जुन का मन शांत हुआ।
उर्वशी द्वारा अर्जुन को शाप दिए जाने के पीछे यही पौराणिक कथा प्रचलित है।
इसके बाद अज्ञातवास के दौरान अर्जुन ने किन्नर का रूप धारण किया था। वो एक साल तक किन्नर के रूप में राजा की सभा में नृत्य आदि सिखाया करते थे और इस दौरान किसी को भी इस बात का आभास नहीं था कि किन्नर के रूप में स्वयं अर्जुन हैं।
ये है उर्वशी और अर्जुन की कहानी – अगर कोई पांडु के पांचों पुत्रों और द्रौपदी को अज्ञातवास के दौरान पहचान लेता तो उनका वनवास खत्म होने की बजाय फिर से शुरु हो जाता।
परन्तु अर्जुन के उर्वशी को माँ कहने की एक और कहानी है .
साहित्य और पुराण में उर्वशी सौंदर्य की प्रतिमूर्ति रही है। स्वर्ग की इस अप्सरा की उत्पत्ति नारायण की जंघा से मानी जाती है। पद्मपुराण के अनुसार इनका जन्म कामदेव के उरु से हुआ था। श्रीमद्भागवत के अनुसार यह स्वर्ग की सर्वसुंदर अप्सरा थी। एक बार इंद्र की राजसभा में नाचते समय वह राजा पुरुरवा के प्रति क्षण भर के लिए आकृष्ट हो गई। इस कारण उनके नृत्य का ताल बिगड़ गया। इस अपराध के कारण राजा इंद्र ने रुष्ट होकर उसे मृत्युलोक में रहने का अभिशाप दे दिया। मर्त्य लोक में उसने पुरु को अपना पति चुना किंतु शर्त यह रखी कि वह पुरु को नग्न अवस्था में देख ले या पुरुरवा उसकी इच्छा के प्रतिकूल समागम करे अथवा उसके दो मेष स्थानांतरित कर दिए जाएं तो वह उनसे संबंध विच्छेद कर स्वर्ग जाने के लिए स्वतंत्र हो जाएगी। ऊर्वशी और पुरुरवा बहुत समय तक पति पत्नी के रूप में साथ-साथ रहे। इनके नौ पुत्र आयु, अमावसु, श्रुतायु, दृढ़ायु, विश्वायु, शतायु आदि उत्पन्न हुए। दीर्घ अवधि बीतने पर गंधर्वों को ऊर्वशी की अनुपस्थिति अप्रिय प्रतीत होने लगी। गंधर्वों ने विश्वावसु को उसके मेष चुराने के लिए भेजा। उस समय पुरुरवा नग्नावस्था में थे। आहट पाकर वे उसी अवस्था में विश्वाबसु को पकड़ने दौड़े। अवसर का लाभ उठाकर गंधर्वों ने उसी समय प्रकाश कर दिया। जिससे उर्वशी ने पुरुरवा को नंगा देख लिया। आरोपित प्रतिबंधों के टूट जाने पर ऊर्वशी श्राप से मुक्त हो गई और पुरुरवा को छोड़कर स्वर्ग लोक चली गई।
परन्तु राजा पुरु से पुरु वंश की स्थापना हुई जिसमें ध्रितराष्ट्र व् पाँडू भी पैदा हुए . इसलिए अर्जुन ने अपने पूवाजों के साथ विवाहित अप्सरा उर्वशी को माता कह कर संबोधित किया जिससे उर्वशी अत्यंत रुष्ट हो गयी ,