कैसे अँगरेज़ सिर्फ लगान से देश बना गये : देशभक्तों के दंश से मरी भारतीय अर्थव्यवस्था , देश द्रोहियों में कहाँ इतना दम था

कैसे अँगरेज़ सिर्फ लगान से देश बना गये : देशभक्तों के दंश से मरी भारतीय अर्थव्यवस्था , देश द्रोहियों में कहाँ इतना दम था

राजीव उपाध्याय

एक प्रश्न पर भारतीयों को गंभीर चिंतन करना चाहिए की कैसे अँगरेज़ सिर्फ कृषि के लगान से पूरी भारतीय रेल , देश व्याrp_RKU-263x300.jpgपी सड़कें , गंगा व् सिन्धु नहर व्यवस्था , देश व्यापी डाक व्यवस्था  व् इतनी बड़ी सेना बना गया और हम पिछले दस सालों से सिर्फ झूठी आर्थिक उन्नती  व वास्तविक अवनति  के किस्से सुन रहे हैं .

चीन कभी अफीमचियों का हमसे पिछड़ा देश था और उनके एक नेता डेंग के राजनितिक साहस व दूरदृष्टि ने  ने  उसे आज विश्व की दूसरी बड़ी आर्थिक शक्ति बना दिया . हम इतने वर्षों  मैं अपने  प्रजातंत्र का ढोल बजाते रहे जबकी  ज़मीन हमारे नीचे से खिसक  रही थी . कुछ दिन तक यह भी भ्रम था  की इटली की थोपी हुई सरकार भ्रष्ट व् देशद्रोहियों  भरी  हुई थी और मिली  जुली गठबंधन वाली सरकारें देश की प्रगति को रोक रही हैं . अब तो यह भ्रम भी टूट गया .जनता ने दो बार प्रबल बहुमत से इमानदार देश भक्तों को सत्ता सौंप दी पर अर्थ व्यवस्था तो पहले से कहीं ज्यादा चौपट हो गयी . पहले देशभक्त वकील  वित्त मंत्री तो गवाह तोड़कर केस जीतने का प्रयास करते रहे और उनके अज्ञानी बाबू  विकास झूठे आंकड़ों से देश को भ्रमित करते रहे . सबको साफ़ दीख रहा था नये कारखाने  नहीं खुल रहे  और इससे नयी नौकरियां  गायब  हो रही हैं , इंजीनियरिंग व् एमबीए कोलेजो की सीटें खाली जा रही है पर वित्त मंत्री सब्ज़ बागों के मकड  जाल बुनते रहे . कुछ देश भक्त स्विस बैंकों से पैसा वापिस ला कर देश को समृद्ध बनाने का फोर्मुला बेचते रहे . कुछ और ने काले धन पर चोट कर नोट बंदी करवा दी . ज्यों ज्यों देश भक्ति बढी त्यों त्यों अर्थ व्यवस्था डूबती गयी.  सरकार कस्तूरी मृग की तरह विदेशी निवेश की मृग मरीचिका मैं फंसी हुयी है और भारतीय बाज़ार पर विदेशियों का कब्ज़ा होता जा रहा है . पिछले वित्त वर्ष मैं मात्र तीन प्रतिशत की वास्तविक आर्थिक बढ़त  हुयी है शेष तो आंकड़ों का खेल है . यह लगभग पिछले बीस वर्षों की सबसे कम विकास दर है . सरकार किंकर्तव्य विमूढ़ है. किसी को कुछ नहीं समझ आ रहा . कुछ बेशर्म रिटायर्ड  बड़े बाबू नीती आयोग से अपनी कुर्सी बचाने के लिए अब भी जनता को गुमराह करने के लिए झूठ की बौछार करते रहते हैं .

इस आर्थिक अवनती  का  कोरोना से कोई सम्बन्ध नहीं है . कोरोना तो देश की अर्थव्यवस्था को पांच  प्रतिशत और गिरा देगा .

सरकार अगले एक साल तक देश को कोरोना के दुष्प्रभाव  बचाती रहेगी जिसमें अर्थ व्यवस्था को डूबने से बचाना भी शामिल है . चीन की बराबरी तो अब एक स्वपन भी नहीं रह गया है .

तो दोष किसका है ?

विकास के नारे पर आयी , ईमानदार , देशभक्त व् सर्वशक्तिमान सरकार  आर्थिक  मोर्चे  पर  तथाकथित  देश  द्रोहियों की मिली जुली सरकार से भी इतनी अधिक क्यों  असफल हो गई  . क्या अब भी किसी दिशा परिवर्तन से पुनः आर्थिक प्रगति संभव है ?

इसके लिए पहले अंग्रेजों की सफलता को समझना आवश्यक है .

अँगरेज़ सरकार की नीतियाँ व् चिंतन  हमसे  कहीं अधिक व्यवहारिक व् सशक्त थीं और अधिकारी आज से कहीं ज्यादा इमानदार व कुशल  थे .

उदाहरण के लिए साठ  हज़ार किलोमीटर की भारतीय रेल बनाने के लिए  अपरिमित धनराशी चाहिए थी जो सरकार के पास नहीं थी न ही उसे रेलवे  बनाने का ज्ञान था . सरकार ने इंग्लैंड की कंपनियों को बुला कर भारतीय रेलवे ( तब रेल कंपनी थीं )  धन लगाने को कहा और पांच प्रतिशत का लाभ सरकार से सुनिश्चित कर दिया . कंपनियां रेलवे बनाती रहीं सरकार उनको उनकी  लगाई गयी पूंजी पर मुनाफ़ा  देती रही . इसमें भ्रष्टाचार भी हुआ . इंग्रेलैंड से रेल  बहुत मंहगी खरीदी गयीं . परन्तु गलतियां ठीक होती रहीं पर रेलवे के बनने  मैं कोई व्यवधान नहीं आने दिया गया . सरकार अनुभव से नीतियाँ सुधारती गयी पर रेलवे बिना रुके लगातार बनती रही . कुछ ही दशकों मैं भारतीय रेल विश्व की सबसे बड़ी रेलवे मैं एक बन गयी .

आज देश मैं छद्म पारदर्शिता  व इमानदारी   का भूत सवार है जिसने देश को बर्बाद कर दिया है . सफ़ेद कपड़ों के गंदे होने से डरने वाला मैकेनिक क्या कार ठीक करेगा ? सरकार कभी लोकप्रियता के लिए नोट बंदी की ओर दौडती है तो कभी जीएसटी या फिर स्विस बैंक के खातों  की ओर . मेहनत  से लग कर धीरे धीरे देश की आर्थिक उन्नति  की बात कोई नहीं कर रहा सब बिना खाना बनाए तुरंत लोकप्रियता का  खाना चाहते हैं .

उदाहरण के लिए   अंग्रीजी सफलताओं के  विपरीत दिल्ली गुडगाँव के बीच एक दस लेन की हाईवे का उद्घाटन २००८ मैं हुआ . यह  सड़क एक प्राइवेट  कंपनी DGSCL ने IDFC  से 1567  करोड़ रूपये का लोन लेकर बनायी जिस पर उसे  टोल लेने का अधिकार था . सड़क पर इतना ट्रैफिक बढ़ गया की बत्तीस टोल बूथ के बावजूद कारों को दस मिनट से ज्यादा लाइन मैं लगना पड़ता था . कुछ लोगों को कंपनी के ज्यादा मुनाफे से जलन हुयी .इसके बाद जन याचिकाओं पर  दिल्ली हाई कोर्ट ने टोल हटाने का आर्डर दे दिया , NHAI  IDFC ने कोर्ट केस कर दिया . हिंदुस्तान टाइम्स ने टोल बूथ हटाने का लंबा कैंपेन चलाया .अन्तः  कंपनी को टोल बूथ हटाने बड़े . इसी तरह  महाराष्ट्र नव निर्माण सेना ने मुंबई पुणे हाई  वे पर टोल बूथ हटाने के लिए हिंसक आन्दोलन शुरू कर दिया . इन घटनाओं से धीरे  धीरे पूंजीपतियों का सरकार से विश्वास उठ गया और अब सड़कें सरकार अपने पैसों से बनाने लगीं . सरकार के पास इतने पैसे कहाँ थे . अगर अंग्रेजों की तरह ज्यादा मुनाफ़ा देकर प्राइवेट पूंजी को सड़कों मैं लगने दिया होता तो आज तिगुनी या चौगुनी रफ़्तार पर सड़क बन रहीं होती . जनता की शिकायतें अन्य तरीकों से सुलझाई जा सकती थीं . सर्व व्यापी  डर से  देश मैं हर तरफ निजी पूँजी निवेश थम गया है जिसे सरकार बहुत चाह कर भी नहीं शुरू कर पा रही है क्योंकि इतने वर्षों में आर्थिक प्रगति न होने के कारण सामान की  मांग ही नहीं है . इसे समझना चाहिए की नोट बंदी  का दुष्प्रभाव अगले दस सालों तक रहेगा . कम से कम अब तो इन झूठी लोक लुभावन नीतियों को छोड़ दो . भ्रष्टाचार ज़रूर रोको पर टीवी चनलों की चर्चाओं मैं नहीं बल्कि असली भ्रष्टाचारियों को शीघ्र दण्डित कर के . पर जिसने सिर्फ अनजाने में या राष्ट्र  हित में खतरा लिया हो  या गलती की है उसको व्यर्थ मैं तंग मत करो . आज से बीस साल पहले के मुकाबले अब सरकारी कर्मचारी ज्यादा डरपोक हो गया हा क्योंकि दसियों दंडात्मक एजेंसी उस पर हावी हो गयीं हैं .दूसरी तरफ कुछ चंद बड़े घरानों  को छोड़ , छोटे उद्योगों को चलाना अधिक दूभर हो गया है .

पर भारत मैं देशभक्ति  की एक विकृत परिभाषा उत्पन्न हो गयी है . उद्योगों के फायदे पर सब गिद्ध दृष्टि  गाड़े रहते हैं . अच्छे व  सफल उद्योगपतियों  को लालची , देश का व  गरीबों दुश्मन सिद्ध कर दिया जाता है और फिर कोई उनकी नहीं सुनता . कभी उच्चतम न्यायलय भ्रष्टाचार  के नाम पर  लौह अयस्क के खनन पर रोक लगा देता है या कोई ग्रीन कोर्ट डीजल  कारों को रोक देता है नहीं तो दिल्ली मैं प्रदुषण के  नाम पर नए घर बनाने को रोक देता है . काम कराना कितना कठिन बना दिया है और काम बंद करवाना कितना आसान ! एक पुराने टाइप राइटर पर  चिठ्दठी लिख कर कोई खान बंद की जा सकती है . चौदह  साल तक नए हवाई जहाज नहीं खरीदे जाते फिर जब पाकिस्तान य चीन हमला कर देता है तो भाग भाग कर औने पौने दामों पर हथियार इकठ्ठे करे जाते हैं . हमले से पहले हर रक्षा मंत्रालय का बाबू  वर्षों  अंग्रेजी मैं फाइलों पर ज्ञान बघारता रहता है और फिर युद्ध होने पर एच ए एल को दो साल मैं हवाई जहाज न बनाने पर दोषी ठहरा दिया जाता है . जो काम करे वही दोषी है . उसके ऊपर सारी सीबी आई , सीवीसी , ईडी ,विजीलेंस , इनकम टैक्स लगे रहते हैं . जाहिल बाबू  सिर्फ देश भक्त सैनिकों व अन्य  काम करने वालों  पर धौंस जमाता रहता व बिना काम किये  मुटीयाता  रहता है . युद्ध हारने य देश की अर्थ व्यवस्था डूबने पर क्यों नहीं दस बड़े बाबु जेल भेजे जाते . किसी भी कोर्ट को काम बंद करने से पहले कारोबारी को कंपनसेशन देना चाहिए . पीआइएल एक अभिशाप बन गयी है इसकी उपयोगिता का पुनरावलोकन आवश्यक है.

देश इस विकृत देश भक्ति की बहुत बड़ी कीमत चुका रहा है .

दूसरी विकृति राजनयिक है . आर्थिक प्रगति सारे देश के सम्मलित प्रयास से होती है . इसमें सब की भागीदारी आवश्यक है . देश मैं कारोबारी को लाभ पहुंचाने की सुविधायें बढनी चाहिए. उदाहरण के लिए इस कोरोना काल मैं स्वदेशी रक्षा सामग्री के आर्रडर तुरंत दे देने चाहिए . इससे इस समय मंहगाई नहीं बढ़ेगी और अर्थव्यवस्था व् रक्षा व्यवस्था दोनों को बल मिलेगा. सरकार को नवोदित उद्एयोगों से  एक मित्र व् सहायक की भूमिका निभाने की आवश्यकता है  पर बाबुओं की पुरानी दुहने की आदत नहीं गयी है . अर्थ व्यवस्था का विकास एक  लम्बी प्रक्रिया होती है . इसमें नीतियों मैं शीघ्र बदलाव या जल्दी तालियाँ  बजवाने की ललक व् व्यक्ति विशेष के महिमामंडन व् अधिनायक बनने  से बाधा आती है . जापान की उद्योगों को  पीछे से सहायता करने वाली सरकार  य नरसिम्हा राव का मनमोहन सिंह को बढ़ावा य निक्सन का किसिंजर  को बढ़ावा देना अधिक सफल रहता है . उद्योगों का सरलीकरण सिर्फ कागज़ पर हुआ है . व्यापक डर उन्नति मैं बाधक होता है . सरकार अक्षम बाबुओं  के कारण  अब डर पर आश्रित हो गयी है .अब सरकारी कर्मचारी  सिर्फ़ चापलूसी से नौकरी बचा रहा है अन्यथा रेल कोच काट कर कोरोना के लिए देना किसकी जरूरत थी . पहले सरकारी अफसर सफलता के लिए जी जान से काम करते थे . अब सिर्फ हुक्म की तामील हो रही है . जो नया काम करेगा उससे गलती होगी और कोई उसे नहीं बचाएगा . इसलिए काम बंद है . जो प्रधान मंत्री चाहते हैं वह तुरंत  हो जाता है बाकि सब ठप्प है . प्रधान मंत्री बहुत साधारण स्तर की बाबुशाही व दूकानदारों की लोबी  पर आश्रित हैं जिससे अब कुछ नया नहीं होगा.  तो परिवर्तन कैसे आयेगा . प्रधान मंत्री की योजनायें कागजों पर शीघ्र कार्यान्वित हो जातें हें पर जनता को लाभ नहीं मिलता . पढ़ा लिखा विचारक मध्यम वर्ग  उपेक्षित है . बुद्धिमान   लोग सरकार से कतरा रहे हैं क्यों जान जोखिम मैं डालें जब कोई  छोटा सा  अज्ञानी बाबू  उनकी चलने नहीं देगा . विशेषतः सरकार मैं आर्थिक ज्ञान की बहुत कमी है . पर बिना जाने बड़े आर्थिक फैसले लेने की ललक सब मैं है . इसलिए सरकार की सक्षम अधिकारियों पर निर्भर विदेश निति सफल है पर अक्षम बाबुओं पर निर्भर आर्थिक  विकास चौपट है. विशेषतः मैक्रो एकोनोमिक्स किसी  बाबू को नहीं आती और डा स्वामी जैसे जानकार अर्थशास्त्रियों की सुनी नहीं जाती .

डा स्वामी मैं अब भी चीन  के समकक्ष अर्थ व्यवस्था खडी करने की क्षमता है . जब इतने वर्षों मैं सब को मौक़ा दे दिया तो एक बार उनको भी देखा जाय . क्योंकि अब इतने कम समय मैं कोई चमचा अफसर देश  की आर्थिक व्यवस्था को नहीं बचा सकता . प्रधान मंत्री को अपने से अधिक समर्थ अर्थशास्त्री पर आश्रित होना होगा और अज्ञानी व् घमंडी  बड़े बाबुओं को आर्थिक विभागों से निकालना होगा क्योंकि वह अपने अलावा किसी और को सफल नहीं होने देंगे  .

चीन अब यहाँ नहीं रुकेगा . भारत ने उसकी अमरीका के समकक्ष वेश्विक शक्ति बनने  को चुनौती दी है और चीन भारत को रास्ते से हटाने का प्रयास करेगा . दो साल मैं विश्व कोरोना के उत्पात को भूल जाएगा और चीन पर फिर आश्रित हो जाएगा . चीन से भविष्य मैं सुरक्षित रहना है तो उसके बराबर की आर्थिक व् सामरिक शक्ति बनना होगा . यूरोप व अमरीका धीरे धीरे कमजोर होते रहेंगे. इसलिए अब त्वरित आर्थिक प्रगति देश की अखंडता व सुरक्षा  के लिए भी आवश्यक है .

इसके लिए लोक लुभावन नीतियों व नारों से निकल कर दूर दृष्टि , साहस  व बुद्धि से सब को साथ लेकर देश को आगे बढ़ाना होगा .

 

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