दीवाली के पटाखों पर जेल ! : उत्तर भारत मैं कागजी शेरों के बजाय कोई जय ललिता क्यों नहीं पैदा होती ?
न्याय पालिका की जन हित याचिकाओं की ओट मैं हिन्दू संस्कृति व् जीवन शैली विरोधी कानून बनाने पर रोक आवश्यक है .
राजीव उपाध्याय
इस वर्ष एक और अति करते हुए दिल्ली के पोलुशन कण्ट्रोल बोर्ड ने दीवाली पर पटाखे जलाने वालों को छः महीने की जेल की सज़ा सुना दी . जो दिवाली कभी बिना पटाखों के सोची भी नहीं जा सकती थी वह आज सुनसान गुमनामी की तरफ बढ़ रही है .
जो दिल्ली में वाहनों , पराली व् धुल से फैलने वाले बड़े प्रदुषण को नहीं रोक सकते वह पटाखों को रोक कर उंगली कट कर शहीद बन रहे हैं . दुखी सब हें पर कोई जन आक्रोश को मूर्त रूप नहीं दी पा रहा .ऐसे ही कभी किसी जज ने महाराष्ट्र की जन्माष्टमी पर आयोजित दही हांडी की ऊँचाई पर फैसला दे कर जनता के मुंह पर एक तरह से तमाचा मारा था क्योंकि जनता सदियों से दही हांडी के मुकाबले का आनन्द लेती रही है. तेलन्गाना मैं गणेश प्रतिमा की अधिकतम ऊँचाई पंद्रह फीट हाई कोर्ट ने निर्धारित कर दी.
आज कोई होली को पानी की बर्बादी बता रहा है .
कोई शिव रात्री पर दूध चढ़ाना दूध की बर्बादी बता रहा है . कोई गुलाल से त्वचा को होने वाले नुक्सान बता रहा है. कोई रावण को ज्ञानी व् अच्छा भाई बता रहा है . किसी दिन शिव रात्री , विजय दशमी पर रावण दहन व् होली पर भीं जन हित याचिकाएं आ कायेंगी . कुछ पैसे की ही तो बात है जिस से मुफ्त की छद्म बुद्धी जीवी होने की पहचान मिल जाती है. हमारे जज भी बकरीद व् मुहर्रम पर कुछ नहीं बोल सकते परन्तु हिन्दू त्योहारों पर अपनी राय जनता पर बड़ी आसानी से थोप देते हैं .
इसके विपरीत सर्वोच्च नायालय ने तमिलनाडु के पोंगल त्यौहार पर होने वाले jallkutta पर सांड पर जीतने वाली प्रतियोगिता पर रोक लगा दी थी . तमिल्नाडू सरकार ने कहा कि हज़ार साल से यह लोगों की धार्मिक आस्था है पर दो जजों ने सरकार की याचिका को रद्द कर दिया . जय ललिता ने तत्कालीन प्रधान मंत्री वाजपेयी जी को मजबूर कर दिया और केंद्र सरकार ने अध्यादेश से सर्वोच्च नायालय के फैसले को रद्द कर दिया .
सवाल है कि हमारे हिंदी भाषी उत्तर भारत की जनता व् उसके कागजी शेर नेता नेता क्यों हमारी त्योहारों व् परम्पराओं की रक्षा नहीं कर पा रहे ? क्यों उत्तर भारत में कोई जय ललिता नहीं पैदा होती ? क्यों हर कोई हमें दो लात मार कर प्रेस व् मीडिया में प्रसिद्ध व् बहादुर बन जाता है .
इसका उत्तर कष्टप्रद है . उत्तर भारत अब आर्थिक ही नहीं बल्कि मानसिक रूप से भी पिछड़ गया है . अब इलाहबाद , बी एच यू व् रूडकी की पुरानी प्रतिष्ठा नहीं रही . अब सरस्वती व् शक्ति के उपासक मात्र धन की पूजा करने लगे हैं . त्याग की क्षमता नहीं रही और व्यक्तिगत स्वार्थ सर्वोपरी हो गया है . जिनके पास ज्ञान है उनके पास साहस नहीं है . जिनके पास साहस है उनके पास धन व् ज्ञान नहीं है . जिन के पास धन है वह आज के अर्थ प्रधान समाज मैं घमंड में डूबे हुए हैं . वह चतुर हैं पर बुद्धिमान नहीं हैं. उनके पास दूरदृष्टि, उचित अनुचित का बोध व् बुद्धि नहीं है . धनिक वर्ग नुक्सान नहीं झेल सकता इसलिए वह समाज का नेता हो ही नहीं हो सकता . इसी लिए समाज गर्त में जा रहा है .
न्यायलय को सदियों की परम्पराओं में बहुत विशेष परिस्थितियों में सोच समझ के हस्तक्षेप करना चाहिए . तमिलनाडु के केस मैं सर्वोच्च न्यायाल ने लिखा कि
A bench of Justice Dipak Misra and Justice Rohinton Nariman said the 2009 law that permitted jallikattu violated the Prevention of Cruelty to Animals Act, 1960, that is dedicated to prevent “unnecessary pain and suffering caused to animals.” The law’s objective cannot be overlooked, the bench said.
Justice Misra, writing the judgment, said Tamil Nadu’s argument that jallikattu had a religious significance to the people of Tamil Nadu for over 1000 years was not acceptable.
जयललिता ने सर्वोच्च न्यालय को उसकी सीमा बता कर जन प्रतिनिधि होने का धर्म निभा दिया .
सर्वोच्च न्यालय को विस्तृत जन आक्रोश से अवगत कराना चाहिए . किसी जज को अपनी व्यक्तिगत राय को पूरे समाज पर थोपने का अधिकार नहीं है . दीवाली का त्यौहार किसी न्यायालय का मोहताज़ नहीं है . उत्तर भारत की जनता व् नेताओं को स्वर्गीय जय ललिता से प्रेरणा लेनी चाहिए परन्तु धर्म व् अंधविश्वास की परख होनी चाहिए .
आज सभी विदेशी संस्थाएं हमारी परम्पराओं व् पारिवारिक व्यवस्थाओं को न्यायालयों के माध्यम से भी ध्वस्त कर रही हैं . प्रसिद्द लेखक राजीव मल्होत्रा ने अपनी पुस्तक ‘ Snakes in Ganga’ मैं इस पर चर्चा की है . ‘ Marital Rape ‘ पर सर्वोच्च न्यालय की व्यर्थ की दखलंदाजी को जो हमारी परिवार व् विवाह की व्यवस्था को छिन्न भिन्न कर देगी, आर्डिनेंस से निरस्त करना चाहिए .
जन हित याचिकाओं को कैट की तरह एक प्रशसनिक कोर्ट में सुनना चाहिए न्यायालयों में नहीं .