पटाखों पर जेल के बावजूद दिल्ली में बेहद प्रदूषण है तो अगले साल पटाखे फोड़ने वालों को फांसी दे कर देखो !

 

पटाखों पर जेल के बावजूद दिल्ली में बेहद प्रदूषण है तो अगले साल पटाखे फोड़ने वालों को फांसी दे कर देखो !

अंधेर नगरी चौपट राजा टके सेर भाजी टके  सेर खाजा !

राजीव उपाध्याय

सभी पुरानी सीमाओं को पार करते हुए, इस साल दिल्ली मैं दिवाली पर पटाखे फोड़ने वालों को जेल की सज़ा का ऐलान कर दिया गया . सैकड़ों सालों की परम्परा जो दीवाली को अप्रतिम खुशियों का त्यौहार बनाती थी,  एक झटके मैं तोड़ दी गयी . पटाखों की आवाज़ से किसी बड़े बाबू या अन्य किसी नेता ,न्यायायिक उच्चाधिकारी के दीवाली के बम से उनके कुत्ते के डर जाने पूर्ण शासन तंत्र एक्शन मैं आ गया और प्रदुषण व् सांस की बीमारियों के नाम पर तुगलकी फरमान जारी कर सब हिन्दुओं को आक्रोश से भर दिया . किसी ने नहीं पूछा कि इससे कभी प्रदुषण रुक सकता है ? देश मैं अब जय ललिता सरीखे नेता तो है नहीं जो परम्पराओं व् जन भावनाओं को कद्र कर सकें सो चुप चाप इस आदेश को मान लिया गया . परन्तु ढोंग से समस्या तो हल नहीं होती . न तो दिवाली के बाद अगले दिन न  इससे प्रदुषण में कोई कमी नहीं आयी न ही बीमारी में पर कोई तालियों से खुश है तो किसी बाबू के प्रमोशन की लाटरी  खुल गयी होगी. कुछ गरीब पटाखे वाले कंगाल हो गए क्योंकि यह रोक तीन महीने पहले लगा देते तो वह पटाखे नहीं खरीदते ! पर उनकी आवाज़ तो बिलकुल दब गयी .

एक पुरानी कहानी है अंधेर नगरी चौपट राजा , टेक सेर भाजी टेक सेर खाजा . अब टके सेर भाजी व् टेक सेर खाजा को समझते हें .

 

दिल्ली नगरी भी विचित्र्ताओं का संग्राहलय है . नगर की समस्याएं तो बढ़ रही हें परन्तु सब शासक व उनके बाबू उन्हें सुलझाने के ढोंग करने में व्यस्त हैं . ढोंग से तो समस्याएं सुलझती नहीं हें , हाँ यह ढोंग कुछ लोगों को करोडपति अवश्य बना देता है . आज कल प्रदुषण एक कामधेनु गाय बन गया है . पहले तो नए उद्योगों पर्यावरण विभाग से Environmental Clearance कुछ चढ़ावे से मिलती थी . फिर राजनीतिज्ञों ने इसको अंतिम क्लीयरेंस बना लिया जहाँ बड़े मोल भाव होने लगे . सोनिया काल की पर्यावरण मंत्री जयंती नटराजन के पकडे जाने के बाद मंत्री डर गए .साफ़ छवी को मूल्यवान समझने वाले प्रकाश जावेडकर ने केंद्र से हटा कर इस क्लीयरेंस को राज्यों को दे दिया . अब राज्यों की चांदी हो गयी . हद तो तब हो गयी जब सीमा सुरक्षा की सड़कों को कुछ पेड़ों को बचाने के नाम पर रोक दिया जाने लगा .यह विसंगति भी अभी दूर हुयी है पर बहुत नुक्सान के बाद .

धीरे धीरे सत्ता के अन्य केन्द्रों को भी बहती गंगा में हाथ धोने की ललक उठ गयी . दिल्ली में सर्वोच्च नायालय ने सब बसों को CNG kit लगाने का आदेश दे दिया गया . छात्रों के उग्र आन्दोलन के बाद भी सर्वोच्च न्यायालय ने  उसकी तारीख बढ़ा देने से मना कर दिया . बाद मैं कुछ अखबारों को पता लगा की मुख्य न्यायाधीश सभरवाल के बेटे के पास इस CNG किट की एक मात्र एजेंसी थी. पर मुख्य न्यायाधीश से कौन उलझे !

दिल्ली की शीला दीक्षित की सरकार ने कई प्रभाव शाली कदम गहन अध्ययन के बाद उठाये थे जो बहुत प्रभावी रहे . DTC बसों को CNG पर करने के अलावा सबसे अधिक प्रदूषण फैलाने वाले ऑटो व् तुक तुक को भी CNG पर कर दिया . मेट्रो ने बहुत बड़ा योग दान दिया . फ्ल्योवेरों ने सिग्नल पर ढेर धुआं छोड़ने वाली कतारें बहुत कम हुई. नए वाहन कम प्रदूषण वाले बनाये गए .बाद में तो टैक्सी भी CNG पर हो गयीं. डीजल मैं सल्फर कम की गयी . इन सब के परिणाम से कुछ वर्षों के लिए दिल्ली में प्रदूषण काफी कम हो गया . इसी तरह के बहुत अच्छे कामों मैं दिल्ली बाय पास सड़कों का निर्माण था जिनसे उत्तर प्रदेश के ट्रक दिल्ली को बाय पास करने लगे . मेट्रो का दिल्ली में तेज़ी से विस्तार हुआ . यह वह बुद्धीमत्ता वाले काम थे जिनका राजनीती या भ्रष्टाचार के लिए उपयोग नहीं किया गया .

पर जब जनता का प्रदूषण कम करने को व्यापक समर्थन मिलने लगा तो उससे औरों मैं भी लालच भी उत्पन्न हो गया .

ऐसा ही एक ड्रामा दिल्ली मैं Odd Even था . एक दिन सम और अगले दिन विषम नंबर की कारें सड़कों पर चल सकती थी . पर दिल्ली की अनगिनित स्कूटर व् मोटर  साइकिलों के इंजन ही तो बहुत प्रदूषण फैलाते है उसको नहीं छूआ क्योंकि फ़िज़ूल के ड्रामे से वोटरों को नाराज़ थोड़े ही करना था ! जब इससे कुछ लाभ न मिलने की खबर आ गयी तो यह ड्रामा बंद कर दिया गया .

एक बहुत बुरा फैसला पंद्रह साल से पुरानी पेट्रोल कारों व् दस साल से ज्यादा पुरानी डीजल कारों को सड़कों से हटाना था . जब हर साल प्रदूषण सर्टिफिकेट लेते हैं और कम उपयोग मैं आने वाली कारों के इंजन अच्छे हैं तो उन्हें क्यों हटाया जाय . समस्या तो पेंशन वाले कर्मचारियों या विधवाओं की थी जो अपने कार को अस्प्ताल जाने या साप्ताहिक खरीददारी के लिए रखते थे . टैक्सी में चल रही कार के इंजन तो तीन साल मैं घिस जाते हैं और सरकारी बाबुओं की कार तो बीस साल मैं एक लाख किलोमीटर चलती है . मारुती ने इस फैसले से कुछ दिनों पहले अपनी डीजल इंजन की नयी फैक्ट्री लगाई थी. उसके निवेश को किसने बर्बाद किया ? ऐसे ही पंद्रह साल से अधिक पुराने ट्रक व् बस हटाने का था . पुराने ट्रक व् बस तो गावों में भूसे जैसे सस्ता सामान या ईटों को ढोने मैं लाये जाते हैं उन पर रोक से क्या मिलेगा .यह फैसला देश के सबसे खराब फैसलों में से एक था पर कौन ट्रिब्यूनल से भिड़े ? जनता फिर प्रदूषण के लालच के व्यापार मैं पिसती रही.

अब पटाखों को लीजिये . 2018 मैं दिवाली के अगले दिन दिल्ली से लाहौर तक कोहरा जैसा धुआं फ़ैल गया . लाहौर में तो दिवाली भी नहीं मनती .यहाँ तक की भारत व् पाकिस्तान भी एक दुसरे को दोष देने लगे . दिल्ली की बढ़ती कारों व् खेतों मैं पराली जलाने को दोषी करार दे दिया गया जबकि ट्रक, ट्रेक्टर, ऑटो व् मोटरसाइकिल कहीं ज्यादा जिम्मेवार थे. परन्तु तीन दिन तक हवा बिलकुल बंद हो गयी थी . इसलिए धुआं आगे नहीं बढ़ रहा था . तीन दिन बाद जब हवा चली तो राहत मिली.  पराली तो हमेशा से खेतों में ही जलती है . उसे कहाँ ले जाएँ ? किसी को नहीं पता ! दिल्ली की आबादी कितने गुना बढ़ गयी है तो कारें , स्कूटर व् मोटरसाइकिल तो बढेंगी ही . सबसे बड़ी समस्या तो धूल की है . भारत मैं धुल तो अफ्रीका के सहारा रेगिस्तान से भी आती है . कौन धुल को रोक सकता है . हम सब हवा के तेज़ बहाव पर आश्रित हैं . २०१८ से पहले लन्दन मैं दिसंबर २०५२ मैं सात दिन के लिए बेहद धुआं भर गया था . सात दिन बाद सूरज निकला हवा चली और धुआं हटा . पर प्रधान मंत्री चर्चिल ने कोई Odd Even का ड्रामा नहीं किया बल्कि सारा ध्यान मरीजों के इलाज़ पर केन्द्रित किया.

परन्तु यह तो भारत है . सरकारी तंत्र को कुछ कर के जनता को झूटा सच्चा ढाढस व् दिलासा दिलाना है और अपने को बचाना है . तो नजला दिवाली के पटाखों व् घरों के construction पर गिरा  कोई भी हवा को तो चला नहीं सकता था पर इस बहाने कोई न कोई  दीवाली के पटाखों व् घरों के बनाने पर रोक लगा देता है और कितनों के वारे न्यारे हो जाते हें . उन मजदूरों का क्या होगा जो अपनी दिहाड़ी से मारे गए . पटाखे के कारखानों व् दुकानदारों का क्या होगा ? किसी को नहीं फिकर .

प्रदूषण अब बहुत बड़ा व्यापार बन गया है . इस व्यापार को रोकने की बहुत जरूरत है . त्योहारों से कोर्ट को दूर करना होगा . सबको मिल कर गंभीरता से इसका समाधान निकलना होगा न की ड्रामे बाजी की होड़ लगानी होगी .

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