Jobless , Stagnant Economy – 2 : क्यों भारत में न राजशाही , न प्रजातंत्र न ही अधिनायक वादी सरकार चीन जैसा आर्थिक विकास नहीं करवा पातीं-समस्या व् निदान

Jobless , Stagnant Economy – 2 : क्यों भारत में न राजशाही , न प्रजातंत्र न ही अधिनायक वादी सरकार चीन जैसा आर्थिक विकास नहीं करवा पातीं-समस्या व् निदान

राजीव उपाध्याय

अधिकाँश भारतीय गहन चिंतन  के अभाव मैं व पूर्वाग्रहों के कारण अपनी सब समस्यायों के लिए धर्म या वर्ण व्यवस्था को दोषी ठहरा कर हाथ झाड लेते हैं .यह पलायन वाद है.

प्रसिद्द  इतिहासकार आर्नोल्ड टोयंबी  ने कहा था कि जो सभ्यताएं कठिनाइयों से जूझती हुयी विकसित होती हैं वह ज्यादा उच्चाभिलाषी व् creative होती हैं . प्राचीन ग्रीस  इसका एक उदाहरण है .भारत की विज्ञान व तकनीकी क्षेत्र में पिछड़ने का कारण  भी इसी मैं छुपा है.

प्रचुर वर्षा , अनेक नदियों व् जलाशयों के कारण भारत का वैदिक काल से ही कृषि से आर्थिक विकास हुआ जो कि उस काल का सबसे अधिक् आमदनी वाला मार्ग था .इसलिए भारत सोने की चिड़िया बन गया .परन्तु उपजाऊ भूमि , वर्षा व् प्रचुर जल संसाधनों के कारण यहाँ के लोगों को जीवन के लिए बहुत संघर्ष नहीं करना पडा . इस लिए भारत में केवल विज्ञान स्वास्थ  व धातु विज्ञान मैं अधिक विकसित हुआ . .भारतीय दवा व् इलाज़  तकनीकी व् वैज्ञानिक उपलब्धियां विश्व में विख्यात थी . इसके विपरीत मेसोपोटामिया , ग्रीक , रोमन विज्ञान व् कलाओं मैं हमसे कहीं आगे थीं . मेसोपोटामिया की तकनिकी उपलब्धियों के बारे मैं पढ़ें तो भारत के तकनीकी पिछड़ेपन  को समझ सकते हैं  (  परन्तु History of technology – Wikipedia) इसके बावजूद भारतीय संस्कृति व जीवन शैली अधिक उच्च थी .

इसी सुलभता से उपलब्ध उच्च जीवन शाली ने भारत को अंतर्मुखी व्  खतरों से खेल कर बड़ी उपलब्धी पाने की चाह को नहीं पनपने दिया. जो विदेशी यात्री भारतीय शहरों को देखते थे वह यहाँ की समृद्धि से दंग रहते थे .

यही हाल सुरक्षा का था . हिमालय व् समुद्र के कारण भारत विदेशी आक्रान्ताओं से सुरक्षित था . इसी लिए यहाँ रक्षा के चतुरंगिणी  सेना के अतिरिक्त नए  तरीकों का विकास नहीं हुआ . धर्म ने हमें सहिष्णु व् दयावान बना दिया जो एक अच्छी बात थी . परन्तु कालयवन पश्चिम से ९ संभवतः अरब ) मथुरा पर हमले करता रहता था और भगवान् कृष्ण ने सुदूर द्वारका नगरी बसा ली.हूण  लोगों ने घोड़ों पर बैठ कर तीरंदाजी की तकनीक विकसित कर विश्व को रोंद दिया . हमने मराठों तक इसको सीखने का  प्रयास भी नहीं किया .रोमन लोगों ने २८० ईसा पूर्व गुलेल का हथियार के रूप मैं उपयोग शुरू कर दिया था .

इसी आसान समृद्धि व् अंतर्मुखी प्रवृति ने धर्म का मुख आत्मा परमात्मा व् मोक्ष की तरफ कर दिया . हमारे शास्त्रार्थ जीवन पर नहीं बल्कि मोक्ष व् आत्मा पर होने आगे . उनमें बहुत अच्छाई  भी थी परन्तु जीवन के लिए उपयोगिता नहीं थी. कुछ साहसी व्यापारी हडप्पा   काल से  समुद्र से दूर दूर तक  व्यापार करते थे परन्तु पाल वाले जहाज शायद चीनियों ने बनाए.

अल बिरूनी व् अन्य  विदेशी इतिहासकारों ने भारतीयों के मिथ्याभिमानी होने पर शिकायत की है . यह प्रवृति भारतियों मैं अब भी विद्यमान है . थोड़ी  सी उपलब्धी पर डींग मारना व् कठोर व दीर्घ कालीन सम्मलित  प्रयास से बड़ी उपलब्धि पाने की कोशिश न करना हमारा चरित्र बन गया . सच मैं हम डरपोक हैं और जो साहसी हैं उनमें बुद्धि  नहीं है.  विदेशों में फैलने की न ही आवश्यकता थी न हमने कोशिश की न ही कुछ सीखा .

सिंध की राजा दाहिर की हार ( ७१२ ईस्वी ) महमूद गजनवी के सत्राह हमलों ने भी भारतियों को किसी नयी युद्ध शैली विकसित करने की प्रेरणा नहीं दी . कुछ बौध कालीन अपवादों को छोड़ कर , हमारा कोई फाहियान या ह्यून  सांग या मार्को पोलो विश्व भ्रमण पर नहीं निकला . औद्योगिक क्रांति ने तो हमें सौ साल पीछे कर दिया .

इसलिए इतनी गहरी व् पुरानी  कमियों को दूर करना बहुत कठिन है .क्योंकि यह कमियाँ हर भारतीय में हैं इसलिए प्रजातंत्र से इनको आसानी से दूर नहीं किया जा सकता है.राजा भी प्रजा का ही प्रतिबिम्ब होता है .इसलिए हमारी राजशाही , सरकार व् व्यापारी वर्ग भी आज निम्न कोटि का है .

परन्तु इसी सोते देश को गांधीजी ने जगा दिया था . परन्तु गुलामी तो हर किसी को बुरी लग रही थी . पर धीमा आर्थिक विकास तो आलसी जनता को कठिनाई झेल कर तेज़ी से आगे बढ़ने से ज्यादा प्रिय है . इसलिए बिजली , इडली , चावल , राशन मुफ्त देने वाले निकृष्ट नेता हर कोई चाहता है .

ऐसे में क्या हम ‘ यदा यदा ही धर्मस्य ‘ वाले किसी नए अवतार की प्रतीक्षा करें या शंकराचार्य की तरह शंख नाद कर सारी देश की सोती जनता को गांधी जी की तरह जगाएं . उत्तर स्पष्ट हैं परन्तु बिल्ली के गले मैं घंटी बंधे का कौन ?

काम तो यह बुद्धिजीवी वर्ग ही कर सकता है . पर आज बुद्धि जीवी वर्ग बेहद उपेक्षित , उत्पीडित  व् स्वार्थी हो गया है .

पर इसी मैं से किसी शंकराचार्य या दयानंद सरस्वती को  उठना होगा .

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