अंतहीन हिजाब व हलाला के आवरण से बढ़ती बेरोजगारी व आर्थिक प्रगति में गंभीर सुस्ती से ध्यान हटाना राष्ट्रीय हितों के खिलाफ हो गया है
मैंने बहुत दुःख से टेलीविज़न पर समाचार देखना कई महीनों से न केवल बंद कर दिया है बल्कि टाटा स्काई का कनेक्शन भी समाप्त कर दिया है . कभी मैं दिन में एक डेढ़ घंटा न्यूज़ चेनल बहुत शौक से देखता था . दिन के अंत में देश की समस्यायों व् उनके निदान पर मेरे ज्ञान में वृद्धि होती थी . उनसे मुझे कुछ विशेष पुस्तकें पढने की प्रेरणा मिलती थी . बचपन से अखबार व् टीवी न्यूज़ देखना जनरल नोलिज के लिए श्रेष्ठ मना जाता था .पर अब सब बदल गया है.
आज हर चैनेल पर दिन भर छः घिसे पिटे चेहरे या तो हलाला या हिजाब या कोई मंदिर मस्जिद घोटते रहते हें . हलाला बहुत बुरा हो सकता है . पर इससे देश में कितनी नारियां पीड़ित हैं ? इसके विपरीत देश में सुरसा के मुख की तरह फ़ैली बेरोजगारी करोड़ों युवाओं का जीवन नष्ट कर रही है उस पर कोई चर्चा नहीं हो रही ! अंत में दो वर्षों के राष्ट्रीय आन्दोलनों से विरोध को कुचल कर यदि हमने हलाला हटा भी दिया तो उससे किसको रोटी कपड़ा या मकान मिल जाएगा ?
कभी अंग्रेजों द्वारा चीन पर की गयी अफीम की लड़ाई की तरह क्या हमें बुर्का या औरंगजेब के अत्याचार व् मंदिर विध्वंस की नयी अफीम हमें रोज़ खिलाई जा रही है जो हमारी देश की वास्तविक समस्यायों व् निदान की ज्ञान पिपासा व् तार्किक क्षमताओं को चीनी अफीम की तरह ही हर रही है . देश बर्बाद भी हो जाय तब भी हम इस नयी अफीम के नशे मैं खुश हैं .एक छोटी सी ज्ञान वापी या मथुरा या बाबरी मस्जिद को हटा कर हम अपने हज़ार वर्षों की गुलामी के मूल कारणों को हटाने से मुख फेर लेते हैं !
यदि यह सच है तो यह गंभीर विषय है क्योंकि कोई राष्ट्र सिर्फ सरकारी बाबुओं या अनपढ़ नेताओं के चिंतन से नहीं चल सकता . प्रजा तंत्र की सफलता सिर्फ सम्पूर्ण राष्ट्र के विकास व् प्रगति के यज्ञ मैं अपनी आहुति डालने से ही संभव है . इसके लिए जनता का राष्ट्रीय समस्यायों पर ज्ञान पूर्वक चिंतन आवश्यक है .
मैंने देश के कई मूर्धन्य अर्थशास्त्रियों से बात की . भारत पिछले दस सालों से बहुत सुस्त आर्थिक प्रगति कर रहा है . बेरोजगारी चरम पर है . कृषि उत्पादन व् मूल्यों के बढ़ने के बावजूद गाँवों में वास्तविक वेतन कम हुआ है . बिजली , मोटर साईकिल जैसी चीजों की बिक्री कम हो रही है . पिछले साल को छोड़ दस सालों में निर्यात में वृद्धि नहीं हुयी है . लाखों बने हुए घर बिना बिके खड़े हैं . रेलवे की सौ चतुर्थ श्रेणी की नौकरियों के लिए हज़ारों इंजिनियर भी आवेदन दे रहे हैं ! पर देश में कोई इस के लिए चिंतन नहीं कर रहा . रिश्वती बाबु व अक्षम नेता कृषि बिल या नोट्बंदी की तरह कोई लंगडा लूला प्रयास करते है जिसे किसी अदानी या अम्बानी के हितों के लिए न्यायालयों को किसानों की ज़मीन छीनने से बेदखल कर बर्बाद कर देते हैं . हरित क्रांति चालीस साल पुरानी हो गयी . कृषि में नयी क्रांति की आवश्यकता है . इसके बिना गाँवों का विकास असंभव है . समाधान भी हैं पर किसी को चिंता नहीं है . आर्थिक विकास दर के सरकारी आंकड़े सिर्फ आधा सच बताते हैं . सत्यवादी युधिष्टिर से हमने सिर्फ ‘ अश्वत्थामा हतो नरो न कुंजरो ‘ बोलना ही सीखा जिससे हम गुरु द्रोंण सरीखी जनता की रोज़ ह्त्या करते हैं .
चीन की सफलता हम क्यों नहीं पा सकते , इस पर कोई चिंतन नहीं है .देश सौ या दो सौ मुसलामानों की दो या तीन शादियों की समस्या सुलझाने में व्यस्त है जिससे न वह न उनकी पत्नियां पीड़ित हैं . बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना रोज़ चरितार्थ हो रहा है .
यह नहीं है कि मैं हिन्दुओं की हज़ार वर्षों की गुलामी या औरंगजेब या नादिरशाह के अत्याचारों से पीड़ित नहीं हूँ . पर इनका निदान सशक्त खुशहाल भारत बनाने से होगा टीवी पर दिन भर हलाला घोटने से नहीं होगा . देश को इस अफीम की लत लगाने वाले एक पाप कर्म कर रहे हैं . यदि इसको बंद नहीं किया गया तो हम सब इस अफीम के बहुत दुष्परिणाम भोगेंगे .
‘ अब पछताए क्या होता जब चिड़िया चुग गयी खेत ‘ कबीर की इस शिक्षा को आज भी अपना कर हम देश बचा सकते हैं .