आर्थिक प्रगति व औद्योगीकरण में पिछड़ता उत्तर भारत राष्ट्रीय एकता के लिए घातक होगा : सरकार व जनता का मानसिकता परिवर्तन आवश्यक है परन्तु इसका राजनीतिकरण न किया जाय
प्राचीन भारत की संस्कृति व सत्ता का केंद्र दिल्ली ( इन्द्रप्रस्थ ) या पाटलिपुत्र हुआ करता था . कुछ समय के लिए उज्जैन , पाटन व तंजावुर भी उठे परन्तु अधिकाँश समय सत्ता व संपत्ति की कुंजी उत्तर भारत में ही रहती थी . इसका एक प्रमुख कारण नदियों की बहुतायत व अधिक वर्षा भी था जिससे कृषि के लिए उत्तर भारत अधिक उपयुक्त था . परन्तु आज ( 2017-18 NSDP) बिहार (Rs 38631) व उत्तर प्रदेश की औसत आय ( Rs 55456) राष्ट्रीय औसत ( Rs 114958 ) का आधा ही रह गयी है . कश्मीर की औसत आय भी बिहार से दुगनी है .कुछ दिन तो यह चलता रहेगा पर धीरे धीरे Great Vindhya Divide की आवाज़ उठने लगेगी . अब तो डीएमके के भ्रष्ट पूर्व मंत्री ए.राजा जो अट्ठारह महीने जेल में बिताने के बाद साक्ष्यों के अभाव से सुप्रीम कोर्ट से छूट गए फिर से सार्वजानिक रूप से हिन्दू विरोधी व अलग तमिल देश की मांग करने लगे हैं . आज तमिल नाडू की प्रति व्यक्ति औसतन आय ( NSDP 2017-18) 171583 रूपये है जबकि उत्तर प्रदेश की आय मात्र 55456 रूपये है . इसके अलावा धर्म परिवर्तन भी दक्षिण भारत विशेषतः तेलेंगना में जोर शोर से चल रहा है . शंकराचार्य की गिरफ्तारी , चेनई रेलवे स्टेशन के बाहर बहुत ऊंची ईसा की प्रतिमा , आंध्र पदेश में YSR Reddy के कार्य काल में ईसाई धर्म का अति विस्तार संभवतः एक बड़ी अंतर्राष्ट्रीय मुहीम का हिस्सा प्रतीत होते हैं जिसका उद्देश्य भारत को कमजोर करना ही हो सकता है . बिना किसी विदेशी ब्लैकमेल के तत्कालीन धार्मिक मुख्य मंत्री जयललिता शंकराचार्य को गिरफ्तार कभी नहीं करवाती.
जब २०५० में जब भारत पुनः समृद्ध होगा तो चीन के बाद भारत के तीन टुकड़े करने का भी प्रयास होगा . अधिनायकवादी चीन तो उसे असफल कर देगा परन्तु प्रजातान्त्रिक भारत इस षड्यंत्र को नहीं झेल पायेगा. इसाई पूर्वोत्तर राज्य , अमीर दक्षिण भारत व् शेष गरीब उत्तर भारत के तीन देश बनाने की कोशिश की जायेगी . पहले भी समृद्धि के शिखर पर ही भारत गुलाम बना था वही प्रयास व्यापार के नाम पर फिर होगा. गरीब उत्तर भारत से पिंड छुडाना, अमीर उन्नत दक्षिण को द्रविड़ सिद्ध करने वालों को रास आयेगा . इसलिए भारत की अखंडता के रक्षा के लिए उत्तर भारत को पुनः समृद्ध बनाना आवश्यक है .
प्रश्न उठता है कि हज़ारों वर्षों से इतना उन्नत उत्तर भारत इतना गरीब क्यों हो गया . स्वतंत्रता के समय भी सागर तट के राज्य विशेषतः तमिल नाडू की आय उत्तर प्रदेश से अधिक थी . हरित क्रांति ने इस अंतर को काफी घटा दिया . पर १९९० से तमिल नाडू व् दक्षिण के राज्य बहुत आगे निकल गए . बंगाल के नक्सल काल के पतन के बाद गाजियाबाद में कई फैक्ट्री शिफ्ट हो कर आयीं थी . पर उनके साथ नक्सालवाद की बीमारी भी आ गयी और फक्ट्रियां अन्य स्थान खोजने लगीं. इसके बाद हरयाणा का फरीदाबाद उत्तर भारत की पसंदीदा जगह बन गया . बीच में पंजाब , मेहनती मज़दूरों व किसानों और हरित क्रांति की बढी क्रय क्षमता के चलते पसंदीदा जगह बन गया . पंजाब के लोग राजनीती से ज्यादा काम पर ध्यान लगाते थे. दुसरे पंजाब से कई लोग विदेश चले गए इस लिए ज़मीन का बँटवारा नहीं हुआ जिससे ट्यूब वेल, ट्रेक्टर इत्यादि वहां बहुत प्रचलित हो गए.
१९७० तक उत्तर प्रदेश का कानपुर भारत का पांचवा सबसे बड़ा औद्योगिक केंद्र था . परन्तु वहां नयी टेक्नोलॉजी पर कोई निवेश नहीं हुआ . मजदूर यूनियन के चलते सरकार ने धक्का देकर लाल इमली , फ्लेक्स , धारीवाल को बहुत दिन चलाया पर अंततः उनको बंद ही करना पड़ा . हम जैसे लोग जिन्होंने देश के कई राज्यों में फेक्ट्री प्रबंधन किया है वह सब सच्चाई जानते हैं पर अप्रिय सत्य कौन बोले और डर भी है . सच यह है कि उत्तर प्रदेश में भ्रष्टाचार जड़ों तक पहुँच गया है . इसके अलावा मजदूर भी अन्य राज्यों जितनी उत्पादकता नहीं देता . लोग आलसी हो गए हें और कम मेहनत से अधिक पैसा बनाना चाहते हें . अब तो मुफ्तखोरी देश की राजनीती का हिस्सा बन गयी है. इसलिए मुफ्त ज़मीन देने के बावजूद भी गुजरात , महाराष्ट्र , तमिल नाडू निवेशकों की पहली पसंद हैं . वहां फक्ट्री चलाना आसान है. कोई बाबू यह नहीं बताएगा क्योंकि नेता सी चपरासी तक सब को पैसा चाहिए . मायावती जी का वह विडियो जिस में वह पार्टी एम् एल ए को बता रहीं थी कि ‘ दस प्रतिशत तो कोई भी दे देगा’ यह ही उत्तर प्रदेश का सच है. मेरे एक परिचित ने अमरोहा में विदेशी पूंजी से निवेश किया परन्तु डेढ़ साल में बेच कर भाग गए. ऊपर से लेकर पंचायत प्रमुख तक लोगों ने निवेशक का खून चूस लिया. तमिलनाडु में सौदे के बाद सरकार किसी को निवेशक का खून नहीं चूसने देती. इसलिए जब तक सरकार यह जोंक संस्कृति नहीं बदलेगी राम कृष्ण की जन्म भूमि व् कभी स्वतंत्रता सग्राम में अग्रणी उत्तर प्रदेश का विकास नहीं हो सकता .
इसी तरह कर्ण , चाणक्य व पाटलिपुत्र की शान वाला बिहार जहां से हज़ार साल देश संचालित हुआ करता था आज अकेला राज्य है जो उत्तर प्रदेश से भी बदतर है . टाटा जैसी नयी फक्ट्री लगाना तो क्या वहां तो वस्त्रालय वाले भी दूकान बेच बेच कर भागते हें . एक बिहार के बंद फक्ट्री के मालिक ने मुझसे कहा की गाय से तो दूध सब निकलते हैं यहाँ तो बैल से भी दूध निकालना चाहते हें. पिछले वर्षों में राजनीती , सड़क व् शिक्षा सुधरी है पर इतना काफी नहीं है . अन्य राज्यों में मेहनत का सब काम बिहारी कर रहे हें . पर भ्रष्टाचारी , जातिवाद व् हर स्तर पर राजनीती के चलते आज कोई उत्तर प्रदेश व बिहार में फैक्ट्री नहीं लगाना चाहता .
राजस्थान व मध्य प्रदेश पिछले बीस सालों में कुछ आगे बढे हैं पर अभी भी नया टेक्नोलॉजी का निवेश नहीं ला पा रहे हें . इनके विपरीत कभी नक्सल पीड़ित बंगाल मैं निवेश अधिक हो रहा है.
इसलिए देश के मूर्धन्य नेत्रित्व को उत्तर प्रदेश व बिहार को सुधारने का अति विशेष प्रयास करना होगा .
अन्यथा अगले तीस साल में घात में बैठी विघटन वादी विदेशी ताकतें प्रजातंत्र का दुरूपयोग कर , मात्र तीस हज़ार करोड़ की रिश्वत देकर देश को जाती , धर्म , भाषा के सहारे तीन टुकड़ों में तोड़ देंगी !