Bank Loan Write Off :क्या  एक विशाल नया चारा घोटाला है और मध्यम वर्ग की जेब पर नया डाका है ! बैंक डकैती का इतिहास !

Bank Loan Write Off :क्या  एक विशाल नया चारा घोटाला है और मध्यम वर्ग की जेब पर नया डाका है ! बैंक डकैती का इतिहास !

राजीव उपाध्याय

हाल मैं दो ख़बरें एक साथ आयीं .पहली खबर जिस पर  सब चर्चा कर रहे हैं वह है वह है आई सीआई सीआई बैंक की पूर्व चेयरमैन श्रीमती चन्दा कोचर व् उनके पति तथा विडियो कों के अध्यक्ष वेणुगोपाल धूत की गिरफ्तारी और दूसरी खबर सरकार ने संसद में एक प्रश्न के उत्तर में दी की पिछले छः वर्षों में सरकार ने ग्यारह लाख करोड़ रूपये के कर्जे write off (माफ़ ) किये हैं . यह राशि  देश की तीन साल की सड़कों बंदरगाहों व् रेलवे के विका के खर्चों के  बराबर थी .मेरा कहना है की यह विशाल बैंक के क़र्ज़ का माफ़ करना एक नया चारा घोटाला है जो लालू यादव के ९५०  करोड़ के चारा घोटाले से कहीं अधिक विशाल व् विकृत है . पहले इसे विस्तार से समझते हैं .

सीबीआई ने जांच कर सिद्ध कर दिया कि कभी पदम् भूषण से पुरस्कृत चन्दा कोचर ने नियमों का उल्लंघन कर विडियो कों कंपनी को ३५०० करोड़ रूपये का क़र्ज़ दिया . विदेओकोंन  इस क़र्ज़ को नहीं चुका पाई जिससे बैंक को बड़ा घाटा हुआ .इसके लिये रिश्वत के रूप में चन्दा कोचर के पति ने अपनी एक कंपनी NUPOWER में धूत से 64  करोड़ फर्जी निवेश करवाया . सीबीआई की जांच पर केस चलेगा जिसमें हो सकता है कोचर , उनके पति व् विडियो कोंन अध्यक्ष को जेल हो जाय . यदि ऐसा हो तब भी यह आंशिक न्याय तो होगा . पर इसके लिए वेणुगोपाल धूत ने कथित रूप से सरकारी गवाह बनने की पेशकश की है . अगर यह मान ली गयी तो रिश्वत देने वाला धूत बाख जाएगा पर लेने वाली चन्दा कोचर की जेल पक्की है . यह भी न्याय का विकृतीकरण है . पहले इसे समझते हैं .

विडियोकोंन कंपनी पर चिदम्बरम काल में सरकार की विशेष कृपा रही है. उनको कुल मिला कर ३९००० करोड़ रूपये की राशि बीस बैंकों ने मिल कर उधार दी थी जिसमें आईसीआई बैंक की राशी ३५०० करोड़ थी . यह बहुत कमाल है की ओ एन जी सी ने एक टेलीविज़न बनाने में असफल कंपनी को अफ्रीका के मोज़ाम्बीक देश में तेल की खोज के लिए २०० मिलयन डॉलर का निवेश किया ( आज का १७०० करोड़ रूपये ) . इसी तरह सब बैंकों उन्हें बेशुमार क़र्ज़ दिया . अंत में इस कंपनी को मात्र  तीन हज़ार करोड़ रूपये में वेदांता को बेच दिया गया .

तो असली बात तो यह है बाकी ३६००० हज़ार करोड़ रूपये कहाँ गए ?

बैंकों में किस का पैसा जमा होता है ? सिर्फ मध्यम वर्ग का . अमीर तो कर्ज़े लेते हैं और वेणुगोपाल धूत, नीरव मोदी , विजय माल्या की तरह डकार जाते हैं .गरीब तो रोज की रोटी के इंतजाम मैं लगा रहता है . वह कितना धन बचा पाता है ? मरता तो सिर्फ माध्यम वर्ग है जो अपनी गाढी कमाई बुढापे के लिए बच्चों की पढाई के लिए लड़की की शादी के लिए बचाता है और वर्षों बैंक मैं रखता है . तो सरकार हो या फर्जी उद्योगपति हों वह सब औने पौने मैं बहुत बड़ा क़र्ज़ लेते हैं और दस साल तक ब्याज देकर दिवालिये हो जाते हैं . अंत मैं उनकी क़र्ज़ की राशि माफ़ हो जाती है .

इसमें और चारा घोटाले में क्या अंतर है . कुछ नहीं ! दोनों जनता के पैसे की सीधी लूट हैं .

इस बेशर्मी के बाद सरकारी प्रचार तंत्र का तुर्रा की बैंकों के एन पी ए कम हुए हैं एक माध्यम वर्ग की आँख मैं धुल झोंकने की चेष्टा मात्र है . अपने लाभ के लिए बैंकों ने फिक्स्ड डिपाजिट की ब्याज़ दर बहुत घटा दी जो वृद्ध पेंशनर के साथ बहुत बड़ा अन्याय है .इसके अलावा हर मुफ्त सेवाओं के ऊपर शुल्क लगा दिया जैसे चेक बुक देना . उद्योगों को ऋण सस्ता नहीं हुआ है . सिर्फ चुनिन्दा उद्योग पतियों के कर्जे माफ़ हो रहे हैं .

सरकारी बैंक  इसका सबसे बड़े शिकार हैं उसके बाद भारतीय  निजी बैंक . विदेशी बैंक सरकारी झासों में नहीं आते हैं .

प्रश्न है की यह लूट कब, क्यों और कैसे शुरू हुयी ?

इसकी शरुआत तो श्रीमती गाँधी व् संजय गाँधी काल मैं हुयी . नागरवाला केस जिसमें इंदिरा गाँधी के कहने पर केशियर नागरवाला ने साठ लाख रूपये दे दिए थे एक उदाहरण है , नागरवाला की रहसयमय ढंग से जेल मैं मृत्यु हो गयी . स्टेट बैंक के अध्यक्ष तलवार को निकालने के लिए संजय गाँधी ने एडी चोटी का दम लगा दिया क्योंकि वह उनके चाह्हेते उद्योगपतियों को निरर्थक क़र्ज़ नहीं दे रहे थे. उसके बाद तो उन्होंने कथित रूप से एक व्यक्ति को अध्यक्ष बनाने के लिए साथ करोड़ रूपये की मांग  भी कर दी जिसका विवरण एक पुस्तक मैं दिया है. परन्तु यह बीमारी बढ़ती गयी .आज अदानी पर अपरिमित क़र्ज़ है . कल कोई इसकी पोल खुलेगी जैसे आज माल्या , धूत व् नीरव मोदी की खुली है .

इन सब के पीछे मुख्य कारण  है चुनावी भ्रष्टाचार . जब हर गरीब वोटर को वोट के लिए ५०० रूपये दिए जाते हैं तो इस के लिए अब खजाने की सीधी लूट के अतिरिक्त कोई और विकल्प नहीं है और हर सरकार यह करेगी . पुरानी कमीशन खोरे से यह आवशयकता पूरी नहि हो सकती . जब तक इस पर रोक नहीं लगेगी यह लूट चलती रहेगी . कोई छोटी चन्दा कोचर या तेलगी या हर्षद मेहता की जेल या मौत से यह समस्या नहीं सुधर सकती . धूत सरीखे रकत बीज पैदा होते रहेगे

चुनवो की सनखया कम करनी  होगी . राज्य सरकार व् केंद्र के चुनाव एक साथ करवाना तो अत्यंत आवश्यक है . पांच साल से पहले दुबारा चुनाव न हों . परन्तु गरीब को मुफ्त पैसा बांटना या वोट खरीदना कैसे रुकेगा ?

मध्यम वर्ग को अपने को सुरक्षित रखने के लिए देश की जनता को जगाना होगा . हिन्दू मुस्लिम की व्यर्थ की चर्चा से निकल कर पूरे देश को इस समस्या का समाधान खोजना होगा जैसे कभी दल बदल का समाधान खोजा गया था .

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