भारतीय प्रति व्यक्ति आय का तथाकथित दुगना होना : सत्य , भ्रान्ति व सरकारी दायित्व

 

भारतीय प्रति व्यक्ति आय का तथाकथित दुगना होना : सत्य , भ्रान्ति व सरकारी दायित्व

आज कल एक आंकडा बहुत उछाला जा रहा है कि पिछले दस वर्षों मे भारतीय प्रति व्यक्ति दुगनी हो गयी है !

सच?

पर यह तो सड़कों, होटलों या सिनेमा घरों , नयी मोटर साईकलों या टीवी या मोबाईलों, नए खरीदे घरों मैं तो दीख नहीं रही तो फिर यह दुगनी आय कहाँ छुपी है ?

पिछले कई वर्षों से बैंक मैं बचत पर गिरी ब्याज दरों से घटती आय से व्यथित व हर वर्ष में जी एस टी से कुछ नयी वस्तुओं के मंहगे हो जाने से पीड़ित शिक्षित वृद्ध जनता और बढ़ती बेरोजगारी से पीड़ित शिक्षित युवा वर्ग को तो इस मजाक की वास्तविकता पता थी पर जो पढाई में इतने सौभग्यशाली नहीं हें वह असमंजस में हैं कि उनके साथ कोई धोखा तो नहीं हो रहा .

इस लिए इस वर्ग को सच बताना आवश्यक है .

यह आंकडा सरकारी आंकड़ों विभाग द्वारा ही प्रसारित है . पर आज कल के शेष आंकड़ों की भांति ही द्रोण वध के लिए युधिष्ठिर द्वारा बोले अर्ध सत्य ‘ अश्वत्थामा मर गया , (मनुष्य नहीं हाथी) ‘ की तरह ही भ्रामक व दुराग्रही अर्धसत्य है .

यह सत्य है कि पिछले दस वर्षों में आज के दामों (Current Price) पर प्रति व्यक्ति आय दुगनी हो गयी है ( ८४६४७ से १७२००० ) . पर पिछले दस वर्षों में मंहगाई भी साठ(  ?)  प्रतिशत बढ़ गयी है . इसलिए पुरानी बराबर आय से हम दुगना खरीद भी तो सकते थे . जब तक मंहगाई को घटा कर (at constant prices )  आय नहीं मिलायेंगे तो यह आंकड़े नितांत झूठी कहानी बयान करते हैं. इस लिए लम्बे काल की आय के आंकड़े सदा constant prices पर ही बताये जाते हें .इसके अलावा २०१४ से पिछले आठ वर्षों मैं आय १५७% बड़ी थी ( Rs 33,717 in 2006-07 to Rs 86,647 in 2014-15)

यदि हम पिछले दस वर्षों की प्रति व्यक्ति आय constant prices पर देखते हें तो यह सिर्फ लगभग ३५ प्रतिशत ही बढी है . पर यह आंकडा भी पूर्ण सत्य नहीं है . पूरे देश मैं सब की आय बराबर तो नहीं बढी है . उदाहरण के लिए कोरोना काल में भारतीय धन्ना सेठों की आय तो बेतहाशा  बढ़ गयी जबकी साधारण आदमी के तो खाने के लाले पड़ गए और हजारों लोग बिहार के लिए पैदल सैकड़ों मील के सफ़र पर निकल पड़े थे . आज देश के १ % अमीर लोगों के पास ४२% धन है जबकी गरीब ७० करोड़ लोगों के पास मात्र  ५० % धन है .इसलिए औसतन आय सामान्य जन की देखनी चाहिए . यदि हम गाँव के खेती हारी मजदूर की आय देखें तो उसकी रोज़ाना आय दस साल मैं कुछ घटी है  .इसलिए खेतिहर मजदूर दस साल में और गरीब हुआ है . शहरी पढ़े लिखे वर्ग की बेरोजगारी बहुत बढ़ गयी है . बैंकों की ब्याज दर घटने से रिटायर्ड लोगों की आय घटी है . मंहगाई के कारण २०२२ मैं तीस वर्षों की परिवारों की सबसे कम बचत हुयी है . तो किस की आय बढ़ने की हम खुशी मनाएं ?

यह सिर्फ आंकड़ों की बात नहीं है . वास्तव मैं भारतीय विकास दर पिछले दस सालों में घटी है . कंपनियों ने आधुनिकरण कर अपना फायदा बढ़ा लिया है . शेयर मार्किट के दलालों की आय बेहद बढी है.पर सामान्य जन की क्रय शक्ति मैं बढ़ोतरी मनमोहन सिंह काल से कम हुयी है .

इसका उदाहरण सामान्य जन व् अमीरों की खरीददारी की तुलना से पता लग जायेगी . अमीरों के अप्प्ल आई फ़ोन की बिक्री बड़ी है . बड़े वैभव शाली घरों व् कारों की बिक्री बढ़ी है . इसके विपरीत सामान्य घर , मोबाइल व् स्कूटर मोटर साइकिल की बिक्री घटी है . अब बच्चे शौकिया नए मोबाइल या सुन्दर कपडे नहीं खरीद रहे क्योंकि मंहगाई के अनुपात में वेतन नहीं बढ़ा है .लोग सिनेमा नहीं जा रहे हैं . गावों में साबुन जैसी चीजों की FMCG खपत १७ % कम हुयी है.सामन्यतः साधारण व्यक्ति की आय विकास दर से आधी या एक तिहाई दर से बढ़ती है. इसलिए जब विकास दर आठ प्रतिशत थी तो सामन्य जन की आय बढ़ती दीख रही थी .आज का विकास सामान्य लोगों को फायदा नहीं पहुंचा रहा है .

ऐसा नहीं है कि गरीब का कोई फायदा नहीं हुआ है . सरकार के सस्ते लोन से गरीबों के करोड़ों घर पक्के हुए हैं .कोरोना काल मैं मुफ्त खाने व् वैक्सीन ने लाखों जाने बचाई ही .शौचालय बनने से बहुत लाभ हुआ है . सडकें सब का फायदा करेंगी . रक्षा व् विदेश निति की बहुत उपलब्धियां हैं .परन्तु नयी आर्थिक नीतिओं से पहले जितनी विकास दर नहीं आ पायी. झूठे आधे अधूरे आंकड़ों को बार बार दोहराने से सरकार की विश्वसनीयता घटती है .

प्रजा तंत्र मैं जनता को सच बताना सरकार का दायित्व है . इसलिए सरकार को अपने विभागों को अर्ध सत्य के बजाय पूर्ण सत्य बोलने के लिए प्रेरित करना चाहिए .

 

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